बुढियाक फूइस

नैतिक कथा

old lady budhiya k fuisएकटा चीर-परिचित कथनी जे खूब चलैत अछि मिथिला मे – ‘बुढियाक फूइस’, ई वास्तव मे एकटा नैतिक कथा थीक। गाम-घर मे बड़-बुजुर्ग माय-पितियैन सबहक मुंह मे ई कहाबत किछु बेसिये प्रयोग होइत देखैत रही। बहुत दिन जिज्ञासा होइत छल जे आखिर ई बुढियाक फूइस कि थीक आ कियैक एतेक प्रयोग मे अबैत अछि।

सन्दर्भ छैक वर्तमान समय मे चलि रहल भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीक ओज आ प्रतिभाक चौतर्फी लोकप्रियता सँ देशक भितरहि बहुते लोक केँ पेट मे दरद उखैड़ गेल जेबाक कारण अनावश्यक गन्हायल टीका-टिप्पणी आ मिथिलाक सेहो किछु लोक जे फेसबुक पर बेसीकाल ढोल टा बजबैत नजरि पड़ैत अछि तिनका द्वारा किछु बेसिये हुनकर मजाक उड़ेबाक प्रसंग पर मोन पड़ि गेल अछि ‘बुढियाक फूइस’।

बात छलैक जे एकटा राजाक एकलौता पुत्र हुनकर राज्य देवानजी केर पुत्र संग दोस्ती केने छलाह। दुनू दोस्त मे एहेन प्रेम छलन्हि जेकर चर्चा सौंसे राज्य मे होइत छलैक। सुतब संगे, उठब संगे, घूमब संगे, विद्यालय जायब संगे, कपड़ा एक्के रंगक दुनू गोटे पहिरब, भोजन संगहि, खेलायब संगहि, माने जे दुइ शरीर मुदा एक्कहि जान छल दुनू मित्रक। कतेको बेर पाठशालाक गुरुजी सब सेहो आश्चर्यचकित होइथ आ एहि बातक चर्च राजा साहेब लंग सेहो करथिन। राजा साहेबक आँखिक सोझें बैसैथ देवानजी अपन पुत्र केर राजकुमार संग एतेक गहिंर दोस्तीक बात सुनैथ तऽ प्रसन्नता सेहो होइन्ह आ संगहि ओ डेरेबो करैथ। प्रसन्नता तऽ सहजहि बुझय योग्य विषय छलैक, मुदा डर… ई बात हुनका सँ के पूछत सिवाये हुनकर धर्मपत्नीक… तऽ ओ इशारा मे हुनके टा कहैथ जे ई दोस्ती यदि टूटि गेल तऽ हमरा सब पर सेहो एकर खराब असैर पड़त… राजा-रजबाड़ाक लोक संग बेसी दोस्ती नीक नहि। राजा साहेब संग हमहुँ रहैत छी, मुदा सम्बन्ध मालिके-नौकरवला अछि। बौआजी ई बात बुझैथ आ ताहि गुणे राजकुमार संग दोस्ती निम्हबैथ, एहि मे सबहक भला होयत।

ओम्हर राजा केँ राजकाज सँ फुर्सत हो तखन ओ ई सोचय लेल जाइथ जे ई दोस्ती नीक आ कि बेजाय। मुदा महारानी सब लंग जखन ई दोस्तीक अनुपम कथा-वार्ता पहुँचल तऽ ओ सब कनेक नाक-भौं सिकोड़ली। राजाक बेटा आखिर देवानक बेटा संग एना एकरस मित्रता कियैक करत। पैघ-छोटक अन्तर बुझब जरुरी छैन राजकुमार केँ। महारानी लोकनि राजा सँ जहिया भेटैथ तऽ एक न एक बेर राजा केँ चेतावनी दैथ जे देखब कि राजकुमार एहि तरहें राजपाट लूटेनिहार नहि बनि जाइथ। जखन-जखन राजकुमार सब केँ कोनो गरीब कामदारक बेटाक संग बेसी दोस्ती भेल तऽ लूटेबे केलक, बचेलक किछु नहि। राजा साहेब! राजकुमार केर एहि दोस्ती पर अपने सतर्क होउ। राजा साहेब हँसैत बात टाइर दैत छलाह, बाल-सखाक रूप मे कृष्ण आ सुदामा केर मित्रताक उदाहरण दैत ओ कहि बैसैत छलाह जे ई आजुक रीत नहि बहुत पूर्वहि सँ होइत आयल अछि। राजाक बेटा होइथ आ कि कामदार देवानक बेटा – दुनू प्रिय बालक छथि, एखन बालपन मे सखापन पर कोन प्रश्न।

कतेको वर्ष एहि तरहें दोस्ती मे बीत गेल। उच्च शिक्षा हासिल करबाक अवसर पर आब सखा सँ सखा अलग भऽ जेता – मुदा राजकुमार अपन पिता सँ वचन लऽ लेने छलाह जे हम जहिया धरि पढब, अपन बाल-सखाक संग पढब। अहाँ वचन देल जाउ जे हमर ई माँग केँ पूरा करब। अपन प्रिय पुत्र केँ वचन देने छलाह राजा साहेब। भेबो तहिना कैल – दुनू सखा केँ संगहि बेलायत पठाकय उच्च शिक्षा सेहो संगहि पूरा कैल गेल। बाद मे राजकुमार केर विवाहक बात चलल। मुदा राजकुमार एतहु जिद्द रोपि देलनि जे हमर विवाह हम तखनहि करब जखन हमर मित्रक विवाह सेहो हमरा संगहि कैल जायत। देवानक बेटा सेहो राजकुमार संग रहैत कहियो दोषभाव केँ ग्रहण नहि केने छल, आ नहिये ओकरा मे कोनो विकार छलैक। दुनू निर्विकार मित्र सदिखन एक संग – एक रंग – एक भाव मे लीन रहयवला – अपन विवाहक बात सुनिकय कनेक उत्साहित भेल। राजा साहेब देवानजी केँ बजबौलनि। दरबार मे एहि प्रश्न पर राज पण्डित केर राय लेल गेल। अन्त मे ई निर्णय भेल जे जरुर यदि कोनो कन्या पक्ष अपन पुत्री राजकुमार आ देवानकुमार लेल एक संगहि दैथ तऽ संगे-संग विवाह सेहो करायल जा सकैत छैक। मुदा महारानी सब केँ ई बात कनिको पसिन नहि पड़ि रहल छलनि, कतय राजा भोज, कतय गंगू तेली। आखिर वर्गीय दूरीक सेहो कोनो मूल्य होइत छैक। राजकुमार केर जिद्द आ राजा सब बात केँ पूरा कय रहल छलाह ई नीक बात नहि। मुदा एतय तऽ दिवानगीक हद्द धरि दोस्ती… अन्त मे राजा ढोलहा दियौलनि आ दुनू सखाक संगहि विवाह तक कय देल गेल।

घर-गृहस्थीक बात होयब विवाह उपरान्त स्वाभाविके छैक। राजकुमार अपनहि समान महल अपन मित्रो केँ देलनि। राजा साहेब राजकुमार केँ बजा कय कहलखिन जे आब अहाँ विवाहित जीवन मे छी। हमरो अवस्था किछु बढि रहल अछि। अहाँ केँ राजकाज दिशि सेहो ध्यान देबाक अछि। चट् राजकुमार बाजि उठलाह – “अवश्य पिताजी! अपने हमरा बताउ, कि सब करबाक अछि। ध्यान राखब। काज दुइ भाग मे बराबर बाँटि देब। हम आ हमर मित्र….”। राजा बिच्चहि मे बाजि उठलाह, “सुनू राजकुमार! एतेक दिन धरि अहाँक सब बात केँ हम पूरा कएलहुँ। मुदा आब आर नहि। अहाँ राजा बनब, ओ देवानपुत्र अपन कर्म आ विद्या सँ कोनो विभाग केर चीफ बनायल जा सकैत छथि।” राजकुमार केँ ई बात अखड़य लगलनि। ओ विरोध करय लगलाह। ओ पिता सँ स्पष्ट कहलाह जे “देखू पिताजी! बिना मित्रक संग बराबर अधिकार आ कर्तब्य बँटने हम राजा नहि बनब।” पिता परिस्थिति बुझि गेलाह आ ओहि दिनक बैसार ओ ओत्तहि रोकि तुरन्त अपन मंत्री मंडल केर बैसार बजौलाह। ओतय यैह प्रश्न बड़ी गुप्त रूप मे राखल गेल।

आब राजाक व्यवहार धीरे-धीरे देवान प्रति कठोर सेहो स्वाभाविके रूप मे होमय लागल छलन्हि। देवानजी बात भाँपि गेलाह। ओ अपन पुत्र केँ सब बात नीक जेकाँ बुझेला जे “देखू, पुत्र! अहाँ गरीब देवानक बेटा थिकहुँ, अहाँक मित्र राजकुमार छथि। ओ अहाँकेँ अपन मित्र बनौलाह आ सब बात मे बराबर हिस्सा देलनि से हुनकर महानता छल। मुदा आब आगाँ अहाँ सबहक बाट अलग-अलग अछि।” राजकुमारक मित्रताक धुनि मे देवानकुमार केँ ई बात कतबो बुझेला पर ओ राजकुमार केर महान् चित्त आ हृदयक स्मरण कय किछु नहि बाजैथ। होइत-होइत राजकुमार आ देवानपुत्र केर बीच मित्रता खत्म करबाक लेल राजा एक सँ बढिकय एक षड्यन्त्र करय लगलाह, मुदा ई मित्रता एहेन अक्खज छल जे दुनू गोटे बुझि जाइथ जे पक्का एहि मे कोनो न कोनो षड्यन्त्र अछि जाहि सँ अपना लोकनिक मित्रताकेँ खत्म करबाक बात कैल जा रहल अछि, आ फेर बात यानि मित्रता ओहिनाक ओहिने रहि जायत छल, बरु आरो बेसिये बढि जायत छल। राजा बेचारे परेशान – महारानी सब पटपटाइत रहैत छलीह – देवानजी सेहो डरे गुम्म रहैत छलाह। सब उपाय कय केँ हारि गेलाह राजा मुदा दोस्ती पकियाक पकिये छल दुनू सखा मे।

अन्त मे, महारानी लोकनि एक दिन रनिवास मे एहि बात पर गंभीर चर्चा कय रहल छलीह। संग मे छलनि एकटा कूबरी बुढिया जे मालिश करबाक लेल नित्य रनिवास अबैत छल। रानीक चिन्ता ओकरा बुझय मे आबि गेलैक। ओ कहलकैक, “धौर जरलाहा के! यै रानीजी ई कोन बड़का बात भेलैन। ई काज तऽ हम चुटकी बजाकय कय सकैत छी।” रानी चौंकली। ओ पूछली ओहि कूबरी बुढिया सँ – “से कोना?” जबाब देलकनि जे, “आब से चिन्ता अहाँ छोड़ि दियौक।” बस, किछुए दिन मे ओ बुढिया अपना हिसाबे दुनू मित्रक रूटीन अनुसार फूलबाड़ी मे घूमयकाल ओतहि पहुँचि गेल आ दूरे सँ इशारा कय एकटा आंगूर देखबैत एक गोटा केँ बजेलक। मुदा ओ दुनू गोटा संगे ओतय जाय लगलाह, ताहि पर ओ बुढिया हाक पारिकय कहलकैन, ‘नहि-नहि! एक्के गोटा पहिने आउ।’ तऽ राजकुमार पहिने देवानकुमार सँ कहला जे ‘जाउ, देखियौक जे कि चाही।’ देवानकुमार जखन बुढिया लंग गेला तऽ ओ धीरे सँ हुनकर कान मे फूँकिकय किछु कहि देलकैकन आ कहलकैन जे जाउ बौआ। ओ देवानकुमार अकचकैले किछु नहि बुझैत आपस जाय लगला कि बुढिया राजकुमार सँ हाक पारि कहलक जे “राजकुमार! अहाँ आउ एम्हर कने।” राजकुमार सेहो जिज्ञासावश ओतय अयलाह, बुढिया हुनका वैह प्रक्रिया सँ कान मे फुसफुसाकय किछु कहिकय जाय लेल कहलकैन। राजकुमारो अकचकायले ओतय सँ आपस चलि देलाह।

पुन: दुनू मित्र एक-दोसर सँ पूछलाह जे कि कहलक, तऽ देवानकुमार कहलखिन जे, “धू! बुढियाक फूइस! किछु नहि कहलक।” राजकुमार कहलखिन जे, ‘एह! ई बात तऽ ओ हमरा कान मे कहलक। अहाँ सँ किछु आर कहलक। कि कहलक से सच-सच बाजू।” बेचारे देवानकुमार कहैत-कहैत रहि गेला जे ओ हुनका बस ‘बुढियाक फूइस’ कहि जाय लेल कहलक, मुदा राजकुमार ई बात अपना केँ कहल जेबाक आ एक्के बात कहबाक लेल अलग-अलग नहि बजेबाक दृष्टान्त दैत मित्र पर विश्वास नहि केलनि। झगड़ा ओत्तहि सँ दुनू मे शुरु भऽ गेल। दोसरे दिन भने राजा साहेब सँ कहिकय देवान तथा देवानकुमार केँ राज-निकाला दऽ देल गेल। आ राजाक अभीष्ट एक ‘बुढियाक फूइस’ सँ पूरा भऽ गेल।

नैतिकताक बात यैह छैक जे अविश्वास लेल एकटा छोट बात काफी छैक, विश्वास अछि तऽ जीत अछि, विश्वास टूटल तऽ सब किछु ओत्तहि खत्म। मिथिलाक लोक केँ एक-दोसर मे विश्वास केर मानू अकाल छैक। एहेन सन परिस्थिति मे प्रधानमंत्री मोदी होइथ आ कि साक्षात् भगवान् राम, मिथिलावासी अपन दंभक आगाँ किनको नहि छोड़ि सकैत छथि। मुन्डे-मुन्डे मतिर्भिन्ना!! ॐ तत्सत्!!