संस्मरण
– प्रवीण नारायण चौधरी
एक अत्यन्त प्रेरणास्पद मित्रक बेर-बेर प्रयोग सँ नकारात्मक उर्जाक संवाहक शब्द ‘लटाईधारी’ पर केन्द्रित ई प्रस्तुति एतय राखि रहल छी। आदिकाल मे निमि द्वारा कैल गेल महायज्ञ सँ जन्म लेलनि ‘मिथि’ आ हुनक राज्यक्षेत्रक नाम पड़ि गेल छल मिथिला। ओहि यज्ञ मे सेहो विध्वंस भेल छल। पूर्व आमंत्रित ‘होता वशिष्ठ’ अपन स्थान पर ‘होता गौतम’ केँ देखि कुपित भेल छलाह आ यज्ञ संकल्पित कर्ता ‘निमि’ केँ सुतली राइत मे मृत्यु-दान दैत नष्ट होयबाक शाप देने छलाह। निमि सेहो अपन सिद्धि सँ एना कूकाल मे हुनका मृत्यु-दान देबाक शाप सँ कुपित वशिष्ठ केँ सेहो मृत्यु-दान देने छलाह। बाद मे बीच-बचाव उपरान्त परमात्माक न्याय सँ ‘निमि’ तथा ‘वशिष्ठ’ दुनू केँ प्राण-दान देल गेल। निमि पुन: शरीर मे प्रवेश करबा सँ मना कय देलनि, कारण मृत्युक अनुभूति बड़ा गरू लागल छलन्हि, अत: ओ केवल मानवक निमेष मे वास करबाक वरदान लय यज्ञक अरणि सँ हुनक शरीर मथैत पुत्र उत्पत्तिक उपाय बतौने छलाह।
किछु तहिना एकटा यज्ञक संकल्प लेखक स्वयं सेहो केलनि। वर्तमान हेराइत-पछुआइत मिथिक-मिथिलाकेँ यथावत् अपन पहिचानक संग लयबद्ध रखबाक फलादेश लेल कलियुग मे मैथिल गण केर महाधिवेशन करबाक नियार कय एकटा यज्ञक अनुष्ठान् कैल गेल। एहि यज्ञ मे प्रयुक्त होता लोकनि सब हमर बहुत खास मित्र सब छथि आ सबहक मान बरोबरि अछि, संसारक कोनो तराजू पर कतहु तौल निकालब तऽ समदृष्टि-समत्व भाव केर समाधान समान तौल टा होयत। आउ, यज्ञ दिशि चली।
बात छैक विराटनगर मे आयोजित ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन-२०१५’ केर। जेना कि अपने लोकनि परिचित छी जे मात्र शब्दक नियार सँ परिवर्तनक गुंजाईश संभव नहि छैक, विकास लेल कार्ययोजना, कोष, केन्द्र, कार्यकर्ता आ सबसँ अधिक प्रमुखता सँ क्रियान्वयनक आवश्यकता पड़ैत छैक। चलू! जखन ई निर्णय लऽ लेलहुँ जे समस्त मिथिलाक्षेत्र, ओ चाहे नेपाल हो वा भारत वा विदेशक कोनो धरती जतय मैथिल बसि गेला अछि वा प्रवास पर रहितो अपना केँ मैथिल मानि मैथिली भाषा ओ साहित्य लेल सृजनशील छथि, तिनका सबकेँ एकठाम आनिकय एकटा महाधिवेशन करी। कतेको वर्ष सँ ई नियार टा छल। एकरा लेल सब ‘क’ पर कार्य क्रमश: अपन गति मे छल। एक उद्देश्य लेल कतेको साधनक जुटेनाय, सब कियो जनिते छी। करैत-करैत ओ दिन आबि गेल जे कार्यक्रम ११ अप्रैल २०१५ विराटनगर मे करब।
सितम्बर ९, २०१४ सँ प्रारंभ ‘मैथिली महायात्रा’ द्वारा लोक सबकेँ समेटैत, नामक सूची बनबैत आ सहयोगीवर्गक निर्माण करैत एहि महत्त्वपूर्ण लक्ष्य दिशि बढब सुस्पष्ट रणनीति छल। तथापि एकमात्र गंभीर विषय ‘कोष’ लेल ‘याचना’ वा ‘चन्दा’ नहि करबाक संकल्प बहुत चुनौतीपूर्ण छल। मैथिली वा मिथिला लेल किनको सँ किछु अर्थ माँगिकय कार्यक्रम करी ई हमर पूर्वजन्मक तपस्या सँ अर्जित प्रारब्धक अनुकूल नहि छल, नहि अछि आ नहिये कहियो एहि जन्म मे राखब। अत: स्वैच्छिक योगदान देनिहारक खोज मे मैथिली महायात्रा स्वस्फूर्त भूमिका निर्वाह करय लागल। अपन कठिन परिश्रम सँ अर्जित दु पाइ खर्च करैत आ ताहू सँ बेसी कठिनाईपूर्वक बचाओल गेल समय मे विभिन्न ठामक यात्रा करैत ‘पहिल पड़ाव’ आबि गेल। चौतरफा लोक सब आमंत्रित छलाह।
अपेक्षा सँ बहुत बेसी लोक एहि कार्यक्रम केर आतिथ्य स्वीकार कय विराटनगर पहुँचि सौभाग्यक अभिवृद्धि कएलनि। स्वागत मे हमरा लोकनि एकटा समूचा सदन केँ आरक्षित राखि, भोजन-भातक इन्तजाम अपनहि संरक्षण मे मैथिल पाक बनेनिहार आ प्रेम सँ भोजन करेनिहार केँ राखि यथाशक्ति नीकहि सँ कय सकलहुँ। हम आ हमर साढू रंजितजी सहित मैथिली सेवा समितिक उच्चाधिकारी लोकनिक समय-समय पर रेखदेख आदि सँ इन्तजाम दुरुस्ते कहल जाय। सब अतिथि लोकनि लेल कोठली वा हौल आदि मे समुचित ओछाइन-बिछाउनक संग आराम करबाक उचित व्यवस्था एक दिन पूर्वहि सँ कैल गेल छल। दिल्ली, कानपुर, दरभंगा, सहरसा, राजविराज, लहान, जनकपुर, काठमांडु, सउदी अरब, दुबई, पुर्णियां आ अररिया सहित अन्य-अन्य ठाम सँ अतिथि लोकनि आयल छलाह। पटना, भागलपुर, मधुबनी, दरभंगा, सहरसा आदि सँ रिसर्च स्कालर्स मैथिली साहित्यकार लोकनि सेहो दर्जनोंक संख्या मे आयल छलाह। महिला आ पुरुष सबहक सहभागिता भरपूर छल।
कार्यक्रम समय पूर्व निर्धारित वक्ता सँ बहुत रास बेसी वक्ता लोकनि केँ शिष्टाचारवश समावेश करब हम पहिल धर्म बुझैत आयल छी, ताहि हेतु स्थानीय विद्वत् समाज टा केँ आमंत्रित कएने रही आ समगर्दा आमंत्रण भोज-भातक सीमितताक कारणे नहि केने रही। तैयो मुख्य अतिथि सियाराम झा सरस केर संबोधन होयबा समय धरि करीब ७५ गोटाक संबोधन भऽ चुकल छल। महाधिवेशन मे विषयानुकूल वक्ताक संबोधन आ सेहो अलग-अलग विन्दु पर चर्चा सँ कार्यक्रमक लक्ष्य पूरा भेल छल, एना हम मानैत छी। मुदा कतेको लोक एहि मे तैयो छूटि गेलाह। कार्यक्रममे लगभग डेढ सय आगन्तुक, सब वक्ते, के माइनस आ के प्लस…. अफरातफरीक माहौल एतय होइत छैक। कहनिहार गलती नहि कहला जे ई तीन दिनका कार्यक्रम केँ एक्के दिन मे समेटबाक महान त्रुटि सँ एना भेल अछि। सही बात! महादेवहि पर छोड़ि जखन लोक कोनो काज करैत अछि तऽ वैह सम्हारबो करैत छथिन। हमर आइ धरिक अनुभव मे साक्षात् देवाधिदेव अपन त्रिशूल सहित पार्वतीक संग आनि मैथिली कार्यक्रमक दर्शन करैत छथि। कारण हुनका अपन प्रिय राम आ माता सीता सँ अतिशय प्रेम रहैत छन्हि। मैथिलीक कार्यक्रम माने सीताक गान – साक्षात् जानकी अपनहि ओहि दिन उपस्थित रहैत छथि आ धियाक संग जमायक वास नहि हो ई असंभव, तैं राम सेहो रहैत छथि। यैह परमानन्दक अनुभूति मे डूबल जेना-तेना कार्यक्रम भऽ जाइत अछि आ लोक सब हँसी-खुशी अपन-अपन घर दिशि लौटैत छथि।
आयोजक केर आतिथ्य स्वीकार कय सैकड़ोंक संख्या मे बाहर दूर-दूर सँ आयल अतिथि लोकनिक विदाईक बेर सेहो बड़ गंभीर होइत अछि। इच्छा रहैत छन्हि जे सब अतिथिकेँ हँसी-खुशी घर प्रस्थान करबाक लेल विदाई करी। किनको कनेकबो असहज नहि होइन्ह। एहि क्रम मे किछु अतिथिकेँ आपस मे संङ्गोर बनबैत जयबाक लेल सेहो आयोजक अनुरोध करैत छथि। कारण एक्कहि दिशा मे यदि जेबाक अछि आ किनको लंग साधन सुलभता सँ उपलब्ध अछि, ताहि क्रम मे साधन सहजता सँ जिनका लेल नहि छन्हि तिनका आपस मे जोड़ि देल जाइछ। एहि तरहें अलग-अलग दिशाक सब अतिथि लोकनि प्रस्थान करैत छथि। ताबत धरि आयोजनकर्ता भूखले-प्यासले केवल अपन अतिथिक मान-सम्मान मे समर्पित सब किछु सकुशलता सँ संपन्न करबाक लेल लागल रहैत छथि। कतहु-कतहु मानवीय भूल होयब सेहो स्वाभाविके होइत छैक। मुदा ताहि भूल केँ यदा-कदा बड पैघ त्रुटिक रूप बना फोंसरी सँ भोकन्नर करबाक आदति सेहो किछु महानुभाव मे भेटिये टा जाइत छैक। आन्तरिक भावना कतहु ई नहियो रहैत ओकरा सोझाँवला अलग रूप मे लऽ लैत छथिन आ तेकर बाद शुरु होइत अछि खिस्सा-गिला – शिकवा-शिकायत – बेवफाई और कि-कि!! ई सब मैथिल केर विशेष स्वभाव मानल जाइछ। कतबो पैघ यज्ञ कय लेब, अप्रतिष्ठाक कोनो न कोनो विन्दु कतहु न कतहु सँ बीच मे आबिये टा जायत। तथापि, शुद्ध हृदय सँ साक्षात् परमेश्वरक उपस्थिति मे संपन्न अनुष्ठान् सदैव सुखदायी होइत छैक, एहि मे कोनो दुइ मत नहि।
यज्ञक आयोजन मे किछु एहने त्रुटि सबहक कारण कतेको वशिष्ठरूपी महाऋषिगण तमशा गेला। किनको आँखि मे खूट्टी गड़ि गेलनि, तऽ किनको कान मे गूज्जी कुकुआय लागल। विदाईक क्षण धरि दरभंगाक महान् ऋषिगण सब बाकायदा फूचफूच्चीक हद्द पार करय लगला… कोना-कोना हुनका सबकेँ चाह-पान खुआ जनेउ-सुपारी-दछिना सहित विदाह कैल गेल। प्रो. उदय शंकर मिश्र समान होता पर्यन्त स्थिति केँ सम्हारय मे कामयाब नहि भऽ रहल छलाह, मुदा एतय तऽ भीतर-बाहर एक वला बात… महान् ऋषि लोकनि केँ कोनाहू प्रणाम-पाती करैत गन्तव्य तपोभूमि दरभंगा दिशि विदाह कैल गेल।
जाबत ओम्हुरका मैथिल ऋषिसमाज केँ विदाई कय रहल छलहुँ ताबत यज्ञक मूल होता रमेश रंजन भाइ आ आचार्य प्रेमर्षि सेहो अपन सारथि केँ रथ निकालबाक आदेश दय गन्तव्य जनकपुर, काष्ठमण्डप, मिथिमण्डल मधुबनी आदिक दिशा मे प्रस्थान कय गेला। हमर सिद्धि पूर्णरूप सँ रुसि रहल छलीह जे एक्के शरीर केँ कोम्हर-कोम्हर दौड़ाउ, बिन भेंटघाँट भेन्ने, पानो-सुपारी बिन लेने मूल होता लोकनि अपन गन्तव्यक दिशा मे रथ केँ पूर्व वेग सँ हाँकि देने छलाह। बाद मे दूरभाष पर सम्पर्क केला पर मूल-होता मुस्कुराइत ‘बाय-बाय एण्ड सी यू सून अगेन’ कहने छलाह। आत्मसंतोष भेल। मूल होता लोकनि हमर अग्रज-मार्गदर्शक आ हुनकहि सबहक प्रेरणा सँ यज्ञक अनुष्ठानो करैत छी, कएने रही। ताहि हेतु संतोष ई भेल जे बेसी तमसेता तऽ अपने मन्दिर केँ तोड़ि लेता, हम कि करब, बाबा संगे झारिखंड मे रहि लेब।
क्रान्तिवन सहरसा सँ आयल क्रान्तिवीर सबहक हम प्रशंसा कि करू – हमर काज हुनकर काज, हुनकर काज हमर काज! दरभंगिया गप्पी आ मधुबनियाक मेहिआयल महकारी चाइल, सहरसा सँ परिचय भेलाक बाद आ खासकय माया बाबुक मायावी रूप जनलाक बादे भेल। क्रान्तिभूमिक समस्त वीर लोकनि हमर इन्तजार केलनि। रथ आ सारथि सब कराम-कराम कय रहल छल, तथापि हुनका लोकनिक सहजभावक स्नेह हमरा समय देलक आ फेर सब कियो गला मिलिकय फेर भेटब, बेर-बेर भेटब कहि एक-दोसरक नयन मे नीर भरि विदाह भेलहुँ।
भोरे-भोर बतहबाक चाकर बताहे यानि महादेवक भक्त किसलय कृष्ण सरस्वती-पुत्र पवन नारायण ओ हुनक तानसेनी सेना केँ संग लैत ओहि दिन दरिभंगाक भंगियायल भूमि पर राखल गेल कोनो अन्य यज्ञ मे होता होयबाक कारणे विदाई लैत चलि गेल छलाह – एम्हर हम हस्तिनापुर आ कान्यकुब्ज केर अतिथिक संग-संग बंग-भूमि सँ अयला वरिष्ठ चर्वाक् उमा बाबु आ दरिभंगा कर्मस्थली मुदा मधुबनीक मधुबननिवासी वैद्य सुसेन अर्थात् ओम-प्रकाश… ओहो… तैयो नहि चिन्हबैन, वैद्य ओ पी महतो जी केर नाम सँ सब चिन्हैत छन्हि आ हमर परम मित्र मे सँ एक छथि, संगहि सउदीक सेख सुनील कुमार गुप्ता एवं दुबई केर दानवीर प्रभात राय भट्ट आदि एकटा बड़का सभागार मे भैर राति हँसी-ठिठोली करैत बितेनहिये रही… सुनीलजी आ प्रभातजी केँ विमान भोरे समय पर रहबाक कारणे ओहो सब निकैल गेलाह। धीरे-धीरे ओ सभा-भवन पूर्ण रूप सँ इन्द्रक सभा टूटबाक नजारा देखा रहल छल।
एम्हर अनिल भाइ, मिथिलांचल महासभा उत्तरप्रदेशक प्रवक्ता अपन चीर-परिचित धड़फड़िया अन्दाज मे कान्यकुब्ज वापसीक एकटा टिकस कैन्सिल कराय द्वारबंग सँ लौहपथगामिनीक द्रुतगति यानक टिकस मुजफ्फरपुर केर बोर्डिंग हिसाबे कटा लेने छलाह जेकर समय छलैक ३ बजेक आसपास दरिभंगा सँ… आदरणीय रवि बाबु, अमित बाबु सेहो संगे छलाह ओहि टिकस मे। रवि बाबु केँ इटली (इटहरी) मे बेटी-जमाय-नाति-नातिन सबकेँ भेंटघांटक कार्यक्रम आ नास्ता-चाय करैत पुन: द्रुतगति जमीनी यान यानि स्कोर्पियो सँ दरिभंगा धरि जेबाक छलन्हि। जर्मनी (जोगबनी) सँ बूक करायल एकटा स्कोर्पियो एक घंटा देरी कय देलक, ओ लगभग १० बजे आबि पहुँचल। हम सोचलहुँ जे वैद्य सुसेन महाराज, बंगराजा चर्वाक् तथा संग मे आयुष्मान् अभिमन्यु (विद्याभूषण राय डब्लू) जिनका सबकेँ द्वारबंग धरि जेबाक छलन्हि हुनका सबकेँ सेहो ओहि यान मे पठा दी। स्कोर्पियो मे सारथि छोड़ि लगभग ७-८ गोटा आराम सँ यात्रा कय सकैत छलाह। तखन तऽ होइत छय समस्या जे आगू के आ पाछू के बैसत…. औ जी! पहिने तऽ यानक समस्या, यान भेटल तऽ सीटक समस्या। एहि मे संयत संयम सँ बुझनिहार कतहु समायोजित होइत गन्तव्य पर पहुँचब केँ प्रधानता दैत छैक। लेकिन कतहु-कतहु समस्या बड़ विकराल भऽ जाइत छैक।
किछु यैह भेल एहि स्कोर्पियो मे सीट अरैन्जमेन्ट मे। जेना-तेना वैद्यराज आ अभिमन्यु पैछला सीट पर बैसिकय गन्तव्यक दिशा मे प्रस्थान कएलनि। बाट मे कतहु ई सब पान खेलनि। पान मे नेपाली कलश जर्दा जे सब ठाम चलैत छैक, वैह खेने हेता आ वैद्यराजकेँ चक्कर देमय लगलैन। उल्टी सेहो भेलनि। आब ओ सहयात्री सब सँ किछु समय माँगि रहल छला। कहला जे रुकू कने, मोन बेसी घूमि रहल अछि। सहयात्री सब केँ समय लागत तेहेन स्थिति देखि वैद्यजी केँ अन्य सवारी-साधन सँ बाद मे चलबाक नसीहत देल गेल से प्रकरण बाद मे बुझलहुँ। नसीहत फझीहतपूर्ण छल – ई प्रतिक्रिया वैद्यराज बाद मे चैटिंग-वार्ता द्वारा जानकारी करौलनि। मर्माहत भेलहुँ। आखिर कोना एहेन संभव अछि। जे व्यक्ति सब मैथिल लेल जी-जान एक केने रहैत छथि, ओ कतहु एना एक अभियानीक संग व्यवहार करता…. समाधान तकैत-तकैत एक्केटा बात न्यायोचित लागल अपना जे भऽ सकैत छैक हुनका सबकेँ कानपुर धरिक ट्रेन टिकट आ समय पर दरभंगा पहुँचबाक बाध्यता, सेहो बेटी-जमाय केँ भेंट केलाक बाद इटहरी होइत नेपाले-नेपालक रस्ता सँ जेबाक कारण किछु मजबूरी रहल हेतनि, ताहि पर सँ पैछला सीट पर मोन घूमनिहार केँ बैसेनाय… इत्यादि बातक कारण वैद्यजी आ अभिमन्युरूपी बालक केँ वापस सभा-भवन पर छोड़ि ओ सब आगाँ बढि गेल हेताह।
ताहि दिनक व्यवहार सँ कूपित वैद्यराज जखन अपन कठोर प्रतिक्रिया कतहु देलनि तऽ हम अपन स्वाभाविके काजक लोकक पक्ष लेबाक प्रवृत्ति सँ ओहि दुर्व्यवहार केँ बाध्यताक कारण स्पष्ट करैत ओकरा दुर्व्यवहार नहि मानि किनको परिस्थितिवश उपजल कमजोरी मानि बिसैर जेबाक अनुरोध केलियैन। मुदा वैद्यराज ताहि कारण सँ सन्तुष्ट नहि भऽ पेलाह आ हमर किछु अनुरोध केँ क्रोधवश जूताक ठोकर पर राखि अपन मनक बात सँ पीड़ित रहय लगलाह। क्रोध सँ पित्त खराब, पित्त खराब माने ज्वर-तपेदिक, साँसक रोग आदि सँ वैद्यराज पीड़ा मे चलि गेलाह। आब संसारक इलाज करनिहार अपन बीमारीक पहिचान नहि कए पेलाह आ कि आर किछु… मुदा बेर-बेर तेज बोखार सँ तपैत हुनका मुंह सँ एतबे निकलैन – “लटाईधारी!! लटाईधारी!! मिथिला पर लटाईधारीक राज… लटाईधारी दूर परदेश मे बैसि मिथिला मे गुड्डी उड़ा रहल अछि… मोन होइत छैक तऽ ताग ढील करैत अछि, मोन होइत छैक तऽ ताग समेटि लैत अछि। लटाईधारी केर कारण सँ मिथिला बीमार अछि। मिथिला केँ बोखार लागि गेलैक अछि। बोखारक दबाई हम निर्माण करब। एहि लेल हिमालय सँ बूटी-जड़ी आदि आनब।” हम अपना भैर पानिक पट्टी आदि सँ हुनका माथ सेदैत कहैत रहि गेलहुँ जे वैद्यराज! ई सब अहिना होइत छैक। अपना केँ एना आरो बीमार नहि बनाउ। सम्हरू! ई लटाईधारीक अपन जीवनशैली थिकन्हि। ओ एकटा पैघ कम्पनीक मैनेजर छथि। अपन समाज मे बहुत हिम्मत करैत मैथिली-मिथिला लेल जिवटता देखबैत छथि। अहाँ एना हुनका प्रति विचार मे शंका नहि पोसू। मुदा… आह! ओ बंगराजा चर्वाक् केँ अपन ओहि स्थितिक बेर-बेर स्मरण करबैत बोखार केँ १०६ डिग्री पर पहुँचा लेला। अन्त मे हमरा वर्दाश्त नहि भेल। हुनकर बोखार केँ एक्के बेर ९७ डिग्री पर अनबाक लेल ई संपूर्ण संस्मरणरूपी औषधि बनाबय पड़ि गेल अछि।
एहि औषधिक असैर हुनका पर शीघ्रे पड़तन्हि आ तुरन्त प्रभावी एन्टीबायोटिक्स जेकाँ हुनक बीमारीक समाधान सेहो निकालत जे ई संसार मे के कतेक आ केकरा सँ कोन बंधन मे अछि, के मैथिली आ मिथिला लेल कोन तरहक ऋण सँ बान्हल अछि, केकर स्वभाव सोझाँवलाक रुचि वा स्वाद मुताबिक कतेक रहबाक चाही आ केकर बोली वा वचन केँ कोन तराजू पर नापि कय दुर्व्यवहार मानल जाय एहि सब पर खूब मनन करता। नि:स्वार्थ भाव सँ जे अपन लगानी करैत अपन भाषा, संस्कृति आ आत्मसम्मान लेल काज करैत अछि ताहि मे सब किछु सीमित छैक। फूसिये बोखार सँ जड़बाक कोनो जरुरत नहि। अपन प्राणक रक्षा करू। अपन योगदानक व्यवस्था करू। भऽ सकय तऽ मित्रवत् रहू, नहि पार लागय तऽ बहिष्कार करू। सिम्पल! अस्तु!!
तऽ अन्त मे, लटाईधारी मिथिक स्थान मे कलियुग जँ पैदा कय सकैत अछि, तैयो मिथिलाक कल्याण हो। ओहि लटाईधारीक ताग मे अपना केँ बान्हल देखबाक कोनो जरुरति नहि छैक। मिथिला नेताविहीन छैक, कारण एतय ‘जन, जर, जमीन’ समस्त विवाद केँ चरम पर पहुँचा देने छैक एकमात्र विष ‘जातिवादिता’ सँ। यदि संभव हो, तऽ हम एहि सँ ऊपर उठी। बाकी ईश्वर जानैथ!!