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बाबाधाम यात्राक इतिहास किछु खास प्रसंग सँ

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

फोटो सहित परिचय – समूह केर नियम
 
दहेज मुक्त मिथिलाक समस्त सदस्यगण केँ कहल जाइत छन्हि जे सब कियो अपन-अपन परिचय फोटो सहित समूह पर जरूर राखू। आर समय-समय पर एकर औचित्य पर हम लिखैत आबि रहल छी, फेर लिखि रहल छीः
 
फोटो सहित परिचय केर अर्थ भेल जे एहि अभियान मे निडरता आ निःशंक बनिकय अहाँ सहभागिता दय रहल छी, अहाँ खुलिकय दहेज मुक्त समाज निर्माण हेतु एहि समूह मे शामिल भेलहुँ अछि आ ताहि लेल अपन परिचय सभक सामने वगैर कोनो हिचकिचाहट आ अपन अनुहार (फोटो) देखबैत अपन आत्मविश्वास के झलकी दोसरहु केँ दय रहल छी, प्रेरित करैत छियनि आनो केँ जे हमरा त चिन्हबे करू, अहाँ सेहो चिन्हार बनिकय एहि अभियान केँ आगू बढाउ।
 
मित्रगण! प्रस्तुत फोटो बाबाधाम यात्राकालक थिक। फेर समय आबि गेल जे माघ पूर्णिमा दिन देवाधिदेव महादेव – कामोद लिंग बाबा बैद्यनाथ केँ गंगाजल अर्पण करय लेल सुल्तानगंज मे गंगा स्नान कय केँ पीठ पर राखय वला कामर मे जल भरब आ “जय सीताराम जय जय सीताराम” महामंत्र केर कीर्तन सहित श्री जानकी-राघव जी केँ माफा मे बैसा शोभा यात्राक संग बाबाधाम धरि जायब। बहुते भक्त-श्रद्धालू एहि मे सहभागी बनता। अपने सब सेहो चलय चाहब त हार्दिक स्वागत अछि, आउ सुल्तानगंज मे भेटी १६ फरवरी विहाने (सकाले) ८ बजे गंगा घाट पर, ओतय नजदीके पंचानन बाबा आश्रम सँ ई यात्रा आरम्भ हेबाक निर्धारित अछि। सुल्तानगंज सँ निकलैत-निकलैत वैह १०-११ बाजिये जाइत छैक।
 
एहि मास मे बाबाधामक यात्रा एकटा अलगे आनन्द दैत अछि, हम लगभग १६ वर्ष सँ जा रहल छी। ऋतु-सन्धिक मौसम मे कहियो बेस जाड़ सेहो होइत छैक, यदा-कदा पानियो पड़य लगैत छैक, नहि त सामान्य अवस्था मे भोर खाली नहेबाक समय मे कनेक जाड़ लागत, बाद बाकी मस्त भ’ कय बम-बम करैत बाबाक बाट पर चलैत रहू। बेसी अपनहि मे लीन होयब त दर्द के अनुभव हुए लागत, थकावट आ पैरक फोका सब नजरि पड़य लागत… आ जँ बाबा मे लीन रहब त फेर शारीरिक दुःख-कष्ट जे भोगइये लेल गेलहुँ ओतय से सब किछु नहि बुझबैक। परमानन्द मे मगन भ’ जीवनक घोल-फचक्का सँ निजात पाबि अपन परमपिताक कोरा मे केना धियापुता केँ आनन्द अबैत छैक, बस तहिना मौज मे रहब। हर-हर महादेव!!
 
मिथिला आ बाबा बैद्यनाथ बीच बहुत रास अलौकिक सम्बन्ध छैक से त बुझले होयत बहुतो गोटा केँ। भैरवनाथ मिथिला घुमय एलाह आ मिथिलाक लोक केर आगत-भागत देखि किछु दिन बेसिये रुकि गेलाह मिथिला मे। मधुबनी जिलाक भैरवस्थान मे हिनक मन्दिर बहुत प्रसिद्ध अछि। बाद मे भैरवनाथ केँ बाबा बैद्यनाथ स्वप्न देलखिन आ कहलखिन जे ‘हउ भैरव! मिथिलाक लोक सब परापूर्वकाल सँ निष्ठावान् होइत रहल अछि, हिनका सब केँ कहि दहुन जे हमर सब कामना पूर्ति करयवला लिंग “श्री श्री १०८ रावणेश्वर महादेव” माता सतीक हृदय (चिताभूमि देवघर) पीठ मे विराजित अछि, ई लोकनि हुनकर सेवा करथि। हिनका सब केँ सम्पूर्ण मेवा ओहि सँ प्राप्त हेतनि। बस, भैरवनाथ सेहो सोचलथि जे जाहि मिथिलाक लोक हमरा एतेक नीक सँ खातिरदारी कयलथि अछि तिनका किछु त हमरो देबाके छल, बाबा बड नीक कयलनि जे मार्गदर्शन कय देलनि। बस, भोरे भैरवनाथ पूरे गामक लोक केँ बजाकय कहलथि। ओ कहलखिन जे पहिले बेर हम स्वयं विभिन्न रूप मे अहाँ सब केँ रस्ता देखबैत चलब।
 
मिथिलाक कामरथी ब्राह्मण लोकनि बड़ा बहादुर भेल करथि। ओ सब एहि बात लेल तुरन्त गछि लेलनि। भैरव बाँस काटि देलाह। मिथिला मे जेना कि अदौकाल सँ व्यवहार मे रहल अछि, डोमहि केर हाथक फुलडाली, चंगेरा, कोनियां कि सूप, डगरा आदि बाँसक बनल बस्तु सँ देव-पितर कर्म करबाक विधान तेँ बाबाधाम यात्रा लेल जे कामर बनाओल जेबाक छल ताहि लेल स्वयं भैरवनाथ बाँस काटि डोम केँ प्रदान कय कामर बनबौलनि, हुनकहि देल बाँसक दुनू बगल फूलडाली स्वरूपक डाली बान्हि जल रखबाक स्थान बनायल गेल। भैरवनाथ आगू-आगू, कामरथी सब पाछू-पाछू, शुरू भेल यात्रा गोसाउन केँ प्रणाम कय केँ। महीनों धरि लागि गेल गाम सँ गंगाकात, सेहो उत्तरवाहिनी गंगा, अर्थात् जतय सँ गंगा उत्तराभिमुख बहि रहल छलीह ताहि ठाम धरि सब कियो गेलाह आ ओतय गंगा स्नान कय, गंगा माय सँ बाबाक पूजा लेल जल माँगि कामर मे जल राखि, धूप-आरती करैत आ संग मे जीवनोपयोगी सब वस्तु बान्ह-छेक करैत सब कियो ‘बम-बम’ बजैत आगू बढलाह। अथाह रहल बाट केँ भैरवनाथक मार्गदर्शन मे टपैत चलि गेलाह। रोड़ी, पाथर, कंकड़, कांट, कुश, आदि सँ भरल मार्ग, कतहु ऊँच पहाड़ी, कतहु खाई, कतहु नदी, कतहु खेतक आड़ि, कतहु धूर… निकलैत रहलाह कमरथुआ सब आ अन्त मे पहुँचि गेलाह बैजू बाबा के नगरी मे। विध-विधान सँ पूजा कयलनि। सब कामरथी अपन ‘काम’ (कामना) बाबा सँ कहलनि। पूजा सम्पन्न भेलाक बाद सब केँ मार्गक थकावट हरण लेल भैरवनाथ धामहि पर विश्राम करय कहलथि आ पुनः सब कियो अपन-अपन घर वापसी कयलथि। ताहि वर्ष मिथिला धन-धान्य सँ सम्पन्न भ’ गेल। सब प्रसन्न भेलाह। एतेक पैघ सिद्धिक स्थल पाबि सभक हृदय प्रफूल्लित भेलनि। यैह कामरथी – अर्थात् कामना कय ओकरा पूरा करय लेल वीरतापूर्ण प्रयत्न कयनिहार सभ द्वारा शुरू कयल यात्रा सँ बाबाक कमरिया केँ मिथिलावासी ‘कमरथुआ’ कहल करैत छथि, अन्यत्र हिनका सब केँ कमरिया कहल जाइत छन्हि से गाथा अछि। विदित हो जे सुल्तानगंज सँ देवघर धरिक सम्पूर्ण बाट मे एहि कमरथुआ केर आवागमन सँ सारा व्यवस्था आइयो स्थापित हेबाक प्रमाण भेटैत अछि, आदि सँ अन्त धरि सेवा आ पूजा सब किछु करेबाक लेल सेवक सँ पूजारी (पंडाजी) धरि मैथिल मात्र भेटैत छथि एहि मार्ग मे।
 
वर्तमान समय बाबाधाम (देवघर) एकटा महान तीर्थ के रूप मे स्थापित अछि। वर्षों-वर्ष सँ हम स्वयं बाबाक एक भरिया कमरिया बनि साल मे ३ बेर बाबा लग पहुँचबाक प्रयत्न करैत छी। माघ पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा (वा सावनक कोनो आनो दिन) आ आश्विन मास विजयादशमीक दोसर प्रात जल उठा बाबाधामक यात्रा करैत छी। एहि सँ नावरूपी शरीर सँ आत्मारूपी प्रवीण भवसागर पार उतरबाक अनुभव करैत रहैत छी। बाबाक अद्भुत कृपा बिना ई सब संभव नहि भ’ सकैत छैक। एहि लेल स्वयं मे विनयशीलता आ कर्मठता धारण करहे पड़ैत छैक। कमजोर मन या अशुद्ध आचरण सँ एहि पवित्र स्थलक यात्रा संभव नहि होइत छैक, तेँ सदिखन एतबे प्रयास करय पड़ैछ जे हमरा सँ कोनो अशुद्ध काज नहि हो, हमर मन सदिखन पवित्र रहय आ हम केकरो प्रति हिन्सक सोच-विचार मन मे कदापि नहि राखब। पापपूर्ण कर्म करब त सजाय भेटत। गलत भोग करब त शोग भेटबे करत। एहि सब तरहक पवित्र मनोभाव संग अपन निष्ठा, सत्यता, ईमानदारिता आदिक रक्षा कवच पहिरिकय मैदान मे उतरय पड़ैत छैक। आर एकटा लाइन छैक –
 
चिन्ता कथी के स्वयं ओ पुरारी
लाचार देखता पठौता सवारी
लेता खबरि ओ सुनैत देरिया
जाउ देवघर नगरिया बाबा के भरिया
 
‍- प्रेमी बाबा, परड़ी, सहरसा
 
त बिल्कुल एहि लाइन अनुसार हम सब सदिखन समर्पित रहिकय जीवनरूपी भवसागर मे शरीररूपी नाव संग आत्मारूपी स्वयं केँ सफलतापूर्वक सब डगर पार करैत अन्तिम मंजिल (मोक्ष) धरिक यात्रा सफल करय जाइ। आजुक यैह परिचय अपने सभक लेल, आशा करैत छी जे एहि अभियान मे अपने सभक योगदान सदिखन बनल रहत।
 
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतं
सुरासुराधित पाद्य पद्मं
श्रीबैद्यनाथं तमहं नमामि!!
 
हरिः हरः!!

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