भविष्यक गणनाः १०० वर्षक बाद मिथिलाक कि होयत

१०० वर्षक बाद मिथिलाक कि होयत
 
देखू, आब अपना सभक बाल-बच्चा विश्व-परिवेश संग डेग बढा रहल अछि। आब ओ बाबा आदम वला कहावत जे फल्लाँ बाबा एतेक सिद्धयोगी रहथि कि ओ अपन इलाका सँ बाहर पैर तक नहि रखलाह… ई सब मिथक बनि गेल अछि। आजुक अर्थ-प्रधान युग मे। हालांकि ईहो सच छैक जे फल्लाँ बाबाक आवश्यकता सीमित छलन्हि। हुनकर इच्छा आ मांग सेहो एहेन सीमा मे छलन्हि जे हुनका अपन गामहु केर सीमा सँ बाहर पैर रखबाक जरूरी नहि भेलन्हि। हम-अहाँ आजुक मिथिलाक सन्तान, ताहू मे ओहेन सन्तान जे ‘स्वाभिमान आ स्वाबलम्बन केर मूल सिद्धान्त’ पर अडिग छी, तेकरा लेल आइ अर्थक जरूरत केना बेहिसाब बनि गेल अछि से किनको सँ छुपल नहि अछि। प्रवीण सँ पुछब त कहत जे बाबा के जमाना नीक छल। लेकिन, स्वयं प्रवीण आइ अर्थ आर्जन मे केना आकंठ डूबल अछि से दुनिया देखि रहल अछि।
 
बिना अर्थ के आजुक जीवन बेकार अछि। मिथिला मे पहिने एकटा कहावत खूब सुनी, गरीबक जीवन देबाल बराबर। एकर मीमांसा करय मे हम बड सक्षम त नहि छी मुदा गरीबक जीवन मे कोना बेतरतीब अभावक सामना करय पड़ैत छैक, कोना एक गरीब व्यक्तिक प्रति समाजक सम्पन्न वर्ग मे हीन भावना सँ देखबाक यथार्थ परिस्थिति रहैत छैक, ई सब हम देखने आ भोगने छी, तेँ कहब जे देबाल सँ गरीबक तुलना करबाक संयोग बाबा सभक जमाना मे युक्तिसंगत छल। आजुक युग मे गरीबहु केर बच्चा सब गाम छोड़िकय शहरक स्टेशन धय लैत अछि, मंडी धय लैत अछि, उद्योग-कारखाना मे स्वीपर सँ लैत सुपरवाइजर या मैनेजर बनि जाइत अछि… जेना मोन होइत छैक से जीवनयापनक उपाय अपना लैत अछि। भाग्य बदलि जाइत छैक। कियो उठि बैसैत अछि। कियो संघर्षशीले रहि जाइत अछि। जे होइत छैक, गाम-समाजक हीन भावना सँ देखबाक दुर्दशा सँ बाहर भऽ ओ अपन स्वतंत्र अस्मिता केँ उठक-बैसक मे जिनगीक गाड़ी खींचैत रहैत अछि।
 
हमर अध्ययन कहैत अछि जे १०० प्रवासी मैथिल मे बामोस्किल १० टा समृद्ध-शक्तिशाली बनि पबैत अछि, ३० टा मध्यमवर्गक सम्पन्नता हासिल करैत अछि आ ४० टा निम्नवर्गहि मे रहैत अपन बाल-बच्चा आ परिवारक भरणपोषण अपनहि बदौलत येन-केन-प्रकारेण करैत रहैत अछि, आर अन्तिम मे बचल २० टा काफी उठा-पटक केर जीवन जियय लेल उकपाती-अपराधी-हिन्सक बनिकय जीवन बर्बाद कय लैत अछि। आर एहि सब वर्गक प्रवासी मैथिल लेल एकटा सब सँ पैघ चुनौती छैक ‘भविष्यक सन्तति, ओकर संस्कार आ संस्कृति, समग्र सम्पन्नताक चिन्ता’। बड़ा तेजी सँ प्रवासी बनि रहल मैथिल समुदाय लेल आगाँक १०० वर्ष बड़ा भयावह परिणाम सब दयवला छैक।
 
पलायनक विध्वंस २०म् सदीक आखिरी सँ मैथिल समुदायक माथ पर चढि गेलैक। १९८७ केर ओ वीभत्स तांडवकारी बाढि हो, १९८८ केर ओ भयानक भूकम्प हो, ताहू सब सँ बेसी १९९० केर बादक ओ भयावह जातिवादी राजनीति हो जे १५ वर्ष धरिक जंगलराज केर नाम सँ जानल जाइछ – एहि कालखंड मे लगभग ६०-७०% लोक पलायन लेल बाध्य भऽ गेल। सुशासन, विकास आ समाज सुधारक अनेकों सुदृढ डेग उठेनिहारक आगमन भले १५ वर्षक बाद भेल, लेकिन विगत केर १५ वर्षक पलायन आ तेकर लाभ उठा चुकल बहुल्य मैथिलजन केँ जे चस्का प्रवासी जीवनक लागल, जे नगदी माल के कमाल आ डाँर्ह मे नोटक गर्मी देखल जाय लागल से आब मैथिल लेल प्रवासहि केर जीवन केँ वास्तविक तीर्थ आ नोटहि केर आमदनी केँ असली भगवानक रूप मे स्थापित कय देलक। विदेहक सन्तान देह लेल छिछिया रहल अछि रणे-वने!
 
तखन ऐगला १०० वर्षक भयावहता विगत केर २० वर्षक अध्ययन सँ लगा सकैत छी। हमर व्यक्तिगत दृष्टि एहि भयावहताक सायरन १० वर्ष पूर्वहि सुनने रहय। सौराठ सभाक उत्थानक प्रयास आ एकर अनेकों कारणक अध्ययन-शोध केर क्रम मे हमरा ई ज्ञात भऽ गेल छल जे आबयवला समय मैथिल समुदाय लेल बड़ा कठिन होयत। विशेष रूप सँ प्रवासक विभिन्न स्थान मे जमिकय लगानी कय रहल मैथिल सँ गाम आयब मुश्किल भऽ जायत आ ओकर बाल-बच्चा सभक विवाहदान मे विकृति बड़ा जबरदस्त ढंग सँ मिथिला सभ्यता केँ नुकसान पहुँचायत। तहिये सँ ‘दहेज मुक्त मिथिला’ नामक एकटा आभासी एकजुटताक प्रयास आरम्भ भेल। आइ १० वर्ष मे किछु हद तक सफल भेल अछि ई आन्दोलन। लोक केँ एकटा स्वच्छ आ स्वस्थ विकल्प देल जा रहल अछि। अर्थहि केर बल सँ तेजस्वी-ओजस्वी सन्तानक परिकल्पना करब मूर्खता होयत, बल्कि मांगरूपी दहेजक प्रतिकार करैत अपन मौलिक संस्कारक रक्षा करैत पुरखाजनक मूल्यवान् परम्परा केँ पकड़िकय ‘विदेह’ रूप मे वैवाहिक सम्बन्ध निर्माण कयले सँ अपन सभ्यताक रक्षा होयत। ई सन्देश आइये बुझि जायब त कल्याण अछि, आगूक १०० वर्षक चिन्ता केँ आइये समाधान होयबाक गुंजाइश बनत। अन्यथा बहुत भयावह होयत, गीताक ओ श्लोक देखू जाहि मे चिन्ता जतायल गेल अछि… लुप्त पिण्डोदक क्रिया…
 
सङ्करो नरकायैव कुल-घ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्य् एषां लुप्त-पिण्डोदक-क्रियाः ॥ ४१ ॥
 
saṅkaro narakāyaiva kula-ghnānāṃ kulasya ca |
patanti pitaro hy eṣāṃ lupta-piṇḍodaka-kriyāḥ || 41 ||
 
saṅkaraḥ–impure progeny; narakāya–take to hell; eva–certainly; kula-ghnānām–for the destroyers of the dynasty; kulasya–for the dynasty; ca–also; patanti–fall down; pitaraḥ–the ancestors; hi–indeed; eṣām–for them; lupta–having been stopped; piṇḍa-udaka-kriyāḥ–their offerings of sanctified food and water.
 
The generation of such impure progeny certainly takes both the destroyers of the dynasty and the dynasty itself to hell. Indeed, their forefathers, being bereft of oblations of sanctified food and water, must also suffer the same fate.
 
से…. चेत जाउ। चेतू जे आगामी सन्तति सही रास्ता पर जन्म लियए। आडम्बर आ देखाबा केला सँ सन्तान कदापि सुदृढ आ सम्पन्न नहि बनि सकैत अछि। दहेज एकटा खतरनाक आडम्बर थिक। बन्द करू। अर्थक जरूरी छैक लेकिन अन्याय व अधर्मक मार्ग सँ कदापि नहि। स्वधर्म मे मृत्यु होयब श्रेष्ठ छैक, परधर्म मे भयावह – ईहो गीताक वचन थिकैक। एकरा सब केँ मनन करय जाउ। नहि त मिथिला आइ त शिथिला भेल अछि, १०० वर्षक बाद सन्तान खिल्ली उड़ायत एहि मूल्यवान् सभ्यताक। अस्तु! लम्बा लेख धैर्य सँ पढबाक लेल हमर प्रणाम!!
 
हरिः हरः!!