
आलेख
(आत्ममंथन)
– प्रवीण नारायण चौधरी

मिथिलाक ९९% जनताक वर्तमान स्थिति यैह छैक जे ओ ‘अपन’ पहिचानक विशिष्टता सँ पूर्ण रूप सँ कटि गेल अछि। नहिये ओकरा भाषिक पहिचान सँ कोनो आत्मसम्मान भेटैत छैक, नहिये ओ अपन भौगोलिक विशिष्टता सँ कोनो तरहक आकर्षण स्वीकार करैत अछि, नहिये ओकरा कोनो तरहक ऐतिहासिकता सँ लगाव छैक….. बस ओ बिहारी बनिकय प्रसन्न अछि, अपन गाम छोड़ि कतहु दुइ पैसा मजदूरी कमाइत प्रसन्न अछि, जाति-पाति मे बँटल अपन वोट बेचिकय प्रसन्न अछि।
जे पढल-लिखल अछि ओकरो मे चाकरी करबाक आ बस अपना सहित परिवारक भरण-पोषण करबाक मुख्य चुनौती सँ लड़िते समय खत्म भऽ जाइत छैक। बचल समय मे मोबाइल पर सेहो फेसबुक छहिये, देशक आन ठाम कि होइत छैक, ताहि पर लंबा-लंबा गप्प ओकरा मारैत देखल जा सकैत छैक। घरक विपन्नता, आर्थिक पिछड़ापण, लोक-पलायन, हेराइत-मेटाइत मिथिला अस्मिता व मैथिल पहिचान इत्यादि सँ ओकरा कोनो चिन्ता नहि छैक।
जे नेता बनैत अछि, ओकरा प्रखंड आ पंचायत मे कोना लूटल जाय, कोना रभाइस कैल जाय, कोना जनता केँ ठकल जाय… प्रथमत: यैह बात सबहक चिन्ता होइत छैक। ठेका-पट्टा सँ माल करगर जमा भऽ गेलैक, तखन सोचैत अछि जे आब विधायक आ पार्षद बनि लूटक दायरा केँ आरो बढाबी। जिला सँ ऊपर राजधानी धरि पहुँची। फुर्सत जखन-जखन भेटत तऽ अपन वोट बैंक लेल झगड़ा, फसाद आ विषादपूर्ण माहौल बनबैत रही, बनबाबैत रही, ऊपर सऽ पोछल-पाछल भीतर सँ स्याह बनल रही। नेतागिरी लूटि मे लटबा करैत चमकौने रही।
ओम्हर झा जी सब जे भागिकय टाउन धेलक, ओतय सँ फेर आब कनेक होश भेलैक तऽ चिन्ता-चिन्तन बढेलक अछि, मुदा फेसबुक सँ धरातल पर उतरय मे १-२ जीवन बीत जेतैक तैयो किछु हेतैक वा नहि… ई नहि कहल जा सकैत छैक। मुदा चिन्तनक दायरा बढलैक अछि। जन्तर-मन्तर पर सेहो १० सँ २० आ २० सँ ४० भेलैक अछि। एम्हर एगो झा जी कलकत्तावला मधुबनी के मेंही बोली, कर्मक छूच्छे गोली भूमि पर मिथिला समागम करय जा रहल छैक – बेचारा डेली दस गो अपडेट दैत छैक, प्रयास मे कतहु कमी नहि रखने छैक… मिथिला भवन केँ पहिने पाइन घेर लेलकैक, तखन आब दोसर ठाम जगह ठीकठाक करैत कार्यक्रम तय समय परसू यानि २९ अगस्त सँ शुरु हेतैक। दुइ दिन चलतैक।
झा जी कलकत्तावला के कहना अनुसार सब समाधान राजनैतिक चेतना सँ हेतैक, मुदा नेता जे सब छैक, ओ सब सत्रह ठाम आ केकरो पाजामा मे डोरी छहिये नहि, हाथे सँ धेने गुप्तांग केँ नुकौने नेतागिरी करय लेल बढल छैक। आम जनमानस मे ओकरा सब केँ आइयो बौआ-नुनु टा कहिकय पहिचान छैक। तैयो, समागम तय समय सँ हेतैक, दुर्दिन कनिकबो बदलतैक से आशा करू। परिणाम स्वयं कलकत्तेवला झा जी सँ सुनब – ओ बेचारे गीत, कविता, कथा सब लिखैत ओहि दुर्दिन केँ पुन: गेबे करता।
मुदा सहरसाक क्रान्तिभूमि पर वीरतापूर्ण गाथा लिखल जायत, ई विस्तार सँ हम दोसर दिन कहब।
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हरि: हर:!!