कोलकाता, जुलाई २७, २०१५. मैथिली जिन्दाबाद!!
मैथिली भाषा ओ साहित्य केँ मिथिला सँ बाहर सौंसे देश मे आ फेर विदेश मे लोकप्रिय बनेबाक अविस्मरणीय योगदान कोलकाताक रहल अछि। विश्वविद्यालय मे मैथिली पठन-पाठन हो, मैथिली लोक संस्कृति केर संरक्षण हो, रंगकर्म, कलाकर्म, भाषा, साहित्य, समाज – हर क्षेत्र मे कोलकाता जहिना पूर्व मे भारतक राजधानी रहल तहिना मिथिलाक धरोहर केँ जोगेबाक कार्य मे अग्रसर प्रदर्शन करैत रहल अछि।
आधुनिक युग मे जखन रोजी-रोटी लेल मैथिल घर छोड़िकय प्रवास पर जाय लेल बाध्य भेलाह तऽ मोरंग जे आब नेपाल मे पड़ैत अछि से पहिल आ ताहू सँ समृद्ध दोसर लोकप्रिय प्रवास-स्थल कलकत्ता बनल। मोरंग मे मजदूरवर्गक लोक बेसी आयल, कोलकाता ब्रिटिशकालीन भारतक राजधानी होयबाक कारण मैथिल केर कुशाग्र बौद्धिक क्षमताक ओहिना केन्द्र बनल जेना आजुक भारतक राजधानी दिल्ली बनल अछि। स्वाभाविके रूप सँ मैथिल केर बौद्धिक क्षमताक विश्वस्तर पर स्वागत कैल जाइछ, दोसर मैथिलक वैदिक संस्कार, मृदुभाषी होयब आ अनुशासित रहबाक गुण केँ प्रशंसा सेहो चौतरफा होइत अछि। एहि कोलकाता मे शिक्षित-सुसंस्कृत मैथिल शुरुहे सँ अपन भाषिक पहिचान केँ सुदृढ बनेबाक लेल जाग्रत रहला आ बंगाली समाज सँ अपना केँ कतहु कम नहि आँकि प्रतिस्पर्धात्मक वरीयता बनेबाक मानवीय व्यवहार केर धर्मक बखूबी निर्वाह करैत रहबाक तथ्य सुस्पष्ट अछि।
एहि क्रम मे कोलकाताक मैथिल समाज लगभग हरेक प्रमुख क्षेत्र मे आइयो ओतबे महत्त्वपूर्ण योगदान दय रहला अछि जेना प्रतीत होइत अछि। हलाँकि एतय मैथिल वर्चस्वक लड़ाई मे सेहो कतहु न कतहु फँसल देखाइत छथि, तथापि सृजनशीलताक धारा निरंतर गतिमान बनल अछि। कोलकाता मे युवा साहित्यशिल्पी लोकनि फेर सँ एकटा ‘नव परंपरा’ केँ शुरुआत केलनि अछि। ‘अकाश तर बैसकी’ – एहि मे कतहु खुला आकाश केर निचाँ कवि, कथाकार, भाषाप्रेमी, अभियानी लोकनि पूर्व-निर्धारित समयानुसार एकत्रित होइत छथि आ कविता पाठ, कथा वाचन व अन्यान्य विषय पर चर्चा-वार्ता करैत छथि। मैथिल द्वारा आयोजन मे काफी रास आडंबरी व्यवहार केँ खत्म करैत सीधा-सादा समारोह सँ केवल सरोकारक विन्दु पर चर्चा प्राचीन समयक सभावास केर तर्ज पर करब एहि नव परंपरा आकाश-तर-बैसकी केर मूल मर्म अछि।
‘अकाश तर बैसकी’ कोलकाता मे ६ठम् बेर काल्हि रवि दिन बेलुरमठ पवित्र गंगा नदीक किनार पर आयोजित कैल गेल। एहि आयोजनक संयोजक रूपेश त्योथ जे पत्रकारिताक संग मैथिली भाषा-साहित्य मे सेहो निरंतर योगदान दय रहला अछि ओ टुकड़ा-टुकड़ा मे अपन फेसबुक मार्फत समाचार शेयर केने छथि, फोटो सहित। मैथिली जिन्दाबाद पर हुनकहि ओहि अपडेट केँ आधार मानि छठम् समारोहक पूर्ण समाचार निम्नरूपेण देल जा रहल अछि।
रूपेशजी कहैत छथि, “आजुक ‘अकासतर बैसकी’ नव कीर्तिमान स्थापित केलक अछि। बरखाक समय अछैत 19 गोट साहित्यप्रेमी, साहित्यकार लोकनिक उपस्थितिसं आजुक बैसकी अनुपम बनि गेल। नव-पुरान कवि लोकनिक कविता, गीत, गजलक संगहि विचार-विमर्शक पूरा सत्र चलल। गंगा तटपर बेलूर मठक पावन प्रांगण हिया तृप्त क’ देलक। एक नव जोश, नव उमंग केर अनुभूति भ’ रहल अछि। ई समय, ई साल, ई दिवस, ई अनुभव ह्रदयमे जोगा राखल अछि।”
रूपेशजी कार्यक्रम मे सहभागी एकमात्र ‘मिथिलानी’ किरण झा केर सहभागिता सँ उत्साहित हुनकर प्रशंसा करैत लिखैत छथि, “एक नीक शिक्षिका ओ रंगकर्मीक संग किरण झा एक नीक कवियित्री सेहो छथि। ई कविकर्मक निरंतरता राखथि से आस अछि। ‘अकासतर बैसकी’मे आइ ई पूर्व पढ़ल रचनाक पाठ केलनि। साहित्यिक-सामजिक क्रियाकलापमे मैथिलानीक नगण्य सह्भागिता चिंतित करैत अछि मुदा किरणजीकें देखैत छी त’ आशाक किरण देखाइत अछि।” विदित हो जे मैथिली साहित्य महासभा दिल्ली सेहो मैथिलानीक हतोत्साह केँ समाधान करबाक दृष्टिकोण सँ ‘मिथिलाक नारी – नहि छथि बेचारी’ विषय पर पद्मश्री डा. उषा किरण खान द्वारा यैह ऐगला रवि दिन २ अगस्त केँ व्याख्यानमाला सँ देश भरि मैथिल नारी केँ अपन साहित्यिक संस्कार सहित समस्त प्रगतिवादी अभियान मे बैढ-चैढकय हिस्सा लेबाक लेल अभिप्रेरित करय जा रहल अछि।
आगाँ फेर त्योथजी कहैत छथि, “अकासतर बैसकी’मे गजल प्रस्तुत करैत लोकप्रिय गजलकार राजीव रंजन मिश्र, चित्रमे परिलक्षित छथि गीतकार विजय इस्सर (बाम), प्रफुल्ल कोलख्यान ओ किरण झा। राजीवजी आइ कतेको नव घटनाक्रमपर अपन टटका गजल पढ्लनि।” निश्चित, राजीव रंजन मिश्र हालधरि लगभग ४०० गजल लिखि चुकल छथि जाहि मे समाज मे विद्यमान् कूरीति, आडंबर, बड़बोलापन, कथनी-करनी मे असमानता, आ सुधार होयबा योग्य सब विन्दु सहित अपन वैष्णव परंपरा सहित राधे-कृष्णक भक्ति पर आधारित रचना सब कएने छथि। पारिवारिक संस्कार सँ प्राप्त ज्ञान मुताबिक मैथिलीक सेवा मे देरी सँ अबितो श्री मिश्र निरंतर तत्परता सँ सब तरहक योगदान कएनिहार कोलकाता-युवा-समाजक नेतृत्वकर्ताक भूमिका निर्वाह करैत छथि।
तहिना त्योथजीक शब्द मे, “बैसकीमे गीत प्रस्तुत करैत विजय इस्सर (फोटो), अकासतर बैसकी पर आधारित विशेष गीत प्रस्तुत केलनि इस्सरजी। हिनक कविता आ गीत बड दिनक बात सुनबा लेल भेटल।” इस्सरजी मैथिलीक बड पैघ चिन्तक, समस्तीपुर-बेगुसराय दिशि मैथिली सँ लोक-समाज मे विरक्ति आबि रहल अछि वा एना कहू जे अन्य भाषाक कूटिल प्रसार सँ निर्दोष जनमानस अपन मूल संस्कार सँ भागि रहल अछि; एहि लेल इस्सरजी चाहैत छथि जे मैथिली-मिथिलाक गतिविधि ओहो क्षेत्र मे जोर-शोर सँ हो। हिनक बचिया मैथिली सहित अन्य भाषाक गायकी मे काफी लोकप्रियता हासिल कएने छथि। मैथिली लेल पूर्ण समर्पित इस्सरजी केर सहभागिता सँ कार्यक्रमक शोभा आरो बढि गेल।
आजुक आयोजनक मुख्य विन्दुपर प्रकाश दैत रुपेशजी कहैत छथि, “अकासतर बैसकी’मे हमरा सभ कविता पाठ करैत गपशप करैत आबि रहल छी। आजुक बैसकीमे प्रफुल्ल कोलख्यानक उपस्थितिसं कवितापर गंभीर विमर्श, मनन संभव भ’ सकल। गोष्ठी अपन उद्देश्य दिस अग्रसर अछि। वरिष्ठ लोकनिक परामर्श आ उत्साहवर्द्धन हमरा लोकनिक संबल अछि।
आजुक ‘अकासतर बैसकी’मे कविता प्रस्तुत करैत उमाकांत झा ‘बक्शी’। बैसकी हिनक अध्यक्षतामे आयोजित भेल। यथार्थकें कविताक माध्यमे ई रखैत छथि आ से बेस रुचिकर ढंगसं। हिनका सुनब आ सुनैत रहबाक मोन करैत अछि। चित्रमे रत्नेश्वर झा, अरविन्द कुमार झा ओ गंगा प्रसाद झा सेहो परिलक्षित छथि। आइ बिनय भूषण आ अमर भारती सेहो पहुँचलाह आ कविता पढ्लनि। अचक्के मनोरथ पूर भेल बुझना गेल। दुनू गोटेकें शिकाइत छनि हमरासं मने अपेक्षा छनि। बात भेल मुदा मोन नै भरल। हिनका दुनूक कवितो सुनल मुदा ही पियासले रहल। आशा करैत छी ई लोकनि आगामी बैसकीमे सेहो अओताह। अकासतर बैसकीक उद्देश्य तखने अचीव हेतैक जखन नव कवि अओताह आ साहित्यक श्रीवृद्धि करताह। अशोक राय केर कविता हमरा बेस गंभीर लागल। हिनकामे संभावना अफरात अछि।
रत्नेश्वर झा काव्य संग्रह सुरुजक छाहरिमे [मनोज शान्डिल्य] सं कविता पढ्लनि। एहिना रोशन चौधरी सेहो आन कविक रचना पढ्लनि। ई अपन सुनाबथि से आशा धेने छी। मैथिल प्रशान्त केर कविता हम पढ्लहुं आ लागले दूटा अपनोबला सरकओलहुं। प्रकाशजी कानमे कहलनि जे हमरा नै जिद करू। आबि गेलहुं त’ एतेक जुटान भ’ गेलैक, गाबि देब त’ फेर कैम्पसमे चुट्टी ससरय केर जग्गह नै बचतैक। जॉय चटर्जी, रामनरेश शुक्ल, मनोज झा, भवन झा आदि लोकनि बैसकीक सिंगार छलाह। सत्ते एक अविस्मरणीय बैसकी रहल।”
जाहि तरहें मैथिली गतिविधि सब ठाम पर एकटा नव प्रगतिशीलता अपनाबैत जा रहल अछि, एहि सँ शीघ्रे मैथिली जिन्दाबाद होएबाक अवस्था बनत, ई हम सब मानिकय चलि सकैत छी।