रामचरितमानस मोतीः श्री राम व लक्ष्मण द्वारा जनकपुर निरीक्षण

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

श्री राम-लक्ष्मण केर जनकपुर निरीक्षण

रामचरितमानस मोतीक पैछला अध्याय मे हम सब देखलहुँ जे केना राजा जनक मुनि विश्वामित्र जीक स्वागत लेल स्वयं हुनका लग आबि नगर मे लय गेलाह, हुनका लोकनिक निवास लेल सुन्दर व्यवस्था कयलनि आ जखन दुनू राजकुमार केँ देखलाह त सुइध-बुइध सबटा हेरा गेलनि। आर फेर लक्ष्मण जीक नगर देखबाक इच्छा व श्रीराम जी द्वारा गुरु विश्वामित्र सँ विनम्रतापूर्वक आज्ञा लेबाक विलक्षण चरित्र सब पढ़लहुँ। आब गुरुजीक आदेश आ आगू –

१. सुखक निधान दुनू भाइ जाउ आ नगर देखि आउ। अपन सुन्दर मुंह देखाकय सब नगरवासीक नेत्र केँ सफल करू। – गुरु विश्वामित्र केर आदेश भेट गेलनि जनकपुर देखबाक लेल।

२. सब लोकक नेत्र केँ सुख दयवला दुनू भाइ मुनिक चरणकमल केर वंदना कय केँ चलि देलाह। बालक सभक झुंड हिनकर सुन्दरताक शोभा देखिते पाछू-पाछू चलय लागल। ओकरा सभक नेत्र आ मोन हिनकर माधुर्य मे लोभा गेलैक।

३. दुनू भाइ पियर रंगक वस्त्र आ पांजड़ मे बान्हल फाँर्ह मे तरकस लगौने छथि। हाथ मे सुन्दर धनुष-बाण सुशोभित छन्हि। श्याम आ गौर वर्णक शरीर केर अनुकूल अर्थात्‌ जिनका पर जाहि रंगक चन्दन बेसी फबैत अछि ताहि पर वैह रंग के सुन्दर चन्दन लागल अछि। साँवरा-गोरा के मनोहर जोड़ी अछि। सिंह केर समान (पुष्ट) गर्दनि छन्हि, विशाल भुजा छन्हि, चौड़ा छाती पर खुब सोहनगर गजमुक्ताक माला छन्हि, सुन्दर लाल कमल समान नेत्र छन्हि। तीनू ताप सँ छोड़बयवला चन्द्रमाक समान मुख छन्हि। कान मे सोनाक कर्णफूल खूब शोभा दय रहल छन्हि जे देखैत देरी चित्त मानू चोरा लैत अछि। हुनकर चितवन (दृष्टि) बड़ा मनोहर अछि आर भौंह तिरछा व सुन्दर अचि। माथ पर तिलकक रेखा एहेन सुन्दर अछि मानू मूर्तिमती शोभा पर मोहर लगा देल गेल हुए। माथ पर सुन्दर चौकोनी टोपी छन्हि, कारी आ घुँघराला केश छन्हि। दुनू भाइ नख सँ शिखा धरि सुन्दर छथि आर सब शोभा जतय जेहेन चाही तेहने छन्हि।

४. जखन पुरवासी सब ई समाचार पेलनि जे दुनू राजकुमार नगर देखबाक लेल आयल छथि तखन ओहो सब घर-दुआरि आ सब काज-धाज छोड़िकय एना दौड़ि गेलाह मानू दरिद्रक लेल धनक खजाना लूटय वास्ते दौड़ल होइथ। स्वभावहि सँ सुन्दर दुनू भाइ केँ देखिकय ओ सब लोक नेत्रक फल पाबिकय सुखी भ’ रहल छथि।

५. युवती स्त्रिगण घरक खिड़की-दोगी सँ लागिकय प्रेम सहित श्री रामचन्द्रजीक रूप केँ देख रहली अछि। ओ सब आपस मे बड़ा प्रेम सँ बात कय रहली अछि ‍- हे सखी! ई लोकनि करोड़ों कामदेव केर छबि केँ जीति लेने छथि। देवता, मनुष्य, असुर, नाग और मुनि लोकनि मे एहेन शोभा त कतहु सुनइयो मे नहि अबैत अछि। भगवान विष्णु केर चारि भुजा छन्हि, ब्रह्माजीक चारि मुख छन्हि, शिवजीक विकट (भयानक) वेष छन्हि आर हुनकर पाँच टा मुँह छन्हि। हे सखी! दोसर देवता सब सेहो कियो एहेन नहि छथि जिनका हिनकर छबि केर उपमा देल जाय। हिनकर किशोर अवस्था छन्हि, ई सुंदरताक घर, साँवर आर गोर रंग के तथा सुख के धाम छथि। हिनकर अंग-अंग पर करोड़ों-अरबों कामदेव केँ निछावर कय देबाक चाही। हे सखी! भला कहू त जे एहेन कोन शरीरधारी होयत जे एहि रूप केँ देखिकय मोहित नहि भ’ जाय! अर्थात् ई रूप जड़-चेतन सबकेँ मोहित करयवला अछि।

६. तखन कियो दोसर सखी प्रेम सहित कोमल वाणी सँ बजलीह – हे सयानी! हम जे सुनलहुँ से सुनू – ई दुनू राजकुमार महाराजा दशरथजीक पुत्र थिकाह! बाल राजहंस सनक सुन्दर जोड़ी छथि। ई मुनि विश्वामित्र केर यज्ञ केर रक्षा करयवला छथि, ई युद्ध के मैदान मे राक्षस सब केँ मारलनि अछि। जिनकर श्याम शरीर और सुन्दर कमल समान नेत्र छन्हि, जे मारीच और सुबाहु केर मद केँ चूर करयवला आ सुख केर खान छथि आर जे हाथ मे धनुष-बाण लेने छथि, ओ कौसल्याजीक पुत्र छथि, हिनकर नाम राम छन्हि। जिनकर रंग गोर आर किशोर अवस्था छन्हि आर जे सुन्दर वेष बनेने हाथ मे धनुष-बाण लेने श्री रामजीक पाछू-पाछू चलि रहल छथि से हिनकर छोट भाइ छथिन, हुनकर नाम लक्ष्मण छन्हि। हे सखी! सुनू, हुनकर माता सुमित्रा छथि। दुनू भाइ ब्राह्मण विश्वामित्रक काज कय केँ आर रास्ता मे मुनि गौतमक स्त्री अहल्याक उद्धार कय केँ एतय धनुषयज्ञ देखय लेल अयलाह अछि। ई सुनिकय सब स्त्रिगण खूब प्रसन्न भेलीह।

७. श्री रामचन्द्रजीक छबि देखिकय कियो एक सखी कहय लगलीह – ई वर जानकीक योग्य छथि। हे सखी! जँ हिनका राजा देखि लेता त प्रतिज्ञा छोड़िकय हठपूर्वक हिनकहि सँ विवाह कय देता। कियो दोसर कहलीह – राजा हिनका चिन्हि लेलनि आ मुनि सहित हिनका आदरपूर्वक सम्मान कयलनि अछि, लेकिन हे सखी! राजा अपन प्रण नहि छोड़ैत छथि। ओ होनहारी के वशीभूत भ’ कय हठपूर्वक अविवेक केर आश्रय लेने छथि, प्रण पर अड़ल रहबाक मूर्खता नहि छोड़ैत छथि। कियो कहैत छथि – यदि विधाता भला छथि आ सुनल जाइत अछि जे ओ सबकेँ उचित फल दैत छथि त जानकी जी केँ यैह वर भेटतनि। हे सखी! एहि मे सन्देह नहि अछि। जँ दैवयोग सँ एहेन संयोग बनि जाय, त हम सब गोटे कृतार्थ भ’ जायब। हे सखी! हमरा त एहि बात सँ एतेक बेसी आतुरता भ’ रहल अछि जे एहि चलते (विवाह भेलाक कारण) ई लोकनि एहि ठाम अबैत रहता। से नहि भेल त हे सखी! सुनू, हमरा सबकेँ हिनका लोकनिक दर्शन दुर्लभ अछि। ई संयोग तखनहि भेटि सकैत अछि जखन हमरा लोकनिक पूर्वजन्मक बहुते पुण्य हो। दोसर कहलखिन – हे सखी! अहाँ बहुत नीक कहलहुँ। एहि विवाह सँ सभक परम हित होयत। कियो कहलक – शंकरजीक धनुष बड़ा कठोर अछि आर ई साँवला राजकुमार कोमल शरीरक बालक छथि। हे सयानी! सबटा असमंजसे अछि। ई सुनिकय दोसर सखी कोमल वाणी सँ कहय लगलीह – हे सखी! हिनकर सम्बन्ध मे कियो-कियो एना कहैत छथि जे ई देखय मे त छोट छथि मुदा हिनकर प्रभाव बहुत पैघ अछि। जिनकर चरणकमल केर धूलकण केर स्पर्श पाबिकय अहल्या तरि गेलीह, जे एतेक भारी पाप कएने रहथि, ओ कि शिवजीक धनुष बिना तोड़ने रहताह! एहि विश्वास केँ बिसरियोकय नहि छोड़बाक चाही। जे ब्रह्मा सीता केँ सँवारिकय (बहुत चतुराई सँ) रचलनि अछि वैह बहुत विचार कय केँ साँवला वर सेहो रचि रखलनि अछि। ओकर ई वचन सुनिकय सब कियो बहुत हर्षित भेलीह आर कोमल वाणी सँ बाजय लगलीह – एहिना हुए, एहिना हुए। सुन्दर मुख और सुन्दर नेत्रवाली स्त्रिगणक समूह केर समूह हृदय मे हर्षित भ’ कय फूल बरसा रहली अछि।

८. जतय-जतय दुनू भाइ जाइत छथि, ओतय-ओतय परम आनन्द बरसय लगैत अछि। दुनू भाइ नगर केर पूब दिश गेलाह जतय धनुषयज्ञ लेल रंगभूमि बनायल गेल छल। बहुत लंबा-चौड़ा सुंदर ढालल गेल पक्का आँगन छल जाहि मे सुन्दर और निर्मल वेदी सजायल गेल छल। चारू दिश सोनाक पैघ-पैघ मंच बनल छल जाहि पर राजा लोकनि बैसताह। तेकरे नजदीक चारू दिश मचान सभक मंडलाकार घेरा सुशोभित छल। ओ किछु ऊँच छल आर सब तरहें सुन्दर छलैक, जतय नगर केर लोक सब बैसताह। ओहिठाम विशाल आ सुन्दर सफेद मकान अनेक रंगक बनायल गेल छलैक। जतय अपन-अपन कुल अनुसार सब स्त्रिगण यथायोग्य बैसिकय देखतीह।

९. नगरक बालक कोमल वचन कहि-कहिकय आदरपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्रजी केँ (यज्ञशाला केर) रचना देखा रहल छथि। सब बालक एहि बहाने प्रेमक वश भ’ कय श्री रामजीक मनोहर अंग केँ छूबिकय शरीर से पुलकित भ’ रहल छथि आर दुनू भाइ केँ देखि-देखिकय ओ सब हृदय मे खूब हर्ष पाबि रहल छथि। श्री रामचन्द्रजी सब बालक लोकनि केँ प्रेमक वश जानिकय (यज्ञभूमि केर) स्थान सभक खूब प्रेमपूर्वक प्रशंसा कयलनि। एहि सँ बालक सभक उत्साह, आनंद और प्रेम आरो बेसी बढ़ि गेलैक, आर ओ सब अपन-अपन रुचिक मुताबिक हुनका सब केँ बजा-बजाकय घुमबैत-फिरबैत रहैत अछि, दुनू भाइ प्रेम सहित ओकरा सभक संग घुमि रहल छथि।

१०. कोमल, मधुर और मनोहर वचन कहिकय श्री रामजी अपन छोट भाइ लक्ष्मण केँ (यज्ञभूमिक) रचना देखबैत छथि। जिनकर आज्ञा पाबिकय माया लव निमेष (पलक खसेबाक चौथाई समय) मे ब्रह्माण्डक समूह रचि दैत छथि, वैह दीन पर दया करयवला श्री रामजी भक्तिक कारण धनुष यज्ञ शाला केँ चकित भ’ कय आश्चर्यक संग देखि रहला अछि। एहि तरहें सब विचित्र रचना देखिकय ओ सब गुरुक पास वापस चलि देलाह। देरी भेल बुझिकय हुनकर मोन मे डर सेहो छन्हि। जिनकर भय सँ डरो केँ डर लगैत छैक, से प्रभु भजनक प्रभाव सँ स्वयं डरेबाक चरित्र प्रस्तुत कय रहला अछि। ओ अपन कोमल, मधुर और सुन्दर बात कहिकय बालक सब केँ जबर्दस्ती विदाह कयलनि।

११. फेर भय, प्रेम, विनय और बड़ा संकोचक संग दुनू भाइ गुरुक चरण कमल मे सिर नमाकय आज्ञा पाबिकय बैसि रहलाह। रात्रिक प्रवेश होइते मुनि आज्ञा देलखिन त सब कियो संध्यावंदन कयलनि। फेर प्राचीन कथा तथा इतिहास कहैत-कहैत सुन्दर रात्रि दुइ पहर बीति गेल। तखन श्रेष्ठ मुनि जाय कय शयन कयलनि। दुनू भाइ हुनकर चरण दबाबय लगलाह, जिनकर चरण कमल केर दर्शन एवं स्पर्श लेल वैराग्यवान्‌ पुरुष सेहो भाँति-भाँति के जप और योग करैत छथि, वैह दुनू भाइ मानू प्रेम सँ जीतल प्रेमपूर्वक गुरुजीक चरण कमल केँ दबा रहल छथि। मुनि बेर-बेर आज्ञा देलनि तखन श्री रघुनाथजी जाय कय शयन कयलनि। श्री रामजीक चरण केँ हृदय सँ लगाकय भय और प्रेम सहित परम सुख केर अनुभव करैत लक्ष्मणजी हुनकर चरण दबा रहल छथि। प्रभु श्री रामचन्द्रजी सेहो बेर-बेर कहलखिन – हे तात! आब सुइत रहू। तखन ओ हुनकर चरण कमल केँ हृदय मे धारणकय पइड़ रहलाह।