स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
श्री रामचरित् सुनबाक-गेबाक महिमा
रामचरितमानस मोती मे बालकाण्ड केर अन्तिम अध्याय मे आबि गेल छी हम सब। पिछला अध्याय मे श्री रामजानकी सहित अन्य भाइ व हुनक बधू संग सम्पूर्ण अयोध्या आ विशेष कय केँ राजा दशरथ केर राजमहल मे जे आनन्द उत्सव भेल, जाहि तरहें जानकीजी व अन्य मिथिला राजकुमारी सभक स्वागत-सत्कार भेल, तेकर अद्भुत वर्णन सुनलहुँ। आब आगू –
१. गाधिकुल के चन्द्रमा विश्वामित्रजी बड़ा हर्षक संग श्री रामचन्द्रजीक रूप, राजा दशरथजीक भक्ति, चारू भाइ केर विवाह ओ सभक उत्साह एवं आनन्द केँ मोने-मोन सराहना करैत वापस भ’ रहल छथि।
२. वामदेवजी और रघुकुल के गुरु ज्ञानी वशिष्ठजी एम्हर विश्वामित्रजीक कथा बखानि कय फेरो सब केँ सुनौलनि। मुनिक सुन्दर यश सुनिकय राजा मनहि-मन अपन पुण्य केर प्रभावक बखान करय लगलाह। आज्ञा भेलाक बाद सब कियो अपन-अपन घर लेल लौटि गेलाह। राजा दशरथजी सेहो पुत्र सहित महल मे गेलाह।
३. जहाँ-तहाँ सब कियो श्री रामचन्द्रजीक विवाहक गाथा गाबि रहल अछि। श्री रामचन्द्रजीक पवित्र सुयश तीनू लोक मे व्यापक रूप सँ पसरि गेल। जहिया सँ श्री रामचन्द्रजी विवाह कयकेँ घर अयलाह, तहिया सँ सब प्रकार के आनन्द अयोध्या मे आबिकय बसय लागल।
४. प्रभु के विवाह मे आनन्द-उत्साह भेल से सरस्वती और सर्पक राजा शेषजी सेहो नहि कहि सकैत छथि। श्री सीतारामजीक यश केँ कविकुल केर जीवन केँ पवित्र करयवला आर मंगल केर खान बुझि एहि सँ हम अपन वाणी केँ पवित्र करबाक लेल थोड़-बहुत बखानिकय कहलहुँ अछि।
५. छन्द :
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसीं कह्यो।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥
अपन वाणी केँ पवित्र करबाक लेल तुलसीदास राम केर यश कहलनि अछि। नहि तँ श्री रघुनाथजीक चरित्र अपार समुद्र थिक, कोन कवि भले ओकर पार पाबि सकल अछि? जे लोक यज्ञोपवीत और विवाह केर मंगलमय उत्सव केर वर्णन आदर संग सुनिकय गेता, ओ सब श्री जानकीजी और श्री रामजी केर कृपा सँ सदा सुख पेता। श्री सीताजी और श्री रघुनाथजी के विवाह प्रसंग केँ जे लोक प्रेमपूर्वक गेता-सुनता, हुनका लेल सदा उत्साहे उत्साह होयत, कियैक तँ श्री रामचन्द्रजी केर यश मंगल केर धाम थिक।
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः सोपानः समाप्तः।
कलियुग केर सम्पूर्ण पाप केँ विध्वंस करयवला श्री रामचरितमानस केर ई पहिल सोपान समाप्त भेल।
(बालकाण्ड समाप्त)
हरिः हरः!!