जीवनक एक अति महत्वपूर्ण सूत्र केर व्याख्या

जीवनक ई सूत्र थिक
 
हमर एक प्रिय भजन अछि ‘सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम – यह नाम बनाया प्रथम पूज्य गणपति जी को पल मे’ – एहि मे भगवान सीताराम के महिमा गायन कुल चारि हरफ मे प्रस्तुत भेल अछि। अन्तिम हरफ मे कहलनि अछि गीतकार –
 
क्या कहे अनाड़ी ‘मोदलता’ इससे क्या होना है
हम क्या बतलायें प्रेमीजन इसमें क्या टोना है
भजकर ही देखो श्रद्धा से होयेगा पूरा काम
सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम
 
भगवन्नाम सीताराम-सीताराम मे हम एतबा शक्ति के अनुभूति कएने छी अपन जीवनयात्रा मे जाहि के कारण भजनक ई पंक्ति सँ हमर आन्तरिक शक्ति आर दस गुना बढि जाइत अछि। सच छैक जे हमर अवलम्ब नाम सीताराम मे केहनो विपत्ति मे फँसल-अटकल बेरा केँ पार लगेबाक शक्ति छैक। लेकिन श्रद्धा सँ भजबाक जे बात उपर मे कहल गेल छैक सेहो ओतबे सच छैक।
 
‘शरणागति’ एक अति-बेहतरीन पुस्तक (लेखक श्रीरामसुखदासजी महाराज) मे पढ़ने रही जे सर्वसामर्थ्यवान स्वामी – सर्वसत्तावान परमेश्वर – परमपिता परमात्मा जिनकर अधीन सम्पूर्ण संसार आ सूर्य-तारा-चन्द्रमा, ग्रह-नक्षत्र, आपदा-विपदा, प्रकृति-नियति-स्थिति-परिस्थिति, प्रलय-विलय, सृजन-पालन-संहार आदि निहित अछि ताहि भगवान प्रति स्वयं केँ सौंपि देनाय आ फेर ओहिना निःशंक आ निडर बनि जेनाय जेना कोनो अबोध बालक अपन माय-पिता-परिचितक कोरा पबैत देरी आश्वस्त भ’ जाइत अछि जे अपन जन्मदाता-रक्षक-पालनहार केर संरक्षण-शरण मे छी आ हमरा लेल चिन्ताक कोनो बात नहि रहल आब।
 
कनी सोचू त! प्रकृति के किछु प्रत्यक्ष पैघ सिद्धान्त मे एकटा इहो छैक। जेना बच्चा पेट मे पदार्पण करिते भगवानक सिद्धान्त (प्रकृति) द्वारा माय केर स्तन मे दूध भरि जाइत छैक, ठीक तहिना जन्म लैत देरी ओहि बच्चाक आत्मीय सम्बन्ध स्वतः अपन जन्मदात्री माय संग जुड़ि जाइत छैक। तखन न ओ शरण पबिते अपना केँ आनन्द मे भरि लैत अछि। मायक स्तन मे मुंह लगिते ओकर सारा भूख-प्यास-त्रास मेटा जाइत छैक। मायक एक आवाज सुनिते बच्चा किलकारी मारि-मारिकय प्रसन्नता प्रकट करय लगैत अछि। बिल्कुल यैह सिद्धान्त पर जँ हम सब परमपिता परमेश्वर प्रति आपेकताक भाव केँ अपन प्रकृति बना ली त संसारक सारा दुःख-कष्ट, आपत्ति-विपत्ति सँ स्वयं केँ मुक्त पायब। एकरे शरणागतिक सिद्धान्त पर चलब कहल गेल छैक। लेकिन सवाल छैक जे अबोध बालक जेकाँ निर्दोष-निर्लिप्त आ निडर-निःशंक रहिकय मातृत्व‍-पितृत्व भाव मे परमपिता संग हम मानव जुड़ि सकैत छी? जीवनक बेहतरीन सूत्र एहि प्रश्न के जवाब मे भेटि जायत।

एक अबोध बालक जखन विषधर साँप केँ छुबय जाइत अछि त माताक दृष्टि पड़िते ओकरा तुरन्त पकड़िकय दूर खींचबाक स्वाभाविक प्रतिक्रिया देखने होयब। लेकिन वैह पुत्र जखन बुझनुक भ’ जाइत अछि, ओकरा पता चलि जाइत छैक जे साँप विषधर थिक आ ओकरा संग छेड़छाड़ करब त काटि लेत, जहर के असर पड़त आ मृत्यु सेहो भ’ सकैत अछि – एहि तरहक ज्ञानवान पुत्र जखन साँप केँ छुबय जाइत अछि त माता सेहो विहुंसैत ओकर क्रीड़ा देखनाय पसीन करैत छथि नहि कि पूर्व अबोध अवस्था मे देल प्रतिक्रिया जेकाँ ओ बच्चा केँ डेन पकड़ि दूर खींचि साँप सँ बचेबाक यत्न करैत छथि।

एतय हम सब ई बुझि जाय जे शरणागतवत्सल भगवान के अवस्था सेहो ओहि माय जेकाँ छन्हि। जा धरि ओ बुझैत छथि जे एहि शरणागत भक्त केर हमर अतिरिक्त दोसर कियो नहि सहारा छैक त स्वाभाविक ओ अबोध बालक संग कयल माताक उपरोक्त व्यवहार जेकाँ तुरन्त रक्षा करैत छथि। आ जँ हम सब अपनहि होशियार-बुधियार भ’ गेल छी आ तेकर बाद कतहु विपत्ति मे फँसि जाइत छी त भगवान बिल्कुल ओहि माय जेकाँ व्यवहार करैत छथि जे ज्ञानवान पुत्र द्वारा साँप संग क्रीड़ा करैत उपरका उदाहरण मे भेल। बस! यैह बुझबाक अछि। तदनुसार कर्मवृत्ति बनेबाक अछि।

 
हरिः हरः!!