दृष्टि-विचार (लेख)
– संगीता मिश्र
विवाहेतर सम्बन्ध – दाम्पत्य जीवन लेल जहर
(स्त्री दृष्टिकोण)
विवाह ओ थिक जे स्त्री-पुरुष दुनू केँ बंधन मे बान्हि एकजुट करैत अछि । एहि बंधन केँ “विवाह” कहल जाइत छैक आ एकर बादक जीवन केँ वैवाहिक जीवन कहल जाइत छैक । दंपति माने स्त्री-पुरुषक जोड़ी, जे धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, कानूनी मान्यता, रीति-रिवाज – समस्त आधार पर अनुमोदित होइत अछि । विवाह के बाद स्त्री-पुरुष अपन जीवन पति-पत्नीक रूप मे जिबैत अछि, ओकरा वैवाहिक जीवन कहल जाइत अछि। विवाहित जीवन एकटा धर्म, आधार, आस्था, प्रेम, समर्पण, व्रत, पवित्रता पर आधारित हाेइत अछि ।
विवाहित जीवन मे पति-पत्नी बीच विवाद
छोट-छोट बात पर पति-पत्नी मे बहस करब आम बात होइछ । कतेको दम्पति केँ सब दिन झगड़ा भेल करैछ । जेकर कारण दुनू मे तनावक स्थिति उत्पन्न भ’ जाइछ । वैवाहिक जीवन मे पति-पत्नीक बीच के संबंध विश्वास पर मात्र जिबित रहि सकैछ । जँ दुनू के एक-दोसरा पर विश्वास हो तऽ अधिकांश समस्या के समाधान स्वतः भ’ जाइछ । दुनिया मे बहुते रास महिला एहनो छथि जे विवाह के बाद अपन गृहस्थी मे रमल रहैत छथि, पति आ बच्चा संग खुश रहैत अपन गृहस्थी मे खुशी रहैत छथि । मुदा विवाह के १६ साल बाद कोनो पति जँ दोसर स्त्री प्रति आकर्षित भ’ जाइथ त एहेन स्थिति मे फँसल पत्नी या त परिस्थिति सँ समझौता करत या प्रेमहीन विवाहक बोझ उठायत । स्थिति बद सँ बदतर होयत त अलगो हेबाक निर्णय लय सकैत अछि । एहेन स्थिति मे जेकर जीवन बड़ा विचित्र ढंग सँ फँसैत छैक से होइत अछि स्त्री, यानी पत्नी । कारण, पति केँ त पहिने सँ प्राप्त भ’ रहल शारीरिक सुख आब परस्त्री सँ भेटिये जाइत छैक, लेकिन ओकर निरीह पत्नी किन्नहुँ पथभ्रष्ट नहि होइत अछि । एहेन विपरीत परिस्थिति मे पत्नी आ बच्चा कतेक कष्ट आ परेशानी सँ गुजरैत रहैत अछि लेकिन दुष्चरित्र पति केँ एहि बातक कोनो असरि नहि पड़ैत छैक । ओ बड़ा निष्ठुर बनिकय अपन वासना आ हवस केर भूख दोसर स्त्रीक सहारा लयकय पूरा करब एकनिष्ठ कर्तव्य मानि उल्टा अपन पत्नी आ बाल-बच्चा सब केँ समाज मे बदनाम करैत रहैत अछि ।
आश्चर्य त तखन लागत जखन एहि पुरुषवादी समाज मे ओहि स्त्रीक पीड़ा केँ कियो बुझबाक यत्न तक नहि करैत अछि । पुरुष त पुरुष, महिलो सब मे दोसर महिलाक भावुक अवस्था पर ध्यान देबाक जरूरत नहि बुझल जाइत छैक ।
कतहु भ’ कय नहि रहि पबैत अछि ओ पीड़ित महिला । पत्नी खूब कानल, झगड़ा सेहो कयलक, नैहर-सासूर आ समाज सब लग समस्या उठेलक, अन्त मे असहाय भ’ प्रचलित कानून के उपचार तकलक – लेकिन अन्ततोगत्वा हासिल कि भेलैक ? भले ई सब निराकरणक उपाय नित्य दोहराओल जाय मुदा तखनहुँ दुष्चरित्र पति केँ कोनो फर्क नहि पड़ैत छैक । तेँ, हमर अनुभव कहैत अछि जे एहि पीड़िता केँ सबसँ पहिने अपनहि भावना केँ बिसरि जेबाक चाही । अहाँ सँ जे प्रेम छल, जे लगाव छल, से सब खत्म भ’ गेल, आब सम्बन्ध के कोनो मोल नहि बचल रहल । एहेन पथभ्रष्ट पति सँ बदलबाक उम्मीद नहि करू । जँ ओ अहाँ सँ प्रेम करैत रहितय तँ दोसर स्त्री सँ प्रेम किन्नहुँ नहि करितय ।
सच ईहो छैक जे उपरोक्त स्थितिक मारल पीड़िता महिला बेसीकाल अपन पतिक अबैध सम्बन्ध केँ गुप्त राखल करैत छैक । ओ वैवाहिक जीवन के अपमान सँ बचेबाक भरपूर प्रयास करैत छैक । मुदा ई एहने खतरनाक बात होइत छैक जे कतहु न कतहु सँ एक कान सँ दोसर कान धरि जाइत-जाइत सौंसे पसरि गेल करैत छैक । एकर परिणाम ई होइत छैक जे पति सँ बेसी पत्नी लोकचर्चाक विषय बनि गेल करैत छैक । हमर सुझाव यैह अछि जे एहेन अजीबोगरीब स्थिति मे फँसबाक बदला पीड़िता केँ अपन पतिक अबैध सम्बन्धक बारे अपन सासुर आ माता-पिता सँ खुलिकय करबाक चाही । ई इतर बात छैक जे एहेन स्थिति मे जल्दी कियो अहाँक साथ जल्दी नहि देत, कोनो कार्यवाही करय सँ अहाँ केँ रोकत । तथापि, अहाँ अबैध केँ अबैध बुझि बैधता के बाट पर आगू बढ़ू, नैतिक बल आ आत्मबल जरूर अहाँ लेल सम्बल सिद्ध होयत ।
निरपेक्षता सँ सोचब त देखब जे विपरीत लिंग प्रति मानव मे आकर्षण सामान्य बात छैक । लेकिन हम सब जे संस्कार, शिक्षा, सामाजिक मर्यादा आ अनुशासनक सीमा बुझैत छी, ओकरा एहि आकर्षणक क्रिया-प्रतिक्रिया बारे सेहो नीक सँ बुझल रहैत अछि । तैयो किछु लोक मे आकर्षण एहेन खतरनाक भेल करैत छैक जे ओ सारा मर्यादाक रेखा पार क’ जाइत अछि । एहेन व्यक्ति ओहेन भँवरा समान होइत अछि जेकरा एक फूल के रस सँ मोन नहि भरैत छैक – ओ सदिखन अपन चाहत के भिन्न-भिन्न कली सब पर मंडराइत अछि, अवसर भेटिते ओकर रस चूसबाक लेल फूल पर बैसि गेल करैत अछि ।
विश्वास होयत जे एहेन मर्यादा बिसरनिहार कियो सामाजिक-साहित्यिक आदर्श के वकालत करनिहार व्यक्ति होयत ? विश्वास होयत जे ओकर भँवरा जेकाँ फूल-फूल पर मंडरेबाक स्थिति मे पद, प्रतिष्ठा आ मान के भूख रखनिहाइर अन्य सामाजिक-साहित्यिक साधना कयनिहाइर महिला सब फूल बनत ? विश्वास होयत जे एहेन दुराचारी-दुष्चरित्र जेकरा अपन पारिवारिक मर्यादा के कोनो खियाल नहि रहैत छैक से ओहेन-ओहेन व्यभिचारिणी स्त्री सभक संग सरेआम सामाजिक-साहित्यिक कार्यक्रम सब मे भाग लेत आ बड़का-बड़का नीति-नैतिकता के बघारत ?
हम त निर्णीत स्वर मे कहब जे एहेन पुरुष पूर्णतः निश्छल आ कोनो स्त्री प्रति समर्पित नहि भ’ सकैत अछि । ओ लूज कैरेक्टर लोक पत्नीक अतिरिक्त आन महिलाक संग आत्मीयता बढ़ा केवल भटकैत भँवरा के भूमिका करय लेल आतुर रहैछ । सम्भ्रान्त समाज आ सम्भ्रान्त महिला एहि तरहक कमजोर चरित्रक पुरुष केँ कदापि अपना बीच बैसबाक आग्रहो तक नहि कय सकैत अछि ।
समय के मांग अनुसार ई सब बात बड़ा दुस्साहस करैत हम लिखि रहल छी । हमर ध्येय अछि जे मिथिला सभ्यता मे सम्भ्रान्तक संख्या अधिक छैक । दुष्चरित्र त सब दिने सँ छैक । सम्भ्रान्त केँ सम्हरिकय जिबय के बाध्यता छैक । अनुशासनहीन आ काम-वासनाक बोखार सँ तपित भटकल लोक के त काजे थिकैक भटकब, सम्हरबाक जिम्मेदारी सम्भ्रान्त पर छैक । धन्यवाद!!