मिथिला लेल राजनीति विषय पर हमर विचारः प्रेम विदेह ‘ललन’

विचार

– प्रेम विदेह ‘ललन’

काइल्ह श्री प्रवीण नारायण चौधरीजीक जूम मिटिङमे मिथिला पार्टी गठन सम्बन्धी रखने अपन विचार संक्षेपमे राखि रहल छी :
नेपालमे मिथिलाक राजनीतिक दल निर्माणसँ पूर्व मैथिली भाषाके लोक मुद्दा बनाएब आवश्यक अछि। मैथिली भाषाके एकल जातिवाद आ एकल सम्प्रदायवादसँ मुक्ति जरूरी अछि। मिथिलाक मुस्लिम, बौद्ध, कबीरपन्थी सहित सभ धर्म, जाति, वर्गके मैथिली भाषाक अपनत्व महसूस कराबए पड़त – विभिन्न भाषिक, साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सम्मेलनमे आ सम्मान-पुरस्कारक क्षेत्रमे सेहो। संगसंग मिथिलाक बहुभाषिक, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय पहिचानक अनुभूति समेत लोकमे कराबए पडत।
जँ मिथिलाक वास्ते राजनीतिक दल निर्माण होए तँ चारिटा बात ध्यान राखब जरूरी अछि।
(१) दलक नेता दमगर राजनीतिक व्यक्तित्व होथि। लेखक, गायक, नर्तक, संगीतकार, कलाकार, संस्कृतिविद् लोकनिक दलमे अप्रत्यक्ष सहभागिता होनि यानी भ्रातृ संगठनमे हुनकासभक आबद्धता होनि। कारण ई लोकनि प्रायः सोझमतिया/ संवेदनशील होइत छथि आ राजनीतिमे साम, दाम, दण्ड, भेद सब चाही। अखुनका परिवेशमे कायस्थ/ब्राह्मण जातिक लोक दलक नेतृत्व पङ्क्तिमे नइँ रहथि – कार्यकारिणी सदस्य रहि सकैत छथि।
(२) दलक संचालनक लेल कोनो ठोस अर्थ – सहयोगी व्यक्ति वा संस्था आवश्यक अछि।
(३) दलके केन्द्रीय सरकार आ विदेशी समर्थन चाही।
(४) मोरङ जिल्लासँ पर्सा जिल्लाधरिक (संशोधित) सर्वजातीय प्रतिनिधित्व सहितक बैसारक निर्णयअनुसार दलक नाम, रणनीति आ कार्य समितिक गठन हो।
आजुक अतिरिक्त तीन विन्दु
(५) मिथिला आन्दोलन आ शहादतपश्चात नओ वर्षक अवधिमे नइँ संगठन विस्तार आ नइँ कोनो उद्देश्यअनुसारक गतिविधि रहलाक कारण जनकपुरधाममे स्थापित मिथिला राज्य संघर्ष समितिक विघटन हएबाक चाही आ नव ढंगसँ कोनो संस्था निर्माण कए अभियान चलएबाक चाही।
(६) ऐन-कानूनके पालन करैत केओ सार्वजनिक पदबला (शिक्षक, कर्मचारी आदि) प्रत्यक्ष रुपेँ राजनीतिक दलमे समावेश नइँ हएबाक चाही।
(७) पहिचानक राजनीति कएनिहार दलक संग कार्यगत एकता वा पार्टी एकीकरण सेहो करबाक चाही।
(लेखक प्रेम विदेह ‘ललन’ मैथिली भाषा आ मिथिला राज्य निर्माणक शुभचिन्तक केर रूप मे अपन परिचय दैत छथि, संगहि मैथिली साहित्यकार सभा जनकपुरक सभापाल रहि भाषा-साहित्य आ संस्कृति संग-संग राजनीतिक अभीष्ट लेल सेहो समुचित प्रयास करैत आबि रहला अछि।)