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देख देख मोरा कोहुना देख – अटेन्सन-सीकर कविजी

प्रहसन

– प्रवीण नारायण चौधरी

कविजीक कविताक लिंक

आइ-काल्हि अधिकतर कविजी अपन कविताक लिंक सब शेयर करैत रहैत छथि । अटेन्सन-सीकर जेकाँ लोकक ध्यानाकर्षण लेल टैग सेहो कय दैत छथिन लोक सब केँ । कोहुना कियो ओहि सामग्री केँ देखिकय दस बेर ‘वाह-वाह’ कय दियय, मोन मानि जायत । एकटा कथा मोन पड़ैत अछि एहि स्थिति मे…. !

एक गोट कविजी अपन कविताक कतेको रास पन्ना जेबी मे राखल करथि । जहाँ १० गोटे कतहु ठाढ़ भेटथिन कि कविजी आग्रहपूर्वक हुनका सब केँ कहल करथिन – ‘हे! ई एकदम टटका-टटकी लिखल अछि । एकरा अपने लोकनि सुनि देल जाउ ।’

टका-पैसाक पाछू बेहाल संसार मे साहित्य प्रति लोकक झुकाव-लगाव कतेक छैक से कहयवाली बाते नहि रहि गेल । साहित्यहु मे कविताक अर्थ सब सँ बुझनाय ततेक सहज नहि छैक । १० गो मे कियो १ गो बुझनिहार !

९ गोट लोक कविजीक मजाक उड़बैत कहि देल करथिन, ‘औ जी! अहाँक जेबी मे सब दिन टटके-टटकी काव्यक अम्बार रहल करैछ । गाम देखब न ठाम, लागब सुनबय कविता आ नाम! छोड़ू-छोड़ू, बाद मे कतहु आराम सँ बैसिकय कविता सुनायब, हम सब सुनब । एखन दोसर दिश ध्यान अछि ।’

आब जेहो १ गोटे काव्यक रसिक रहथि ओहो कविजी सँ पैत बचेबाक आग्रह कय कविता सुनबय सँ मना कय देथिन । कविजी बड़ा उदास भ’ गेल करथि ।

बाद मे हुनका कियो आइडिया देलखिन – ‘अहाँ कविता लिखू आ संग्रह सब किताब रूप मे प्रकाशित करू । मात्र ३०० प्रति छपि गेल त बुझू काज भ’ गेल । अनेरे लेल लोक सब केँ सुनेबाक कोन लाभ ? खाली वाह-वाही लेल आइ काल्हि लोक कोनो काज करैछ ?’

कविजी सहमति मे मूरी डोलबैत प्रकाशनक सब आइडिया लय ३०० प्रति पोथी छपबौलनि । पोथी छपि गेलाक बाद प्रकाशक हुनका कहलखिन जे एकर किछु प्रति साहित्य अकादमी केँ, किछु प्रति चेतना समिति केँ, किछु वरिष्ठ कवि ओ लेखक सब केँ… बस मंगनी मे किताब बँटैत रहू । आमलोक किनलक वा नहि, ताहि सँ कोनो मतलबे नहि राखू । हँ, बीच-बीच मे फेसबुक पर फुकास्टिंग कय देल करू जे ३०० प्रति मे आब मात्र ३ प्रति शेष बचि गेल अहाँक हाथ पर ।

कविजी आमजनक उपेक्षाक शिकार, बस ओहिना-ओहिना करैत गेलाह जेना ई जोगाड़ टेक्नोलौजी सँ ग्रेजुएट लोक सब कहैत गेलनि ।

समय एलैक ! साहित्य अकादमीक पुरस्कृत व्यक्ति रूप मे हुनकर नाम आबि गेलनि । पूरा फेसबुक आ व्हाट्सअप मे फल्लाँ कवि – फल्लाँ कवि अनघोल मचि गेल । आब त ओहो लोक सब जे कविजी केँ काव्य प्रस्तुति करय सँ वंचित कय देल करथिन, हुनका संग सेल्फी खिंचबैत फेसबुक पर पोस्ट करय लगलाह जे साहित्य अकादमी सँ पुरस्कृत फल्लाँ कवि हमरे गामक लोक, हमरे इलाकाक लोक, हमरा सब केँ पहिने एना कविता सुनबथि, एना पोखरि मे संगे हेलैत रही, चर-चाँचर आ नदी-खोला एना टपैत रही, खेसारी-बथुआ एना तोड़ी…. आदि ।

कविजी देखलनि जे बेकार मे जिनगीक एतेक रास समय काव्य सृजन मे खर्च कयलहुँ, एतय तँ सब किछु जोगाड़ टेक्नोलौजी सँ चलैत छैक । जे लोक सब कविता सुनय तक नहि छल, ओहो सब बधाई सन्देशक बौछाड़ लगा देने अछि । फेसबुक सँ नीक आर किछु नहि भ’ सकैत अछि ।

कविजीक सृजन सामर्थ्य एहि वाहवाही आ पुरस्कार मे जे ठप्प पड़लन्हि से ठप्पे छन्हि । कारण जोगाड़ टेक्नोलौजी मे एक कविक एक्के बेर जोगाड़ लागि पबैत छैक । तेकर बाद ओ कतबो बा‍प-बाप कय लैत अछि, ओकर सेटिंग नहि भ’ पबैत छैक । कारण एहि टेक्नोलौजी मे बेसी सँ बेसी आउडियेन्स चाही । बाजार विस्तार दूर धरि चाही । एक बेर मजा लय चुकल लोक आमक चूसल आँठी जेकाँ भ’ जाइछ, दोबारा ओकर गोटी लाल नहि भ’ पबैत छैक ।

मैथिली साहित्यक दुर्दशा मे लगभग ६० वर्ष सँ एहने मुंह देखि मुंगबा वला हालत बनल रहबाक कारण आखिरकार मैथिलीभाषी समुदाय मे जे विद्यापतिक पदावली – नचारी आदिक प्रभाव-प्रेरणा बनलैक तेकरा फेर दोसर कवि लोकनि नहि बदलि सकलाह एखन धरि । निश्चय, पुरस्कार सँ उपर लोकमानस मे पकड़ बनौलनि, हुनकर नाम चलैत छन्हि ।

स्मरणीय सत्य यैह छैक जे कोनो साहित्यिक सृजन लोकोपयोगी होयत त ओ लोकमानस मे पहुँचबे टा करत, ओकर सराहना आ चर्चा लोक करबे टा करत । जोगाड़ टेक्नोलौजी वला साहित्य सँ समाज केँ कोनो लेना देना नहि रहैछ । ओ अपन तुष्टिकरण लेल भले कतबो अटेन्सन-सीकिंग कय लेथि, ओ लोकोपयोगी साहित्य कहियो नहि बनि सकैत अछि ।

हरिः हरः!!

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