राजा कुशध्वज जनक
– प्रवीण नारायण चौधरी
के छलाह राजा कुशध्वज ?
राजा जनक जिनक अन्य नाम विदेहराज सीरध्वज छलन्हि, हुनकर छोट भाइ छलाह कुशध्वज । विदेहवंशी राजा ह्रस्वरोमाक दुइ पुत्र मध्य जेठ मिथिलाक राजा जनक कहेलनि, अनुज कुशध्वज रहथि । नेपालक एक प्रसिद्ध जिला सप्तरीक मुख्यालय ‘राजविराज’ क्षेत्रक राज्य कुशध्वज केँ भेटल छलन्हि । बाद मे ओ सांकाश्या नगरीक राजा बनाओल गेलाह । अपन स्वाध्याय सँ प्राप्त गोटेक विन्दु पर राजा कुशध्वज मादे चर्चा कय रहल छी ।
राजविराजक राजदेवी मन्दिरक स्थापना राजा कुशध्वज द्वारा कयल गेल कहल जाइछ । राजा कुशध्वज अपन जेठ भ्राता सीरध्वज (जनक) समान आध्यात्मिक ज्ञानक परम ज्ञाता रहथि । अत्यन्त धर्मनिष्ठ आ प्रजाप्रेमी रहथि । हिनका द्वारा प्रजाहित लेल बहुत रास धर्ममार्गक विवेचना कयल गेल अछि । हिनकर गोटेक उक्ति अत्यन्त प्रसिद्ध मानल जाइछ – यथाः
⦁ भगवान् पर विश्वास करू । ओ एकमात्र उद्धारकर्ता छथि जे अहाँक रक्षा करैत छथि, अहाँ केँ सुधारैत छथि आ अहाँ केँ आशीर्वाद दैत छथि ।
⦁ युग बदलि सकैत अछि, मुदा भगवान कहियो नहि बदलता, आ हुनकर नीक गुण कहियो कम नहि होयत ।
⦁ दानकर्म खुब रास करू, कियैक तँ यैह नीक काज कयला सँ स्वर्गक मार्ग पर पहुँचल जा सकैछ ।
⦁ युद्धक समय मे उग्र सिंह जेकाँ रहू आ भगवानक पूजाक समय मे आज्ञाकारी कुकुर जेकाँ बनल रहू ।
⦁ अहाँक मृत्युक बाद अहाँ संग किछु नहि आओत, सिवाय अहाँक नीक कर्मक ।
⦁ अपन गुरुक सम्मान करू आ हुनका सदिखन विनम्रतापूर्वक नमस्कार करू ।
⦁ अपन माता-पिता केँ पूज्य देवता बुझू आर हुनका सब प्रति सदैव अत्यन्त श्रद्धा अर्पण कयल करू ।
⦁ बीतल समय फेर नहि लौटत । अतः अपन समय केँ सकारात्मक (उत्पादक) ढंग सँ उपयोग करू ।
⦁ भगवान् केवल अहाँक सद्गुण आ उदात्त कर्म केर माध्यम टा सँ बेसी प्रसन्न हेताह ।
(स्रोतः पूजा स्टोर – डिवोशनल आर्टिकल्स)
सांकाश्य क्षेत्रक राजा केना बनलाह कुशध्वज ?
जेठ भाइ मिथिलाक राजा जनकक औरस सुपुत्री ‘सीता’क सुन्दरता जगत प्रसिद्ध छल । यैह कारण सांकाश्य नगरीक राजा ‘सुधन्वा’ मिथिलाराज केँ घेरि लेलनि आ सीता संग विवाहक शर्त पर राजा जनक केँ बाध्य करय लगलाह । ताहि पर युद्ध भेल आ राजा सीरध्वज जनक सुधन्वाक बध कयलनि, संगहि सांकाश्य नगरीक राजा अपन छोट भाइ कुशध्वज केँ बनौलनि ।
(स्रोतः लोकसंस्कृति कोश – मिथिलाखण्ड, डा. लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव)
विदित हो जे राजा कुशध्वज केर दुइ पुत्री छलीह – मांडवी व श्रुतिकीर्ति । हिनका दुनूक विवाह दरशथकुमार भरत आ शत्रुघ्न सँ भेलन्हि । राजा सीरध्वज जनक आ राजा कुशध्वज जनक – दुनू भाइ भगवान् विष्णुक परम भक्त रहथि । आध्यात्मिक दर्शन आ धार्मिक जीवनशैलीक अद्भुत व्याख्याता रूप मे दुनू भाइ प्रसिद्धि प्राप्त कयलनि । मानव जीवन आ गृहस्थी धर्म मे प्रत्येक मानव केँ केना अपन जीवनयापन करबाक चाही ताहि पर हिनका लोकनिक व्याख्यानक ताहि युग मे बहुत पैघ स्थान भेटल, जे शास्त्र-पुराण मे लिपिबद्ध अछि । जीवनक अन्तिम समय हिमालय मे शरण लय मोक्ष प्राप्त कयलनि ।
हरिः हरः!!