रामचरितमानस मोतीः दशरथजी लग जनकजीक दूत के पहुँचनाय आ बरियाती प्रस्थान

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

दशरथजी लग जनकजीक दूत पहुँचनाय, अयोध्या सँ बरियाती प्रस्थान

पैछला अध्याय मे परशुरामजीक कोप केँ श्रीरामजी द्वारा समाधान कयला उपरान्त राजा जनक गुरु विश्वामित्रजी प्रति कृतज्ञताक भाव व्यक्त करैत हुनक आभार सेहो प्रकट करैत छथि, कहैत छथि जे सबटा अहींक कृपा सँ संभव भेल अछि। धन्य अहाँ जे श्रीरामजी-लक्ष्मणजी सहित जनकपुर एलहुँ आ धनुषयज्ञ केँ सफलता प्रदान कयलहुँ। जतय संसार भरिक कोनो वीर पुरुष धनुष केँ हिलइयो नहि सकल छल ओतय दशरथपुत्र श्रीरामजी छुबिते धनुष टुटि गेल छल आ जनकजीक प्रण पूरा भेल छल जे जानकीजीक विवाह ओहि वीरपुरुष सँ करब जे एहि धनुष केँ भंग कय सकताह। तदोपरान्त गुरु विश्वामित्र हुनका कहैत छथि जे विवाह त धनुष टुटिते भ’ गेल, तथापि अहाँ आगू एना करूः

१. तथापि अहाँ जाउ आ अपन कुल मे होयवला व्यवहार करू। ब्राह्मण, कुल केर वृद्ध-वरिष्ठजन एवं गुरुजन सँ पुछिकय आ वेद मे वर्णित विधान अनुसार सब आचार पूरा करू। अयोध्या लेल दूत पठाउ जे श्रीरामजीक पिता राजा दशरथ केँ समाज सहित एतय आबय लेल आमंत्रित करथि।

२. राजा प्रसन्न होइत कहलखिन – हे कृपालु! बहुत नीक! आर तखनहिं दूत सबकेँ बजबैत हुनका लोकनि केँ अयोध्या जाय लेल विदाह कय देलनि। फेर सब महाजन लोकनि केँ बजौलनि आर सब कियो आबिकय राजा केँ आदरपूर्वक प्रणाम कयलनि। राजा कहलखिन – बाजार, बाट, घर, देवालय और समस्त नगर केँ चारू दिश सजा दियौक। महाजन लोकनि प्रसन्न भ’ अपन-अपन घर गेलाह। फेर राजा नौकर-चाकर सब केँ बजौलनि आ हुनका सब केँ आज्ञा देलनि जे विवाहक अद्भुत आ सुन्दर मंडप सजाकय तैयार करू। से सुनिकय ओहो सब राजाक वचन माथ धय सुख पाबिकय काज करय चलि देलाह।

३. ओ सब अनेकों कारीगर लोकनि केँ बजौलनि, जे मंडप बनाबय मे कुशल और चतुर रहथि। ओ ब्रह्माक वंदना कयकेँ कार्य आरंभ कयलनि आ पहिने सोनाक बनल केराक थम्ह बनौलनि। हरियर-हरियर मणि (पन्ना) केर पत्ता और फल बनौलनि तथा पद्मराग मणि (माणिक) केर फूल बनौलनि। मंडपक अत्यन्त विचित्र रचना देखिकय ब्रह्माजीक मोन सेहो रमि गेलनि। बाँस सब हरियर-हरियर मणि (पन्ना) केर सीधा और गाँठ सँ युक्त एहेन बनौलनि जे चिन्हय तक मे अबैत छल जे ओ मणिक थिक आ कि साधारण बाँसे थिक। सोनाक सुन्दर नागबेली (पानक लत्ती आ पत्ता) बनौलनि जे पत्ता सहित एना लागि रहल छल जेकरा चिन्हब मोस्किल छल। से नागबेली रचिकय ओकरे रस्सी बना चारूकात लतरा देलनि। बीच-बीच मे मोतीक सुन्दर झालर सब सेहो लागल छल। माणिक, पन्ना, हीरा और फिरोज, एहि रत्न सबकेँ चीरिकय, कोरिकय और बान्हिकय, एकरे लाल, हरियर, सफेद और फिरोजी रंग के कमल बनौलनि। भौंरा और बहुते रंगक पक्षी बनौलनि, जे हवाक सहारे गूँजैत और कूजैत छल। थम्ह पर देवता लोकनिक मूर्ति गढ़ि देलनि जे सब मंगल द्रव्य लेने ठाढ़ रहथि। गजमुक्ताक सहजे सोहाओन नाना तरहक चौका पुरेलनि। नील मणिक अंकित अत्यन्त सुन्दर आम केर पत्ता बनौलनि। सोनाक मज्जड़ (आमक फूल) और रेशम केर डोरी सँ बान्हल पन्ना सँ बनल फल (आम) केर गुच्छा सुशोभित कय देलनि। एहेन सुन्दर और उत्तम स्वागतद्वारा बनौलनि मानू कामदेव स्वयं ओकरा सजौने होइथ। अनेकों मंगल कलश और सुन्दर ध्वजा, पताका, परदा और चँवर बनौलनि। जाहि मे मणिक अनेकों सुन्दर दीपक छल, ओहि विचित्र मंडप केर त वर्णने नहि कयल जा सकैत अछि जाहि मंडप मे श्री जानकीजी दुलहिन रहती… कोन कवि लग एहेन बुद्धि हेतनि जे ओकर वर्णन कय सकथि! जाहि मंडप मे रूप और गुण केर समुद्र श्री रामचन्द्रजी दूल्हा रहता से मंडप तीनू लोक मे प्रसिद्ध हेबाके चाही।

४. जनकजीक महल केर जे शोभा अछि, वैह शोभा नगर केर प्रत्येक घर के देखाय दैत अछि। ताहि समय जे तिरहुत केँ देखलक, ओकरा चौदह भुवन तुच्छ बुझि पड़तैक। जनकपुर मे नीच केर घर सेहो ओहि समय जो सम्पदा सुशोभित छल से देखिकय इन्द्र सेहो मोहित भ’ गेल करथि।

५. जाहि नगर मे साक्षात्‌ लक्ष्मीजी अप्रकट रूप सँ स्त्रीक सुन्दर वेष बनाकय बसैत छथि ताहि पुर केर शोभाक वर्णन करय मे सरस्वती और शेष सेहो सकुचाइत छथि।

६. जनकजीक दूत श्री रामचन्द्रजीक पवित्र पुरी अयोध्या पहुँचलथि। सुन्दर नगर देखि खूब हर्षित भेलथि। राजद्वार पर जाय ओ सब खबैर पठौलनि। राजा दशरथजी खबैर सुनिते हुनका सब केँ बजा लेलनि। दूत सब प्रणाम कयकेँ चिट्ठी देलखिन। प्रसन्न भ’ राजा अपने उठि ओ हाथ मे लेलनि।

७. चिट्ठी पढ़ैत समय हुनकर नेत्र मे जल (प्रेम और आनंद के नोर) भरि गेलनि, शरीर पुलकित भ’ गेलनि आ छाती सेहो भरि गेलनि। हृदय मे राम और लक्ष्मण छथि, हाथ मे सुन्दर चिट्ठी अछि, राजा से हाथे मे लेने रहि गेलाह, नीक-बेजा किछुओ नहि कहि सकलथि। पुनः धैर्य धारण करैत ओ पूरा पत्रिका पढ़लथि।

८. सम्पूर्ण सभा सब बात सुनिकय खूब हर्षित भेल। भरतजी अपन मित्र आर भाइ शत्रुघ्नक संग जतय खेलाइत रहथि, ओतहि समाचार पाबि ओहो आबि गेलथि। खूब प्रेम सँ लेकिन लजाइते पिताजी सँ पुछलखिन जे चिट्ठी कतय सँ आयल अछि। हमर प्राणो सँ बढिकय प्रिय दुनू भाइ लोकनि सकुशल त छथि न आर ओ सब कोन देश मे छथि?

९. स्नेह सँ सानल ई वचन सुनिकय राजा फेर सँ चिट्ठी पढ़लनि। चिट्ठी सुनिकय दुनू भाइ पुलकित भ’ गेलाह। स्नेह एतबा अधिक भेलनि जे देह मे समाइत नहि रहनि, भरतजीक पवित्र प्रेम देखि सम्पूर्ण सभा बड सुख पेलक। तखन राजा दूत लोकनि केँ अपना नजदीक बैसाकय मोन केँ हरयवला मीठ वचन बजलाह – भैया! कहू, दुनू बच्चा कुशल सँ त अछि? अहाँ सब हुनका अपन आँखि सँ नीक जेकाँ देखलहुँ अछि न? साँवल आर गोर शरीर वला ओ धनुष और तरकस धारण कएने रहैत छथि, किशोर अवस्था छन्हि, विश्वामित्र मुनिक संग छथि। अहाँ हुनका चिन्हैत छी त हुनकर स्वभाव बताउ।

१०. राजा प्रेमक विशेष वश भेला सँ बेर-बेर एहि तरहक बात कहि रहल छथि। भैया! जाहि दिन सँ मुनि हुनका लय कय गेलाह तहिया सँ आइये हम सत्य खबैर पेलहुँ अछि। कहू त! महाराज जनक हुनका केना चिन्हलनि?

११. ई प्रिय (प्रेम भरल) वचन सुनिकय दूत सब भाव-विभोर भ’ हँसय लगलाह। कहलखिन – हे राजा लोकनिक मुकुटमणि! सुनू, अहाँक समान धन्य आर कियो नहि अछि। जिनकर राम-लक्ष्मण जेहेन पुत्र छन्हि, ओ दुनू विश्व केर विभूषण छथि। अपनेक पुत्र पुछय योग्य नहि छथि, ओ सब पुरुषसिंह तीनू लोक केर प्रकाश स्वरूप छथि। जिनकर यश के सोझाँ चन्द्रमा मलिन और प्रताप के आगू सूर्य शीतल लगैत अछि। हे नाथ! हुनका लेल अपने कहैत छी हुनका केना चिन्हलनि! कि सूर्य केँ हाथ मे दीपक लयकय देखल जाइत अछि? सीताजीक स्वयंवर मे अनेकों राजा आ एक सँ बढिकय एक योद्धा सब एकत्रित भेल छलाह। मुदा शिवजीक धनुष केँ कियो टस सँ मस नहि कय सकलाह। सब बलवान वीर हारि गेलथि। तीनू लोक मे जे वीरता के अभिमानी रहथि, शिवजीक धनुष सभक शक्ति केँ तोड़ि देलकनि। बाणासुर, जे सुमेरु केँ पर्यन्त उठा सकैत छथि सेहो हृदय मे हारिकय परिक्रमा कयकेँ चलि गेलाह आर जे खेले-खेल मे कैलाश केँ उठा लेने रहथि से रावणो ओहि सभा मे पराजय केँ प्राप्त भेलथि। हे महाराज! सुनू! जतय एहेन-एहेन योद्धा हारि मानि लेलथि ताहि ठाम रघुवंशमणि श्री रामचन्द्रजी वगैर प्रयास के शिवजीक धनुष केँ ओहिना तोड़ि देलनि जेना हाथ कमल के डंटी केँ तोड़ि दैत अछि। धनुष टूटबाक बात सुनिकय परशुरामजी क्रोध मे भरि गेलाह आ ओ बहुतो तरहें आँखि देखेलनि। मुदा अंत मे ओहो श्री रामचन्द्रजीक बल देखिकय हुनका अपन धनुष दय देलखिन आर अनेकों प्रकार सँ विनती कयकेँ वन लेल गमन कय गेलाह। हे राजन्‌! जेना श्री रामचन्द्रजी अतुलनीय बली छथि, ओहने तेज निधान फेर लक्ष्मणोजी छथि, जिनका देखले मात्र सँ राजा लोकनि एना काँपय लगैत छथि जेना हाथी सिंह केर बच्चा के तकले सँ काँपि उठैत अछि। हे देव! अपनेक दुनू बालक केँ देखलाक बाद आब आँखिक नीचाँ दोसर कियो अबिते नहि अछि। दोसर कियो हमरा सभक दृष्टि पर चढिते नहि अछि।

१२. प्रेम, प्रताप और वीर रस पाक मे बान्हल दूतक सुन्दर वचन रचना सबकेँ बहुत प्रिय लगलनि। सभा सहित राजा प्रेम मे मग्न भ’ गेलाह। दूत केँ निछावर देबय लगलाह। हुनका निछावर दैत देखिते दूत सब अपन हाथ सँ कान मुनिकय ई नीति के विरूद्ध अछि कहय लगलाह। धर्म केँ विचारिकय सब कियो बहुत सुखी भेलथि। तखन राजा उठिकय गुरु वशिष्ठजीक पास जाय हुनका पत्रिका देलनि आर आदरपूर्वक दूत केँ बजाकय सब कथा गुरुजी केँ सुनौलनि।

१३. सब समाचार सुनिकय आ अत्यन्त सुख पाबिकय गुरुजी बजलाह – पुण्यात्मा पुरुष लेल पृथ्वी सुख सँ भरल-पुरल अछि। जेना नदी समुद्र मे जाइत अछि जखन कि समुद्र केँ नदीक कोनो कामना नहि रहैत छैक… तहिना सुख और सम्पत्ति बिना बजेनहि स्वाभाविके रूप सँ धर्मात्मा पुरुष के पास जाइत अछि। अहाँ जेना गुरु, ब्राह्मण, गाय और देवता केर सेवा करयवला छी, तेहने पवित्र कौसल्यादेवी सेहो छथि, अहाँक समान पुण्यात्मा जगत मे नहि कियो भेल आ न अछि आ नहिये होयत। हे राजन्‌! अहाँ सँ अधिक पुण्य आर केकर हेतैक जेकरा राम जेहेन पुत्र अछि। आर जेकर चारू बालक वीर, विनम्र, धर्म केर व्रत धारण करनिहार गुण केर सुन्दर समुद्र थिक। अहाँक लेल समस्त काल मे कल्याणे कल्याण अछि। अतएव डंका बजवाकय बरियाती सजाउ और जल्दी चलू।

१४. गुरुजीक एहेन वचन सुनिकय राजा प्रणाम अर्पित करैत राजा कहलनि – हे नाथ! बहुत नीक। अपनेक आदेशक अनुसार तुरन्त सब काज आगू बढ़बैत छी। ओतय सँ राजा दूत सभक रहबाक लेल डेरा दिया स्वयं महल मे गेलाह आ सम्पूर्ण रनिवास केँ बजाकय जनकजीक पत्रिका बाँचिकय सुनौलनि। समाचार सुनिकय सब रानी हर्ष सँ भरि गेलीह। राजा फेर दोसर सब बात जे सब दूत सभक मुंह सँ सुनने रहथि तेकरो वर्णन आह्लादित होइत रानी सभक सोझाँ कयलनि।

१५. प्रेम मे प्रफुल्लित भेल रानी लोकनि एना सुशोभित भ’ रहली अचि जेना मोरनी सब मेघ (बादल) गर्जन सुनिकय प्रफुल्लित होइत अछि। बड़-बूढ़ स्त्रिगण समाज सेहो प्रसन्न भ’ कय आशीर्वाद दय रहल छथि। माता लोकनि अत्यन्त आनंद मे मग्न छथि। ओहि अत्यन्त प्रिय पत्रिका केँ आपस मे लय-लयकय सब हृदय सँ लगा-लगा छाती शीतल करैत छथि। राजा सबमे श्रेष्ठ दशरथजी श्री राम-लक्ष्मण केर कीर्ति और करनी केर बारंबार वर्णन कयलनि। ‘ई सबटा मुनिक कृपा थिक’ एना कहिकय ओ बाहर चलि अयलाह।

१६. तखन रानी लोकनि ब्राह्मण सबकेँ बजौलनि आ आनंद सहित हुनका दान देलनि। श्रेष्ठ ब्राह्मण आशीर्वाद दैते ओतय सँ वापस गेलाह। फेर भिक्षुक लोकनि केँ बजाकय करोड़ों प्रकारक निछावर देलखिन। ‘चक्रवर्ती महाराज दशरथ के चारू पुत्र चिरंजीवी होइथ’ से कहैत ओहो सब अनेकों प्रकारक सुन्दर वस्त्र पहिरि-पहिरिकय वापस चललाह। आनन्दित भ’ कय नगाड़ावला सब बड़ा जोर सँ नगाड़ा पर चोट दियए लागल।

१७. सब कियो जखन ई समाचार प्राप्त कयलक त घरे-घर बधावा बाजय लागल। चौदहो लोक मे उत्साह भरि गेल जे जानकीजी और श्री रघुनाथजीक विवाह हेतनि। ई शुभ समाचार पाबिकय सब कियो प्रेममग्न भ’ गेल आ रास्ता, घर ओ गली-कुची सबटा सजय लागल।

१८. यद्यपि अयोध्या सदैव सोहाओने रहैछ, कियैक तँ ओ श्री रामजीक मंगलमयी पवित्र पुरी थिक, तथापि प्रीति पर प्रीति भेला सँ ओ सुन्दर मंगल रचना सँ सजायल गेल। ध्वजा, पताका, परदा और सुन्दर चँवर सँ सारा बाजा बहुते सुन्दर लागि रहल अछि। सोनाक कलश, तोरण, मणिक झालरि, हरैद, दूभि, दही, अक्षत और माला सबसँ लोग सब अपन-अपन घर केँ सजाकय मंगलमय बना लेलक। गली सब केँ चतुर-सम सँ सजायल गेल आ बाट सब मे चौक पुरायल गेल। चन्दन, केशर, कस्तुरी आ कपूर सँ बनल सुगंधित द्रव केँ चतुर-सम कहल जाइत अछि।

१९. बिजली सन कांति वाली चन्द्रमुखी, हरिन के बच्चा जेहेन आँखि आ अपन सुन्दर रूप सँ कामदेवहु केर स्त्री रति के अभिमान तोड़यवाली सुहागिनी स्त्री सब सोलहो श्रृंगार सजिकय जहाँ-तहाँ झुंड के झुंड मिलिकय मनोहर वाणी सँ मंगल गीत गाबि रहल छथि, जिनकर सुन्दर स्वर सुनि कोयली सेहो लजा जाइत अछि।

२०. राजमहल के वर्णन कोना कयल जाय, जतय विश्व केँ विमोहित करयवला मंडप बनायल गेल अछि। अनेकों प्रकारक मनोहर मांगलिक पदार्थ शोभित भ’ रहल अछि। बहुतो तरहक बाजा सब बाजि रहल अछि। कतहु भाट सब विरुदावली (कुलकीर्ति) केर उच्चारण कय रहल छथि त कतहु ब्राह्मण सब वेदध्वनि कय रहल छथि।

२१. सुन्दरी स्त्री लोकनि श्री रामजी और श्री सीताजीक नाम लय-लयकय मंगलगीत गाबि रहल छथि। उत्साह चारूकात अछि आ महल बड छोट अछि, तेँ ओहि मे नहि समाकय मानू ओ उत्साह (आनन्द) चारू दिश उमड़ि रहल अछि।

२२. दशरथजीक महलक शोभाक वर्णन कोन कवि कय सकैत छथि! जतय सब देवता लोकनिक शिरोमणि रामचन्द्रजी अवतार लेलनि ओतुका शोभाक वर्णन कयलो कोना जा सकैत अछि।

२३. राजा दशरथ भरतजी केँ बजौलनि आ कहलनि जे जाउ घोड़ा, हाथी आ रथ सब सजाउ, रामचन्द्रजीक बरियाती चलबाक तैयारी करू। ई सुनिते दुनू भाइ (भरतजी और शत्रुघ्नजी) आनंदवश पुलक सँ भरि गेलाह। भरतजी सबटा साहनी (घुड़सालक अध्यक्ष) केँ बजौलनि आर हुनका सब केँ घोड़ा सब केँ सजेबाक आज्ञा देलनि। ओहो सब प्रसन्न भ’ कय दौड़ि पड़लाह। ओ सब रुचिक संग यथायोग्य जीना आ लगाम सब लगबैत घोड़ा सब केँ सजौलनि।

२४. रंग-बिरंगक उत्तम घोड़ा शोभित भ’ गेल। सब घोड़ा बड़ा सुन्दर और चंचल चाइल वला अछि। ओ सब धरती पर एना पैर रखैत अछि जेना जरैत लोहा पर रखैत हुए। अनेकों जातिक घोड़ा सब अछि जेकर वर्णन तक नहि भ’ सकैत अछि, तेहेन तेज चाइल के छैक मानू हवा केर निरादर कयकेँ उड़य चाहैत हो।

२५. ओहि सब घोड़ा पर भरतजी के समान उमेर के छैल-छबीला राजकुमार सवार भेलाह। ओ सब सुन्दर छथि आर सब कियो आभूषण धारण कएने छथि। हुनकर हाथ मे बाण और धनुष छन्हि तथा डाँर्ह मे भारी तरकस बान्हल छन्हि। सब चुनल छबील छैल, शूरवीर, चतुर और नवयुवक छथि।

२६. प्रत्येक सवार के संग दुइ पैदल सिपाही छन्हि, जे तलवार चलेबाक कला मे खूब निपुण छथि। शूरताक बाना धारण कएने रणधीर वीर सब निकलिकय नगर के बाहर आबि ठाढ़ भ’ गेलाह। ओ सब चतुराई सँ घोड़ा सब केँ भिन्न चाइल सँ नजा रहला अछि, आर एम्हर भेरी तथा नगाड़ा (बाजा) के आवाज सुनि-सुनि खूब उल्लास सँ भरि रहल छथि।

२७. सारथि लोकनि ध्वजा, पताका, मणि और आभूषणों लगाकर रथ सबकेँ खूब विलक्षण बना देलनि। ओहि मे सुन्दर चँवर लगेने छथि आर घंटी सुन्दर शब्द कय रहल अछि। ओ रथ सब एतेक सुन्दर अछि मानू सूर्य के रथ के शोभा केँ छीनि लैत अछि। अगणित श्यामवर्ण घोड़ा छल। ओकरा सब केँ सारथि ओहि रथ सब मे जोति देने छथि, जे सब देखय मे सुन्दर आ गहना सँ सजल सुशोभित भ’ रहल अछि। ई दृश्य देखि मुनि सभक मोन सेहो मोहित भ’ जाइत छन्हि। जे जलहु पर जमीन जेकाँ चलैत अछि, वेग केर अधिकता सँ ओकर टाप पानि मे डुबिते नहि छैक, अस्त्र-शस्त्र और सब साज सजाकय सारथि लोकनि रथि सब केँ बजा लेलनि। रथ पर चढ़ि-चढ़िकय बरियाती नगरक बाहर मे जुटय लगलाह, जे जाहि काज लेल जाइत छथि, सब केँ सुन्दर शकुन होइत छन्हि।

२८. श्रेष्ठ हाथी सब पर सुन्दर अंबारी सब पड़ल अछि। ओ जाहि तरहें सजायल गेल छल से कहल नहि जा सकैछ। मतवाला हाथी घंटा सँ सुशोभित घंटी बजबैत चलल, मानू सावन मासक सुन्दर मेघ के समूह सब गरजन करैत जा रहल हो।

२९. सुन्दर पालकी, सुख सँ बैसबाक योग्य तामजान (जे कुर्सीनुमा होइत छैक) आर रथ आदिक संग आरो अनेकों प्रकारक सवारी सब अछि। ताहि सब पर श्रेष्ठ ब्राह्मण लोकनिक समूह चढ़िकय चललाह, मानू सब वेद के छन्द स्वयं शरीर धारण कएने होइथ।

३०. मागध, सूत, भाट और गुण गाबयवला सब, जे जाहि योग्य छलथि, ओहेन सवारी पर चढ़िकय चललथि। बहुतो तरहक खच्चर, ऊँट और बरद असंख्यो प्रकारक वस्तु सब लादि-लादिकय चलल। कहार करोड़ों काँवर लय कय चलल। ओहि मे अनेको प्रकारक उपहारक वस्तु सब छलैक जेकर वर्णन के कय सकैत अछि।

३१. सब सेवक लोकनि समूह अपन-अपन साज-समाज बनाकय चलल। सभक हृदय मे अपार हर्ष छैक आर शरीर पुलक सँ भरल छैक। सबकेँ एक्के गोट लालसा लागल छैक जे हम सब श्री राम-लक्ष्मण दुनू भाइ केँ भरि पोख कखन देखब।

३२. हाथी गरजि रहल अचि, ओकर घंटीक भीषण ध्वनि भ’ रहलैक अछि। चारू दिश रथक घरघराहट आ घोड़ाक हिनहिनाहट भ’ रहल छैक। मेघो केँ निरादर करैत नगाड़ा घोर शब्द कय रहल अछि। केकरो अपन आ दोसर केकरो कोनो बात कान सँ नहि सुनाय पड़ि रहल छैक।

३३. राजा दशरथक दरबाजा पर एतेक भारी भीड़ भ’ रहल अछि मानू जे ओतय यदि पाथर फेकल जाय त ओहो पिसाकय धूल बनि जायत। अटारी सब पर चढ़ल स्त्री लोकनि मंगल थार सहित आरती करैत देखल जा रहली अछि। आर नाना प्रकारक मनोहर गीत गाबि रहल छथि। हुनका सभक आनन्दक बखान नहि भ’ सकैत अछि।

३४. तखन सुमन्त्रजी दू गोट रथ सजाकय ओहि मे सूर्यक घोड़ो केँ मात करयवला घोड़ा जोतलनि। दुनू सुन्दर रथ ओ राजा दशरथ लग अनलनि जेकर सुन्दरता के वर्णन सरस्वती सँ सेहो भ’ सकैछ। एक रथ पर राजसी सामान सजायल गेल आ दोसर जे तेज के पुंज आ अत्यन्त शोभायमान छल ताहिपर राजा वशिष्ठजी केँ हर्ष पूर्वक चढ़ाकय फेर स्वयं शिव, गुरु, गौरी (पार्वती) और गणेशजी केँ स्मरण कयकेँ दोसर रथ पर चढ़लाह।

३५. वशिष्ठजीक संग चलैत राजा दशरथजी केना शोभित भ’ रहल छथि जेना देवगुरु बृहस्पतिजीक संग इन्द्र होइथ। वेद केर विधि सँ और कुल केर रीति अनुसार सब कार्य कयकेँ तथा सबकेँ सब प्रकार सँ सजल देखिकय श्री रामचन्द्रजीक स्मरण कयकेँ, गुरुक आज्ञा पाबि पृथ्वीपति दशरथजी शंख बजाकय चललाह।

३६. बरियाती देखिकय देवता हर्षित भेलथि आर सुन्दर मंगलदायक फूलक वर्षा करय लगलाह। भारी शोर मचि गेल। घोड़ा और हाथी गरजय लागल। आकाश मे और बारात मे दुनू जगह बाजा बाजय लागल। देवांगना व मनुष्यक स्त्री सुन्दर मंगलगान करय लगलीह, संगहि रस भरल राग सँ शहनाई बाजय लागल। घंटा-घंटी सभक ध्वनि के वर्णन नहि भ’ सकैछ।

३७. पैदल चलयवला सेवकगण सब कसरत केर खेल कय रहल छथि, कूदिकय आकाश मे उछलि-उछलिकय चलि रहल छथि। हँसी करय मे निपुण आर सुन्दर गायन कयनिहार चतुर विदूषक (मजकिया सब) तरह-तरह के चौल करैत तमाशा सब कय रहल छथि। सुन्दर राजकुमार मृदंग और नगाड़ाक शब्द सुनिकय घोड़ा सबकेँ ताहि अनुसार एना नचा रहल छथि जे ओ ताल केर बन्हन सँ कनिकबो नहि डिगैत छथि। चतुर नट लोकनि चकुआ-चकुआकय ई सब देखि रहल छथि।

३८. बरियाती एहेन अछि जे ओकर वर्णन करैत नहि बनि रहल अछि। सुन्दर शुभदायक शकुन भ’ रहल अछि। नीलकंठ चिड़इ बायाँ दिश चारा खा रहल अछि, मानू सबटा मंगले-मंगल के सूचना दय रहल हो। दाहिना दिश कौआ सब सुन्दर खेत मे शोभा पाबि रहल अछि। बिज्जी (नेवला) के दर्शन सेहो सब केँ भेलय। तीनू तरहक शीतल, मन्द आ सुगन्धित हवा अनुकूल दिशा मे चलि रहल अछि। श्रेष्ठ (सुहागिनी) स्त्री लोकनि भरल घैल आ कोरा मे बालक लेने आबि रहल छथि। लोमड़ी बेर-बेर देखाय दैत अछि। गाय सब सेहो सोझें मे बच्छा केँ दूध पिया रहल छथि। हरिनक झूंड बायाँ दिश दाहिना दिश आबि गेल, मानू सबटा मंगल केर समूह देखाय दय रहल हो। क्षेमकरी (उज्जर सिरवला चील) विशेष रूप से क्षेम (कल्याण) कहि रहल अछि। श्यामा बायाँ दिश के सुन्दर गाछ पर देखाय पड़ि रहल अछि। दही, माछ आ दुइ विद्वान् ब्राह्मण हाथ मे पोथी लेने सामने अयलाह। सब मंगलमय, कल्याणमय और मनोवांछित फल दयवला शकुन मानू सत्य होयबाक लेल एक्के संग आबि गेल अछि।

३९. स्वयं सगुण ब्रह्म जिनकर सुन्दर पुत्र छथि, हुनका लेल सब मंगल शकुन सुलभ अछि। जतय श्री रामचन्द्रजी समान दूल्हा और सीताजी समान दुलहिन छथि तथा दशरथजी और जनकजी जेहेन पवित्र समधी छथि, एहेन ब्याह सुनिकय मानू सबटा शकुन नाचि उठला आ कहल लगला जे आब ब्रह्माजी हमरा सब केँ सत्य कय देलनि। एहि तरहें बरियाती प्रस्थान कयलक। घोड़ा, हाथी गरजि रहल अछि आर नगाड़ा सबपर चोट पड़ि रहल अछि।

४०. सूर्यवंश के पताका स्वरूप दशरथजी केँ अबैत सुनि जनकजी नदी सब पर पुल बँधवा देलखिन। बीच-बीच मे ठहरबाक लेल सुन्दर घर (पड़ाव) बनवा देलखिन जाहि मे देवलोक जेकाँ सब सम्पदा-सुविधा बेसुमार अछि। जतय बरियातीक लोक अपन-अपन मोनक पसन्द अनुसार सुन्दर-रुचिगर उत्तम भोजन, बिस्तर और वस्त्र पबैत छथि। मनक अनुकूल नित्य नव सुख केँ देखिकय सब बरियाती अपन घर केँ बिसरि गेल छथि। बड़ा जोर सँ बाजि रहल ढोल-नगाड़ा के आवाज सुनिकय श्रेष्ठ बरियाती केँ अबैत जानि अगवानी करयवला हाथी, रथ, पैदल आ घोड़ा सजाकय बरियाती लेबय चलि पड़लाह।

हरिः हरः!!