एक अत्यन्त मनन योग्य लेखः चतुर्वर्णक व्याख्या – जन्म सँ नहि अपितु संस्कार सँ

लेख

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते!!

लेखः निशांत आर्य, मैथिली अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी

प्रश्नः कि जेकर माता-पिता ब्राह्मण हो वैह टा ब्राह्मणी अथवा ब्राह्मण होइत अछि आ जेकर माता-पिता अन्य वर्णस्थ हो ओकर सन्तान कहियो ब्राह्मण भ’ सकैत अछि?

उत्तरः हाँ! बहुतो रास भ’ चुकल अछि, होइत अछि आ आगुओ होयत। जेना छान्दोग्य उपनिषद् मे जाबाल ऋषि अज्ञातकुल, महाभारत मे विश्वामित्र क्षत्रिय वर्ण आर मातंग ऋषि चाण्डाल कुल सँ ब्राह्मण भ’ गेल छलाह। आबहु जे उत्तम विद्या स्वभाव वला अछि वैह ब्राह्मणक योग्य आर मूर्ख शूद्रक योग्य होइत अछि आर एहिना आगुओ होयत।

प्रश्नः भला कहू जे रज वीर्य सँ शरीर बनल अछि से बदलिकय दोसर वर्णक योग्य केना भ’ सकैत अछि?

उत्तरः रज वीर्य केर योग सँ ब्राह्मण शरीर नहि होइत अछि लेकिन –

स्वाध्यायेन जपैर्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः॥ मनु०॥

(स्वाध्यायेन) पढ़ब पढ़ायब (जपैः) विचार करब करायब नानाविध होम केर अनुष्ठान, सम्पूर्ण वेद केर शब्द, अर्थ, सम्बन्ध, स्वरोच्चारणसहित पढ़ब पढ़ायब (इज्यया) पौर्णमासी, इष्टि आदि केँ करब, पूर्वोक्त विधिपूर्वक (सुतैः) धर्म सँ सन्तानोत्पत्ति (महायज्ञैश्च) पूर्वोक्त ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेवयज्ञ आर अतिथियज्ञ, (यज्ञैश्च) अग्निष्टोमादि – यज्ञ, विद्वान सभक संग, सत्कार, सत्यभाषण, परोपकारादि सत्कर्म आर सम्पूर्ण शिल्पविद्यादि पढ़िकय दुष्टाचार छोड़ि श्रेष्ठाचार मे वर्त्तन (वृत्ति कयला) सँ (इयम्) ई (तनुः) शरीर (ब्राह्मी) ब्राह्मणक (क्रियते) बनि जाइत अछि। कि एहि श्लोक केँ अहाँ नहि मानैत छी? मानैत छी। फेर कियैक रज वीर्य केर योग सँ वर्णव्यवस्था मानैत छी? हम अकेले नहि मानैत छी लेकिन बहुतो लोक परम्परा सँ एनाही मानैत छथि।

प्रश्नः कि अहाँ परम्परहु केँ खण्डन करब?

उत्तरः नहि, लेकिन अहाँक उलट समझ केँ नहि मानिकय खण्डन सेहो करैत छी।

प्रश्नः हमर उलट आर अहाँक सीधा समझ अछि एकर कोन प्रमाण?

उत्तरः यैह प्रमाण अछि जे अहाँ पाँच सात पीढ़ीक वर्त्तमान केँ सनातन व्यवहार मानैत छी आ हम वेद तथा सृष्टिक आरम्भ सँ आइ पर्यन्त केँ परम्परा मानैत छी। देखू! जेकर पिता श्रेष्ठ ओकर पुत्र दुष्ट आर जेकर पुत्र श्रेष्ठ ओकर पिता दुष्ट तथा कतहु-कतहु दुनू श्रेष्ठ वा दुष्ट देखय मे अबैत अछि, ताहि लेल अहाँ सब भ्रम मे पड़ल छी। देखू! मनु महाराज कि कयलनि अछि –

येनास्य पितरो याता येन याता पितामहाः।
तेन यायात्सतां मार्गं तेन गच्छन्न रिष्यते॥ मनु०॥

जाहि मार्ग सँ ओकर पिता, पितामह चलल होइथ वैह मार्ग पर सन्तान सेहो चलय लेकिन (सताम्) जे सत्पुरुष पिता पितामह होइथ हुनकहि टा मार्ग पर चली आर जे पिता, पितामह दुष्ट होइथ तँ हुनकर मार्ग पर कहियो नहि चली। कियैक तँ उत्तम धर्मात्मा पुरुषक मार्ग मे चलला सँ दुःख कहियो होइछ। एकरा अहाँ मानैत छी या नहि? हां, बिल्कुल मानैत छी। आर देखू! जे परमेश्वर केर प्रकाशित वेदोक्त बात अछि वैह सनातन अछि आर जे ओकर विरुद्ध अछि ओ सनातन कहियो नहि भ’ सकैत अछि। एनाही सब लोक केँ मनबाक चाही या नहि? अवश्य मनबाक चाही।

जे एना नहि मानय ओकरा सँ कहू जे केकरो पिता दरिद्र होय ओकर पुत्र धनाढ्य होय त’ कि अपन पिताक दरिद्रावस्थाक अभिमान सँ धन केँ फेकि दियए? कि जेकर पिता आन्हर हो ओकर पुत्र सेहो अपन आँखि फोड़बा लियए? जेकर पिता कुकर्मी हो कि ओकर पुत्र सेहो कुकर्मे करय? नहि-नहि! जे-जे पुरुषक उत्तम कर्म हो ओकर सेवन आ दुष्ट कर्म सभक त्याग कय देनाय सभक लेल अत्यावश्यक छैक। जे कियो रज वीर्य केर योग सँ वर्णाश्रम-व्यवस्था मानय आर गुण कर्म केर योग सँ नहि मानय त ओकरा सँ पुछबाक चाही कि जे कियो अपन वर्ण केँ छोड़ि नीच, अन्त्यज अथवा कृश्चियन, मुसलमान भ’ गेल होय ओकरहु ब्राह्मण कियैक नहि मानैत अछि? एतय यैह कहब अहाँ कि ओ ब्राह्मणक कर्म छोड़ि देलक ताहि सँ ओ ब्राह्मण नहि अछि। एहि सँ ईहो सिद्ध होइत अछि कि जे ब्राह्मणादि उत्तम कर्म करैत अछि वैह टा ब्राह्मणादि आर जे नीच सेहो उत्तम वर्ण केर गुण, कर्म, स्वभाव वला हुअय त ओकरहु उत्तम वर्ण मे आर जे उत्तम वर्णस्थ भ’ कय नीच काज करय त ओकरा नीच वर्ण मे अवश्य गनबाक चाही।

(लेख अत्यन्त मननीय लागल, तेँ अपन पाठक सभक लेल साझा कय रहल छी।)

हरिः हरः!!