सात्त्विक इन्सानक राज कहिया बनत?

व्यंग्यवाण

1714– विमलजी मिश्र, सुपौल, मिथिला

 

मिथिला आ संपुर्ण बिहार मे,

टिटही, बेंग, गोबरछत्ता केर प्रादुर्भाव,

चुनावी मौसम मे किछु बिशेषे भऽ जायत अछि ।

दु चारि टा’क टोली बनाकय अपन-अपन राग,

गीत आ सोहर सँ लैत ‘राम नाम सत है’ तक,

सब किछु अलापनै शुरु कय दैत अछि ।

भगत रंगा सियार सँ साँठ-गाँठ करैत,

सरलहबा कुकुर सब

चुनावी स्नान करबाक लेक आतुर अछि ।

दिन-राइत अपन माटिक सेवा केनिहार

सज्जन बरद केँ पछाड़ि कय

कतेक गदहा बैतरणी पार करत

से तऽ बादक बात अछि ।

ता धरि काँव-काँव कय रहल

छिटपुटवा कौआ सब

रोटीक टुकड़ा लेल परेशान अछि ।

कौवा केर कहब आछि जे

एतेक दिन भऽ गेल,

घर सँ लऽ श्मशान तक

काँव काँव हम करैत छी

तऽ हमरा सँ नीक के अछि!

कुकुर कहैत अछि

हमरा सँ नीक भों-भों केक्कर,

हमही चतुर प्रहरी छी !

गदहा बजैत अछि जे

हमर ढेंचु ढेंचु पर 

कुर्सी हिल जाइत अछि !

बंदरबाँट सँ खुश,

ऊपर बैसल भेड़िया

मोंछ पिजा रहल अछि ।

निरीह बकरी आशा मे बैसल अछि जे,

हर पाँच साल पर हरियर घासक लालच मे,

हमर बलि देनाय कहिया बंद होयत?

कहिया धरि हम मन्दिर आ मसजिद मे चढैत रहब?

कहिया राच्छस आ बड़बोल जानवरक,

ढकोसला सँ मुक्ति मिलत?

सात्त्विक इन्सानक राज कहिया बनत?