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कर्ज भरल भव्य विवाह सौं बेसी नीक सादगी सौं संपन्न विवाह

लेख विचार
प्रेषित: अशोक कुमार सहनी
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि

बिषय – : “आधुनिकता आ आडम्बरयुक्त विवाह सँ प्रभावित मध्यमवर्गीय परिवार”

आजुक समय में विवाह सिर्फ एक सामाजिक संस्कार नहि रहल अछि; बल्कि आधुनिकता आ आडम्बर सँ भरल एक सामाजिक प्रतिस्पर्धा बनि गेल अछि। खासक’ मध्यमवर्गीय परिवार, जेहन आर्थिक स्थिति के कारण सीमित साधन पर निर्भर रहैत अछि, एहि आधुनिक आ आडम्बरयुक्त विवाहक प्रवृत्ति सँ अत्यधिक प्रभावित भ’ रहल अछि। विवाहक आयोजन, जे परंपरागत रूप में सांस्कृतिक आ आध्यात्मिक रूप सँ जुड़ल छल, आइ क’ एकटा भव्य प्रदर्शन बनेबाक साधन भ’ गेल अछि। एहि सँ मध्यमवर्गीय परिवारक आर्थिक स्थिति पर गम्भीर दबाव उत्पन्न होइत अछि।

आधुनिकता आ देखाओ क’ दबाव

वर्तमान समय में “देखाओ” आ “प्रतिस्पर्धा” क’ प्रवृत्ति विवाहक मूल स्वरूप क’ बदलि देलक अछि। विवाहक अवसर पर वरक पक्ष आ कन्याक पक्ष दुनू पर “आधुनिक आ भव्य” आयोजनक दबाव रहैत अछि। जँ फलां क’ विवाह में भव्य सजावट छल, महँग ज्वेलरी, ब्रांडेड लहंगा-शेरवानी, आ मेकअप विशेषज्ञ द्वारा तैयार वर-कन्या छल, त’ हमर विवाह में ओहि सँ कम कियैक? एहि प्रश्नक उत्तर में एकटा मध्यमवर्गीय परिवार अपन सीमित संसाधन सँ अत्यधिक कर्ज ल’ अपन इज्जत बचेबाक प्रयास करैत अछि।

मध्यमवर्गीय परिवार, जे अपन बच्चा सबहक शिक्षा आ भविष्यक तैयारी में अपन कमाई खर्च करैत अछि, ओ परिवार एहि विवाहक दबावक कारण अत्यधिक आर्थिक संकट में पड़ि जाइत अछि। माता-पिता के सोच रहैत अछि जे एहन अवसर जीवन में एक बेर आबैत अछि, आ बच्चाक खुशीक लेल एहि दबावक सामना करब आवश्यक अछि।

परंपरा आ संस्कृति सँ हटैत विवाहक आयोजन

मिथिला आ अन्य भारतीय परंपरागत विवाह में एकटा सरलता, सांस्कृतिक गौरव आ आध्यात्मिकता रहैत छल। विवाहक संस्कार में दहेजक नाम पर खर्च बहुत कम छल आ मेहमानक स्वागत सेहो सहजता सँ होइत छल। मुदा आधुनिकता आ आडम्बरयुक्त संस्कृति, जकरा “पाश्चात्य प्रभाव” सेहो कहल जा सकैत अछि, ओहि परंपराक मूल जड़ि क’ कमजोर क’ रहल अछि।

महँग होटल, सजावट, भव्य भोज, महँगा मेकअप आ कैमरा क्रू सभ किछु विवाहक आयोजनक अनिवार्य भाग बनि गेल अछि। एहि सँ सामाजिक आ सांस्कृतिक मूल्य समाप्त भ’ रहल अछि।

मध्यमवर्गीय परिवार पर पड़ैत प्रभाव

एहि विवाहक भव्यता क’ बोझ मध्यमवर्गीय परिवार पर कत्तेक भारी होइत अछि, तेकर उदाहरण जीवनक बादक कठिनाइयाँ अछि। कर्ज लेल जाएत अछि, जे विवाहक बाद चुकता करबाक कष्ट माता-पिता क’ वर्षों तक सहय पड़ैत अछि। आर्थिक तनाव सँ मानसिक तनाव सेहो होइत अछि।

एतबे नहि, विवाहक बाद कन्या पर सेहो ओहि “देखाओ” क’ प्रभाव रहैत अछि। ओकर अपेक्षा रहैत अछि जे विवाहक बादक जीवन सेहो एहन भव्य होयत। मुदा जखन एहि अपेक्षाक पूर्ति नहि होइत अछि, त’ वैवाहिक जीवनक संघर्ष सेहो बढ़ि जाइत अछि।

समाधान आ विचार

एहन स्थिति में समाधान निकालब अति आवश्यक अछि। एहि समस्या क’ समाधानक पहिल कदम “समाजक सोच” में बदलाव अनब अछि।

१. सरलता आ परंपरा क’ महत्व: विवाहक आयोजन क’ पुनः सांस्कृतिक आ सरल स्वरूप में आनि परंपराक महत्व बुझाएल जाए।

२. आर्थिक स्थिति क’ सम्मान: माता-पिता क’ आर्थिक स्थिति क’ ध्यान में राखि विवाहक आयोजन होयबाक चाही। देखाओ क’ प्रवृत्ति सँ बचल जाए।

३. सामाजिक जागरूकता: समाज क’ एहि विषय पर जागरूक बनेबाक आवश्यकता अछि। भव्यता आ आधुनिकता सँ नहि, बल्कि प्रेम, आपसी समझ आ परिवारक खुशी सँ विवाहक सफलता नापल जाए।

हमर निष्कर्ष:-

विवाह, जे जीवनक नव अध्यायक शुरुआत थिक, ओकरा एहेन दबाव आ प्रतिस्पर्धाक माध्यम नहि बनेबाक चाही। आधुनिकता आ आडम्बरक प्रभाव सँ मध्यमवर्गीय परिवार पर पड़ैत बोझक अनुभव केहेन कठोर होइत अछि, तेकरा सिर्फ ओ परिवार बुझि सकैत अछि। समाज क’ चाही जे एहि समस्या पर ध्यान दिआए आ परंपरा आ संस्कृति क’ महत्व क’ पुनः स्थापित करए। विवाह क’ सरल आ आर्थिक रूप सँ सुलभ बनाब’ लेल सबहक सहयोग आवश्यक अछि।

“सादगी सँ भरल विवाहक सुख आ दीर्घकालिक संबंध, भव्यता सँ भरल कर्ज आ तनाव सँ बेहतर होइत अछि।”

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