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मिथिला मे सब देवगन सँ होरी खेलाएब आरंभ होइ अछि

 

लेख विचार
प्रेषित: प्रिया झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- मिथिला मे फगुआ के महत्व

महीना अछि फागुन बड़ सुंदर
पूर्णिमा के होइत अछि फगुआ
नैय जाड़ हाड़ गलबैय बला
आ नैय गर्मी घाम चुबयबला
इजोरिया मे चानक सुन्दरता
के वर्णन करैत छैक कवि सब
अते मनोहर छटा रहैत अछि
समय के बेजोड़ समागम रहैत अछि
फगुआ आ फाग गीतक संगम
ढोलक के थाप दिन राति
होलिका दहन सं बजैय सगरो गीत

राम कृष्ण शिव सभ देवता सभहक सुंदर वर्णन फगुआ मे अछि।अपन सभहक मिथिला मे फगुआ के बड़ धूमधाम रहैत अछि।पहिने त बेसी होइत रहय मुदा आब रंग आ अबीर के मिलावट डरे सभ रंग खेलेनाय सं परहेज करय लगलैथ। गाम मे तऽ बेसी होइत रहय,होली मे माटि सं सेहो खेलाइत रहैत लोक सभ।समय के संग संग सबटा बदलि गेल।ना ओ नगरी ना ओ ठाम।
सामाजिक परिवर्तन सं फर्क पड़ि गेलय फगुआक रंग मे आब लोक कम खेलाइत अछि।
कहल जाइत छैक जे जीबे से खेले होरी ।होली मात्र एकटा पाबैनि नैय छैक जकर मात्र अनुशरण कएल जाई।
होलिका दहन मे जे धार्मिक मान्यता छैक भक्त प्रह्लाद आ हुनकर पीसी संगे ओढ़नी ओढ़ि के आगि मे बैसय के
जहि मे भक्त आ भगवान के अटूट प्रेम के प्रगाढ़ करैत अछि केना नरसिंह भगवान हिरण्यकशिपु के मारि के अपन भक्त के रक्षा करैत छैक आ होलिका दहन के संगे होली मनबय के परम्परा शुरू होइत अछि।
होली आ फगुआ सभके एक रंग यानि प्रेमक रंग मे रंगि दैत अछि।फगुआ मोनक ईर्ष्या द्वेष के नाश कऽ सभमे सहिष्णुता आ सौहार्द के अनुभव करबैतअछि।
अहि लेल कहल जाइत छैक जे बुरा नै मानू फगुआ मे ।
वैज्ञानिक दृष्टि सँ समय परिवर्तन संगे रोग प्रतिरोधक क्षमता के मजगूत करय मे रंग बड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभबैत अछि।शरीर स्पर्श कऽ रंग लगेला सं शरीर मे खून संचार होइत अछि आ शरीर परिवर्तन होइत समय के ओहि अनुकूल बनबैय के कोशिश करैत अछि।
धार्मिक दृष्टि सं भगवती लग पातरि पड़ैत अछि खीर पूरी मालपुआ लड्डू अहि दिन भोग लगैत अछि।अपना सभ दिस पूर्णिमा दिन भगवान के रंग अबीर चढ़ाओल जाइत अछि आ पातरि आ मालपुआ लड्डू के भोग लगैत अछि।
फेर दोसर दिन धुरखेला होइत अछि।रंग अबीर सं रंग सभ एक रंग भऽ जाइत छी कोइ नाय छोट नैय पैघ ना गोर नैय कारि सभ एक रंग ककरो मे कोनो असमानता नैयजेना भगवान लग सभ एक रंग छैक,भगवान ककरो मे भेद नैय रखय छैक तहिना फगुआ अपना सभ गोटे के रंग मे एक दैत अछि।
अपना सभहक मिथिला सन होली आब कतौ नैय होइत अछि। जेना आब गाम सुन्न लगैत अछिदलान सुन्न लगैत अछि ओहिना रंगक पाबैनि सेहो लोक उमंग के कम कऽ देलक ।
फगुआ जेना कतौ विलुप्त भऽ गेल आब सभ औपचारिकता मात्र रहि गेल।
गीत ओहिना सुनय मे नीक लगैत अछि।
जेना मिथिला मे राम खेलत होरी मिथिला मे
मिथिला मे हो ….मिथिला मे हो…. मिथिला मे राम खेलत होरी मिथिला मे…..
यमुना तट श्याम खेलत होरी यमुना तट ….यमुना तट हो यमुना तट हो ……यमुना तट श्याम खेलत होरी यमुना तट
बहुत सुंदर मनोरम सुंदर पाबैनि फगुआ जे साल भर बाद फेर आओत अहि लेल सभ ओहि दिन फागक रंग मे सभ
रंगि जाएब आ भगवान के नाम लैत अपन हृदय सं
अंहकार लोभ मोह के नाश करय के कोशिश करब।
जय मिथिला जय मैथिली ।

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