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अहुँ केँ एना समस्या होइत अछि की?

आत्ममंथन – आत्मसमीक्षा

सब दिन पढ़लियैक हिन्दी। अखबार, पत्रिका, उपन्यास, कथा, कविता आदि विभिन्न बात विद्यालय सँ आम जनजीवन धरि हिन्दी के भरमार रहलैक। मैथिली सेहो पढ़लियैक लेकिन मात्र परीक्षा मे नीक मार्क्स सँ पास हेबाक लेल आ अत्यधिक सहज विषय बोध करैत बहुत कम समय खर्च करबाक कय टा बात पहिनहि सँ मोन मे राखिकय मैथिली पढ़ैत रहलियैक। कक्षा ९ सँ बी. कौम. धरि मैथिली पढ़िते रहलियैक। सेहो अहिन्दी भाषी हेबाक नाते आ बस नाममात्र के विषय चयन कय केँ। हिन्दी सेहो मैथिली के बराबर अंक लेल चयन कय केँ आ अंग्रेजी पर बेसी प्रधानता राखिकय पढ़बाक फैशन केँ हमहुँ अपनेलियैक।

बाद मे जखन जीवन मे पेशा आ व्यावसायिकता वला चरण आरम्भ भेलैक त अंग्रेजी संग लगाव रहल। चारूकात हिन्दी भाषाक बहुल्यता रहबाक अवस्था मे आ फिल्म व संचार आदिक भाषा मे प्रधान भाषा हिन्दी रहबाक कारण स्वाभाविक रूप सँ हिन्दीक शब्दकोश स्वतः बढ़ैत चलि गेलैक। आ, अंग्रेजी त सहजहिं रोटी दयवला भाषा हेबाक कारण आ स्वयं अंग्रेजी माध्यमक विद्यालय सब मे शिक्षण पेशा मे रहबाक कारण सेहो अंग्रेजी सर्वोपरि रहलैक। एना मे मैथिली छुटि गेल। मातृभाषा सँ दूरी बढ़ि गेल।

बहुत बाद मे एकटा सोच आयल जे एना मे हमर मातृभाषा मैथिली जे एतेक प्राचीन आ मधुर भाषा थिक, से सच मे कहीं समाप्त नहि भ’ जाय। एकटा चर्चा मे भाग लेने रही जे विश्व भरिक कतेको भाषा लोप भ’ गेलैक आ मैथिलीक नाम सेहो लोपोन्मुख भाषा मे सूचीकृत अछि। ओहो…. ई बात हमरा चौंकेबे टा नहि कयलक, किछु करबाक प्रेरणा सेहो देलक। आब उमेर सेहो बढ़ि गेल छल आ कर्त्तापुरुष होयबाक आत्म अनुभूति सेहो भेटि गेल छल। समाज मे अगुवाई करबाक पैतृक गुण सेहो शुरुए सँ विकसित रहबाक कारण नेतृत्व वर्ग मे आबिकय नेतृत्व करबाक चाही से आत्मज्ञान भेटल बुझू।

एहि तरहें ३५ वर्षक उमेर सँ मात्र अपन मातृभाषा प्रति प्रेम आ समर्पणक खातिर काज आरम्भ कयलहुँ। वृहत् मैथिल समाज संग सहकार्य करैत भाषाक महत्व प्रति सचेतनाक प्रसार करब आरम्भ कयलहुँ। एहि लेल जखन जे जरूरी भेल से लिखैत रहलहुँ। बाद मे सोशल मीडिया पर अपन मैथिलीभाषी लोक केँ देखि लिखबाक लोभ जाग्रत भ’ गेल, तेँ लेखन करय लगलहुँ आ बहुतो लोक पढ़य लगलाह से आशीर्वाद दैत रहलथि, एहि तरहें लेखक बनि गेलहुँ।

बहुतो गोटे एहनो छथिन जे हमरा जेहेन लोक केँ लेखक, साहित्यकार, कथाकार, कवि, आदि नहि मानैत छथिन। हुनकर सोच अलग छन्हि, ओ विधिवत् लेखनीक ज्ञान हमरा मे नहि रहबाक कारण शायद एना बुझैत छथिन, जे बहुत हद तक सहिये मानल जा सकैत छैक। मुदा हमर पाठकक मात्रा आ हमरे प्रशंसक बेसी हेबाक कारण ओ सब क्षुब्ध सेहो भ’ गेल करैत छथिन। हम मनहि-मन विहुँसैत हुनकर द्वंद्व केँ देखैत रहैत छी। आब संगे छी आ लोक लग हुनकर परिचय देबाक स्थिति बनैत अछि जाहि मे कतेको तरहक विशेषण आ जानकारी आदिक प्रयोग कयल जाइत छैक आ जहाँ हमर नम्बर अबैत छैक त परिचय पेनिहार अपने कहि देल करैत छन्हि जे हिनका हम सब चिन्हैत छियनि, खूब लिखैत रहैत छथि। कियो कहि दैत छन्हि जे हम त हिनकर मित्र सूची मे सेहो छी। कियो त तुरन्ते चाह-पान आ डिनर-लन्च आदि औफर सेहो कय दैत छन्हि।

मैथिली भाषा मे लेखन मात्र हमर सख थिक। निश्चिते शब्दकोश मे मैथिलीक शब्द सँ बेसी मात्रा हिन्दी व अंग्रेजीक अछि हमरा पास। मैथिली लेखन अथवा बाजय मे सेहो अधिकांश हिन्दीक शब्द, अंग्रेजीक शब्द आदिक मिश्रण आबि गेल करैछ। आइ अग्रज आ जानल-मानल साहित्यकार ‘लेखक रमेश’ बड नीक सुझाव देलनि जे हिन्दी-अंग्रेजी शब्दक ‘अनपच’ बहुल्य-प्रयोग सँ बचय पड़त हमरा। तेँ ई आत्ममंथन आ आत्मसमीक्षा कयल। हम गछलियनि जे आगू दिन मे एहि विन्दु पर सेहो सावधान रहल करब। मुदा ई बीमारी मनुष्यक स्वभाव सँ जुड़ल रहबाक कारण पूर्णतया दूर भेनाय कठिन अछि।

काल्हि सहरसा सँ सुपौल अयबाक क्रम मे मोड़ पर एक पान दुकान मे पान खेबाक समय दुकानदार भाइ “पैछला बाजार बरियाही सेहो ‘बनगेँ’ थिकैक” कहलखिन त हुनकर प्रयुक्त शब्द ‘बनगामे’ केर ठेंठ आ शुद्ध रूप ‘बनगेँ’ बुझायल। संग मे रमेश रंजन भाइजी, किसलयजी, विक्रमादित्यजी, यायावरजी ओ पूर्णेन्दुजी सँ तत्काल एहि बातक जिकिर कयलहुँ। हमर मानब अछि जे हरेक क्षेत्रक लोक केँ बजैत-बजैत जे ‘विशिष्ट बोली’ केर रूप मे स्थापित भ’ जाय, ताहि मे लेखन स्वतःस्फूर्त प्रोत्साहित हुए। सम्भवतः तखनहि मैथिलीक विस्तृत क्षेत्र कायम रहत, जेना डा. रजनीश रंजन अपन ओजपूर्ण सम्बोधन मे कहलखिन ओहि दिन साहित्य अकादमीक ‘मैथिली सिनेमा आ साहित्य – परिसंवाद’ मे। लेखक जेना सोचैत छैक, तहिना बाजैत छैक आ स्वाभाविके तहिना लिखबो करतैक। आब हमरा स्वयं ई पते नहि चलैत अछि जे कतय आ केना ‘अनपच आ बहुल्य हिन्दी-अंग्रेजी शब्द’ प्रयोग कय देलियैक…. लेकिन जहिना वरिष्ठजन आ अनुभवी लेखक-साहित्यकार (जे हमेशा लिखय लेल प्रोत्साहित करैत रहैत छथि) कहि देलनि त हम सजगता सँ अपन लेखन केँ आर माँजब। हम गछैत छी जे अपन गलती केँ सुधारब। अस्तु!! हमरे जेकाँ बहुतो लोक केँ आदति पड़ि गेल होयत/अछि। सब कियो ध्यान देबय से निवेदन।

हरिः हरः!!

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