लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय- आधुनिक समय में भौतिक वस्तु के उपयोग कतेक गुणकारी आ कतेक हानिकारक
एखन देश मे योगा के लेल सभ सँ बेसी नामी रामदेव बाबा के मानल जाइत छैन्ह। प्राणायाम, कपाल भारती, अनुलोम विलोम इत्यादि अनेकों शब्द सभ सँ परिचय कराओलनि रामदेव बाबा। गामक दलान पर बहुत गोटे भोर मे भेटि जयताह साँस लैत आ छोड़ैत। पहिले के जमाना मे एहि प्रकारक योगासन के आवश्यकता नहिं होइत छलैक।भोरे भोर लोक विदा होइत छल कोदारि लऽ कऽ हठ्ठा दिस आ हरवाह संगे खेतक आड़ि कोन बनबैत छलाह पुरूष लोकनि आ कोदारि चलेला सँ जे कसरत होइत छलैक ओकर तुलना हमरा हिसाबे कोनो योगा नहिं कऽ सकैत छैक।भोर मे माथ पर छिट्टा भरि गोबर आ छाउर लऽ कऽ खेत मे फेकवाक लेल विदा होइत छल पेएरे जाहि सँ समुचित कसरत होइत छलैक। सभ भोर मे चारि बजे उठि जाइत छलाह आ भोरका हवा शरीर मे लगैत छलैन्ह। घरक स्त्रीगण सभ ओहो सँ पहिले उठि कऽ बाढनि सँ समुच्चा आंगन दरबज्जा के बहारैत छलीह। पूजा के बर्तन छाउर लऽ कऽ मांजैत छलीह। अगहन मास में ढेकी आ उख्खैर चलबैत छलीह। बारहो मास सिलौट आ लोरही पर मसाला पीसैत छलीह। जांत में पीसिया होइत छलैक। सभ प्रकारक कसरत शरीर के होइत छलैक जे आइ काल्हि योगा के क्लास मे कराओल जाइत छैक। आब स्थिति पूर्णरूपसँ बदलि गेलैक अछि ।आब लोक जांत, उख्खैर अथवा ढेकी मात्र फेसबुक पर देखैत अछि। भोर मे आठ बजे सँ पहिले निंद नहिं खुजैत छैक, उठैत देरी ब्रश कऽ कऽ खाली पेट अत्यंत हानिकारक चाह के घुंट आ ओहो जँ विछाओन पर भेटि जाय तऽ सोना मे सुगंध। पैकेट मे चाउर, आंटा, सभटा मसाला पीसल रेडिमेड, जीर मरीच पीसवाक लेल मिक्सर ग्राइंडर अर्थात देह हिलेवाक अवसर एकदम नहिं परिणामस्वरूप ब्लडप्रेशर, चीनी के बीमारी ९० प्रतिशत लोक के जे प्रतीक अछि भौतिक सुविधा के।संक्षेप मे कही तऽ भौतिक सुख सुविधा लोक के अपंग आ रोगी बना देलकै अछि चाहे ओ गाम मे रहैथि अथवा शहर मे, सभ घर के एकहि लेखा। सभक खानपान अशुद्ध आ शारिरिक परिश्रम नगण्य चाहे पुरूष हो वा महिला। सब दुखिते जीवन जिब रहल।