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पुनर्विवाहक अधिकार सिर्फ पुरुषहि केँ कियैक?

लेख-विचार

– नमिता झा

स्रोतः लेखनीक धार – दहेज मुक्त मिथिला फेसबुक समूह

लेखनीक धार में आजुक विषय थीक पुरुषक पुनर्विवाह आ स्त्रीक पुनर्विवाह पर विचार 🙏

अपन समाज पुरुष प्रधान समाज अछि आ सब दिन ई रहत कियैकि एकरा पर रोक लगेनाइ कठिनाहे टा नहि बल्कि असम्भव सेहो अछि। बेटी कतबो पढ़ि-लिखि कय केहनो नीक ओहदा पर कियैक न चलि जाय मुदा ओ पुरुषहि केर शासन मे रहय लेल बाध्य रहत। पहिने तँ लड़की केँ बाहर जेबा मे रोक छलैक, पढ़ाइ‍-लिखाइ सँ वंचित राखल जाइत छलैक, तेँ माय‍-बाप जाहि खुट्टा सँ बान्हि दैत छलथिन, बस ओतहि बान्हल रहैत छल, कतबो अत्याचार होइक तेकरा ओ भाग्यक लेख मानिकय सहैत छल। पुरुष सब अपन हक बुझैत रहथि औरत पर शासन करब! खैर! विषय अछि पुनर्विवाह केर, पुरुष आ स्त्री दुनूक पुनर्विवाह मे बहुत फर्क अछि। गोटेक विन्दु पर ध्यानाकर्षण करा रहल अछि ई लेख-विचार।

कोनो कारणवश पुरुषक पत्नीक स्वर्गवास भ गेलनि आ ओ जँ जवान छथि या पहिल पत्नी सँ छोट बच्चो सब छनि तखन त दुइयो मास नै बितय देथि कियो। समाजो कहथिन, “अहा! कोना रहतैक? एखन उमेरे कोन भेल छैक? चाहे बच्चा केँ माइ के बदला सतमाइये भेटतैक, ओकर ब्याह करब जरूरी छैक।” अधेड़ो उमेर मे पुरुष सब ब्याह कय सकैत छथि कियैकि हुनका बुढ़ापाक सहारा चाही। बेटा-पुतहु संग हुनकर निर्वाह नहिं भ सकतनि। – यैह रहैक/छैक अपन समाजक पुरुषवादी मानसिकता।

वैह परिस्थिति जखन कोनो महिला पर आबैत अछि तखन समाजक सोच बदलि जाइत छैक। जँ किनको बच्चे मे बैधव्यक दुःख पड़लनि तँ ओ ओहि रूप मे जीवन जिबय लेल बाध्य कयल जाइत छथि। ओ आब लहसुन प्याज नै खा सकैत छथि, आ न ओ मांसाहार कय सकैत छथि। हुनका उपर कतेको प्रकार बन्दिश आ सामाजिक परहेज-नियम लादल जाइत अछि।

आब सवाल उठैक छैक जे अपन समाजक एना स्त्री-पुरुष लेल पुनर्विवाहक मामिला मे दू रंगक सोच कियैक अछि ? ओ जँ ककरो सँ बात करती तँ हुनकर चरित्रहि पर सवाल उठि जायत, अनेकों तरहक उलहन आ परोक्ष-प्रत्यक्ष निन्दा सुनबाक लेल बाध्य रहती। कनिकबे नीक वस्त्र धारण करती तँ हुनकर मनसाय पर आंगूर उठैत बेर नहि लागत, ओ निर्लज्ज कहेती। एना कियैक? कियैक नहिं ई समाज ओहि स्त्रीक पुनर्विवाह खुशी सँ करेबाक निर्णय लैत अछि। ओहि स्त्री केँ जँ छोट बच्चा छन्हि तँ कियैक ई बात केँ नुकायल जाइत छैक? जँ पुरुषक बच्चा केँ माइ चाही तँ कि ओहि एकल स्त्रीक बच्चा केँ बाप नहिं चाही की?

हालांकि स्थिति मे किछु प्रगतिशीलता सेहो देखय मे आबय लागल अछि। आब गोटेक लोक स्त्री प्रति एहेन विभेदक प्रतिकार आ हुनकर स्थिति पुरुषहि समान पुनर्विवाह सँ पुनर्वास हो ताहि पर संज्ञान लेबय लागल अछि। मुदा तेहेन खुलस्त भाव सँ एखनहुँ नहि के बराबर बनैछ एहेन क्रान्तिकारी उदाहरण। अन्त मे हम यैह कहब जे पुरुषवर्गक लेल पुनर्विवाह खराब बात नहिं छी तँ कोनो स्त्रीक पुनर्विवाह लेल कथमपि कोनो अशोभनीय टिप्पणी कियो नहिं करू। मानवीय दृष्टिकोण सँ हुनको पुरुषहि समान जिबय के अधिकार दियौन।

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