संस्कार केर मुख्य स्रोत आ मौलिकता पर हमर विचार

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

संस्कार

हमर पिता अपन उत्तरार्ध जीवन मे समाजक बच्चा सब केँ पढ़ेनाय, होमियोपैथिक दबाइ के किताब पढ़ि डाक्टरी सिखने रहबाक कारण डाक्टर साहेब कहाइत लोकक स्वास्थ्य सेवा कयनाय, केहनो जटिल आ उलझल जमीनी विवाद या अन्य दियादी लड़ाई-झगड़ा आदि केँ न्यायपूर्ण ढंग सँ सलटेनाय, गाम के राजनीतिक भविष्य लेल सौंसे गामक लोक केँ एकठाम बैसाकय बुझेनाय आ भविष्यक लेल उपयोगी निर्णय सब कयनाय – एहि तरहें अपन जीवन बितबैत छलाह जे हमर देखल अछि।
माय एक गृहिणी रहितो आस-पड़ोसक महिला समुदाय, बाल-बालिका आदिक ‘नवकी काकी’ नाम सँ लोकप्रिय, अपनहुँ काज सँ बेसी दोसरक काज केना नीक जेकाँ सम्पन्न हेतैक ताहि तरहक परोपकारी, आर सब सँ बेसी अपन वाकपटुता सँ कनियां-मनियां केँ हँसा-हँसाकय रिझा लेनाय आ बिन बातहि के बात सँ शुरू भेल झगड़ा आदि केँ साम्य कय देबाक लेल सभक प्रियपात्र रहल आ एखनहुँ अछि। ओकरा अपना नीक-निकुत पहिरबाक-ओढ़बाक सखो तक नहि देखलियैक कहियो, बस लेटायले नुआ पहिरने एक-एक घड़ी लुरु-खुरु-लुरु-खुरु कोनो न कोनो काज आइ ८० वर्षक अवस्था तक मे कइये रहल अछि। भगवानक असीम कृपापात्र हरदम एकसमान भाव मे रहैत अछि।
तहिना हमर कतेको रास बाबा-बाबी, कतेको रास काका-काकी, जेठ बहिन लोकनि, जेठ भाइ-भौजाइ सब, छोटो भाइ-भातिज सब, मित्र-दोस्त सब, ग्रामीण सब… आ विद्यालय मे पढ़ेनिहार शिक्षक सँ लैत राही-बटोही मे कतेको सीनियर-जुनियर आम मानव समाज – हर मनुष्य मे किछु खासियत देखलियैक आ सब सँ किछु न किछु सिखबाक प्रेरणा भेटल अछि जीवन मे। एतेक तक कि लेलहा-बकलेलहा आ ढकलेलहा सब मे सेहो किछु न किछु अपना लेल सिखय योग्य देखलियैक।
आब हमर कहबाक तात्पर्य ई अछि जे संस्कार कतहु बाजार सँ नहि भेटैत छैक, संस्कार ग्रहणक प्रारम्भ माता-पिता-परिजन-गुरुजन आ समाजहि सँ होइत छैक। पुनः विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय व अनेकों आलय सँ सेहो प्राप्त होइत छैक। सिखबाक उमेर केर कोनो हद नहि, आजीवन सीखि सकैत छी। आर यैह संस्कारक बल सँ हम मानव अपन जीवन केँ सफल कय पबैत छी।
हमर सन्देश अछि आजुक युवा पीढ़ी लेल – अपन निजी संस्कार केँ कोनो इम्पोर्टेड संस्कार अथवा बाजारू संस्कार सँ प्रभावित जुनि करय जाउ। अपन कुलीनता केँ, अपन मौलिकता केँ आ अपन आत्मीय अस्तित्व केँ बुझू आ एहि अनुसार आगू बढू।

हरिः हरः!!