– डॉ ए कुमार, एमबीबीएस, एमडी, एमपीएच
संस्थापक – जाखु फिल्म प्रोडक्शन, पर्ज फाउंडेशन, श्रीकंठ प्राइवेट लिमिटेड, अन्वी ग्रुप ऑफ एजुकेशनल ट्रस्ट, स्वामी विवेकानन्द एजुकेशनल ट्रस्ट.
भारत में हर साल महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है। रोग उन्मूलन और रोकथाम के प्रयासों को बढ़ाने के लिए यह दिन मनाया जाता है। यह बच्चों में कुष्ठ संबंधी विकलांगता के शून्य मामलों के लक्ष्य पर केंद्रित है। कुष्ठ उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रोग का शीघ्र पता लगाने के साथ-साथ रोग के प्रसार को रोकने के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं। सबसे ज्यादा कुष्ठ रोगी ब्राजील, भारत और इंडोनेशिया में हैं। कुष्ठ रोग को ठीक किया जा सकता है यदि उपचार जल्दी शुरू कर दिया जाए और अक्षमता से बचा जा सकता है।
विश्व कुष्ठ निवारण दिवस की शुरुआत किसने की? कुष्ठ निवारण दिवस 1954 में फ्रांसीसी लेखक और परोपकारी राउल फोलेरेउ द्वारा मनाया गया था। महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए उन्होंने उनकी पुण्यतिथि 30 जनवरी को चुना। महात्मा गांधी ने अपने जीवनकाल में कुष्ठ रोगियों की मदद के लिए अथक प्रयास किए। राउल फोलेरो महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। इसीलिए उन्होंने 30 जनवरी को कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाना शुरू किया।
कुष्ठ रोग को “हैन्सन्स” के नाम से भी जाना जाता है। इसका नाम नॉर्वेजियन चिकित्सक गेरहार्ड हेनरिक आर्मर हैनसेन के नाम पर रखा गया है। हैनसन ने 1873 में इसकी खोज की थी। उन्होंने समाज में प्रचलित धारणा को खारिज कर दिया कि कुष्ठ रोग एक वंशानुगत बीमारी है। कुष्ठ रोग को ही कुष्ठ रोग कहते हैं। यह एक जीवाणु रोग है।यह पुरानी बीमारी माइकोबैक्टीरियम लेप्री और माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस जैसे बैक्टीरिया के कारण होती है। भारतीय ग्रंथों में भी इस रोग का उल्लेख मिलता है। इस रोग का उल्लेख भारतीय ग्रंथों में 600 ईसा पूर्व से पहले मिलता है। रोग मुख्य रूप से मानव त्वचा, परिधीय नसों, ऊपरी श्वसन पथ के म्यूकोसा, आंखों और शरीर के कुछ अन्य भागों को प्रभावित करता है। कुछ लोगों में यह भ्रांति है कि यह रोग वंशानुगत है और दैवीय प्रकोप के कारण होता है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। यह रोग बैक्टीरिया के कारण होता है। यह रोग भारत सहित अन्य पिछड़े देशों के लिए एक गंभीर समस्या है। यह बीमारी लोगों को विकलांग बना देती है। पश्चिमी देशों में इसका बहुत कम या कोई प्रभाव नहीं है। भारत में भी इस पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है।
कुष्ठ निवारण में महात्मा गांधी का योगदान
कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के लिए महात्मा गांधी के मन में बहुत स्नेह और सहानुभूति थी क्योंकि वे इस बीमारी के सामाजिक आयाम से अवगत थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुष्ठ रोगियों की बहुत सेवा की और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का अथक प्रयास किया। आज अगर कुष्ठ रोगियों को सामाजिक बहिष्कार का सामना नहीं करना पड़े तो यह गांधीजी के प्रयासों से ही संभव है। आज के समाज के लोग यह समझ चुके हैं कि कुष्ठ रोग कोई दैवीय आपदा नहीं बल्कि एक ऐसी बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है। अब इस बीमारी का इलाज संभव है। गांधीजी के कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के कारण 30 जनवरी को गांधीजी की पुण्यतिथि के रूप में कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कुष्ठ रोग, वैश्विक स्तर पर गंभीर स्वास्थ्य समस्या रही है। बीमारी के बारे में लोगों में बढ़ी जागरूकता और उपचार की सहज उपलब्धता के चलते इसके मामलों में अब काफी कमी आई है। कुष्ठ रोग की व्यापकता 1980 के दशक में 50 लाख से अधिक मामलों से घटकर साल 2020 में 1.30 लाख के करीब रह गई है। हालांकि अब भी कई हिस्सों में ये रोग बड़ी चुनौती बनी हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में कुष्ठ रोग से संक्रमित अधिकांश मामले अफ्रीका और एशिया में हैं। अमेरिका में हर साल लगभग 100 लोगों में इसका निदान किया जा रहा है। भारत में भी कुष्ठ बड़ी समस्या रही है। यहां साल 2014-15 में कुष्ठ रोग के 1,25,785 मामलों की तुलना में 2022-23 में यह घटकर 72,139 रह गई है। रोग को लेकर देश में चलाए गए व्यापक जागरूकता अभियान का सकारात्मक असर देखा जा रहा है।
कुष्ठ एक संक्रामक रोग है जो विशेषकर हाथ-पैर या त्वचा पर गंभीर विकृत घाव का कारण बनता है, कुछ लोगों में ये तंत्रिकाओं की क्षति का कारण भी बनता है। कुष्ठ रोग सदियों से चली आ रही बीमारी है, लेकिन यह बहुत संक्रामक नहीं होता है। अनुपचारित कुष्ठ रोग से पीड़ित किसी व्यक्ति की नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के निकट और बार-बार संपर्क में आने के कारण ही इसका संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। वयस्कों की तुलना में बच्चों में कुष्ठ रोग होने की आशंका अधिक होती है।
कुष्ठ रोग मुख्य रूप से त्वचा को प्रभावित करता है। कुछ लोगों में इसके कारण मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर की नसों से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। मुख्य लक्षणों में विकृत रूप से त्वचा में घाव, गांठ या उभार हो सकते हैं। घावों में पीलापन अधिक देखा जाता है। रोग बढ़ने पर भौहें/पलकें गायब होने, दर्द, लालिमा और जलन की दिक्कत भी बढ़ जाती है।
कुष्ठ रोग का उपचार संभव है और ये इसके प्रकार पर निर्भर करता है। संक्रमण को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है, आमतौर पर 6 महीने से एक साल तक इलाज चल सकता है। हालांकि अगर रोगी को तंत्रिकाओं में क्षति की समस्या है तो इसके लिए अन्य उपचार को प्रयोग में लाया जाता है।