विचार
– प्रवीण नारायण चौधरी
मैथिली भाषा विश्वक प्राचीनतम् भाषा मे सँ एक अछि। एहि पर कतेको रास शोध कार्य कयल जा चुकल अछि। विश्व भरिक पैघ-पैघ विश्वविद्यालय मे मैथिली भाषा सम्बन्धी अनेकों शोधकार्यक हजारों कार्य विगत २०० वर्ष मे कयल गेल अछि। भारत, नेपाल सँ इतर पश्चिमी देशक विद्वान् लोकनि सेहो एहि पर उल्लेख्य कार्य कयलनि। मैथिली भाषा केँ कोहुना विवाद मे रखबाक नीति सेहो समानान्तर रूप मे देखल जाइत अछि। समय-समय पर भारतहु केर पत्र-पत्रिका मे मैथिली केँ एखनहुँ बोली कहिकय तौहीन करबाक दृष्टान्त देखय मे अबिते अछि। तहिना नेपाल मे नव संविधान आ शासनक नव स्वरूप (संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र) स्थापित भेलाक बाद भाषिक पहिचान केर आधार आ अधिकारसम्पन्नताक बेर एहि तरहक कुटिल कुतर्की लेख लिखनिहारक कमी नहि अछि। एहने एकटा लेख काल्हि द हिमालयन टाइम्स मे एक गोट जनकपुरक प्रोफेसर बालकेश्वर ठाकुर केर लेख ध्येय अछि। आउ, ओहि लेख केँ पढ़िकय समीक्षा करी। मैथिलीक संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन लेल कयल जायवला गतिविधि आ एकर लोकस्वीकार्यता सँ ईर्ष्या रखनिहार कतेको कुपुत्र एहेन होइत अछि अपनहि धरती मे जे बिना ज्ञान, बिना अध्ययन कएने, स्वयं अयोग्य रहैत योग्य आ विज्ञ दाबी ठोकैत रहैत अछि। एकरे एकटा प्रत्यक्ष उदाहरण अपने सब लग राखि रहल छी। आउ गौर करी –
एहेन-एहेन विद्वान् होइत छथि आइ-काल्हि
काल्हि एक गोट लेख पढ़लहुँ। मित्र गोविन्द साह जी अपन फेसबुक वाल सँ साझा कएने रहथि। लेख द हिमालयन टाइम्स काठमांडू सँ काल्हि शुक्र दिनक अंक यानि ५ जनवरी २०२४ मे प्रकाशित भेल अछि। लेखक छथि रा. रा. ब. कैम्पस केर अंग्रेजी विषयक एसोसिएट प्रोफेसर। विगत किछु वर्ष सँ हिनकर चिन्तन मैथिली भाषा पर केन्द्रित अछि, एहि लेल नहि जे विश्वक प्राचीन भाषा मैथिली जे लोपोन्मुख भाषा बनबाक जोखिम झेल रहल अछि तेकरा बचाबी, बल्कि हिनकर चिन्तन आर दुर्गन्धित, क्षुद्र कुतर्क आ वाहियात बौद्धिक आधार राखि मैथिली केँ आर जल्दी मृत्युक मुंह मे ठेलयवला होइत रहल छन्हि। एहि सँ पूर्वहु कतेको बेर हिनकर एहि तरहक लेख आ विचार सब पढ़य लेल भेटि चुकल अछि। मैथिली केँ मृत्युक मुंह मे ठेलयवला ई असगर व्यक्ति नहि छथि, एहेन-एहेन कतेको कुतर्की सब निरन्तर मैथिली भाषा पर अपना तरहें आक्रमण करैत आबि रहल छथि। हिनका सब केँ दुइ गोट बात सँ बड़ा भयंकर खिझ छन्हि –
१. मैथिली नेपालक दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा थिक।
२. संविधानप्रदत्त अधिकार अनुसार नेपाल मे मैथिली सरकारी कामकाजक भाषा बनबाक पूरा हक-अधिकार रखैत अछि।
मुख्य दुइ बात सँ खौंझायल आ कुतर्क सँ मैथिली केँ मृत्युक मुंह मे ठेलबाक मनसाय रखनिहार व्यक्ति केँ अहु बात सँ चिढ़ होइत छन्हि जे मैथिली विश्व भरिक विभिन्न भाषाक सूची मे ‘मीठ भाषा’ (लयात्मक भाषा) सेहो मानल जाइछ। आउ, एक नजरि दी मैथिलीक शत्रु प्रोफेसर साहेब के लेख परः
Maithili
– A Maithil’s Tongue
– By Balkeshwar Thakur
The Maithili language is one of the vernaculars native to the Mithila land, divided between Nepal and the Indian state of Bihar. The Nepali census maintains that this language commands the second largest population in Nepal. The Maithili speakers in Madhesh and Koshi provinces, therefore, have time and again put pressure on the provincial as well as the federal governments to declare Maithili the official language in these provinces.
Dhirendra Premarshi, an ardent Maithili language campaigner in Nepal, writes that India is home to 40 million speakers. The middle north of Bihar where the concentration of Maithili speakers is high, has also witnessed sporadic strikes and agitations for proclaiming Maithili the official language and carving out a Mithila state.
But the protests have ended in fiascoes, both in Nepal and Bihar, since the language has counted controversy regarding its actual speakers, population and date of origin.
Truly speaking, Maithili is a singular possession of Maithil Brahmins and Kayastha who are regarded the high in the social hierarchy in Madhesh and Koshi provinces whereas Magahi and Bajjika speakers alongside them belong to other castes and classes of people. Put together in the past for their similarity with Maithili, Magahi and Bajjika speakers have now decided to part their company with it; the growing and rising education level of these peoples has conscientised them of their own linguistic identity.
Maithili nouns, to take but a few examples, has ‘paain’, ‘mahish’, ‘maait’ and ‘gaaya’ for water, buffalo, clay and cow, which the Magahi and Bajjika speakers have replaced with ‘paani’, ‘bhainsi’, ‘maati’ and ‘gai’ respectively. Maithili verbs and other expressions too sound distinct from the other two.
You need not be the Prof. Higgins (the protagonists in Pygmalion, a play by G. B. Shaw) to locate non-Maithili speakers in Madhesh and Koshi provinces from the Maithili ones. Anyone having any nous can find out that Dr. Ram Baran Yadav, the first president of Republic Nepal, and Bimalendra Nidhi, an ex-deputy prime minister, have different tongues; so have Matrika Prasad Yadav and Ram Chandra Jha, both ex-ministers. No long-stretching fallow land or mountain range of Ganga-like river divide them, yet the great Yadav duo’s tongue is different from that of the other two because the latter are Maithils.
For political and other ulterior motives, non-Maithils pose themselves to be Maithil ones. The propaganda that all those who live in Mithila are Maithils is not true. Yadavas, Dhanuks, Telis, Kushwahas, Kurmis and many other castes, including dalits and mahadalits, are not Maithils indeed.
An illusion has been created that Maithili is sweet, that speaking it is a treat, and that the smart and cultivated can only know and speak it. The high-brow Maithils, who have commanded respect and honour as leaders, teachers and preachers in the society, treat the others like pip-squeaks, and, ironically many of the latter, smarting under a sense of inferiority, feel but bound to champion the cause of Maithili itself.
Naturally the number of Maithili speakers has soared, but it will surely plummet as the population of Magahi speakers has move up incredibly in the last 30 years.
That Maithili is an ancient language is fallacious. This language is a concoction that evolved from its ancestor Magahi, an ancient language spoken even before Lord Buddha. Maithili language campaigners, nonetheless, are never tired of making mentions that the Mithila Kingdom extended as far as the Himalayas in the north, the Ganga in the south, the Koshi in the east and Gandak in the west. They take pride in adding that some Malla period stone pillars have been found raised with inscriptions in Maithili. But then, they have no answers to how the Newari, Nepali, Rai, Limbu, Tamang and other languages sprouted and supplanted theirs.
First, what we should bear in mind is that Mithila has not been a land of one people. Second, it has only been sparsely dotted by Maithils. Third, it had to travail under foreign rulers for centuries. History has it that it fell among Magadh rulers in the 4th century. After a cessation of a couple of centuries, it again came under the empire of Magadh in the 7th and Paal Kings in the 8th.
Muslims also ruled over Mithila for as many as 300 years. Even Pandav, father of the great Pandavas, had subdued it in his time though linguistically it was not significant at all. Despite these facts, dismissing other tongues out of hand as non-existent by the Maithils in a bid to promote Maithili is what has got in the hair of other language lovers who had knowingly or unknowingly taken Maithili itself as their mother tongue.
Sir George Abraham Grierson (1851-1941), an Irish administrator and linguist in British India, is, factually speaking, first of all credited for going into the details and determining Maithili as a special tongue characteristic of high-class Brahmins in districts such as Madhuvani, Durbhanga and some parts of Bhagalpur in Bihar.
Vidyapati (1352-1448), the progenitor of the language, could hardly influence his compatriots Kabir of the 15th, and Tulsidas and Rahim of the 16th centuries. This is highly suggestive that the language used by Vidyapati was not common to other castes and classes of people. Being the language of a couple of minority castes only, Maithili has ceased to assume a national character and the hullabaloo for naming Province Two as Mithila Pradesh miserably failed, as it also did in Bihar.
Thakur is Associate Professor of English at R R Multiple Campus, Janakpurdham
(Article published in The Himalayan Times of 5 January 2024 edition)
उपरोक्त लेख केर मैथिली अनुवाद निम्नानुसार अछिः
मैथिली
– मैथिल केर भाषा
– बालकेश्वर ठाकुर
मैथिली भाषा मिथिला भूमिक मूल निवासीक लोकभाषा मे सँ एक अछि, जे नेपाल आ भारतीय बिहार राज्य के बीच विभाजित अछि । नेपाली जनगणनाक अनुसार ई भाषा नेपालक दोसर सबसँ बेसी जनसंख्याक कमान सम्हारैत अछि । अतः मधेश आ कोशी प्रदेशक मैथिली भाषी लोकनि एहि प्रांत मे मैथिली केँ राजभाषा घोषित करबाक लेल प्रांतीय संग-संग संघीय सरकार पर सेहो बेर-बेर दबाव बनौने छथि ।
नेपालक मैथिली भाषाक कट्टर अभियानी धीरेन्द्र प्रेमर्षि लिखैत छथि जे भारत मे चारि करोड़ भाषी रहैत छथि । बिहार के मध्य उत्तर जतय मैथिली भाषी के सघनता बेसी अछि, ओतय मैथिली केँ राजभाषा घोषित करय आ मिथिला राज्य अलग बनाबय ताहि लेल छिटपुट हड़ताल आ आंदोलन सेहो देखल गेल अछि ।
मुदा विरोध विफलता मे समाप्त भ गेल अछि, नेपाल आ बिहार दुनू ठाम, किया कि भाषा अपन वास्तविक भाषी, जनसंख्या आ उत्पत्ति तिथिक सम्बन्ध मे विवादित मानल जाइत अछि ।
सही मायने मे कहल जाय त मैथिली पर मैथिल ब्राह्मण आ कायस्थ केर एकल कब्जा अछि जे मधेश आ कोशी प्रांत में सामाजिक पदानुक्रम में उच्च मानल जाइत छथि, जखन कि हुनका सब के संग रहनिहार मगही आ बज्जिका भाषी अन्य जाति आ वर्ग के लोक छथि । अतीत मे एहि भाषाक मैथिली संग समानताक कारण एक्के ठाम राखल गेल छल, मगही आ बज्जिका भाषी आब एहि सं अपन संग अलग करबाक निर्णय लेलनि अछि; हिनका लोकनिक विकसित सोच आ बढ़ैत शिक्षा स्तर अपन भाषाई पहिचान लेल हिनका सबकेँ विवेकपूर्ण बनेलक अछि ।
मैथिली संज्ञा मे किछु उदाहरण मात्र लेल जाय तऽ (अंग्रेजी भाषाक) वाटर, बुफैलो, क्ले आ काउ लेल ‘पानि’, ‘महींस’, ‘माइट’ आ ‘गाय’ केँ मगही आ बज्जिका भाषी लोकनि क्रमशः ‘पानी’, ‘भैंसी’ ‘माटी’ आ ‘गाइ’ कहैत छथि । मैथिली क्रिया आ अन्य अभिव्यक्ति सेहो आन दू सँ अलग ध्वनित होइत अछि ।
मधेश आ कोशी प्रांत मे मैथिली सँ इतर गैर-मैथिली भाषी केँ पता लगेबाक लेल अहाँ केँ प्रो.हिगिन्स (जी. बी. शॉक नाटक पिग्मालिओन मे नायक) केर आवश्यकता नहि पड़त। जे कियो कनिको सामान्य ज्ञान रखैत छथि से पता लगा सकैत छथि जे गणतंत्र नेपालक प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरन यादव आ पूर्व उपप्रधानमंत्री बिमलेन्द्र निधिक भाषा अलग-अलग छनि; तहिना मातृका प्रसाद यादव आ रामचन्द्र झा दुनू पूर्व मंत्री छथि तिनको । कोनो नमहर परती भूमि वा गंगा सन नदीक पर्वत श्रृंखला हुनका लोकनि केँ विभाजित नहि करैत अछि, तइयो महान यादव जोड़ीक बोल आन दू गोटे सँ भिन्न अछि कारण बादक लोक मैथिल छथि ।
राजनीतिक आ अन्य गुप्त उद्देश्य सँ गैर-मैथिल अपना केँ मैथिलक रूप मे पेश करैत छथि । मिथिला मे रहनिहार सब मैथिल छथि से प्रचार सत्य नहि अछि । यादव, धानुक, तेली, कुशवाहा, कुर्मी आ दलित आ महादलित सहित कतेको जाति वास्तव मे मैथिल नहि छथि ।
एकटा भ्रम उत्पन्न भेल अछि जे मैथिली मधुर अछि, एकरा बजब बर्तावक तरीका अछि, आ बुद्धिमान आ सुसंस्कृत मात्र एकरा जानि सकैत अछि आ बाजि सकैत अछि । उच्च ओहदा वला मैथिल, जे समाज मे नेता, शिक्षक आ उपदेशक केर रूप मे आदर आ सम्मान वला होइत छथि से अन्य लोक केँ मामूली लोक जेकाँ व्यवहार करैत छथि, आ विडंबना ई जे बादक बहुतो गोटे हीनताक भावक टीस रखैत, अपना केँ चैंपियन बनेबाक लेल मैथिलीक काज करय लेल बान्हल महसूस करैत छथि।
स्वाभाविक छै कि मैथिली भाषीक संख्या मे उछाल आबि गेल छैक, लेकिन पिछला ३० साल मे मगही भाषीक आबादी अविश्वसनीय रूप सँ बढ़ैत गेलाक कारण ई निश्चित रूप सँ गिरतैक ।
मैथिली प्राचीन भाषा अछि से भ्रम अछि । ई भाषा अपन पूर्वज मगही, जे भगवान बुद्धहु सँ पहिने सँ बाजल जायवला प्राचीन भाषा थिक, ताहि सँ विकसित एकटा गढ़ल गेल भाषा अछि । मैथिली भाषा अभियानी, तइयो, ई उल्लेख करैत कहियो थाकल नहि करैत छथि जे मिथिला राज्य उत्तर मे हिमालय, दक्षिण मे गंगा, पूर्व मे कोशी आ पश्चिम मे गंडक धरि विस्तारित छल । हुनका लोकनि केँ ई कहैत गर्व होइत छनि जे किछु मल्ल कालक पाथरक खंभा मैथिली मे शिलालेखक संग उभड़ल भेटल अछि । मुदा तखन, नेवारी, नेपाली, राय, लिम्बू, तामांग आ अन्य भाषा कोना अंकुरित भेल आ हुनका लोकनिक स्थान पर आबि गेल तकर कोनो उत्तर हुनका लोकनिक पास नहि अछि ।
पहिल बात जे हमरा सब केँ ध्यान में राखय के चाही जे मिथिला एक लोक के भूमि नै रहल अछि । दोसर, एकरा मैथिल द्वारा मात्र विरल बिन्दीदार बनालय गेल अछि । तेसर, सदियों धरि विदेशी शासकक अधीन एकरा प्रसव करय पड़ल । इतिहास मे कहल गेल अछि जे ई ४म शताब्दी मे मगध शासकक हाथ मे पड़ल छल । एक दू शताब्दी के समाप्त भेलाक बाद फेर सँ ७म सदी मे मगध आ 8म मे पाल वंशी के साम्राज्य मे आबि गेल ।
मिथिला पर मुसलमान सेहो ३०० साल तक राज कयलक । महान पाण्डवक जनक पाण्डु सेहो अपन समय मे एकरा वश मे क’ लेने छलाह यद्यपि भाषाई रूपेँ ई एकदम महत्वपूर्ण नहि छल । एहि तथ्यक बादो, मैथिल द्वारा मैथिली भाषाक प्रचार-प्रसारक प्रयास मे आन भाषा सब केँ अस्तित्वहीन कहिकय खारिज करयवाली बात अन्य भाषा प्रेमी लोकनि जे जाने-अन्जाने मे अपन मातृभाषा मैथिलीये मानैत रहथि हुनका सब केँ खौंझा देलक अछि।
ब्रिटिश भारत केर आयरिश प्रशासक तथा भाषाविद सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (१८५१-१९४१) केँ, तथ्यात्मक रूप सँ देखल जाय त सबसँ पहिने एकर श्रेय देल जाइत छन्हि जे ओ विस्तार मे गेलाह तथा एहि भाषा केँ उच्च श्रेणीक ब्राह्मण जेना कि बिहारक मधुबनी, दरभंगा आ भागलपुरक किछु हिस्सामे रहनिहारक विशेष बोली कहलनि ।
भाषा के पूर्वज विद्यापति (१३५२-१४४८) अपन हमवतन १५वीं सदीक कबीर, आ 16वीं सदीक तुलसीदास आ रहीम केँ शायदे प्रभावित कय सकल छलाह । एहि सँ अत्यधिक अनुमान यैह लगाओल जा सकैत अछि जे विद्यापति द्वारा प्रयुक्त भाषा अन्य जाति आ वर्गक लोक मे सामान्य नहि छल । एक दू टा अल्पसंख्यक जातिक भाषा हेबाक कारणे मैथिली राष्ट्रीय संप्रतीक बनय सँ चुइक गेल आ प्रदेश दुइ केर मिथिला प्रदेश नाम देबाक उधम मचाबय बला हंगामा सेहो मुंहे भरे खसि गेल, जे बिहारहु मे भेल छल।
(ठाकुर रा. रा. ब. कैंपस, जनकपुरधाम मे अंग्रेजीक एसोसिएट प्रोफेसर छथि।)
(५ जनवरी २०२४ संस्करण केर द हिमालयन टाइम्स मे प्रकाशित लेख)
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उपरोक्त आलेख मे देल गेल तर्क आ विवेचना सँ यैह सिद्ध होइत अछि जे बालकेश्वर ठाकुर केँ मैथिली भाषाक बारे मे अध्ययन बिल्कुल नहि छन्हि। ओ पछातिकाल १९३०-१९६३ ई. धरिक अनेकन भाषा-सन्दर्भित चर्चा, आलेख, शोधपत्र आ विश्लेषण आदिक जानकारी नहि रखैत छथि। तहिना १९६३ सँ २००३ जहिया मैथिली केँ भारतीय संविधानक अष्टम् अनुसूची मे स्थान प्राप्त भेल तेकरो कोनो अध्ययन आ विश्लेषण करबाक क्षमता नहि छन्हि।
नेपाल नव संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र केर रूप मे आबि चुकल अछि। भाषा आयोग द्वारा बाकायदा उच्चस्तरीय भाषिक विमर्श उपरान्त नेपाल सरकार केँ (महामहिम राष्ट्रपतिक मार्फत) नेपाल मे नव भाषा नीति आ सरकारी कामकाजक भाषा सम्बन्धी सिफारिश (प्रतिवेदन पत्र) सौंपल जा चुकल छैक। तथापि, एहि सब तरहक लेख लिखिकय ‘एलिट्स आ मास (प्रबुद्धजन आ बहुल्यजन) बीच संघर्ष’ केँ निरन्तरता दैत समाज केँ विभाजित राखि जातिवादी राजनीति के सहारे सत्तारोहणक सपना देखनिहार आ समाज केँ सदा-सर्वदा अहित पहुँचाबयवला अराजक राजनीति केँ बढावा दयवला काज लेखक अपन लेख सँ कयलनि अछि।
भाषा किन्नहुँ एक्के भूगोलक जाति मुताबिक भिन्न नहि भेलैक। भाषाक शृंगार बोलीक विविधता मानल जाइत छैक। लेकिन एकटा पढ़ल-लिखल आ प्रोफेसर सनक व्यक्ति द्वारा कपोलकल्पित आधार पर मैथिली केँ कमजोर करबाक लेल कुतर्कपूर्ण लेख लिखनाय समाजक हित मे नहि मानल जा सकैत अछि। एहि सब तरहक लेख केँ छपनिहार सम्पादकक मनसाय पर सेहो सवाल उठैत छैक जे आब नव संघीय संरचना मे पर्यन्त एकल भाषाक वर्चस्व कायम रखबाक लेल मैथिली जेहेन प्राचीन भाषा केँ विवाद मे उलझाकय राखल जाय आ वैह एकल भाषा-भेषक शासक वर्ग केँ गुलामी करयवला स्थिति बनले रहय। मैथिलीभाषी समाज केँ एहि सब तरहक लेख आ विचारक सब सँ सावधान रहब आवश्यक अछि।
(एहि लेख केर विश्लेषण करयवला कतिपय आधार पर वैश्विक परिदृश्य आ भाषा विज्ञानक दृष्टि सँ कतिपय विचार क्रमिक रूपें अन्य लेख मे राखब। धन्यवाद।)
हरिः हरः!!