विशेष सन्देशमूलक रचना
- प्रवीण नारायण चौधरी
मिथिला
भारतवर्षक अति पुराना
सुन्दर भौगोलिक देश
तीरभुक्ति तिरहुत कहाबय
कहाबय मिथिलादेश!
हिमशिखर सँ निर्मित मस्तक
निःसृत पंचदश धार
स्वयं पखारय जेकर चरण केँ
देवनदी गंगाक धार!
जेकर माटि सिद्धभूमि छल
प्रकट भेली स्वयं लक्ष्मी ‘सीता’
नारायण केर रूप राम छथि
सीता सदा हुनक मीता!
गढ़लनि रामचरित जे सुन्दर
मुक्ति दियौलनि रावण सँ
स्वयं सहल कत कष्ट आ पीड़ा
धर्म बचौलनि कानन सँ!
वेदविहित सम्पूर्ण तथ्य केर
कयलनि प्रत्यक्ष प्रकाश,
ऋषि-मुनि-सिद्ध धेनु-द्विज रक्षा
अभीष्ट मुक्त आकाश!
आत्मविद्या केर आश्रयदाता
मैथिल जनक भूपाल
अध्यात्म दर्शनक विद्यागारा
मानव जन्म नेहाल!
चिन्तन-मनन कर्म करय
रहय सब बन्धनमुक्त
देह रहैत विदेह बनय
जनक जीव सब मुक्त!
युगो-युगो सँ जे अछि जिबैत
वेद-पुराण वर्णीत
लोकाचार अछि वेद मुताबिक
यैह मिथिला अभिनीत!
पूर्वकाल सँ हालसाल धरि
अयला कय गोट भूप
कहिते टा नहि सिद्ध करय छथि
ज्ञानक सत्य स्वरूप!
वाचस्पति-मंडन आ उदयन
ज्योतिरिश्वर विद्याधिपति
भामती-भारती गार्गी-मैत्रेयी
कविकोकिल विद्यापति!
न्याय-सांख्य-वैशेषिक-मीमांसा
दर्शन देलनि तँ चारि
भेला कतेको षट्शास्त्री धरि
रखलन बात विचारि!
आइयो होइछ जन्म सँ ज्ञानी
दार्शनिक सन्तान
सत्य इमानक बुनियादहि पर
चलैत अछि ई जहान!
एक सँ बढ़िकय एक भेला अछि
लोकदेव जाहिठाम
लोकसमाज सीधे देखलक अछि
देवतहु केँ एहिठाम!
लोरिकदेव या दीनाभदरी
भेला राजा सलहेश
जाबत धरि सब एकजुट छल
तनिकहु छल न कलेश!
बाद विभाजित जातिधर्म मे
टूटि गेल समाज
बिसरि गेल अछि लोक स्वधर्म केँ
परदेशी करैछ राज!
विगत कतेको शतक सँ मिथिला
रहल न जनकक हाथ
भटकि गेल जे राज्य-व्यवस्था
भटकि रहल सब साथ!
तैयो अपन त्यागक बल सँ
जतय रहय आबाद
बस बिसरय नहि भेष आ भाषा
करय मैथिली जिन्दाबाद!!
करय मैथिली जिन्दाबाद!!
हरिः हरः!!
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मिथिला
(हिन्दी)
भारतवर्ष की अति पुरानी
सुन्दर भौगोलिक देश
तीरभुक्ति तिरहुत कहलाये
कहलाये मिथिलादेश!
हिमशिखर से निर्मित मस्तक
निःसृत पंचदश धार
स्वयं पखारे जिसके चरण को
देवनदी गंगधार!
जिसकी मिट्टी सिद्धभूमि थी
प्रकट हुईं खुद लक्ष्मी ‘सीता’
नारायण के रूप राम हैं
सीता सदा जिनकी मीता!
गढ़ीं रामचरित जो सुन्दर
मुक्ति दिलाईं रावण से
स्वयं सहीं कई कष्ट व पीड़ा
धर्म बचाईं कानन से!
वेदविहित सम्पूर्ण तथ्यका
करीं प्रत्यक्ष प्रकाश,
ऋषि-मुनि-सिद्ध धेनु-द्विज रक्षा
अभीष्ट मुक्त आकाश!
आत्मविद्या के आश्रयदाता
मैथिल जनक भूपाल
अध्यात्म दर्शन की विद्यागारा
मानव जन्म निहाल!
चिन्तन-मनन कर्म करें
रहें सब बन्धनमुक्त
देह रहते विदेह बनें
जनकजीव सब मुक्त!
युगों-युगों से जो है जीता
वेद-पुराण वर्णीत
लोकाचार है वेद मुताबिक
यह मिथिला अभिनीत!
पूर्वकाल से हालकाल तक
आये कितने भूप
कहते नहीं सिद्ध भी करते
ज्ञान का सत्य स्वरूप!
वाचस्पति-मंडन व उदयन
ज्योतिरिश्वर विद्याधिपति
भामती-भारती गार्गी-मैत्रेयी
कविकोकिल विद्यापति!
न्याय-सांख्य-वैशेषिक-मीमांसा
दर्शन दिये तो चार
हुए कई षट्शास्त्री लेकिन
रखे अद्भुत विचार!
आज भी होते जन्म से ज्ञानी
दार्शनिक सन्तान
सत्य ईमान के बुनियादों पर
चलता है ये जहान!
एक से बढ़कर एक हुए हैं
लोकदेव यहाँ पे
लोगों ने सीधा देखा है
देवों को भी यहाँ पे!
लोरिकदेव या दीनाभदरी
हुए राजा सलहेश
जब तक सारे एकजुट थे
तनिक भी नहीं कलेश!
बाद विभाजित जातिधर्म में
टूट गया है समाज
भूल गये हैं लोग स्वधर्म को
परदेशी करते राज!
विगत कई शतकों से मिथिला
रहा न जनक के हाथ
भटक गया जो राज्य-व्यवस्था
भटक रहे सब साथ!
फिर भी अपने त्याग के बल से
जहाँ भी रहे आबाद
बस भूले न भेष व भाषा
करे मैथिली जिन्दाबाद!!
हरिः हरः!!
Mithila
(अंग्रेजी)
The oldest of Indian Subcontinent
Beautiful geographical country
Tirbhukti also called Tirhut
Called Mithiladesh!
Mast made of icebergs
Fifteen streams emitted
Whose feet is washed by Herself
The Divine Ganga’s streams!
Whose soil was Siddhabhoomi
Lakshmi ‘Sita’ appeared Herself
The form of Narayana is Rama
Sita always remains His Friend!
Forged Ramacharit which is beautiful
Liberated from Demon Ravana
Many sufferings and pains endured by Ownselves
Saved religion from exile to the forest!
Of all the facts prescribed in the Vedas
Brought everything in direct light,
Protection of Sages, Seers, Siddhas, Cows and Dwijas
Desired free sky!
Patron of self-knowledge
Maithil Janak Bhupal
School of Spiritual Philosophy
Happy human birth!
Do the work of contemplation
Let all be free from bondage
Become Videha while you are in the body
Janak’s people all free!
Who has lived through the ages
Described in the Vedas and Puranas
Folklore is according to the Vedas
This is Mithila starring!
From the past to the recent
How many kings came
They don’t say it, they prove it
The true form of knowledge!
Vachaspati-Mandana and Udayana
Jyotiriswara the king of knowledge
Bhamati-Bharati Gargi-Maitreyi
The poet-cuckoo Vidyapati!
Nyaya-Sankhya-Vaisheshika-Mimansa
You gave vision Four
But there were many Shatshastris
Who gave wonderful thoughts!
Even today, they would be wise by birth
Philosophical children
On the foundations of true faith
This world runs on its own!
There have been more than one
Lokdev here on
People have seen them alive straight
Even the gods lived/live here!
Lorikdev or Dinabhadri
Became King Salhesh
As long as everyone was united
Not the slightest trouble!
Later divided into caste and religion
Society is broken
People have forgotten their religion
Foreigners rule awoken!
Mithila for the past several centuries
It remain no more in Janaka’s hand
The state-system that went astray
Wandering all together hither and thither!
Yet by virtue of their sacrifices
Wherever they live inhabited
Just don’t forget the value and language
Always do Maithili Jindabaad!!
Harih Harah!!
हमर नवतुरिया सब लेल विशेष शुभकामना सहितक नव-वर्ष २०२४ केर उपरोक्त रचना सहितक सन्देश!!
हरिः हरः!!