आलेख: व्याख्यान
– डा. उषा किरण खान
(मैथिली साहित्य महासभा दिल्ली द्वारा आयोजित ‘प्रथम विद्यापति स्मृति व्याख्यानमाला’ – कान्स्टीच्युशन क्लब सभागार, दिल्ली मे स्वयं डा. उषा किरण खान द्वारा प्रस्तुत)
मिथिलाक नारी नहिं छथि बेचारी। मिथिलाकें किएक? कत्तहुक नारी बेचारी नहिं छथि। बेचारी बनल रहब आ बेचारी होयब दूनू अलग-अलग वस्तु अछि। देखल गेल अछि जे समय पबिते अपन बेचारगी केर चोला फेकि ठाढ़ होएबाक चेष्टा करै छथि। माए कतहु बेचारी होइक! सन्तान धारण करबाक योग्यता ओकरा पालन करबाक योग्यता जकरा मे होइक ओ विशिष्ट छैक। खाहें परिचय मुसहरनी होइक, सबिया कलवारिक, जैनब कुजरनी कि जगतारणि गिरहतनी। सब मात्रा स्त्राी छथि जे माए छथि, बेटी छथि, बहिन छथि आ छथि सहयात्राी।
अशिक्षाक अन्धकार मे मिथिलाक बहुत पइघ आबादी पड़ि गेल छल। पंडित कहाबय बला लोक आखर बिसरि गेल। श्रुत कहाबय लागल छल। दू चारि टा गाम बउआएब तखन कोनो आखर चीन्हय कि पढ़य बला लोक भेटितय। पत्रा बांचय बला, कथा सुनब’ बला कि संस्कार देब’ बला पंडित सेहो कमे रहथि। कोना आँतर मे बसल विद्वान ततेक ने बन्द मानसिकता के रहथि जे टीका मीमांसा, दर्शनक पोथी लिखथि, चर्वित चर्वण करइलय काशी धरि पहुँचि जाथि परंच अपना समाजकेँ शिक्षा ज्ञान देवा दिस प्रवृत्त नहिं होथि। सैकडो कि जे हजारो वर्ष सँ जखन पुरूष श्रुत पंडित होथि तखन स्त्राीगण सहजहिं किएक ने होएतीह। राजा लोकनि अल्पज्ञानी से होथि। हुनका बुझाइन जे ओ जखन राजकाज चला रहल छथि, कृषक खेत उपजा रहल अछि, गोपालक आ मलाह अपन काज बिनु शिक्षा के क’ रहल अछि त’ शिक्षाक की आवश्यकता। किछुए प्रबुद्ध-पंडितकेँ ज्ञान आ अक्षरज्ञानक महत्ता बुझाइत छलन्हि, तैं बाँचल रहल आखर।
प्राचीन कालीन मैत्रेयी कात्यायनी आ गार्गी केर चर्चसँ आगाँ कोनो लाभ नहिं बुझना गेल। भारतीक कालजयी निर्णायकक भूमिकाके कहाँ कियो महत्व देलन्हि। से दितथि त’ निछच्छ अक्षरहीन किएक कएल गेल? किन्तु ओं सब अन्हार इजोतक इतिहास हमर विषय नहिं अछि। विषय अछि आधुनिक कालक स्त्राीगण की कए रहल छथि। आब दुनिया एकटा विशाल गाँव भ’ गेल अछि, अइ गाम मे मिथिलाक नारीक की स्थिति छन्हि। आपत्काल मे नारी अपन सामर्थ्य देखौने छथि एखनहुँ।
एकटा समय छलैक जखन कम आयु मे अर्थात् बालविवाह होइत छलै। कइएक कारण सँ मैथिल पुरूष पढ़ि लिखि क’ नीक नीक पद पर आसीन भ’ गेल छलाह। मिथिलाक महानगर दरभंगा मे कोर्ट छलैक, महराजी छलैक, स्कूल बालक आ बालिकाक छलैक। महराजी त’ सामाजिक क्षेत्रा मे शिक्षाक विशेष रूप सँ स्त्राी शिक्षाक प्रचार प्रसार एकदम्मे नहिं करौने छलाह। यात्राीजीक मुँह सँ सुनल एकटा संस्मरण अछि। हुनकर गाम तरौनी निविष्ट पंडितक गाम छलन्हि, हुनकर कोनो कका धिया पुताकेँ, कोनो अर्धाली समस्यापूर्तिक लेल देथिन, यात्राीजी तकरा चटपट पूर्ण क’ देथिन। कका कहथिन- ठक्कन बड़ ठेकनगर छथि। से ठक्कन प्रथमाक परीक्षा मे परोपट्टा मे प्रथम अएलाह। मुदा आगाँ पढ़क कोनो जोगार नहिं छलैन्ह। ओ महराजी पहुँचलाह। एकटा स्वरचित संस्कृतक दोहा बड़ी महारानीजीक हुजुरमें
पहुँचा देलनि। महारानी ई सूनि जे बालक छथि तनिकर रचना अछि तुरत बजा पठओलनि। महारानी संस्कृतक विदुषी छलखिन, भगवत्भक्तिमे लीन रहइत छलखिन। आगाँ पाछाँ ई जे यात्राी जी केँ आगत-स्वागत भेलनि, जलपान इत्यादि भेल आ किछु आर दोहा श्लोक सुनलीह तथा इनाम से देलखिन, काशी मे रहक आ शिक्षा ग्रहण करक व्यवस्था क’ देलखिन। मुदा हमरा यात्राीजी जे कहलनि से ई जे महारानी जे यात्राीजीक माएक आयुके होएथिन्ह से सोझाँ नहिं भेलखिन, चिक के अ’ढ़मे रहथिन्ह। यात्राी जी क्षुब्ध भेल रहथि। कहने रहथि जे हमर मोन करइ छल जे हम एतेक टा राजमहल मे रहय बाली मातृस्वरूपा महारानी के चरण छूबि लितहुँ से नहिं भेल। हुनका सन प्रगतिकामी किशोरक मोन खिन्न भ’ गेल छलैन्ह। ओ तखनहिं सँ मिथिलाक नारीक दशा पर गम्भीर चिन्तन करय लगलाह। ई एकटा पइघ सन विडम्बना छइक जे जतेक पइघ घरक, तकरा तेहन परदा। परदा प्रथा सेहो स्त्राीकें बेचारी बना कए राखने छलैन्ह। से परदा उच्च जाति वर्ग मे
छलैक। मजदूर आ किसान वर्ग मे नहिं छलैक। माथ पर आँचर आ घोघ तर रहितो ओ खेत जाइक, मालजालक घास आ कमठौनी रोपनी मे, कटनी-सोहनी मे पुरुषक कान्ह सँ कान्ह मिला क’ काज करैक। मलाहिन जौं माछक भौरी करतै, कुजरनी तरकारी बेचतै, चूड़िहारिन
चूड़ी लहठी पहिराबय बहरेतै आ हजामिन धोबिन अपन कत्र्तव्यपालन करय निकलतै तखन जेठ श्रेष्ठक लाज लिहाजक मैथिल परम्परा के पालन जरूर करतै, घर त’ नहिये सेवतै, चिकक पाछाँ त’ नहि बैसि सकइ छइक। समाजक सत्य इयेह छैक जे वएह बीस प्रतिशत लोक
मैथिल समाजक प्रतिनिधित्व करैक। तिनकहिं परदाक विषम जीवन सँ त्राण दियाएब आवश्यक छलैक।
महात्मा गाँधी केर बिहार मे आविर्भाव मिथिलाक लेल विशेष वरदान भ’ गेलैक। भारतीय स्वतंत्राता संग्राम मे भाग लेबाक वास्ते मैथिल जन आ जनीकेँ अपन जड़ीभूत पिछड़ापन सँ सेहो निजात पएबाक जरूरति महसूस कएल गेलै। गाँधीजीक सहयोगी बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद अपना ससुर बाबू धरनीधर प्रसादक संगे लहेरियासराय कोर्ट मे सेहो ओकालति करै छलाह। हुनका लोकनिक प्रयास सँ शिक्षित आ अर्धशिक्षित मैथिल सामाजिक कार्य लेल आगाँ एलाह। स्थान स्थान पर आश्रम बनल, जाहि मे मझौलिया; दरभंगा जिलामे मगन आश्रम स्थापित भेल। गुजरात सँ, महाराष्ट्र सँ बहिन लोकनि स्त्राीगणकेँ शिक्षा देमय आएल छलीह। बिहारक पहिल महिला विद्यापीठक स्थापना भेल। जाति प्रथा आ कर्मकाण्डक विरोध गाँधीवादक प्रमुख धारा छलैक। मगन आश्रम संगे कइएक टा आश्रम स्थापित भेल छलैक। गाँधीजी संगे ब्रजकिशोर बाबूकें बेटी प्रभावती जी गुजरात गेलीह। ओतय ओ सेवाभावी कार्य एवं स्वरक्षाक कार्य संगे शिक्षा दिस सेहो प्रवृत्त भेलीह। जेल जाएब आ विरोध करब स्वतंत्राता संग्रामक हिस्सा छलैक। प्रभावती जीक विवाह आ जयप्रकाश नारायण सँ भेल छलन्हि। आश्रम सभ मे चर्खा सिखाओल जाइ छलै मिथिलाक स्त्राीगण चारखा आ टकुरी सँ पहिनहिं सँ परिचित छलीह। आब आवश्यकता आबि तुलएलनि। मिलक वस्त्रा त्यागि खादी सूत काति करघा पर स्वयं बूनि वस्त्रा धारण करक अभ्यास भ’ गेल छलैक।
सन् 1928सँ 1940 धरि मिथिला मे पइघ परिवर्तन भेलैक। पतोर रघुनाथपुर के जमींदार परिवारक छोट कुँअर पं. रमानन्दन मिश्र अपना धर्मपत्नी राजकिशोरी देवी केँ ल’ क’ आश्रम चल अएलाह, पाछाँ-पाछाँ गामक उच्च वर्गक स्त्राीगण सेहो अवगुण्ठन हँटा आगाँ अएलनि।
सन् 1940मे बिहारक रामगढ़; आब झारखण्ड मे कांग्रेसक अधिवेशन आ शिविर लागल छलैक। प्रभावती पर स्त्राीगणकेँ जमाजुट करबाक भार छलैन्ह। ओ मिथिला क्षेत्रक गाँव-गाँव घूमि फिरि स्त्राीगण सभकेँ एकट्ठा कएलन्हि। बेस संख्या मे स्त्राीगण शिविर मे रहथिन। हुनकर संगठन कौशल देखि गाँधीजी निर्देश देलखिन्ह जे ओ बिहारक राजधानी पटनामे स्त्राी जागरणक सूत्रापात करथि। प्रभावती जी ‘महिला चर्खा समिति’क स्थापना कएलन्हि। ओहिमे सर्वाधिक प्रशिक्षिका मिथिलाक नारी छलीह।
देशक आजादीक पश्चातक एकटा घटना हमर अपन देखल अछि। लहेरियासरायक एकमात्र हाइस्कूल; तखनुक जे कन्या लोकनिक छलैक ताहि मे एकटा पइघ लोकनिक बेटी पढै छलखिन। हमरा मोन अछि ओ स्कूल मे विवाहिता रहथि। हुनकर पिता अपना जमाए के पढ़ा कए इन्जिनियर बनओलनि आ से इन्जिनियर साहेब हिनकहि खर्च सँ अमेरिका गेलाह। ताहियो दिन ढेरी डाॅक्टर इन्जिनियर अमेरिका कमाए आ बेसी डिग्री लेमय जाइथ। पत्नी आ दू टा सन्तान भारत मे रहैन्ह। पत्नी स्कूल पास कए घरे मे रहथि ओ वर्ष दर वर्ष बीति गेलै हिनका नहिं लए गेलखिन। हुनक मैथिल मित्र लोकनि हिनका टिकट पठा बजा लेलनि। माता-पिता के बुझएलनि जे जमाए बजा रहल छथिन। बच्चा सभ एत्तहि रहलनि ओ गेलीह। पतिक एपार्टमेन्ट मे जखनहिं पहुँचली ओ पड़ा गेलखिन। मित्र लोकनि अप्रतिभ भ’ हिनका कहलखिन जे हमरा लोकनि घुरतीक टिकट कटा दै छी, अदृष्ट के बदलत? मुदा ओ तैयार नहिं भेलखिन। किछु संगी मैथिलानी एवं बिहारी स्त्राीगण सँ राय विचार कए वीकेंड मे आलूदम आ पूरी बना क’ कोनो नियत स्थान पर बेचय लागली। फेर त’ ढेरी पफर्माइश होम’ लागलनि। एकटा जमींदार ओकील साहेबक फूल पान सन पोसल शिक्षिता बेटी व्यंजनक माध्यम सँ ततेक ने कमाए लागली जे अपना दूनू बच्चाकेँ बजा लेलनि। ओहो सभ आगाँ जा कए डाॅक्टर भेलैक।
मिथिलाक स्त्राी सन् 62-64मे एहन काज अनजान देश मे कएलन्हि। अपना बेचारगीक चोला छिन्न भिन्न कए देलनि। तखन ताहि मे कोनो सन्देह नहिं जे बेचारगी के जे बीज संस्थाक नाम पर परम्परा सँ चलि अबै छै से कोकनि गेल छै। काल-पात्राक अनुसार नीतिधर्म आपद्धर्म बनलै ओ मनुष्य लय बनलै, मनुष्य कालजयी थिक मनुष्य नीति-निर्धारण करैत अछि, मनुष्य कर्मधारण करैत अछि मनुष्यहि आपद्धर्मक निर्वाह करैत अछि। मनुष्य मात्र पुरुष अछि कि स्त्राीगण सेहो छैक? स्त्राी केँ प्रकृति आ पुरूष के पुरुष कहक, सहअस्तित्वक जे बोध कराओल गेलैक तकर पालन ओ किएक ने कएलनि? पहिने वर्चस्वक भाव आ परपीड़ाक सुख भेटलनि पाछाँ ओएह घेघ भ’ गेलैन्ह।
संसार भरिक सभ्यता ऊर्ध्वमुखी भेल जाइत आ भारतीयता भारत मे, मिथिला मे कने बेसी गारत भेल। परंपराक जंगलझाड मे फँसल संस्कृति नष्ट भ’ गेल छल। तखन स्त्राीगण छलीह जे सभटा जोगा क’ राखलन्हि। जखन मैथिल अपना इतिहासक बोध जोगा क’ नहिं
राखलन्हि, जखन ज्ञानक वस्तु आखर नष्ट भ’ जाए देलन्हि, जखन श्रुतज्ञान शरीरक संगे भस्मीभूत होम’ देलनि तखन स्त्राीगण स्थिर रहली। हुनकर अपन हुनर अपना हाथमे अपना जीवन पतिमे रहलैन्ह। ओ आवश्यकता रूप मे कला आ कौशल बचा कए राखलन्हि। आइ
जाहि मिथिला किंवा मधुबनी चित्रकला पर मिथिला गर्व करैत अछि ताहि दिस कोनो पुरुषक ध्यान गेल छलन्हि? नहि ने? ओ देवाल परक अनगढ़ विधि व्यवहार नहिं रहि कोना कागत, काठ, वस्त्रा पर चल आएल? तकरो श्रेय कोनो मैथिल के नहिं छन्हि। सन् 1934मे बड़का भूकम्प आएल छलैक, ताहि दिन मे देश गुलामी के बन्हन मे रहैक। भारतीय स्वतंत्राता संग्राम चरम पर छलैक तैं हेतु अंग्रेज आका सब साकांक्ष रहथि कोन प्रकारें अपन हाथ ऊपर कएल जाए। राहत बचाव कार्य करएबला अंग्रेज ढहल ढनमनाएल देबाल सभ मे नयनाभिराम मित्तिचित्रा देखि चकित भ’ गेलै। अनुसंधान कएला पर ज्ञात भेलै जे विपन्न मिथिला मे, विपन्न सन देखाए दैत अबला स्त्राी सभक ई कला थिक जकरा लेल हुनका लोकनि कें ककरो मुँह नहिं जोहए पड़ै छन्हि। कुसुमक फूल सिंगरहारक डंटी, सीमक पात आ खापड़िक कारिख हरदि सामग्री छन्हि, काठी उपकरण, सीता राम आ राधाकृष्णक कथा, विषय आ स्वयंसिद्ध कला थाती छन्हि। शोधक लेल एकटा नव रस्ता बनि गेलैक। चाउरक पिठारसँ अरिपन भाँति-भाँतिक, छिरिआयल मौनी पौती सिकी के आ तखन देसी विदेसी शोध। ताहि भूकम्पकाल मे बंगाल सँ अएलाह उड़ीसावासी उपेन्द्र महारथी जे किछु दिन कवि गुरूक संसर्ग मे शांतिनिकेतन मे रहि अपना चित्राकलाकेँ धार देलन्हि। हुनका प्रयास सँ संगठित रूप मे स्वतंत्राताक पश्चात् कला पर काज होम’ लागल। भीत पर सँ उतरि कला, कागज पर आ पेफर कपड़ा पर आबि गेल। आब ओ मिथिलाक विशिष्ट चिन्हास भ’ गेल अछि। राष्ट्रीय पुरस्कार पद्मश्री ताही कला के पहिले पहिल भेटल। रोजी रोजगारक एकटा नव आयाम फूजल, मिथिलाक नारीक स्वाभाविकता सशक्तीकरण मे बदलि गेल। आइ ओ अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारक एकटा पापुलर विषय अछि।
स्त्राी शिक्षा जहिया सँ शुरू भेल स्त्राीगण शिक्षिका आ डाॅक्टर भेलीह ई दूनू पेशा बहुत दिन धरि मुख्य रहल। आस्ते आस्ते स्त्राीगण अपारंपरिक शिक्षा मे प्रवेश कएलन्हि, ओ ओकील भेलीह, के कुरसी पर विराजमान भेलीह, प्रशासनिक सेवा आ पुलिस सेवा मे साधारण सँ ल’ क’ उच्च पद तक पहुँचलीह। जखन सेनाक प्रवेश स्त्राीगणक लेल विहित भेल तखन सेना मे पहुँचलीह। मिथिलाक स्त्राी अपारंपरिक काज मे सामाजिक क्षेत्रा मे छथि। आइयो जनजागरण के काज क’ रहल छथि। चरखा करघाक प्रचार आ प्रसार करै छथि। पोखरि झांखीमे टेंगरा पोठीक स्थान पर हाइब्रिड माछ पोसि व्यापार करै छथि। मिथिला के जे ऋणात्मक दोष छैक तकरा मे जौं गुणात्मक सुधार आनल जाय तँ शुद्ध लाभकारी राज्य भ’ जाएत। सभसँ पहिने अपना क्षमता केँ चीन्हब अछि। युवा शक्ति जकरा मे ऊर्जा छैक आ जे पहीन सेहो छथि, शिक्षित आ प्रशिक्षित छथि तिनका आगाँ आबि समर्पित भाव सँ कार्य करक चाही। सरकार पर मात्रा भरोसा क’ क’ जीवक आकांक्षा मे दुरवस्थाकेँ निमंत्रण देल जाइत छइक। अपना धरोहरकेँ बचएबाक चिन्ता स्वयं नहिं कएल जाइत अछि ताहि दिस ध्यान देबक छइक। अपना गामक स्कूल जे सरकारी अछि तकर गुरूजी समय पर अबै छथि, बच्चा सभ उपस्थित रहैत अछि कि नहिं, दुपहरिया भोजन उचित तरीका सँ रान्हल जाइ छै कि नहिं? से देखय कोनो मुख्यमंत्री कि प्रधानमंत्राी नहिं औतै? अपनहिं देखब उचित अछि। पंचायत मात्रा मोकदमा सोझराबय लय नहिं होइ छै आने जमाखोरी आ भ्रष्टाचारक वास्ते होइ छै, भ्रष्टाचारक जड़ि गामे मे छैक गामेक नेता सर्वोच्च कुर्सी धरि पहुँचैत छथि। आब मुखिया सरपंच पंचक चुनाव मे सेहो धन खर्च होइत छैक, फोटो छपा, स्लोगन छपा पोस्टर बनै आ साटल जाइ छै झुनिया दैया जे बकरीयो
अधनफ्फी पर नेने रहैत अछि, से पंच कि सरपंच मे ठाढ़ कएल जाइत अछि, ओ हजारो टाका कतय सँ अनैत अछि? आ सरपंच होइते बोलेरो कि स्काॅर्पियो गाड़ी पर कोना सवार भ’ जाइत अछि? जौं शिक्षित युवजन गामक रूखि करथि तखने हमरा बुझने कल्याण अछि। ग्राम सड़क
योजना, वृद्धा पेन्शन योजना, राशन बासन इत्यादि योजनाक उचित लाभ भेटत। मिथिला मे सभटा स्थान बाढ़ि पीड़ित नहिं छइक ताहि मे की ग्रामीण उद्योग नहिं लागि सकै छै? आन्ध्र प्रदेशक माछ आ अंडा खाइत अछि संउसे बिहार, सुधा दूध गाम गाम मे पसरल छइक, खाद्य
पदार्थक व्यापार कए पंजाब गुजरात विश्वव्यापारी भ’ गेल हमरा लोकनिक नाम मात्रा मिथिला पेन्टिंग मे अछि। एखनहुँ आइ सभक कमान मैथिल ललना आ कन्याक हाथ मे आओत तखनहिं सुधार होयत।
तैं हम कहब जे साँचे मिथिला केर नारी नहिं छथि बेचारी, ओ चलथि अगारी पुरूष चलथि पिछारी। जगदम्बाक भूमि अछि वएह बाट देखओतीह।