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रामचरितमानस मोतीः विभीषणक राज्याभिषेक

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

विभीषणक राज्याभिषेक

रावणक अन्त्येष्टि सम्पन्न कयलाक बाद….

१. सब क्रिया-कर्म कयलाक बाद विभीषण श्री रामजी लग आबि हुनका प्रणाम कयलनि। कृपाक समुद्र श्री रामजी छोट भाइ लक्ष्मणजी केँ बजौलनि। श्री रघुनाथजी कहलखिन – अहाँ, बानरराज सुग्रीव, अंगद, नल, नील आ जाम्बवान् संग मारुति सब नीतिनिपुण लोक मिलिकय विभीषण संग जाउ आ हुनका राजतिलक कय दियौन। पिताजीक वचन केर कारण हम नगर मे नहि जा सकैत छी, मुदा अपनहि समान बानर आ छोट भाइ केँ पठबैत छी।

२. प्रभुक वचन सुनिकय बानर तुरन्त चलि देलनि आ ओ सब जाकय राजतिलक केर सब व्यवस्था कय देलनि। आदरक संग विभीषण केँ सिंहासन पर बैसाकय राजतिलक कयलनि आ स्तुति कयलनि। सब कियो हाथ जोड़िकय हुनका प्रणाम कयलनि।

३. तदनन्तर विभीषणजी सहित सब प्रभु लग अयलाह। श्री रघुवीर बानर सबकेँ बजा लेलनि आ प्रिय वचन कहिकय सब केँ सुखी कयलनि।

छंद:
किए सुखी कहि बानी सुधा सम बल तुम्हारें रिपु हयो।
पायो बिभीषन राज तिहुँ पुर जसु तुम्हारो नित नयो॥
मोहि सहित सुभ कीरति तुम्हारी परम प्रीति जो गाइहैं।
संसार सिंधु अपार पार प्रयास बिनु नर पाइहैं॥

भगवान्‌ अमृत समान ई वाणी कहिकय सबकेँ सुखी कयलनि जे अहाँ सभक बल सँ ई प्रबल शत्रु मारल गेल आर विभीषण राज्य पेलनि। एहि कारण अहाँ सभक यश तीनू लोक मे नित्य नव बनल रहत। जे लोक हमरा सहित अहाँ लोकनिक शुभ कीर्ति केँ परम प्रेम सँ गेता, ओ बिना कोनो परिश्रमहि एहि अपार संसार केँ पार पाबि जेता।

प्रभुक वचन कान सँ सुनिकय बानर समूह तृप्त नहि भेलथि, ओ सब बेर-बेर सिर नमबैत छथि आर चरणकमल केँ पकड़ैत छथि।

हरिः हरः!!

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