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युवा आ दहेज मुक्त मिथिला

युवा
 
ओना त युवा केँ परिभाषित करबाक पहिल आधार उमेर मात्र होइत छैक, मुदा उमेरक अधिकतम सीमा सेहो भिन्न‍-भिन्न हेबाक कारण युवा कहेबाक दोसर आ ठोस आधार हेबाक चाही एना हमरा लगैत अछि। हमरा बुझने –
 
क) बाल्यावस्था आ किशोरावस्था उपरान्तक अवस्था केँ ता धरि युवावस्था मनबाक चाही जा धरि कोनो काज करबाक शारीरिक, मानसिक आ आध्यात्मिक बल मनुष्य मे शेष हो।
 
ख) उमेर हद २० सँ ४० सँ हम सहमत नहि छी। हमरा बुझने युवा १६ सँ ५० धरि मानल जेबाक चाही। कारण ५० तक मनुष्यक शरीर मे कइएक बीमारी डेरा बसा लैत अछि आर शारीरिक क्षमता क्षीण होबय लगैत अछि।
 
ग) उमेर हद ५० सँ ऊपर गेलाक बादो किछु लोक निस्सन्देह युवा रहल करैत छथि, कारण हुनकर अनुभव आ परिपक्वता सँ जे शब्द (बात) निकलैत अछि ओ हजारों युवा केँ प्रेरित करयवला होइछ आ ताहि पर युवातुर के लोक अमल करय लेल तत्पर रहल करैत अछि।
 
हम जाहि परिवार सँ अबैत छी ताहि मे युवाक परिभाषा व्यवहारिक रूप सँ परिभाषित होइत एना देखलियैक –
 
भोजक आयोजन लेल सारा इन्तजाम करबाक, बाजार सँ सौदा किनबाक सँ लैत दूध-दही आ तरकारीक इन्तजाम, नोत देबाक लेल साइकिल या मोटरसाइकिल सँ सौंसे गाम आ परगना धरि नोत पहुँचेबाक काज, एम्हर अंगना मे तरकारी काटय सँ लैत बरी-बर आदि बनेबाक आ घरक भितरी काज मे सजगता सँ सारा इन्तजाम मिलेबाक युवा स्त्री लोकनिक काज, भोजनक पाक तैयार करबाक समय रसोइया संग मिलिजुलि सम्पूर्ण तैयारी पूरा करेबाक लेल तत्पर युवा समाज आ फेर बारिक बनिकय पतियान मे लोक केँ बैसा क्रमबद्ध ढंग सँ भात, दालि, २-३ तरकारी, पापड़, घी, चटनी, आदिक सचार लगाकय भोजन करबायब…. आ फेर बरी, दही-चीनी-सकरौड़ी आ मिठाई आदि बाँटि खूब नीक सँ आमंत्रित लोक केँ भोजन करबायब – ई सारा काज मे जे सब भाग लैत अछि ओ वास्तव मे युवा होइत अछि। हमहुँ सब जखन बारीक बनबाक योग्य भ’ गेलहुँ त युवाक रूप मे गणना होबय लागल।
 
युवाक आर गहींर अर्थ होइछ जखन माता-पिता आ परिजन अहाँ केँ धियापुता बुझनाय छोड़ि देथि आ गम्भीरता सँ अहाँक राय व योगदान के अपेक्षा रखैत परिवारक हरेक महत्वपूर्ण निर्णय मे अहाँ केँ सेहो शामिल करैथि, त अहाँ निश्चित एक युवा भेलहुँ। सामाजिक काज मे सेहो युवा पर स्वतः युवा सँ प्रौढ़ बननिहार अग्रज सब द्वारा भार सौंपि देबाक परम्परा देखिते छी मिथिला मे। गाम मे आयोजित होयबला कतिपय सार्वजनिक काज मे नव-नव युवा सब केँ बजा-बजाकय किछु न किछु हाथ बंटेबाक लेल जिम्मेदारी देल जाइत छन्हि। आर यैह मिथिलाक सभ्यता केर गरिमा सेहो मानल जाइछ। सभक सहभागिता सँ पैघ-पैघ काज स्वयं लोक पूरा कय लेल करैत अछि, जाहि मे युवा पर सब सँ भरिगर आ शारीरिक बल केर अधिकाधिक प्रयोग होयबला काज सौंपल जाइत छन्हि।
 
आइ ‘युवा’ पर चर्चा करबाक एकटा अभीष्ट ई अछि जे ‘दहेज प्रथा’ मे ई युवा लोकनि बेसीकाल निराश आ हताश देखाइत छथि। कारण छैक जे विवाह जेहेन विषय मे हिनका सब केँ बेसी सहभागी नहि बनायल जाइछ। चाहे बेटा हो या बेटी, अभिभावक अपन परिपक्व विचार आ अनुभव सँ ‘बेहतर’ निर्णय कय सकैत छथि, सन्तान हुनकहि लोकनिक निर्णय केँ सर्वमान्य मानल करैछ अधिकांशतः, तैयो युवाक अन्तर्मन मे कोनो न कोनो भावना रहैत छैक आ ओकरो राय लेबाक चाही से बात बुझय मे कतहु न कतहु मिथिला कमजोर अछि एना हमरा लगैत अछि। हालांकि आजुक समय बहुत बेसी बदलाव आयल अछि, विवाहक न्यूनतम उमेर आब बहुत बढि गेल अछि…. आब पहिने सँ १० वर्ष अधिक भ’ गेल अछि न्यूनतम उमेर…. नहि केवल बेटा (पुरुष) केर बल्कि बेटियो (स्त्री) केर विवाहक सीमा मे मोटामोटी १० वर्षक इजाफा भेनाय बहुत पैघ परिवर्तनक संकेत थिक। एकर कतिपय हानि सेहो छैक, लेकिन हानि सँ बेसी लाभ देखैत लोक सहजता सँ विवाहक उमेर केँ बढेबाक वास्ते मान्यता आ स्वीकार्यता प्रदान कय चुकल अछि। तखन एहि युवातुर केर निर्णय (स्वीकृति) बिना कोनो फैसला करब अनुचित आ खतरनाक होयत से सब बुझिते छी। फलतः युवाक मोन टटोलने-बुझने बिना कोनो निर्णय नहिये करब त सुरक्षित आ समुचित होयत से कहि सकैत छी।
 
अन्त मे, दहेज कुप्रथा, विवाह मे देखाबा-आडम्बरपूर्ण व्यवहार, ताहि सब कारण अभिभावकक जमा पूँजी पर पड़ि रहल प्रभाव जेकर असर कइएको वर्ष धरि पारिवारिक अर्थव्यवस्था केँ डाँवाडोल कएने रहत, इहो सब बात आजुक युवा केँ नीक सँ बुझबाक चाही, मनन करबाक चाही आ तदनुसार माँगरूपी दहेजक प्रतिकारार्थ एहि अभियान ‘दहेज मुक्त मिथिला’ प्रति अपन कर्तव्यबोध संग नेतृत्वक जिम्मेदारी सेहो लेबाक चाही। काल्हि एहि विन्दु पर एक वेबिनार केर आयोजन ‘दहेज मुक्त मिथिला’ समूह पर भेल छल। काफी लोक अपन विचार देलनि आ तय कयल गेल जे आगामी समय मे युवा नेतृत्व केँ आगू अनबाक लेल विविध उपाय अपनाबैत अभियान केँ बढायल जायत। अपने लोकनि सेहो एहि सन्दर्भ अपन महत्वपूर्ण सुझाव आ प्रतिक्रिया दी आ अभियान केँ आगू बढाबी।
 
हरिः हरः!!

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