लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “आधुनिक मिथिला मे पुनर्विवाह केर आवश्यकता किएक आर कोना
पुनर्विवाह अपना सभक ओहिठाम सभ दिन सँ होइत छलैक आ प्राचीन काल में एकर विकृत रूप सेहो अपन समाज में व्याप्त छल जे एकटा पुरूष पाँच पाँच टा बियाह करैत छलाह आ हुनक मृत्यु पर पाँच – पाँच टा स्त्रीगण के जिनगी मे अन्हार भऽ जाइत छलैन्ह एकर संग संग समाज में ओहि स्त्रीगण के नीक दृष्टि सँ नहिं देखल जाइत छलैन्ह। कहवाक तात्पर्य ई जे पुरूष लेल पुनर्विवाह सभ दिन सँ मान्य छलैक आ सभटा प्रतिबंध स्त्रीगण के लऽ कऽ छलैक। पुरूष प्रधान समाज में पुरूषक सुविधानुसार नियम कानून बनल छलैक मुदा आस्ते आस्ते समाज में शिक्षाक प्रचार प्रसार भेलाक कारणे एहि एकतरफा कुरीति पर विराम केर संकेत आबि रहल अछि जे आवश्यक सेहो छैक। स्त्रीगण आ पुरूष दुनू के अपन समाज में समान अधिकार छैक। जीवन रूपी गाड़ी के चलयवाक लेल गाड़ी के दुनू पहिया भेनाइ आवश्यक छैक। ओना तऽ पुनर्विवाह स्त्रीगण पुरूष दुनू के सभ अवस्था आ परिस्थिति मे होयवाक चाही मुदा विशेष रूप सँ जाहि स्त्रीगण के कोनो धिया पूता भेला सँ पहिने पति के स्वर्गवास भऽ जाइत छैन्ह एहन परिस्थिति मे हुनक पुनर्विवाह अवश्य होयवाक चाही मुदा एहि लेल ओहि स्त्रीगण के इच्छा सर्वोपरि होयवाक चाही। हुनका समक्ष एहेन वातावरण बनेबाक चाही जाहि में कोनो प्रकारक दबाब नहिं रहैक। एकर प्रभाव सँ अन्तर्जातीय बिवाह के रोकबा में सेहो सफलता भेटतैक कारण स्वजातीय कनियाँ नहिं भेटलाक कारणे एकर बढावा भेटैत छैक संगहि परिवार आ समाज में स्त्रीगण के ओहि कष्टकारी जीवन जीयला सँ मुक्ति भेटतैन आ परिवार के गाड़ी पुनः पटरी पर आबि सकैत अछि। पहिले के जमाना में वातावरण ग्रामीण परिवेश बला छलैक जाहि मे वैधव्य जीवन आसानी सँ कटि जाइत छलैक मुदा आब परिस्थिति पूर्णतः बिपरीत छैक संगहि सोचनीय विषय छैक जे एकरा लेल जिम्मेवार ओ बेचारी स्त्रीगण कथमपि नहिं छैथि तें हमरा हिसाबे समाज के उपर मुँहे उठयवा में आ अनुकूल वातावरण बनेबा मे पुनर्विवाह समय केर माँग अछि