संस्मरण – सत्य अनुभूति
गाम घर मे देखा पड़ल किछु… खच्चरहि..
से समुच्चा पैढि देल जाउ..
(1) प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सक के रूप में, अपना समयानुसार दैनिक लोकक घरे घर जा के उपचार करैत, अपन आय अर्जन मे वृद्धि क रहलौं से नीक….. मुदा अकस्मात् कोनो बीमार लोक के जरूरत परला पर अपने कहै छी हमरा एखन फुर्सत नै अइ.. किन्नहु नै जा सकब.. बेसी जरूरत हुअय त दोसरा ककरो बजा लियौ.. हमर पुजा के समय अई….. से…. ई भेल… खच्चरहि.
(2) घर मे लोक उपासल अइ… अहाँ के ब्राम्हण मे नोतने छैथि, बजाबै गेल त…… ओ त खेत चैल गेलखिन ….. बजा दै छी. पुन: बजाबै गेल त… धार गेलखिन नहाई लेल.. पठा दै छी… पुन:…… बस हइया चलू आबै छी.. पुन:….. औरो कियो छैथ त बजा लियौन… हम. हईया एलौ….. पुन:……. हौ हम त दुनू साँझ रोटीये खाईछी… खैर, चलह….. भगवानक पुजा केने आबै छी. से… ई भेल… खच्चरहि.
(3) बीच गाम के बाट सब कतौ कतौ बड कम छै…. कारण किछुओ होऊ.. लोक के चलबा मे दिक्कत त होइते छै…. जौं कोनो दुपहिया गाड़ी दुनू तरफ सँ आबि गेल त… ओहि ठाम सावधानी बरतहि पड़त… तथापि एहि ठाम समाजिक कोनो प्रक्रिया नै… मुदा जाहि ठाम नमहरो गाड़ी सब आसानी सँ चैल सकैछ, ताहि ठाम किछु महानुभाव जरी, करी, अमीन आ चारिटा समांगक संग दैनिक नाप जोख करबाक लेल उपस्थित भ जाई छैथ…. पुछला पर कहता… अमीनक फीस लागतै सबगोटे चंदा दियौ… रस्ता क्लीयर भ रहलै…… से… ई भेल…. खच्चरहि.
(क्रमशः) परसैत रहब….. खच्चरहि.