कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
रतिचर
सामाजिक संजाल मे राति भरि जागि-जागि उचकपनी-बतहपनी कयनिहार केँ रतिचर कहि रहल छी। मनुष्य केँ सुतबाक समय मे जागिकय मोबाइल पर लागल रहय के अवगुणक कारण ‘रतिचर’ कहब कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत से आशा करैत छी। दिन मे जेना रतिचर केँ चोन्हरी लागि जाइछ आ राति मे घुमि-घुमिकय चरी (भोजन) करैछ, ठीक तहिना ई रतिचर मनुक्ख केँ दिन भरि फुर्सत नहि भेटैत छन्हि आ राति मे ओ अपनो जगता आ दोसरो केँ उकसेथिन जे हमरा संगे तोहुँ जागे, ई भारी दुर्गुण बुझैत एना लिखि रहल छी हम।
रतिचर जीव जेना उल्लू, बादुड़, मूस, छुछुन्दर आदि किछु सामान्य चिड़िया के अलावे आरो कतेको तरहक जीव झिंगुर, फतिंगा, अनेकों तरहक कीट-पतंग, साँप, कीड़ा, मकोड़ा आदि सब केँ कहल जाइछ। यथार्थतः राति मे जागिकय सोशल मीडिया पर सक्रिय रहब ‘रतिचर’ केर लक्षण एहि लेल कहल जे एहि प्रजातिक लोक (हम-अहाँ जे कियो होइ) ओ असन्तृप्त आत्मा सब छी। जनम-जनम सँ भुखल, रकटल, लोभ मे फँसल…. बिल्कुल वैह जीव सब जेकाँ जेकर नाम रतिचर मे लिखल अछि।
एहि रतिचर सभक संग यदा-कदा नीको लोक ओहिना फँसि गेल करैछ जेना पूर्वक समय गाम-घर मे रातिक समय कियो बाध-बोन गेल आ ओकरा चुरिन पकड़ि लेलकैक, एकदम उज्जर धपधप नुआ पहिरने उल्टा पैरवाली कोनो प्रेत धय लेलकैक अथवा ओकरा आगू अभैर गेलैक, या फेर एहि गाछ सँ ओहि गाछ तेना कूदयवला आ झरझरबयवला कोनो अज्ञात हवा-बिहाड़ि देखा गेलैक आ ओ बड खतरनाक डर सँ सोझाँसोझी कयलक, या त जान बचाकय कोहुना बाँचिकय घर घुरल नहि त भोरे ओकरा घिसिया-घिसियाकय हाट-मैदान अथवा चौरी आदि मे मारि देलकैक से लहास देखल गेलैक – ठीक एहिना सोशल मीडिया मे रतिचर सभक सामना करैत-करैत किछु नीक लोक सब फँसि गेल करैत अछि।
सावधान!! राति ११ बजेक बाद जँ मोबाइल पर सोशल मीडिया के नशा मे डूबल छी त सम्हैर जाउ। कखन कोन प्रेत सँ सामना करय पड़त तेकर ठेकान नहि। हम त हुनको कहब जे रतिचर बनबाक क्रम मे छी। आइ-काल्हि के धियापुता सब बेसी रतिचर बनैत अछि, जखन माय-बाप सुति रहैत छय तखन एम्हर सँ ई रतिचर, ओम्हर सँ दोसर मित्र रतिचर, ई सब रातिये अन्हरियाक राज मे मस्त भेल करैत अछि। अर्थात् एहि उमेर के किशोर, युवा सब बिगड़ैत जा रहल अछि। एहि पर सावधानी सँ नियंत्रण करय जाय, नहि त अपनो बर्बाद आ अपन चांगुर मे जेकरा लेत सेहो बर्बाद। आशा करैत छी जे ई लेख कतेको लोक केँ ‘रतिचर’ बनय सँ सावधान करत, रोकि देत तेकर गारन्टी लेबाक सामर्थ्य हमरा मे नहि अछि, कारण हमरा पास मनोविज्ञानक कोनो तेहेन तरीका नहि अछि जे ओकरा बुझा सकी।
अस्तु! एक लाइन कहब, राति जँ नींद नहि आबय या कम आबय, झट् आंगुर पर भगवन्नाम केर जप आरम्भ कय दी। खासकय १२ बजे सँ २ बजे के बीच के जे पहर होइछ ताहि मे त रतिचर सँ एकदम्मे टा बची, नहि त मानसिक हालत बिगड़बे टा करत से नोट कय के राखि लिय’।
हरिः हरः!!