चिन्तनीय प्रश्न
– प्रवीण नारायण चौधरी
आजुक प्रोफेशनलिज्म - मानव हित या अहित मे
आइ-काल्हि प्रोफेशन (पेशा), प्रोफेशनल (व्यवसायिक) आ प्रोफेशनलिज्म (व्यवसायिकता) शब्द सब सजग समाज मे काफी लोकप्रिय शब्द रूप मे प्रयोग भ’ रहल छैक। कियैक? कियैक तँ आजुक अर्थ युग मे अर्थक प्रधानता सँ सब कियो परिचित अछि, अर्थहि केर प्राप्ति सँ लोक-समाज मे केकरो विशेष छवि बनि पाबि रहल छैक। चरम् भौतिकतावादक एहि युग मे मनुक्खक अपनहि बनायल मुद्राक मौद्रिक महत्व सँ बहुत बेसी सामाजिक महत्व बढ़ि जेबाक कारण सौंसे संसार मे प्रोफेशनल लाइभ (व्यवसायिक जीवन) केँ मात्र महत्व रहि गेल बुझि पड़ैछ। लेकिन प्रोफेशनलिज्म केर आर व्यापक अर्थ हेबाक चाही, ताहि पर हम मन्थन हेतु ई लेख लिखि रहल छी।
हम हिन्दू समाज मे जतेक शास्त्र-पुराण अछि ओ मानवीय पक्ष प्रति उच्च भाव ग्रहण करैत अपन जीवन जत्-लब्धम्-तत्-सुखम् केर होड़ मे फँसैत देखि प्रोफेशनलिज्म केर व्यापकता घटैत अनुभव होइत अछि। सब कियो नीक निकुत खेबा, पहिरबा आ रहबा लेल नीक आमद लेल लालायित देखा रहल अछि। जीवनक समस्त संस्कारक आध्यात्मिक पक्ष कतहु विलुप्त भेल जेकाँ आ सिर्फ देखाबा, आडम्बर आ भौतिक उपलब्धिक जंजाल मे आकंठ डूबल मात्र देखा रहल अछि। तथापि प्रोफेशन, प्रोफेशनल आ प्रोफेशनलिज्म केर सकारात्मक-नकारात्मक दुनू पक्ष पर हम मनन कय रहल छी। प्रोफेशनलिज्म यदि हमर आत्मिक पहिचान विरूद्ध ठाढ़ भ’ जाय त हम केना चिन्तन करी, कोन बाट अपनाबी, ताहि सब पर सोचय लेल विवश भेल छी।
आध्यात्मिक उन्नति मे कर्मयोग, संन्यासयोग, ज्ञानयोग आदि सँ परिपूर्णो रहितो वर्तमान समाज व सामाजिक दृष्टि मे ओकर महत्व घटल देखि हम चिन्तित सेहो छी। कि भ’ गेलय हँ मानव समाज केँ? एना आर्थिक स्थिति टा प्रथमतः कियैक देखल जाय लागल अछि? एहेन-एहेन कतिपय विन्दु सब पर निरन्तर मन्थन चलि रहल अछि।
एकटा वास्तविक घटना मोन पड़ैत अछि। हम सब बहुत बच्चा रही। गुदड़िया बाबाक युग रहैक। सारंगी बजबैत आ मनुष्य जीवनक कतिपय पक्ष, भाग्य, भगवान्, आदिक वर्णन करैत निर्गुण गबैत गुदड़िया बाबा सब घरे-घरे गुदड़ी माँगल करय, संगहि किछु खेबा-पिबा योग्य कैन्चा (पैसा) वा सिधहा (चाउर, दालि, अनाज आदि) सेहो माँगि कय अपन गुदड़ीक सियल धोकड़ा मे ग्रहण करैत छल।
गुदड़िया बाबा ओना त कतेको प्रकार के देखल अपन बाल्यकालक जीवन मे, मुदा जेकर चर्चा कय रहल छी ओ किछु विशिष्ट छल। हमरा बचपन मे घटल ई घटना ओहिना मोन अछि। एकर बहुत गहींर प्रभाव हमर बालमन पर पड़ल छल। हम सोचय लेल बाध्य भ’ गेल छलहुँ जे आखिर बात कि छय, लोक कियैक भीख मंगैत अछि? बहुत बेर माँ-काकी-बाबी सब सँ जिज्ञासा राखल करी हम! कहय जे धर्मक रक्षार्थ एक विशेष पन्थक गुरु (सम्भवतः गुरु गोरखनाथ) द्वारा प्रचारित धर्म-मार्ग केँ जे कियो अनुसरण करैत अछि, से गुदड़िया बनि जाइछ आ गुदड़ी मांगि-मांगिकय कतेक परिमाण के गुदड़ी अपन संस्था लग जमा करैत अछि। बाद मे ओकर भीख मंगबाक क्रम बन्द करा देल जाइत छैक आ फेर ओकरा ‘गद्दी’ भेटि गेल करैत छैक। बच्चा रही, एतबे बुझिकय जिज्ञासा शान्त भ’ गेल करय।
ई जे गुदड़िया बाबा रहय से एतेक सुन्दर ढंग सँ सारंगी बजबय, एतेक नीक जेकाँ निर्गुण गाबय जे हम सब धियापुता ओकरा पाछाँ-पाछाँ बहुत दूर धरि चलि गेल करी। माँ-काकी-बाबी सब जहाँ देखथि, बड बात-कथा कहय लागथि। एहि गुदड़िया बाबाक संग जहिना हम सब अंगने-अंगने निर्गुण सुनय लेल चलय लगलहुँ आ कि एकटा बाबी आबिकय बाजय लगलीह। हम सब कहलियनि जे बाबी एहेन गुदड़िया बाबा आइ तक देखनहि नहि रही! आब त बाबी हमरा सब केँ कहनाय-तहनाय छोड़ि कनिकाल ओकर सारंगी आ निर्गुण सब सुनलीह आ फेर हुनका कि भेलनि नहि भेलनि, खूब कनिते ओहि गुदड़िया बाबा केँ एतबे गारि-बात देलीह जे पुछू नहि।
“इह! बड़ एला हँ गुदड़िया बनिकय। जेकर धियापुता हेबहक से कतेक कनैत हेतय से सोचलहक? अपने त बनलह गुदड़िया, आब सब केँ बनेबहक की?” ओ गुदड़िया बाबा मैथिली कम बुझैत छलैक, त दोसर कियो बुझेलकय जे तूँ एना गुदड़िया कियैक बनि गेलहक से बाबी केँ नीक नहि लगलनि। तोहर माँ-बाबू केँ तोहर गुदड़िया बननाय नहि लागल हेतनि, तेँ तोरा पर खिसियायल छथुन। गुदड़िया नजरि झुकाकय फेर दुःख भरल आवाज मे गाबय लागल। आब बाबीक आँखि सँ आर दहो-बहो नोर बहय लगलनि आ ओ एकरा आर जोर-जोर सँ बात कथा कहयल लगलखिन –
“दरबज्जे-दरबज्जे भीख मंगनाय तोरा बड नीक लगैत छह? चल भागह एतय सँ! भगवान् एहेन सुन्दर हाथ-पयर देने छथुन, माथ देने छथुन, तखन सँ जे सब बात सारंगीक धुन पर गाबि-गाबि कय लोक सभक कोंढ़ दहलेलह ताहि सँ बुझाइत अछि जे तूँ कोनो पैघ घरक बच्चा छलह। ई कोन काज केलह जे गुदड़िया बनि गेलह? लाज नहि होइ छह? चलह, भागह हमरा दुआरि पर सँ।”
ओ गुदड़िया बाबा बाबीक कहल सब शब्द जेना आब अपनहि बुझि रहल छल। ओ हिन्दी मे कहलकनि, “अम्मा! तुम दुःखी मत होओ। इसको मेरा प्रोफेशन ही समझो। लेकिन प्रोफेशन के साथ-साथ यह मेरा गन्तव्य स्थल का ऐसा मार्ग है जिसे मैंने बहुत सोच-समझकर चुना है। तुम्हारे बच्चे क्या करते हैं?” लोक सब कहलकैक जे बाबीक तीन टा बेटा, तीनू टा आफिसर्स रैंक के लोक छथिन। त ओ गुदड़िया बाबा हंसिकय कहलकनि, “जब बुढ़ी होओगी तब तुम्हें पता चलेगा। और मैं इसी उम्र में अपना हंसता-खेलता परिवार, मेरा आईएएस पास करके सरकारी उच्चपद पर आसीन होकर कई वर्षों तक सरकार और देश की सेवा, कई अनुभवों को पाने के बाद का यह निर्णय कि मुझे साधु-संन्यासी बनकर उन्हीं मार्गों पर चलना चाहिये, ये सारी बातें… इसको तुम अभी नहीं समझोगी, तुम्हारे जब बुढापे आयेंगे तब शायद समझ सकोगी!” एतबा बात कहिकय ओ चट् सारंगीक धनुष पर माटि उठाकय हाथ मे लैत फूँक मारिकय ओकरा सिन्दूर बनेबाक चमत्कार करैत आगू बिदाह भ’ गेल। हम सब भौंचक्क भ’ सबटा गतिविधि देखिते रहि गेलहुँ।
आइ आन कोनो पन्थ नहि बचि गेल अछि। प्रोफेशन टका कमेनाय, प्रोफेशनल टका कमेबाक कलासम्पन्न आ प्रोफेशनलिज्म यानि सब बात मे टका कमेबाक चमत्कार करयवला बौद्धिकता – यैह टा बचि गेल अछि। मानव समुदाय लेल ई बहुत पैघ सोचनीय विषय छैक जे टका कमेबाक होड़ कि मानव समाज केँ विनाशोन्मुख नहि बना रहल अछि? आइ जे धरती पर गर्मी (तापक्रम) बढ़ि रहल अछि, प्रकृतिक प्रकोप सब बढ़ि रहल अछि, कम सँ कम ताहि दिशा मे पर्यन्त टका कमेबाक होड़ मे रहल संसार केँ गम्भीरता सँ नहि सोचबाक चाही? आध्यात्मिकता प्रति उदासीनता आ नकारात्मकता केँ हंटेबाक लेल सम्पूर्ण सजगताक आवश्यकता छैक अथवा नहि? यज्ञ, अनुष्ठान्, साधना आदि मे सेहो अर्थहि मात्र केर प्रधानता आ हविष्यक जोगाड़ आ प्रविधि आदिक कतहु कोनो चर्चे नहि… एहेन प्रोफेशनलिज्म हमरा सभक हित मे अछि या अहित मे?
हरिः हरः!!