– संतोष कुमार संतोषी
दहेजिया …..”खच्चरैहि”
बरक देखा-सुनी भ गेल रहै… हंगामा लोक दरबज्जा पर बैसल गप सरक्का के आनन्द ल रहल छल. लगभग समुच्चा समाज बैसल छल भैरू बाबू के दलान पर…. किएक नै… आय हुनका बेटा प्रति कन्यागत सब जे एलखिन अई….. चाह पानक त बुझू तुर्रा उठल अई,, जनानी सब सेहो कोनटा फरका हल्लूक बुल्लुक क रहल छलिह… अनायास बरक पिताजी, कनियाँ पिताजी के अँखिये आँखि में संकेत केलखिन आ बेरा बेरी दुनू गोटे उठि के दरब्बजा सँ बाहर जाके बाट पर ठार भ गेलाह….
भैरू बाबू: –देखू …हम कुटमैती लेल तैयार त छी हे मुदा हमरो समाज में ईज्जत प्रतिष्ठा अई… आ से देखैत कम स कम तीन लाख टका आ एकटा मोटरसाइकिल हमरा चाहबे करी… नै त लोक कि कहत… बाद बाकि अहाँ अपना बेटी जमाई के जे देबै ताहि लेल हम नै किछु कहब…
कनियाँ के पिताजी: –(हाथ जोरिके) नै सकबै हम…. सख सेहन्ता त भगवान हमरो बहुते देने छैथ… तहन अर्थो त हेबाक चाही… बेटी के घर बाहर दुनू ठामक सिख धैरि देने छी… मुदा अर्थ के अभाव में सबटा झाँपल अई… से कनेक विचार कएल जाऊ…
भैरू बाबू: –अरे महराज, सुनू त सही…. एखन संपूर्ण समाज बैसल छैथ, से अहाँ समाजक सोझाँ में तीन लाख टका आ मोटरसाइकिल पर माईन जाऊ… मुदा हमरा अहाँ बीचक बात रहल दू लाख आ मोटरसाइकिल…. हम समाजक सोझाँ कैहि देबै जे हमरा एक लाख द देलैन… से हम पेलौं, बाद बाकि दू लाख आ मोटरसाइकिल खानपीनक दिन हमरा देताह…. की.
कनियाँ के पिताजी: –जी जेहेन अपने कही मुदा…
(ताबत समाज में बैसल लाल कका चिकैरि के बाजि उठलाह )
लाल कका: –हौ ओ दुनू गोटे कतबैहि में जा किया ठार छैथि…. कोन फुसूर फुसूर में लागल छैथि, अखनहि सँ समैध मिलानी भ रहलै की… (सामूहिक हँसी हहहह )
भैरू बाबू: –चलू आब दरबज्जा पर.. जे कहलौं से ध्यान राखब…. (पुन: दुनू गोटे दरबज्जा पर आबि बैसि रहलाह आ नियोजित बात सबहक जानकारी में आबि गेल…..
(सभा विसर्जन )…
खानपिनुक दिन सेहो आबि गेल… धुम धरक्का, अफरा तफरी जेना मचल होई.. बरका कानफरूआ साऊण्डक आवाज में जेना सबगोटे जोर सँ बाजबाक अभ्यस्त भ गेल रहैथ…. मिठाई आ माछक मिश्रित सुगन्ध सगरहु में पसरल अई…. बुढ पुरान दस गोटे पंक्तिबद्ध भ कुर्सी पर बैसल चाहक चुस्की ल रहला… छौरा सब, लहराईत एम्हर लहराईत ओम्हर… किछु पुछियौ त साधल जबाब… फुर्सत नै अई एखन.. देखै नै छियै पाहुन सब आबै बला छथिन…. पाहुनो सब आबिये गेलाह… सबगोटे कुर्सी पर बैसि तसला में पैर धोई पुण:निश्चित आशन पर जा बैसि गेलाह…. क्रमशः सर्वत, चाह, जलखै, पान संगहि रंगविरही गप सप के आदान प्रदान होमय लागल… पश्चात्… मुख्य बात पर ऐलाह सब गोटे…
कनियाँ के पिताजी: — देखु कतहु कतहु हमरो पैसा सब फैँसि गेल अई, तैँ एखन एक लाख नेने आएल छी बाद बाकी एक लाख टका हम विवाह पश्चात देब.. से निहोरा जे हमर मान राखि…
भैरू बाबू: –ई नै भ सकैछ… एक एक टा टका हम विवाह सँ पहिने ल लेब… जे बात भेल अइ हम ओहि में किछु नव नै मानव. टका त पहिने ल लेब…
कनियाँ के पिताजी: –अपने हमर विश्वास कएल जाऊ… बराती विदाई आ औरो काज सब सँ निबटला बाद हम अपनेक एक एक पाई चुकता क देब… किछु समय हमरा चाही….
लालकका: –हौ भैरू…कुटूम त आब भए गेलखुन ,जौँ किछु समय माँगै छथुन त कि हर्ज… विवाहक बादे ल लिहअ पैसा… लोक कनि बुढो पुरानक सुनै छै….
भैरू बाबू: –यौ लाल कका नै बुझल अई.. भेल वियाह मोर करबह की… धिया छोरि के लेबह की… पैसा त दोसरा दोसरा ठाम बेसिये दै छल हमरा… तहन त ईंगित में फैंसि गेलौंह… से हम केकरो बात नै मानव… पैसा हमरा पहिनहि चाही.. से सोलहन्नी…
(कनियागत पाँचगोटे में एकटा युवक सेहो छल, जिनका बरदास्त नै भेलैन से बाजि उठलाह )
युवक…. बेस त अपने नैहिये मानलहु. ..कुटमैति जतय लिखलाहा हेतै हेबे करतै.. आब अहाँ अहिठाम कुटमैति करबाक पछ में हमहूँ सब नै छी… से एकलाख हिनकर वापस क दियौन… अहूँ घर… हमहूँ सब घर….
भैरू बाबू: –कोन एक लाख यौ…
युवक: –सेहो बिसैरि गेलौं.. तीन लाख में जे बात भेल छल से ताहि में एख लाख त अपने पेने छियै ने… जे समाज के सेहो जनतब्य छैन…
लाल कका: –हँ हँ, भैरू तु एक लाख त नेने छहुन्ह हुनका सँ…
भैरू बाबू: –(पुन: सांकेतिक रूप में बाहर बजेलखिन कन्यागत के… मुदा एहिबेर कनियाँ के पिताजी संग ओ युवक सेहो बाहर एलाह.)
युवक: –अपने की कहब से जनै छी हम सब… अहाँ एकोटा पाई नै नेने छियैन्ह, मुदा समाज जनै छैथि जे अहाँ एक लाख टका नेने छियैन्ह… से त आब देमै परत… ई बेटी के बाप छैथि… प्रतिष्ठा लेल अहाँ सब जेना खेल बेल नै करै छैथ, संपूर्ण मिथिला में दहेज विरोध के बात भ रहलै.. नव सोच नव विचारक संग लोक परिवर्तन खोईज रहल अई… मुदा अहाँ सन लोक अपन झोरी भरवाक खातिर, बपौती बुझि पकरने छी एहि दहेजिया रिति रिवाज के… बात करै छी राम जानकी के… कहै छी हम मैथिल छी.. त… धूर छीया, एहेन प्रतिष्ठवान मैथिल के.. हे, बंद करू आब ऐहि प्रथा के, जाहि में… ककरहु भरल खेत खरिहान… ककरहु उजरल सगर जहान… आब दहेजक खातिर बेटी बनल छै बलाई… अहाँ सन मैथिल नोटक चकचोनही में किछु नै देखि पाबि रहल छी… देखू.. जागृत भ रहल मिथिला, जागि रहल मैथिल.. आबो ई भावट समेटल जाऊ…
ऐँ यौ, करेज सँ लगौने बेटी के पोसैत काल के सोचै अई जे एकदिन ई बेटी पराया भ जाएत… अपना घरक… हँसी ठहक्का, कनिया पुतरा, आँगन घर, दलान दरबज्जा, सबटा स्मृति, सबटा सपना… फुलडाली संग फुललोढनी सेहो अपन करेज सँ निकालि के द रहला अहाँ के….
पुतहुक रूपमें जानकी त चाही… मुदा दशरथ नै बैनि सकब…. आबो सुधार करू… अन्यथा ओ दुर्दिन सेहो आबि जाईत…. जे कियो भी मैथिल,
अहाँ सब सनक कुल वंश में अपन बेटी देमक लेल तैयार नैहि होएत… तैँ बन्द करू ई “खच्चरैहि “…जाहि में केकरो हित नै अई…..
(नवयुवक के बातक प्रभाव वुझी आ कि एक लाख के नुकसानक डर ई विवाह बाद में आदर्श विवाहक रूप ल लेलक)