लेख
प्रेषित: अर्चना मिश्रा अर्शी
#लेखनीकेँ_धार_
जीवनक सादगी बिचारमे झलकैत छल ।
आबक लोक सादगी पूर्ण जिनगी जिनाइ अपने आपमे हीन भावनासँ ग्रसीत भेनाइ बुझैत अछि।
मुदा! तहियाकेँ लोकक मनमे ई भाव नहि छलनि।लोक की कहत ई प्रश्न मनमे नहि उठैत छलनि। संस्कार बिचार बहुत महत्व रखैत छल।तहिया पाहुनक सत्कार अपन घरसँ संभव नहि होइन तँ बगल -अगल आँगनसँ सहियोग ल’ पूरा कयल जाइत छलै। ओहिमे ओ अपनाकेँ कोनो हीनताक अनुभव नहि करैत छलथि। लेकिन ! आबक लोक ई तँ सोइतै नहि अछि।
हम की ककरोसँ किछुओमे कम छी।अगर कियो एक दोसरक मदत करै लेल चाहैत छथि तँ पहिने अपने तीन बेर सोचैत छथि। हुनका नीक लगतनि की नहि, अगर खराब मानि लेलनि तँ , नहि – नहि हम ई काज नहि करब।अगर बहुत सोचि बिचारि क’ कैयो लैत छी तँ ओ ओहीमे आर अप्पन दिससँ लगा घुमा दैत छथिन! आबक लोककेँ ई मानसिकता छै। तहिया लोक बहुत प्रेम सिनेहसँ एक दोसरक देल वस्तु स्वीकार करैत छल ।
पश्चिमी सभ्यताक प्रभावसँ हम सभ ग्रसीत छी ! ओ हमर सभक सोचकेँ धीरे-धीरे दिवार (दीमक) सन खोखला कs देलक।अपन आचार -बिचार हम सभ ताखपर राखि ओकर पाछू लीन छी।
धन उपार्जनमे मनुक्ख अपन सर्वस्व झौकि देने अछि वाह्यआडम्बर पूरा करवाक लेल ! इच्छा तँ अनंत छैक ओ पूर्ण कहियो नहि होइत छैक एक पूरा करू दोसर जन्म लs लैत छै। तेँ संतोष नामक शब्दक मोल छै ई हम सभ बिसरि चुकल छी।देखौसक पाछू बौआइत छी।जखनि समय हाथसँ ससरि जाइत छै तँ मोन पड़ैत अछि पहिने केँ जीवन नीक छल कम सँ कम नोन रोटी संग बैसि खाइत छलौँ ।
बहुत एहन लोक छथि जे अपन जीवनमे सादगी सँ जानल जाइत छथि।हुनकर बिचार बहुतोँ केँ दशा – दिशा बदलि देने छनि।जेना अपन हिसाब सँ चलि राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ,लाल बहादुर शास्त्री , डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ई लोकनि एकदम सरल आ सहज छला।
लेकिन आइकेँ समयमे मुस्किल अछि।लोकक देखा – सिखी मे अपन चल- अचल सम्पत्ति पूजी नष्ट कs लैत छथि ,बादमे पश्चातापक अग्नि मे तिल -तिल कs सुनगैत छथि जरैत छथि।
सादा जीवन उच्च बिचार यैह थीक मजबूत स्तम्भ,जीवनक मूलमंत्र ।