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समानान्तर – मैथिली फिल्म पर प्रवीण दृष्टिः एहिना नहि भेटैछ नेशनल फिल्म अवार्ड

विचार-विश्लेषण

– प्रवीण नारायण चौधरी

मैथिली फिल्म ‘समानान्तर’

– भारत मे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सँ सम्मानित
– अन्तर्राष्ट्रीय स्तरक अनेकों फिल्म अवार्ड धरिक यात्रा कयल फिल्म
– मात्र ११ दिन केर सूटिंग मे पूरा कयल हालीवुड स्तरक मैथिली फिल्म
– कथा, परिवेश, दृश्य, संवाद, शैली – सम्पूर्ण मैथिली
– हिन्दियायल मैथिलीक संवाद सँ हिन्दी फिल्म होयबाक भान
– सीमित संसाधन सँ बेजोड़ निर्माण – बेजोड़ निर्देशन – बेजोड़ फिल्मांकन
– जीवनक महत्वपूर्ण चारि दर्शनक विम्ब पर आधारित सब सँ अलग फिल्म

हमर दृष्टि मे समानान्तर देखि यैह किछु पंक्ति मुख्य रूप सँ झलकि रहल अछि। परसू निर्देशक नीरज कुमार मिश्र सँ मैथिली जिन्दाबाद वेब पत्रिका पर फिल्म सम्बन्धी अनुभव आ हालहि दिल्लीक इंडिया हैबिटेट सेन्टर मे कयल गेल स्क्रीनिंग व तदोपरान्त दर्शक-समीक्षा लोकनिक चर्चा पर आधारित बातचीत भेल छल। नीरजजी बहुत दृष्टिसम्पन्न आ अनुभवी व्यक्ति छथि से बात त हुनका संग वडोदरा (गुजरात) केर मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल मे भेंट-वार्ता सँ बुझइये गेल छल। परञ्च सोशल मीडिया मे गोटेक हतोत्साही विश्लेषण जे स्वयं मैथिल सर्जक लोकनि द्वारा भेल ताहि सँ सम्बन्धित किछु जरूरी बात लेल एक साक्षात्कार प्रकाशनक अनुरोध पर आजुक चर्चा केन्द्रित छल। नीरजजी विहुँसिकय कहला जे अपन मिथिलाक लोक मे अपनहि सामग्रीक पहिचानक नजरिया सही रहैत त आइ मैथिली-मिथिला एना पाछू नहि पड़ितैक। इतिहास-पुराण मे वर्णित मिथिलाक खस्ताहाल व बेहालीक कारक हम सब स्वयं छी।

हम हुनकर मर्म बुझि रहल छलहुँ, सिर्फ हँ-हूँ मे जवाब दैत हुनका प्रोत्साहित कय रहल छलहुँ। ओ स्वयं कहलनि जे हम कनिकबो हतोत्साहित नहि छी, कारण हमरा अपन मैथिल समाज केर असली चरित्र सँ खुब बढियां परिचय अछि। दोसर बात, अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर फिल्म केर समीक्षा कयनिहार आ अनेकों हालीवुड हस्ती सब सँ हमर सहकार्य होइत रहबाक दशकों-दशकक अनुभवक आधार पर ‘समानान्तर’ कोन स्तरक फिल्म बनल, ई कतेक लोक केँ केना प्रभावित कयलक, एकर प्रेरणा सँ जर्मनीक सुनामी फिल्म मेकर केना फिल्म निर्माण कय रहल छथि, एहेन-एहेन कतेको उदाहरण सँ हमरा अपन काज पर गर्व अछि। धन्यवाद जे भारतीय फिल्म अवार्ड दयवला निर्णायक लोकनि मे कियो मैथिल नहि रहथि, नहि त ओतय सेहो हमरा मुंहे भ’रे खसायल जइतय!

यथार्थतः दिल्ली मे प्रदर्शनक बाद किछु एहि तरहक हतोत्साही विश्लेषण सब होयबाक किछु उदाहरण घटित होयबाक जानकारी हमरो भेटल छल। लेकिन नीरजजीक आत्मविश्वास बड़ा सहजता सँ हमर विश्वास बनौने रहय। टिप्पणीकार आ विश्लेषक लोकनिक स्वभाव सँ सेहो हम पूर्व-परिचिते छी-रही। तेँ नीरजजी केँ बोल-भरोस देबाक संग आगामी दिन मे फिल्म केर आरो समीक्षा आ अपन अनुभव सब साझा करबाक बात कहलियनि। ओना एहि फिल्म पर संछिप्त चर्चा वडोदरा लिटरेचर फेस्टिवल मे स्वयं नीरजजीक मुंह सँ सुननहिये रही। नीरजजी तुरन्त कहलनि जे अहाँ केँ फिल्म देखबाक लेल हम घरहि बैसल अवसर दैत छी, पहिने देखू, अनुभव करू आ तखन अपन बात-अनुभव साझा करू। तहिना भेल। हमरा लिंक भेटल। पासवर्ड भेटल। फिल्म देखलहुँ आ आब फिल्म बारे अपन अनुभव अपने सब सँ साझा कय रहल छी। संगहि मैथिली जिन्दाबाद पर सेहो पहिल राउन्ड मे यैह प्रकाशित कय रहल छी।

समानान्त फिल्म देखलाक बाद प्रवीणक अनुभव

भारतक केन्द्रिय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) सँ ‘यूए’ सर्टिफिकेशन प्राप्त फिल्म समानान्तर – यानि १२ वर्ष सँ कम उमेरक बच्चा सब केँ बिना माता-पिता-अभिभावकक मार्गदर्शन केँ ई सिनेमा नहि देखेबाक प्रमाणपत्र भेटल अछि। लेकिन हम ५१ वर्षक लोक सेहो फिल्म देखि एकदम सकपका गेलहुँ, देह मे झुरझुरी-झुनझुनी भरि गेल जे लगभग २ दिन सँ एहि फिल्मक एक-एकटा दृश्य आँखिक सोझाँ एखनहुँ नाचि रहल अछि। जीवनक असलियत आ पापाचार सँ बचेबाक हिन्दू दर्शनक चारि गोट महत्वपूर्ण पक्ष केँ फिल्मायल गेल अछि एहि फिल्म मे। चारि टा कथाक कोल्लाज (एकमुष्ट संग्रह) पर आधारित ‘समानान्तर’ मे मनुष्य जीवन मे सामान्यतया कयल जायवला छोट-पैघ अपराध आ तेकर दुष्परिणा प्रति सचेतनाक प्रसार करैत अछि। चारू कथा सँ पूर्व फिल्म निर्माता-निर्देशक-लेखक नीरज कुमार मिश्र चारि गोट पट्ट (बोर्ड) केर उपयोग करैत छथि, चारू मे ‘संस्कृत, हिन्दी आ अंग्रेजी’ मे शास्त्रीय वचन (scriptural ordinances) केर समुचित उल्लेख अछि। आर, एहि वचन पर आगू बढ़ि जाइत अछि पात्र, दृश्य, संवाद आ समग्र फिल्म।

समानान्तर – राष्ट्रीय पुरस्कार सँ पुरस्कृत मैथिली फिल्म केर पहिल भाग देखलहुँ। हृदय उदासी मे एहेन डूबल, ई कथा हमरा आँखिक सोझाँ नाचि उठल। हमर मामा सेहो बेनीपुर पानी टंकी मे काज करथि, हुनकर छवि आँखिक सोझाँ नाचि रहल अछि। चूँकि ओहो नौकरी करिते हार्ट फेल भेला सँ मरि गेल रहथि, हम बहुत छोटे रही… अनुकम्पा पर हमर भाइ बसन्त केँ नौकरी भेलैक। हे भगवान्! ओ एना भटकल युवा नहि छल, एखन नीके जेकाँ अछि। लेकिन फिल्म मे जे देखायल गेल अछि से बहुत सटीक आ सोचनीय अछि। निर्देशक जे देखेबाक चेष्टा कयलहुँ, जे सन्देश देबाक चेष्टा कयलहुँ, एतेक नीक जेकाँ फिल्मांकन कएने छी – बाप के चिट्ठी लिखैत आ अपन असमर्थता बारे कहिकय बेटाक चिन्ता करैत… आ बेटा मे बेरोजगारीक फ्रस्ट्रेशन, बैकग्राउन्ड मे घरवाली आ बच्चाक छोड़िकय नैहर बसि जेबाक करुण गाथा, पिताक आँखिक अपांगताक समस्या जाहि सँ किछु दिनक बाद नौकरी छुटि जेबाक खतरा आ तखन परिवार कोना चलत से चिन्ता, बाप स्वयं चाहि रहला अछि जे पानी टंकी पर सँ दुर्घटनावश खसिकय जान दय देब त नियमानुसार अनुकम्पाक आधार पर बेटा केँ नौकरी भ’ जायत आ ओकर परिवार सम्हैर जेतैक….! एम्हर बाप मरियोकय बेटा-परिवारक चिन्ता मे डूबल अछि, ओम्हर बेटा सेहो बेरोजगारी आ पत्नी-बच्चा सब अपना सँ दूर नैहराक सहारे रहबाक व्यथा सँ व्यथित, व्यग्रता मे बापहि केर हत्या करबाक मन बना लैत अछि, बाप केँ सुतले मे गला दबाकय मारि बैसैत अछि से अनुकम्पा आधारित नौकरी प्राप्ति लेल। बेटा पाप कय बैसल… “आह! टचिंग स्टोरी! ग्रेट वे टु प्रेजेन्ट ए वेरी ग्रेट थिम। कर्म कथमपि गलत नहि करबाक ठोस सन्देश!” – यैह लाइन हमर मन हमरा बेर-बेर कहैत रहल। फिल्म देखि दर्शकक मोन मे उद्वेलन नहि भेल त फेर फिल्म कि भेल! एहेन कतेको घटना अपन मिथिला मे सरेआम हमर आँखिक देखल अछि। उड़ी-बीड़ी लागि गेलैक कतेको परिवार मे। अनुकम्पा आधारित नौकरीक लोभ सँ लोक एहेन पाप कय बैसैत अछि जेकर परिणाम ओकर अपनो जीवन केँ सुख नहि दय पबैत छैक। कर्मक फल – पापक फल एहि जीवन मे भोगहे टा पड़ैत छैक।

हमर देह मे झुरझुरी पैसि गेल अछि। सच कहि रहल छी। एकदम सही दर्शन प्रस्तुत कयल – ओ जे लाइन लिखल अछि संस्कृत मे, “मनुष्य स्वार्थ मे आन्हर भ’ कहियो‍-कहियो ओहेन स्थान पर पहुँचि जाइत अछि जाहि ठाम सँ लौटब सम्भव नहि छैक।” – एकदम सजीव प्रस्तुत कएने छी। राष्ट्रीय पुरस्कारक आधारवस्तु एतहि सँ तैयार भ’ गेल बुझू!

पहिल कथा लगभग २० मिनट केर समाप्त होइते ‘समानान्तर’ केर दोसर ‘पट्ट’ पुनः वैह संस्कृत-हिन्दी-अंग्रेजीक दार्शनिक वचनक पाँतिक संग दर्शकक मोन केँ पूर्व तैयारी अवस्था प्राप्तिक संकेत दैत अछि। एहि बेर जे हमरा अभरल ओ यथावत् लिखि रहल छी –

“मिथ्यालोभाश्च मनांसि हरन्ति अपि च भ्रमाः आश्चर्यवद्ववन्ति”

– मिथ्या आ लोभ मन केँ भ्रमित करैत अछि, भ्रम अचम्भित करयवला होइत अछि।

गामक एकटा युवा सत्यनाथ – नाम उच्च आ कान बुच्च केर जीवनक एक छोट हिस्सा सँ लोकमानस मे केहेन भावना बनैछ, स्वयं सत्यनाथ कोन तरहें अपन जीवन आगू बढ़बैछ, केना लोभ मे फँसैछ, केना मानवीय मर्म तक केँ ओ झुठलाबैछ, एहि पर आधारित कथा केँ फिल्मायल गेल अछि।

सत्यनाथक कथा सेहो बड़ा मार्मिक ढंग सँ, गामक मौलिक दृश्य आ पृष्ठभूमि मे देखायल गेल अछि। मिथ्यालोभ नहि केवल मर्महीन सम्पत्तियो केर बल्कि अपन अभिमान मे चूर रहनिहार लोक जे अनेकों भ्रम मे फँसि गेल करैत अछि – एकरा देखायल गेल अछि।

सत्यनाथ स्लुइस गेट खोलि नहर मे पानि छोड़बाक ड्यूटी करय जाइछ। रातिक समय लालटेन आ टौर्चलाइट केर उपयोग करैत गामक खेत-गाछी होइत प्रतिदिन ड्यूटी पर जाइछ। रस्ता मे पड़यवला एकटा बँसबाइर मे सत्यनाथ केँ प्रतिदिन भूत-प्रेतक भ्रम भ’ गेल करैत छैक। ओ ठमकैत अछि, फेर हिम्मत कय केँ संग मे रखने दबिया निकालैत ओ प्रकृति केँ चुनौती देबय लगैछ। आर यैह बात आखिरकार ओकरा लेल जानलेवा सिद्ध भेलैक। गामहु-समाज लेल ई परिणाम अचम्भित करयवला सिद्ध भेलैक।

सत्यनाथ बँसबाइर मे कोनो भूत हेबाक भ्रमित धारणा बनौने छल, ओतय जाय ओ नित्य ओहि भूत केर भान कयल करय। दबिया सँ छोपि देबाक हिम्मत त करय, मुदा दिन मे धियापुता केँ पढ़बैत या कथापिहानी सुनबैत काल किछु बेसिये भ्रम पोसि लेल करय। ओ मुंह सँ भूत-प्रेत केना ओकरा आगू अबैत छैक आ ओ केना ओकरा सब केँ उन्टे डरा देल करैत छैक, से सब बढ़ा-चढ़ाकय बजैत छल। आर, यैह भ्रम अन्त मे ओकरा लेल जानलेवा भ’ गेलैक।

ओकर झूठ-फरेब गामक बड़-बुजुर्ग नीक सँ बुझथिन। ओकरा बुझेबो करथिन। परञ्च मिथ्याभिमान मे लोक अपन झूठ वीरता पर घमन्ड करैत रहैछ। गामक वृद्ध पुरुषक बात सेहो ओहिना लागि गेलैक जेना कोनो भटकल-भ्रमित केँ बड़-बुजुर्ग बुझायल करैछ। ई कथा सेहो थ्रिलर आ देल गेल सन्देशक अनुरूप रहल।

निर्देशक जेना बच्चा सब केँ सत्यनाथक कथा सुनैत काल देह भुटकबाक, गामक परिदृश्य मे सामान्यजन सभक एकठाम बैसि विभिन्न तरहक चर्चा-बर्चा, टाट पर टूटल लालटेन टांगल, कुकुर सभक खेल, गामक खेत-गाछी, रातिक दृश्य, लालटेन-टौर्चक सहारा आ नर्हिया केँ हुआँ-हुआँ, गामक भगैत, कतहु असगरो कियो बैसि बाँसुरी बजबैत जीवनक दर्शन मे आकंठ डूबल रहैछ, जल व्यवस्थापन आ नहरक व्यवस्थापन, लालटेन आ टौर्चलाइट केर लाइट इफेक्ट्स, साउन्ड इफेक्ट्स, एतेक शानदार संयोजन कएने छथि जे मात्र २० मिनट मे जीवनक एकटा महत्वपूर्ण शास्त्रीय सन्देश प्रति दर्शक केँ पूर्ण जाग्रत करय मे पूरा सफल अछि ‘समानान्तर’। सब किछु बहुत बेहतर लागल। गज्जब आ पूरे एकटकी लगाकय देखयवला लागल। सत्यनाथ जेहेन लोभी लोक जे लोभपूर्ण सम्पत्ति संग्रह करय मे मनुक्खक लहास तक सँ औंठी निकालि अपने पहिरिकय आत्ममुग्धता ग्रहण करैछ, ई पक्ष सेहो बहुत पैघ सन्देश देलक। आर सत्यनाथक अन्तक दृश्यांकन, गामक लोक केर संवेदना, सब किछु मार्वेलस लागल।

हम सब सचेत होइ। देल गेल सन्देश प्रति साकांक्ष होइ।

आर आब शुरू होइत अछि तेसर भाग – फेर ओहने एकटा ‘पट्ट’ – ओतबे महत्वपूर्ण सन्देश।

“गोटेक पापक भोग मृत्युक बादो मनुष्य केर दुर्गतिक कारक भेल करैछ”

एहि भाग मे एकटा अबोध बालिका केँ गामक तीन गोट बदमाश युवक जबर्दस्ती करणी करैत छैक, लेकिन सिनेमाक पर्दा पर एहेन कोनो दृश्य बिन देखौने सन्देश स्पष्ट कय देल जाइत छैक। आर तेकर बाद ओ तीनू बदमाशक गति सिटी रिक्शाक ड्राइवर रूपी यमराज द्वारा दण्डित करबाक कथा फिल्मायल गेल अछि। एतेक बेहतरीन तरकीब सँ दण्ड, मृत्यु, मृत्योपरान्त पर्यन्त भागा-भाग आ दण्डक प्रावधान सँ पुनः दर्शकक चेतना मे अक्षम्य अपराध, चारीत्रिक पतन, अबोध संग यौन दुराचार, बलात्कार आदि आ तहिना अपनहि बल केँ सब सँ पैघ बुझबाक गलत सोच – ई सारा बात तेसर भाग मे देखौने छी। हमरा हिन्दी, अंग्रेजी आ कतेको अन्तर्राष्ट्रीय स्तरक सिनेमा साक्षात् अनुकरण करैत आन्तरिक अनुभूति भेल एहि भाग मे।

निश्चित निर्देशकक उच्चस्तरीय फिल्म तकनीकक अध्ययन आ तदनुसारक प्रयोग मैथिली परिवेश पर आधारित मैथिली फिल्म मे, हालांकि डायलौग सब ९०% हिन्दियायल मैथिली मात्र अछि आ सेहो एक तरहक यथार्थ अबस्थाक मात्र चित्रण थिक, विमर्श होबक चाही जे आइ मैथिलीक प्रयोग कोन भाषिका मे मैथिलीक्षेत्र मे भ’ रहल अछि त ई हिन्दियायल मैथिली मात्र नजरि पड़त, तेँ एहि फिल्म केँ हिन्दी फिल्म नहि मानि मैथिली फिल्म रूप मे राष्ट्रीय पुरस्कार केर हम व्यक्तिगत हमेशा बचाव करब। बधाई निर्देशकजी! अहाँ अपन बेहतरीन तज्जूर्बा सँ मैथिली केँ कतेको डेग आगू लय कय गेलहुँ। बहुतो लोक, खास कय केँ निर्माता सब केँ हूबा बढ़तनि आ दर्शक दीर्घा मे मैथिली सिनेमाक एहि तरहक स्वरूप सँ बहुत पैघ आकर्षण बढ़तैक।

अन्तिम भाग मे आइ-काल्हिक युवा मे अन्हेरक तामश सँ कयल जायवला छोटो अपराध बड़ा भारी दुष्परिणाम दैत छैक से कथा आ एकरो फिल्मांकन मे बेजोड़ तकनीक, कथा आ संवाद केर प्रयोग कयलहुँ। युवा समाज मे बड़-बुजुर्ग आ बीमार लोकहु प्रति संवेदनाक अभाव आ अपनहि मे मस्त रहबाक कारण असम्मान, असम्मान उपरान्त दुर्घटना, दुर्घटना पछाति ओहि युवक केँ कारक मानि ओकरा प्रति लोकक उपेक्षा, ओकर नीन्द, बस मे असगरे सुतले छोड़ि सभक चलि जेबाक प्रभाव, आर फेर बस-स्टैन्ड सँ पोलिटेक्निक तक केर यात्रा पर्यन्त दुरुह होयबाक एक काल्पनिक चित्र मार्फत सन्देशक प्रवाह, सब किछु फैन्टास्टिक! एहि मे सेहो तकनीक सभक बेहतरीन प्रयोग, लाइट-साउन्ड ईफेक्ट्स आ कम्प्लीट प्रेजेन्टेशन हमरा बहुत प्रभावित-प्रेरित कयलक। ओ जे ‘जरैत हाथ’ आ ‘मरल लोक’ केँ सोझाँ अयबाक निरन्तरता व अन्त मे छोट गलती कतेक भारी दण्ड दैछ तेकर निरूपण – एहेन बेजोड़ कथा प्रस्तुति सहितक फिल्म निश्चित सभक लेल दर्शनीय अछि।

बेर-बेर देखबाक अभिलाषा

एखन त सीमित समय लेल मात्र हमरा देखबाक अधिकार अहाँ देलहुँ, आइ फेर देखबाक आ ओहि पट्ट सभक सामग्री लिखि लेबाक मोन होइत छल…. लेकिन एतेक पैघ लगन सँ, अनेकों बातक प्रेरणा पाबि, कोरोनाकाल जेहेन समय अपन गाम प्रवासक दरम्यानक सोच आ परिणाम स्वरूप ई फिल्म ‘समानान्तर’ मैथिली भाषा केँ विश्व स्तर पर बढ़ेलक, एखन आरो बढ़ायत से पूरा विश्वास अछि।

एकरा जनसामान्य लेल जतेक जल्दी हो रिलीज करी, ई फिल्म एक बेर करोड़ों मैथिलीभाषी त देखबे टा करता, हिन्दीभाषी व अंग्रेजीभाषी सहित पूरे विश्व भरिक लोक लेल रुचि के विषय बनत से हम आत्मीय भाव सँ कहि सकैत छी।

एहि मे कतहु बहुत बेसी प्रशंसाक अनुभूति नहि करबाक अछि। आगामी दिन मे अहाँ ठेंठ मैथिलीक प्रयोग करैत सेहो फिल्म निर्माणक प्रक्रिया मे छीहे, लेकिन यथार्थता समेटबाक अपन नीति पर सदैव कायम रहब, यैह शुभकामना नीरजजी! समस्त मैथिली सिनेमा निर्माता-निर्देशक प्रति सुन्दर शुभकामना जे समानान्तर जेहेन उच्चकोटिक सिनेमा निर्माण करैत नव आशा व विश्वास सँ दर्शक-दीर्घा केँ आश्वस्त राखथि।

हरिः हरः!!

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