ब्राह्मणक सम्मान स्वयं ब्राह्मण सहित सब समाज केँ करहे टा पड़त

ब्राह्मण विरूद्ध विषवमन सँ केकर लाभ?

ब्राह्मण प्रति शत्रुताक भाव जाहि तरहें प्रचारित-प्रसारित कय केँ ब्राह्मणेतर समाज केँ गोलबन्द करैत सत्ताक राजनीति आरम्भ भेल स्वतंत्र भारतक किछु पैघ राज्य सब मे, जाहि मे बिहार आ यूपी सर्वोपरि अछि – तेहेन अवस्था मे अन्तर्द्वंद्वक अवस्था एखन किछु नहि देखलहुँ अछि। आबय वला समय मे देखब। ब्राह्मण त अपना केँ किनार कय लेलक। आब ओकर कोन मोजर छैक?

सनातन धर्मक इतिहास मे ब्राह्मण प्रति सद्भावना, ऋषि-मुनि, सन्त समाज आ बड़-बुजुर्ग, गुरुजन, माता-पिता, ज्येष्ठ-श्रेष्ठ आदिक सम्मानक बात कयल गेल छैक। कियैक? कियैक त ई मानवताक प्राकृतिक रक्षासूत्र थिकैक। एकरा सँ इतर सेहो होइत रहल अछि।

*ब्राह्मण कुल मे सेहो आसुरिक प्रवृत्ति बढ़ल आ अपना केँ सर्वशक्तिमान् बुझि एहि जग के अधिष्ठात्री ‘जानकी’ केँ अपहरण करबाक भूल सेहो कयलक ‘रावण’ जेहेन ब्राह्मण। पुलस्त्य ऋषिक कुल केँ कलंकित कयलक ई राक्षस। अपन तपस्या सँ प्राप्त आशीर्वाद प्रति भ्रम मे फँसल आ ‘रहा न कुल मे रोवनहारा’ वला हाल केँ प्राप्त कयलक।

*बेसी नहि, बस २५०० वर्ष पहिने बुद्धक अवतार कालखंड मे ब्राह्मणक कर्मकाण्डीय व्यवहार सँ आम जनसमुदाय त्रसित हेबाक आ तेँ बुद्धावतारक वृत्तान्त कहैत ‘करुणाभाव’ सँ देव-पितर कर्म प्रति साकांक्ष हेबाक सन्देश संग बुद्ध अयलाह कहल जाइछ।

*पुनः शुरू होइछ बुद्धक सन्देश केर दुरुपयोग। बड़का-बड़का राजा-महाराजा बुद्धक शरण मे जेबाक घोषणा करैत छथि, लेकिन आब ओ ब्राह्मण केँ अल्पसंख्यक बुझि ओकरा उपर अत्याचार जेहेन जघन्य पाप करय सँ नहि चुकैत छथि। तखन उदय होइछ मौर्य सम्राज्यक आ लिखल जाइत अछि अर्थशास्त्र, जे निर्दिष्ट करैछ आध्यात्मक संग युद्धकौशल आ कूटनीति-रणनीति केर विलक्षण विचार सब। एहि कालखंड मे वैदिक दर्शन सँ प्राप्त विभिन्न शास्त्र-पुराण ओ श्रुति केँ संयोजित करैत मानव आ मानवता लेल बहुत काज कयल जाइछ। लेकिन सत्तालोलुपता आ जातिवादक राजनीति जे बुद्ध उपरान्त एहि भारतवर्ष मे शुरू होइछ से आब नव राक्षस बनिकय समाज मे हावी रहैत अछि।

*बेर-बेर भारत गुलाम बनल। कियैक? कियैक त सनातन सिद्धान्तक खिलाफ ब्राह्मण आ ब्राह्मणेतर जातीय विवाद मे सत्ता ओझराइत रहल अछि। घर फूटे, गँवार लूटे! अहाँ देखू भारतक इतिहास आ सत्ताक राजनीति। कतेक मानवीय पक्षक पृष्ठपोषण करैछ से स्वतः देखा जायत।

*ब्रिटिशकालीन भारत मे त ‘डिवाइड एन्ड रूल’ के मेटाफर (रूपक) त कतेक लोकप्रिय भेल से जनिते छी सब। स्वतंत्रता उपरान्त देखू कि हाल भेल? कि ई डिवाइड एन्ड रूल पौलिसी समाप्त कयल जा सकल? जे राज्य एहि सँ उपर उठल ओ विकसित राज्य केर श्रेणी मे पहुँचि गेल अछि। आ जे बड़का-छोटका के विवाद मे जकड़ल रहल, मानवतावाद केँ पाछू छोड़लक, ओ सदैव पिछड़ल रहल, पिछड़ल अछि आ पिछड़ल रहत। बिहार तेकर सर्वोपरि उदाहरण थिक।

*जगन्नाथ मिसिर अपन नाम सँ मिसिर तक हंटा लेने रहथि। मैथिली निज मातृभाषा केँ लात मारि उर्दू केँ राजभाषा बनौलनि। आब पंडीजीक राज हंटा ई जेपी-लोहियाक नकली चेला सब हल्ला-खल्ला करैत समाजवाद आ सामाजिक न्याय के नाम पर केहेन ताण्डव कयलक से देखबे कयलहुँ। ‘भूराबाल साफ करो’ – एलिट्स आ मास बीच कन्ट्रोवर्सीज केर पेट्रोल छीटि सत्तासुख प्राप्त कयलक, जनता ठकायले रहि गेल। कोनो गैर-भूराबालक जीवन मे सिवाये झगड़ा-झंझटि आ विवाद के अतिरिक्त आर कोनो प्रगति भेल हुए त अवश्य कहब। त एहेन लोक बनि जाइछ ‘मसीहा’, ‘निरीह पिछड़ों के मुंह में आवाज देनेवाले जननेता’ – तेकरा सत्ता सँ दूर करय अबैत अछि एकटा ‘पचपनिया’ – तोड़ैत अछि ‘माई’ समीकरण। लेकिन पाँचे वर्ष मे ओकर दिमाग छिटखोपड़ी जेकाँ छिटछिटाइत विकास आ सुशासन सँ इतर पटका-पटकी खेल केँ नीक मनैत कुश्तीक मैदान मे पलटूराम बनि जाइत अछि। आब चौथापन हावी भेल समय ओ अपना ढंग सँ ‘माई आ पचपनियाँ गठजोड़’ करैत ‘भतीजा’ केँ ‘सत्ताधीश’ बनबय लेल आ भारत देश मे पुनः तथाकथित छद्म-धर्मनिरपेक्षताक ढ़ोल पीटनिहार, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण आ सनातनविरूद्ध ईसाईकरण वला युरोपीय यूनियनक दलाल सब केँ संघीय सत्ता हस्तान्तरणक खेल कय रहल अछि। एकरा वश मे आब किछु नहि छैक, आ न रहतैक से स्पष्ट अछि।

एहेन स्थिति मे समाजक विखंडन कय अपन सत्ताक मलाई चखनिहार द्वारा समाज प्रति वाहियात चिन्ता-चिन्तनक चोन्हरी पसारब, एहि सँ भला कि होयत? ब्राह्मण वर्सेज ब्राह्मणेतर के सूत्र पर चलबाक वकालत सनातन पद्धति मे कतहु नहि भेल अछि। कृष्ण आ राम सन अवतारी महापुरुषक जीवनचर्या पर्यन्त मे ब्राह्मणक महत्व केँ सर्वोपरि राखल गेल छल। आइ ब्राह्मण धकेलिकय पठायल गेलाह परदेश। गाम मे दुइ-चारि ठठरी सब चचरी पर चढ़य बेरुक प्रतीक्षा मे छथि। किछु उद्यमी-व्यवसायी आ गामक सिनेह मे बान्हल लोक बस घरक दरुखा भीतर घरवाली आ बाल-बच्चा संग राजनीति कय अपन काज भेल बुझैत छथि। बाकी, समाज अपन चलि रहल अछि, बढ़ि रहल अछि, डीजे के धुन पर ताड़ीक तरंग मे माय-बहिन-काकी-भौजी-मामी-मौसी-पीसी-तीसी संग थिरकि रहल अछि – ‘रात दीया जला के पिया क्या क्या किया’।

हरिः हरः!!