नेपालक नया जनगणना (२०७८) आ मैथिली

नेपालक नया जनगणना (२०७८) आ मैथिली

आइ मधेशी आयोग प्रमुख विजय दत्तजी एकटा महत्वपूर्ण पोस्ट अपन फेसबुक वाल पर साझा कयलनि अछि। नेपालक नव जनगणना (२०७८ वि. सं. साल) मे विभिन्न भाषाक स्थिति आ संग-संग पूर्व जनगणनाक स्थिति समग्रता मे लिखने छथि। अध्ययन-विश्लेषण मे रुचि रखनिहार लेल ई निम्नानुसार अछि –

२०७८ सालक जनगणना अनुसार १ लाख सँ बेसी व्यक्ति द्वारा बाजल जायवला मातृभाषाक सूची निम्न अछि। संगहि, २०६८ केर जनगणना अनुसार कोन भाषाक संख्यात्मक अवस्था केहेन छल आर कोन‍-कोन नव भाषा सब जुड़ल – से एहि सूची मे स्पष्ट अछि।

१. नेपाली ४४.८६%, २०६८ मे ४४.६४%
२. मैथिली ११.०५%, २०६८ मे ११.६७%
३. भोजपुरी ६.२४%, २०६८ मे ५.९४%
४. थारु ५.८८%, २०६८ मे ५.७७%
५. तामांड. ४.८८%, २०६८ मे ५.११%
६. बज्जिका ३.८९%, २०६८ मे २.९९%
७. अवधी २.९६%, २०६८ मे १.८९%
८. नेपालभाषा/नेवारी २.९६%, २०६८ मे ३.२०%
९. मगर ढुट २.७८%, २०६८ मे २.९८%
१०. डोटेली १.७०%, २०६८ मे २.९७%
११. उर्दु १.४२%, २०६८ मे २.६१%
१२. याक्थुङ/ लिम्बु १.२०%, २०६८ मे १.३०%
१३. गुरुड. १.१२%, २०६८ मे १.२३%
१४. मगही ०.७९%, २०६८ मे ०.१३%
१५. बैतडेली ०.५२%, २०६८ मे १.०३%
१६. राई ०.५०%, २०६८ मे ०.६०%
१७. अछामी ०.४८%, २०६८ मे ०.५४%
१८. बान्तवा ०.४७%, २०६८ मे ०.५०%
१९. राजबंशी ०.४५%, २०६८ मे ०.४६%
२०. शेर्पा ०.४०%, २०६८ मे ०.४३%
२१. खस ०.४०%, २०६८ मे ०%

एना २०६८ आर २०७८ केर जनगणनाक तथ्यांक केँ देखला सँ मैथिली, तामाड., नेवारी, मगर ढुट, डोटेली, उर्दु, लिम्बु, गुरुड., बैतडेली, राई, अछामी, बान्तवा, राजबंशी, शेर्पाक संख्या घटैत अवस्था देखाइत अछि। तहिना, नव भाषा खस केर उदय भेल हँ । सब सँ कम बाजल जायवला भाषा कुसुण्डा अछि जेकर जनसंख्या २३ गोटे मात्र अछि, आर नाम नहि स्पष्ट भेल भाषाक ३४६ टा अन्य-अन्य भाषाक ४,२०१ गोटे अछि। अंग्रेजी १,३२३ केर, हिन्दी ९८,३९९ केर आ संस्कृत १३,९०६ केर, मुसलमान १६,२५२, केवरत ३,४६९, पंजाबी ८७१, सांकेतिक भाषा १,७८४, हरियान्वी ११४ गोटेक अछि।

मैथिलीक संख्या कियैक घटि रहल अछि? – ई एकटा अत्यन्त महत्वपूर्ण सवाल अछि। समग्र मे भाषा प्रति लोकक सचेतना आ राज्य केर नीति केहेन अछि, ताहि पर संछिप्त विचार राखि रहल छी।

भाषा प्रति सचेतनाक घोर अभाव अछि। ई तथ्यांक मे कतिपय भाषाक आबादी घटि रहल अछि, किछु नया जन्म लय रहल अछि, किछु पहिनहि नव जन्म लेले भाषाक संख्या बढ़ि रहल अछि। मुदा भाषिक जनचेतना आ भाषिक प्रगतिक प्रतिवेदन पर नजरि देब त बड़ा आश्चर्य मे पड़ि जायब जे एखन धरि ‘एकल भाषा’ नीति लागू रहला सँ कोनो आन भाषाक समुचित विकास नहि भ’ रहल अछि। आन भाषाभाषी समाज आइयो दोसर दर्जाक नागरिक होइ लेल बाध्य अछि। स्वयं ओहि भाषाक जनप्रतिनिधि आ कतेको प्रबुद्धजन भाषिक गुलामी स्वीकार कयने बुझाइत छथि। तेँ, भाषिक सचेतनशीलता बढेबाक लेल निरन्तर प्रयास करैत रहले सँ नेपालक राष्ट्रीयता मजगुत होयबाक सम्भावना बनत।

कने ध्यान दियौक निम्न बुन्दा सब परः

१. संवैधानिक मर्म अनुसार राष्ट्रीय भाषा आयोग केर गठन भेलैक, ओकर प्रतिवेदन राष्ट्रपति केँ सौंपल गेलैक। कम सँ कम प्रदेश आ स्थानीय स्तर मे ‘सरकारी कामकाज’ रूप मे नेपाली वाहेक अन्य-अन्य भाषा केँ स्वीकृति प्रदान करबाक गहन विश्लेषणात्मक सिफारिस कयल गेलैक। मुदा पहिचान लेल माइर उठेने प्रदेश सहित एखन धरि ओहि पर अमल नहि कय सकल अछि। सोचू कि कारण आ कि दुष्परिणाम?

२. समानुपातिक समावेशिकताक सूत्र पर सभक सहभागिता सँ राष्ट्रीयताक पृष्ठपोषण – यैह भेलैक नव नेपाल। मुदा ई सिर्फ थोथी आ पोथी टा मे छैक। लागू कतय कि भेलैक एखन धरि से देखिये रहल छी। एखनहुँ देखू जे कोन पालिका मे केकर कतेक संख्या आ बजट विनियोजन केर आधार कि छैक। विराटनगर महानगरपालिका मे ५५% मैथिली, काज ९९% नेपाली मात्र केँ भ’ रहल छैक। शिक्षा, पाठ्यक्रम, पुस्तक, शिक्षक, आदि सबटा एकल भाषा के। कियैक? यैह भेलैक समानुपातिक समावेशिकता? बिल्कुल नहि। ई नीतिगत दमन थिकैक। आ एहि प्रति जनचेतना जगेनिहार कियो नहि। जनप्रतिनिधि सब सेहो गुम्म!

३. ‘हम मालिक, तूँ हमर रैय्यत’ – हरेक स्थान पर जँ एकलभाषाक समर्थन मे अहाँ मालिक प्रति वफादारी करब तखनहि टा अहाँ केँ ठाउं देल जायत, अन्यथा अहाँ बेकार छी, वाहियात छी। एहि तरहक रवैया चारूकात हावी छैक।

बेसी कि कहू! अपने त स्वयं विज्ञजन आ विशेष स्थान पर छीहे। सब बात गहन अध्ययन करिते छी, उपरोक्त गोटेक विन्दु सँ अन्दाज लगाउ।

हरिः हरः!!