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स्त्री या पुरुष केर पुनर्विवाह मानवता व समानताक अधिकार थीकै ई

लेख विचार
प्रेषित: रिंकू झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “आधुनिक मिथिला मे पुनर्विवाह केर आवश्यकता किएक आर कोना

एक टा कहबि छय जे संसार मे जेकर जन्म भेलैय, ओहि प्राणी के अपन जीवन जीवय के पुर्ण अधिकार छय।कारण हरेक प्राणी के लेल ओकर सम्मान आर स्वाभिमान सर्वोपरी होई छय। कोनो भी महिला व पुरुष के लेल ओकर जीवन के अधिकार छिन लेनाए ओहि व्यक्ति लेल मृत्यु के समान होई छय।ई त दुर्भाग्य के बात छय कि कोनो भी व्यक्ति समय स पहिले विधवा,विधूर व तलाकशुदा भ जाई छैथ।
आधुनिक युग शिक्षा आर तकनीकी के युग अछि, जाहि मे बहुत तरहक आविष्कार व बदलाव भेला।समय के संग आरो भ रहल अछि,धैर अखनो हमरा -आंहा के समाज में पुनर्विवाह के खुलल मोन स स्वीकार नहीं केल गेला,खास क मिथिलांचल में। बहुत तरहक समाज सुधारक सब अहि पर काज केला, सरकारी नीति बदलल,
लोक आगु ऐला,धैर अखनो बहुत किछु बदलाव आनव बांकी अछि।
पुरुष प्रधान समाज होबय के कारण पुरुष के दोशर बियाह समाज असानी स पचा लय छैथ,आई स नहीं अदौकाल स पुरुष के दोसर बियाह के प्रचलन चली आबि रहल अछि,धैर महिला के बात समाज के गला स नहीं उतरय छैन्ह। किछु रुढ़िवादी सोच के लोक अपन पुरान सोच स बाहर नहीं निकैल रहल छैथ। अन्याय के शिवा आर किछु नहि अछि महिला के प्रति ई तिरस्कार के भावना। पहिले कम उम्र में बियाह भ जाई छलय लड़की सब के, अखनो मिथिला मे बहुत लोक कम उम्र मे अपन बेटी के बियाह करा दय छथिन। दुर्भाग्य स अगर ओ विधवा भ गेलैथ ज़िन्दगी के कोन सुख ओ भोग केलखिन,हुनकर सौख, मनोरथ,साज, श्रृंगार सब छिना जाई छलय। अपना ईच्छा स
पहिरब ,ओढब,भोजन,भात किछु नहि क सकय छैथ,वा छलैथ ई कि छलय अन्याये न?
आधुनिक युग के ई देन अछि कि समाज स महिला -पुरुष के भेद-भाव हैट रहल अछि।आजुक महिला हरेक क्षेत्र में पुरुष के संग कदम स कदम मिला क आगु बैढ रहल छैथ। गाड़ी के दु पहिया जंका एक दोशर के पुरक बनल छैथ।दुनू बराबर के सुखक हकदार छैथ अहि संसार में। खुशी के बात अछि कि आब समाज के चेतना जागृत भ रहल छैन्ह,ओ अहि विषय पर अपन विचार बदैल रहल छैथ। उच्च आर कुलीन वर्णक लोक सब सेहो अपन विचार बदैल अपना -अपना बेटी -पुतौह के सुख के विषय मे सोची रहल छैथ।ई समाज के लेल सराहनीय कदम अछि।
हमरा विचार स आधुनिक युग में पुनर्विवाह अत्यंत आवश्यक छय वशर्ते ओहि व्यक्ति के ईच्छा सर्वोपरी होयबाक चाहि। अहि स कोनो विधवा के बेसहारा भ के जीवय नहीं परतय।अपन ईच्छा वा सौख, मनोरथ लेल मोन नहि मारय परतय।निरस जीवन नहीं जीवय परतय। समाज मे समानता आर स्वतंत्रता भेटतय। कोनो तरहक अपवाद नहीं सुनय परतय।अखन के समय में एकल परिवार के प्रचलन अछि,सब अपना-अपना में व्यस्त रहय छैथ।माय,बाबु लेल किनको समय नहि रहय छैन्ह,ऐहन मे8a ओहि विधवा व तलाकशुदा महिला वा पुरुष लेल के समय देथिन?के हुनका सुख -सुविधा के ध्यान रखथिन,व हुनकर सुख -दुख के सहभागी बनथिन। पहिले लोक संयुक्त परिवार में रहय छल,एक, दोशर के सुख -दुख मे ठाढ रहय छलय।देखा -देखी मे समय बिती जाई छलय।आब ओ समय नहि रहलय ने ओ लोक छय। बुढ़ापा मे जीवन साथी के ज़रुरत बेशी परय छय।
हं अहि विचार स हुनका लेल हम बिल्कुल सहमत नहि छी जे आधुनिकता के नाम पर अपना मर्जी से बियाह करय छैथ आर व्यवहारिक ज्ञान के अभाव मे अपन गृहस्थी नहि बसा विवाह विच्छेद करय छैथ।

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