नेपाल मे अनधिकृत अयोग्य व्यक्ति द्वारा भाषा विमर्श आ मैथिली ऊपर प्रहार
राकेश रौशन गुप्ता सहित अन्य कतेको व्यक्ति जे यथार्थतः भाषाक भ तक नहि पढलथि वा बुझलथि, नहिये एहेन योग्यता कदापि हासिल कयलाह कि भाषा विज्ञान केँ बुझि अपन विचार राखि सकैत छथि, हिनका सब द्वारा अराजक राजनीतिक बहस-विमर्श जेकाँ भाषा पर अपन राय देनाय अनर्थ कय रहल अछि। एहि सन्दर्भ मे किछु विचार बौद्धिक समाज मे रखनाय आवश्यक बुझि अपन विचार राखि रहल छी।
जेकर बुद्धि, विद्या आ विवेक ठीक सँ विकसित नहि भेलय से कि बुझतय जे भाषा कि होइत छैक आ भाषा निर्माण के आधार कि होइत छैक। ओकरा कतहु पढ़ाई करायल गेलय नहि, नहिये ओ भैर जीवन अपनो कतहु पढ़लक। राजनीति में जातिवादिता आब भाषा मे प्रयोग करय चाहि रहल अछि। भाषा पर ध्यान शिक्षित लोक राखू।
मैथिली भाषाक इतिहास नेपाल केर जर्रा-जर्रा मे कोना छैक, कहिया सँ छैक, कियैक छैक, मल्लकालीन राज्य मे काठमांडू धरि मैथिलीक पहुँच केना भेलैक, नेपालक निर्माण आ विकास मे शाहवंशीय राज्यकाल मे सेहो मैथिलीक पहुँच कतेक धरि रहलैक… ई सब विद्यार्जनक विषय थिकैक। बौद्धिक रूप सँ विकसित लोक एहि सब विन्दु पर आधिकारिक चर्चा कय सकैत अछि।
राजनीतिक कार्यकर्ता सब जहिना वोट बैंक निर्माण लेल अपन-अपन जातीय आधार, धार्मिक आधार, अगड़ा-पिछड़ा आदि करैत अछि, ठीक तहिना नव संविधान बनलाक बाद सँ ‘हिन्दी भाषा’ केँ मधेशवाद मे स्थान नहि भेटबाक पेंच लागि जेबाक कारण गोटेक राजनीतिक चिन्तक सब नेपाली राष्ट्रभाषा पछातिक ‘समृद्ध आ सम्पन्न मैथिली भाषा’ केँ विखंडित करबाक सोच बना लेलक।
ओकरा ई विवेक तक नहि छैक जे ओ जाहि तरहक अराजक तर्क पर मैथिली केर विभिन्न बोली बीच अन्तर्संघर्ष करबा रहल अछि, ताहि सँ आत्मघाती गोल अपनहि साइड मे मारि रहल अछि। कारण, संघीयता उपरान्त जखन सब केँ अपन भाषा मे शिक्षा-दीक्षा आ स्थानीयता पर आधारित पाठ्यक्रम सब विकसित करबाक बेर एलैक तखन वाहियात आ व्यर्थ बहस मे लागिकय अपने सँ अपन विकास केँ ठमका लेलक।
पुनः एकल भाषा ‘नेपाली’ केर शान-शौकत त बढिते चलि गेलैक, अपन ‘निजता’ केर कोनो विकास मैथिली सहित थारू, राजवंशी, राई, लिम्बू, आदिक मातृभाषा उपेक्षित अवस्था मे रहि गेलैक से ध्यान नहि दय रहल अछि। तथापि, मैथिली आइ लगभग ८०० वर्ष (विद्यापतिक कालखंड १३५० सँ १४५० ई.) सँ ‘स्वयंसेवा, स्वसंरक्षण, सृजनकर्म मे निरन्तरता’ आदिक बल सँ जीवित अछि, आ से सब दिने रहत।
ई सब जे सन्देह आ अराजक राजनीतिक कौचर्य मे लोक मैथिली केँ फँसा रहल अछि ओकरा ईहो नहि पता जे ‘निजता’ कि होइत छैक, संघीयता मे काल्हि ओ सब अपन सन्तान केँ शिक्षा कोन भाषा मे देत, पाठ्यक्रम केर विकास कोना करत। बस, अगबे कुतर्क केर आधार पर कहियो मगही, कहियो ठेंठी, कहियो अंगिका, कहियो बज्जिका, कहियो पूर्वी, कहियो पछिमी… आदि-आदि उपभाषा (बोली) केर नाम पर आपस मे ‘विभाजन-विखंडन सँ सत्तारोहण’ केर सपना देखि सुसाइड गोल मारने जा रहल अछि।
हम तेँ निष्कर्षतः कहल जे बुद्धि, विद्या आ विवेक केर अविकसित अवस्थाक लोक केर एहि तरहक विमर्श मे समय नष्ट नहि कयल जाय। अधिकारसम्पन्न विद्वानक काज यथाभावी लोक द्वारा बिल्कुल नहि हो।
हरिः हरः!!