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बड़का गप छकरय मे पाइ थोड़े लगैत छैक!!

गजल

– रंजीत कुमार झा, कोलकाता

ranjeet kolkataबरका-बरका गप्प छकरऽ में लागॅ कत्तॉ पाइ छॅ?
बरद अपन कूरहॅर सऽ नापब ककर कथी जाइ छॅ?

फक्का-फक्का चट दऽ हूरब कोनो की लाइ-चूरलाई छॅ?
शुद्ध-समाजक काज करऽ में सब बूधियार चिन्हाइ छॅ।

लारब-चारब जऽ आबॅयॅ तऽ बॅसू माछ तराइ छॅ।
सोक्ष बाट कलियुग में चलब ओ लोक बड थुराइ छॅ।

लक्ष्मी पुत्रक सॉंसे पुजा पाइये चाम किनाइ छॅ।
ओकर तोसक पाइये भरल गरिबक लेल मँहगाइ छॅ।

घी-मलीद्दा घरे भरल बॉआ सोने पर ओंघराइ छॅ।
फुसक घर में करॅ बच्चा रोटी लेल लराइ छॅ।

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