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सप्ताहमे एक दिनक उपवास रखनाइ धार्मिके नहि स्वास्थ्य आ विज्ञानक दृष्टिसँ सेहो उचित

लेख विचार
प्रेषित:  आभा झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :– ” व्रत या उपवास करबाकेँ धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व”

प्राचीन कालसँ ही भारतीय सभ्यता आ संस्कृतिमे व्रत एवं पूजा-पाठक काफी महत्व रहल छैक। अक्सर श्रद्धा आ भक्तिक लेल आ अपन मनोकामनाक पूर्तिकेँ लेल व्रत राखल जाइत अछि। व्रत या उपवास वैज्ञानिक रूपसँ या आध्यात्मिक रूपसँ सेहो राखल जाइत अछि। ज्योतिषी सभक कहनाइ छैन्ह कि व्रत राखयसँ देवी-देवता खुश होइत छथिन। कोनो उद्धेश्यक प्राप्तिक लेल दिन भरि भोजनक सेवन नै केनाइ व्रत कहबैत छैक। उप के अर्थ अछि ‘ निकट ‘ आ वासकेँ अर्थ अछि ‘रहनाइ’ ।कहल जाइत अछि कि लोक अपन आस्थाक अनुसार अलग-अलग देवी-देवताक लेल व्रत राखैत अछि। व्रत कोनो खास अवसर पर राखल जाइत अछि। कतेक बेर साप्ताहिक व्रत राखल जाइत अछि। व्रत राखयकेँ धार्मिक महत्व हेबाक अलावा कतेक वैज्ञानिक महत्व सेहो छैक। आयुर्वेदमे कहल गेल अछि कि व्रत राखयसँ पाचन क्रियाकेँ आराम भेटैत छैक। अगर हम एक दिन किछु नहिं खाइत छी तऽ पाचन तंत्र ठीक रहैत अछि। शरीरसँ हानिकारक तत्व बाहर निकलैत अछि।
विशेष तिथि या दिन कऽ व्रत-उपवास राखयसँ शरीर आ मन तऽ शुद्ध होइते अछि संग ही एहि सऽ मनचाहा इच्छा पूरा भऽ जाइत अछि। व्रतमे सभसँ बेसी महत्वपूर्ण जे व्रतकेँ मानल जाइत अछि ओ अछि – एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आ नवरात्रि। कहल जाइत अछि कि मनुष्य एकादशीक नियमित रूपसँ व्रत राखैत अछि तऽ हुनकर मनकेँ चंचलता समाप्त भऽ जाइत अछि। संग-संग धन आ आरोग्यकेँ प्राप्ति होइत अछि। पूर्णिमा आ अमावश्याक व्रत रखलासँ हार्मोंसकेँ समस्या ठीक भऽ जाइत अछि। संग ही जिनका मानसिक बीमारी छैन्ह हुनका एहिसँ छुटकारा भेटैत छैन्ह। एकर अलावा सालमे दू बेर ऋतुक संधि होइत अछि। एक बेर गर्मी शुरू भेलाक पहिने आ एक बेर सर्दी शुरू भेलाक पहिने। ओहि समय शरीरक धातुकेँ संतुलित करयकेँ लेल नवरात्रिकेँ व्रतक विधान अछि। एक बसंतक नवरात्रि जे मार्च या अप्रैलमे पड़ैत अछि आ एक शारदीय नवरात्रि जे सितंबर या अक्टूबरमे पड़ैत अछि। ओहि समय मौसमकेँ बदलैसँ हमल शरीर पर, हमर मन कोनो असर नै पड़ै। ताहि दुवारे नवरात्रि व्रतक विधान बनाओल गेल छैक। सालमे अगर कियो व्यक्ति दुनू नवरात्रिमे नौ-नौ दिनक उपवास राखैत अछि तऽ हुनकर शरीरक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ैत छैन्ह। एकर अलावा साल भरि ओ स्वस्थ रहैत छथि। उपवासकेँ धार्मिक अनुष्ठान सऽ ताहि दुवारे जोड़ल गेल, ताकि स्वास्थ्यक पहलू पर ध्यान देल जाए। जेना संतोषी माँकेँ व्रत। शुक्र दिन विवाहित स्त्री ई व्रत राखैत छथि आ गुड़ – चना प्रसाद ग्रहण करैत छथि। गुड़ शरीरमे आयरनकेँ पूर्ति करैत अछि आ चनासँ प्रोटीन भेटैत अछि। व्रत राखयसँ शरीरक शोधन होइत अछि, चित्त शांत होइत अछि, असाध्य रोगसँ लड़यमे सहायता भेटैत अछि।
कतेक लोक मौन व्रत राखैत अछि। मौन व्रत धारण कएला सऽ व्यक्ति व्यर्थकेँ वाद-विवाद आ झगड़ासँ बचैत अछि। ई तऽ क्षणिक लाभ अछि। स्थायी रूपसँ जे लाभ होइत अछि ओ ई कि व्यक्ति अपन वाणीकेँ जीत लैत अछि अर्थात ओ जखन किछु बाजैत अछि, सोचि-समझि कऽ बाजैत अछि। वाणी जीतै वाला व्यक्ति कखनो अपशब्दक प्रयोग नहिं करत। व्रत रखलासँ हमर सभक ग्रह बाधा दूर होइत अछि। व्रत रखलासँ आत्मशक्ति आ आत्मविश्वासकेँ बल भेटैत अछि।जीवनक प्रति हमर दृष्टिकोण सकारात्मक भऽ जाइत अछि। व्रत हमरा धैर्य, सहिष्णुता,आ उदारताक संग जीनाइ सिखबैत अछि। व्रत या उपवास स्त्री हो या पुरूख दुनू लेल लाभदायक अछि। सप्ताहमे एक दिनक उपवास रखनाइ धार्मिक ही नहिं बल्कि स्वास्थ्य आ विज्ञानक दृष्टिसँ सेहो उचित अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली।

आभा झा
गाजियाबाद

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