लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- “व्रत या उपवास करबाकेँ धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व”
प्राचीन कालसँ ही अपना सभक ओहिठाम एकटा कहबी छैक जे पशुपति के दर्शन आ सुकठी के बनीज अर्थात एक काज कयला सँ दू टा लाभ भेटनाइ। सनातन धर्म में ब्रत कयनाइ भगवानक आराधना के लेल सर्वोत्तम त्याग मानल जाइत अछि। ब्रत कयला सँ भगवान पर ध्यान केन्द्रित करवा में आसान होइत छैक संगहि पूजा पाठ करवाक काल लोक अपना के बेसी पवित्र आ सात्विक होयवाक अनुभव करैत अछि। भोजन के विन्यास सँ भगवान पर ध्यान करवाक समय नहिं भेटैत रहैत छैक तेँ लोक उपवास पर विशेष जोड़ दैत छैक ताकि बेसी सँ बेसी समय आस्था के लेल लगाओल जा सकय। उपवास कयला सँ आत्माक शुद्धि के संग संग स्वास्थ के लेल सेहो अत्यन्त उपयोगी होइत छैक। शारीरिक आ मानसिक शुद्धि सँ शरीरक अशुद्धि सँ बाँचल जा सकैत अछि जाहि कारणे ध्यान आ साधना के माध्यम सँ मानसिक शांति प्राप्त कयल जा सकैत अछि। एकर अतिरिक्त उपवास कयला सँ आत्म नियंत्रण बढैत छैक। अपन इच्छा आ विचार के नियंत्रित करवाक क्षमता बढैत छैक। जाहि सँ जिनगी के गाड़ी नीक आ संतुलित दृष्टिकोण के माध्यम सँ चलैत छैक। ब्रत कयला पर लोक स्वस्थ आ सात्विक भोजन पर विशेष जोड़ दैत छथिन्ह आ जकरा ग्रहण कयला सँ तागत उर्जा आ सुपाच्य होयवाक गारंटी होइत छैक। दान आ सेवा के भावना मे वृद्धि होइत छैक जाहि सँ दयालु स्वभाव आ सामाजिक सहयोग केर भावना प्रवल होइत छैक। ब्रत कयला सँ आत्मा के परिशुद्धि होइत छैक एकर अतिरिक्त लीवर मजबूत होइत छैक आ पाचन क्रिया सशक्त होइत छैक । एहि प्रकारे ब्रत उपवास कयला सँ आस्थाक संग संग स्वास्थ पर बहुत अनुकूल प्रभाव पड़ैत छैक ।