‘भरी दुपहरी’ ब्लागर ‘शिवम भट्ट’ केर ‘हलो मैं समाजवाद बोल रहा हूँ’ केर मैथिली अनुवाद – स्रोत: नवभारत टाइम्स
बीतल शुक्र दिन यूपीक एकटा पुलिस अफिसर केँ प्रदेश मे समाजवादक ‘पुरोधा’क तरफ सँ कैल गेल कॉल केर एकटा ऑडियो टेप जारी भेल। ओहि मे अफिसर केँ बड़ा ‘प्रेम’ भरल शैली मे बतौर मुख्यमंत्री अपन कार्यकाल मे घटल फिरोजाबाद मे कोनो घटनाक याद करा रहल छलाह जतय कोनो अफिसर केँ बचाकय ओ बड पैघ एहसान केने होइथ। 2 मिनट चलल एहि बातचीत उपरान्त अन्त मे सुधैर जेबाक हिदायत दैत फोन राखि देल गेलैक। एहि सँ पहिनहु अप्रत्यक्षे तौर पर मुदा समाजवाद केर एहि पुरोधाक नाम पर प्रदेश मे रामपुर सँ लैत गोंडा धरि और आजमगढ़ सँ लैत गौतमबुद्ध नगर धरि ‘प्रशासनिक समाजवाद केर परचम’ लहरेबाक कीर्तिमान दर्ज अछि। एहि प्रदर्शन केँ बरकरार राखय मे हुनक पुत्र अखिलेश केर भूमिका सेहो अहम रहल अछि। पहिने तऽ ओ पिताजी केर ‘डांट’ केँ सही बतेलनि आर फेर सोम दिन राति मे आईपीएस अफसर केँ सस्पेंड करैत पुत्रधर्म सेहो बखूबी निभाेलनि।
किछु दिन पहिले यूपीएससी केर रिजल्ट्स आयल, जे कैंडीडेट्स कामयाब भेल ओ बेशक बहुत खुश छल। जतेकोक इंटरव्यू पढ़ल सब केओ एकटा बात जरूर कहलक जे ओ आईएएस, आईपीएस बनिकय देशक सेवा करत, गरीब, बेसहारा केर आवाज बनत, गलत केर खिलाफ आवाज उठायत। लेकिन जाति, धर्म, वोट बैंक केर एजेंडा लैत काज करयवाली देशक सरकार कि ओकरा सब केँ एना काज करय देत? शायद नहि! प्रशासन मे सत्ताक हस्तक्षेप स्वाभाविक छैक, आ किछु हद धरि जरुरियो छैक। लेकिन जखन निजी स्वार्थ केर वजह सँ यैह हद सँ बेसी बढ़ि जाइत छैक तऽ दमघोंटू बनि जाइत छैक। याद करू उत्तर प्रदेश मे अखिलेश सरकार बनलाक बाद कोन तरहे लगभग 1 साल धरि सैकड़ोक संख्या मे ट्रांसफर होइते रहल छल। राति-राति भैर दफ्तर खोलवाकय तबादलाक लिस्ट तैयार करायल जाइत छल कियैक तऽ मानल जाइत अछि जे हर बेर कोनो न कोनो जातीय या वोट बैंक केर कड़ी छूटि जाइत छैक।
देश केर संवैधानिक ढांचा किछु एहेन छैक जतय शासन-प्रशासन केर साथ मे बराबरी सँ चलैत काज करय पड़ैत छैक। लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली जेहेन राजनीतिक महत्व राखयवला राज्य मे निरंतर प्रशासनिक व्यवस्थाक शासन केँ राजनीतिक स्वार्थों केर पैर तर मे रौंदि देल जाइत रहल छैक। जाहि मे यूपीक नाम तऽ अपना आप मे एकटा बेहद अहम स्थान रखैत अछि। जाहि प्रदेश मे समाजवाद केर ‘पुरोधा’ पूरा ताकत सँ परदाक पाछाँ सँ सेक्युलरिज्म केर रक्षा और जातीय समीकरण मेनटेन रखबाक लेल अफसर आदिक इस्तेमाल करैत आयल अछि। किछु तऽ इस्तेमाल भऽ जाइत अछि, जे नहि होइछ ओकर हाल-हश्र आईएएस दुर्गाशक्ति नागपाल, आईपीएस नवनीत राणा, अमिताभ ठाकुर और हिनके सब जेहेन नहि जानि कतेको आरोक होइत अछि। सिर्फ समाजवादिये टा कियैक, प्रदेश मे जाहि कोनो दल केर सरकार रहल सब अपना हिसाबे सँ अफसरक इस्तेमाल केलक अछि। मायावती केर दौर एखनहु धरि ध्यान मे ओहिना बनल अछि।
ई सिर्फ यूपी तक सीमित नहि अछि, एकर कतेको उदाहरण बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली जेहेन राज्य सब मे सेहो देखलय लेल भेटैत अछि। सरकार कोनो पार्टीक रहय, नीयत सबहक अफसर केँ दबाकय राखब होइते छैक। तर्क होइत छैक जनप्रतिनिधि हेबाक। ओ सरकार फेर चाहे समाजवादी केर हो, जनता दलीय हो, भाजपाई हो, कांग्रेसी हो या फेर ‘परम आदर्शवादी’ आम आदमी पार्टी केर, सब अफसर केँ बतौर प्यादा इस्तेमाल करबाक नीयत रखिते टा अछि। दिल्ली मे तऽ कथित आदर्शवादी सरकार केर 5 महीनाक कार्यकाल केँ अधिकांश समय अफसरेक लड़ाई मे निकैल गेल। कारण किछुओ रहल हो।
एना मे सवाल यैह उठैत छैक जे जखन अफसर बनिकय यैह हाल-हश्र हेबाक छैक, जखन एनाही जी हुजूरी करबाक छैक, खिदमत मे आज्ञाक इंतजार हेतु सिर निहुराकय रखबाक छैक तखन आईएएस, आईपीएस बनला पर कोन बातक खुशी? मुदा हाँ काज जेहनो परिस्थिति मे करबाक हो, पैसा और रुतबा तऽ भेटिते टा छैक। एकरा अलावे राजनीतिक दल केँ सेहो बखूबी बुझि लेबाक चाही जे ई अंग्रेजी शासन काल केर एजेंडा केँ लागू कराबयवाली तत्कालीन इंडियन सिविल सर्विस नहि बल्कि स्वतंत्र भारत केर ‘भारतीय’ प्रशासनिक सेवा थीक जेकर लोकमानसक प्रति ओतबहि जिम्मेदारी छैक जतेक कि ओहि दल सबहक। अगर अहाँ चुनाव केर खातिर जातीय और कथित सेक्युलर व्यवस्था केँ बनाकय राखय लेल प्रशासनिक व्यवस्था बनाकय रखबाक आजादी अफसर केँ नहि दय सकैत छी तऽ कोनो गड़बड़ी भेला पर ओकरा पर कार्रवाई करबाक अधिकार के दय देलक अहाँ केँ?
ई समझेबाक कार्य अफसरहि केर थीक। ओकर अपन रवैय्या सँ अपन उचित प्रशासनिक अधिकार जँ देश केर संविधान ओकरा देता छैक तऽ सत्ताक हाथ सँ लैत ओहि जनताक लेल काज करय जेकर पैसा सँ ओकरा मोट तनख्वाह, बंगला, गाड़ी भेटैत छैक। यूपी केर आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर कोन हद धरि सही कय रहला अछि या गलत ई एकटा अलग विषय भऽ सकैत छैक लेकिन जे भी हो तात्कालिक तौर पर तऽ हुनके जनसमर्थन हासिल अछि नहि कि प्रदेश केर चुनल गेल सरकार केर ‘समाजवादी पुरोधा’ केँ।