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शुभकामना श्याम दा: श्यामसुन्दर शशिक व्यक्तित्व ओ कृतित्व पर नित्या नन्द

शुभकामना सन्देश

– नित्या नन्द, जनकपुर

शुभकामना श्याम दा

मैथिली साहित्यक लेल श्यामसुन्दर शशि (जनकपुरधाम) आ मैथिली रंगकर्म बास्ते अनिल पतंग (बेगूसराय)केँ जीतेन्द्र स्मृति सम्मान सँ सम्मानित कएल जएतनि । ई समाद सुनि हर्षसँ विभोर छी ।

हिनका लोकनिके सम्मान अन्तर्गत प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह आ एगारह हजार नगद राशि प्रदान कएल जएतनि । दक्षिणी मिथिलाक सुपौल जिलाक बभनगामामे ई सम्मान प्रदान कएल जएतनि । दुनू चयनित श्रेष्ठजनकेँ हार्दिक बधाई एवं मंगलमय शुभकामना ।

 

अनिल पतंगजी रामभरोस कापडिसरक संयोजनमे ललितकला प्रतिष्ठानक आयोजनामे जनकपुरधामक बृहत्तर जनकपुर क्षेत्र विकास परिषद्मे आयोजित लोकनृत्य संगीत विषयक गोष्ठिमे भेटघाट भेल छल । ओहि कार्यक्रममे ओ जटजटिन पर अपन कार्यपत्र प्रस्तुत कएने रहथि जाहिमे ओ जोनी जोनी एसपापाके जटजटिन आ छठिक सुर, ताल आ लहजामे गओने रहथि ताहिसँ हाँल पूरा रोमाञ्चित ऊर्जासँ लवालव भरि गेल छल आ थप्पडी गडगडाहटि हुनका खूवे सराहने छल । अखन ओ मैथिली गीत संगित, फिल्म, साहित्य आदिमे बेस सक्रिय देखल गेलाह अछि ।

आब बात करैत छी अपन समादरणी श्याम भैय्याक मादे ।
वाकपटुतामे अत्यन्त तीक्ष्ण, एकटा एहन व्यक्ति, जे कहियो दार्शनिक–चिन्तक जेकाँ, कहियो चामत्कारिक वक्ता जेकाँ, कहियो चुम्बकीय लेखक जेकाँ, कहियो पश्चिमी दर्शन, चिन्तन आ रोमान्टिसिज्मक एकटा पात्र जेकाँ, कहियो पूर्वीय धर्म, अध्यात्म आ अनुशासनक ज्ञाता जेकाँ जीवैत रहलाह अछि । ओ जीवनक प्रत्येक क्षणमे हरेक रङ्ग सभक हिसाब–किताबक आँकलन मात्र नहि कएलनि, ओही रङ्ग सभमे जीवाक उत्कट उत्कण्ठा पोसलनि, आओर अपने रङ्गमे रंगा जाएबाला व्यक्तित्व । मुँह मिसरी बोल करैला, सुदर्शन स्वरुप, कला, साहित्य आ सञ्चारक संगम, अक्षर, आवाज आ अन्दाजक त्रिवेणी, बहुविधावादी सशक्त हस्ताक्षर श्याम सुन्दर शशि । आइ वहए श्याम भैयाक सम्मानित होएबाक जनतव्य प्रियवर वीरेन्द्र रमण देलनि । तैं अशेष, अनन्त आ अनुरागमय असंख्य शुभकामना ।

एहि मांगलिक सुखद अवसर पर हिनका विषयमे किछु लिखब सायद अनुचित नहि होइत । ओहोमे जाहिदिन एफवी पर कोनो भरिगर व्यक्तित्वक किछुओ होओ त लाइक कमेन्ट करैत करैत चुटकी दुखा जाइए । तैं अहगरेसँ …!

कहियो उमेरसँ उफनाएल, उमटाम मात्तल सुदूर गामक एकटा उन्मत्त अलवत लडिका जेकाँ, जे अक्सर मौकाक तलासमे रहैत अछि जे ककरा कोना अपन बोलीक वाणसँ धरती धरा दी । मुदा असलमे कही त एकटा एहन प्राध्यापक जे साँचेके प्राध्यापक जेकाँ । अर्थात् ज्ञान, चिन्तन, बोली आ लेखनमे लय भेल लोक । सार्वजनिक मञ्चसभक उद्घोषणमे एकदम प्रेमिल सम्बोधन, मुदा विचरण समाज, राजनीति, जीवन–जगतक विशाल आ गहिरा समुद्रसभमे कल्पनाक सतरंगी पाँखि लगा उडान भरैत आ हेलैत–डुबैत, नँखसिक होइत । अद्भुत लेखनशैली । चिन्तन आ तर्ककेँ सरल रूपमे रेखांकन करबाक जादुगरी कुशलता । ताहिके बहुत ही उदारतापूर्वक राखबाक बेजोड कला ।

हुनक भुकना महात्म आ कतार डायरीमे प्रेम आ प्रणय लवालव भरल अछि जे सर्वाधिक रुचिकर अछि । जाहिमे नायक–नायिकाक हाउभाउ, स्पर्श, नृत्य आदिसँ द्रवित होइव, श्रावित होइव आ दु–तीन दिनधरि मोन गुदगुदाएल रहब । पाठकक स्वाभाविक प्रतिक्रिया । हिनक कथासभमे जाँघ वा वक्षस्थलक बात मात्र नहि होइत अछि, ओहिमे लोभ, मोह, काम, क्रोध, समाज आ राजनीति उपर चोटगर प्रहार सेहो रहैत अछि । बुद्धक मन्त्रसभ, कुरान, वेद, उपनिषद्, बाइबल… की की नँई रहैत अछि ? लेखनमे विम्बसभक प्रयोग जादुगरी । तामझाम, हैसियतक प्रदर्शन, आडम्बरकसँग पूजापाठ करएबाला ढोँगी पण्डित पुरोहित, मौलाना, पादरी सभसँ लऽ कऽ समाजक अन्य पाखण्डी राजनीतिज्ञ आ स्कुल शिक्षकधरिक चर्तीकला उपर विलक्षण व्यंग्यवाण प्रहार करब हिनक मौलिक शिल्प छनि । हिनक सौन्दर्यचेत आ जीवनक खास रङ्ग रूपसभकेँ बेर बेर निघारबाक मोन होइव अस्वाभाविक नहि । हुनक बहुत चर्चित व्यंग्य आ विचारप्रधान श्रृंखला शशिक चटनी, शशिक सुप, गरमा गरम चाह, समदिया आदि बहतोकेँ ठोर पर शीर्षक आ गुदी कण्ठस्थ रहैत अछि ।
सन्ध्यासँ मिलन करबाक वास्ते जँ जँ साँझ लुकझुक होइत जाई, राति जुआन होइत जाइत अछि तऽ मदिराआएल पवनक मुडमे अपन समकालिन सँगीसभ बीचक संवाद, चौल, नोकझोक, झौल, बात कटौबलि आ ठट्टा गज्जवक होइत अछि । तखन एना लगैत रहैत अछि जेना जीवनक सभ रङ्गसभ ओहि ठाम पृथ्वीलोक पर उतरि आएल होइक । जेना दार्शनिक, आध्यात्मिक आ मानवीय चेतक बहस, विमर्श आ छलफल शानदार, वजनदार आ दमदार होइत जा रहल होइक । जनिक ठट्टामे सेहो अनन्त गहिराई होइत छैक, ओ परिहास आ विनोदप्रियता सेहो ! गहिर सौन्दर्यचेत आ मानवीय प्रेम । चेतनासँ भरल आ माझल एकटा प्राध्यापक, पावरफुल चस्मा, बज्र दाँत आ अट्टाहासक मनकारी हँसनाई लाजवाब ।

पच्छिला समयमे अभिव्यक्तिक अन्तरिक्षमे अँखिगर, माहिर अभियन्ताक रुपमे सामाजिक सञ्जालमे खुबे सक्रिय देखल गेलाह अछि । अंग्रेजीमे कहल जाइत अछि जे गिभ अ ड्याम ! मैथिलीमे–बाल मतलब । विना रोकटोक, कहएबाला बात ठाहिँ प ठाहिँ कहवाक चाही, लिखबाक चाही ।बात जानिसाफ, दु टप्पी, विना कोनो हिचकिचाहट गलत तत्वक विरुद्ध आवाज उठाएब । जाहिसँ लोकके दुःख हएतनि तकर कोनो फिकिर, परवाह नहि । एहिसँ केओ गलत बुझत वा अपन हित नहि होइत से कहियो नहि बुझि सकलनि । अर्थ–अनर्थक किछु गप्प कथिला नहि होइ ताहिपर डाईरेक्ट प्रहार करब जे जीवनकेँ रङ्ग सभमे भोगैत अछि बिना ढोंग, बिना घमण्ड, बिना तथाकथित सामाजिक भय ! सीधा अर्थ नहि भेटव, हिनक गहिँर आ गम्भीर रचनामे । तथापि लयमे बहएबाला स्वभाव हिनका ‘पब्लिक इन्टेलेक्चुअल’ अर्थात् कतौ कोनो विषयमे लगातार सूचनायुक्त प्रवचन देनिहार विद्वान् आ विद्वतायुक्त विद्वता, विचार आ चिन्तनमे हुनक उचाई आ आयतन अतुलनीय अछि । बौद्धिकता, चिन्तन आ विचारक तहमे (समान स्तर) बात नहि मिलला पर ककरोसँग अडि जाइब हिनक स्वाभाव सर्वजनिन भऽ गेल अछि ।

एहिसभ बातक पुष्टि करबाक बेगरता नहि । लोक हिनक कृतित्व आ व्यक्तित्वसँ नीक जेकाँ परिचित अछि । कहवामे कोनो हर्जा नहि जे नाटक (आर्दश कुटुम्ब, कपडकोट लेखन आ मलंगिया सरक नाटकमे अभिनय), टेलिफिल्म (एकटा आओर बसन्त),  पत्रकारिता (गामघर, नवविचार, समाचारपत्र, कान्तिपुर, जनकपुर टुडे, विद्यापति टाईम्स, मिथिला वाणी, साहित्य (भुकना महात्म कथासँग्रह, कविता, निबन्ध सयपत्री, आँगन, संस्मरण कतार डायरी आदि), रेडियो उद्घोषण जनकपुर एफएम, गरमागरम चाह, कालचिन्तन आ समदियाधरिक यात्रा, सार्वजनिक मञ्च सञ्चालन (होरी महोत्सव, जनकपुर साहित्यकला उत्सव) आदिमे सराबोरि डुबलासँ, हथोरिया देलासँ, रसास्वादन आ परेखलासँ सहजै भेटि सकैत अछि । बड सुअदगर लयमे अपनेक हँसीक जादुटोना किनका नहि सम्मोहित करैत हएतनि । आओर की कहू भैय्या? माफ कएल जएतैक देरिए सहि फेरसँ शुभकामना श्याम दा । भैय्या गोर लगैत छी, हाथ कहिया लगबै?

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