आब कि हेतय नेपाल मे

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

आब कि हेतय नेपाल मे

 
(हमर समीक्षाः नेपाल, न्याय आ राजनीति के परिप्रेक्ष्य आ नव सर्वोत्कृष्ट संविधान के तत्काल असरि, जनताक दुर्गति मादे)
 
एखन नेपाल के न्याय व्यवस्था बहुत बेसी चर्चा मे अछि। तहिना कोरोना सन भयावह महामारी के समय राजनीतिक उथल-पुथल सेहो अत्यधिक चर्चा मे अछि। नेपाल के न्याय व्यवस्था सम्बन्ध मे ‘गोरखा राजा के न्याय’ एक दिश नीक पक्ष केँ देखबैत रहल अछि त दोसर दिश ‘यहाँ मुखे कानून छ’ अर्थात् वरिया के मुंहे कानून कहल जेबाक खराब पक्ष सेहो अछि। हाल सर्वोच्च न्यायालय मे दर्जनों रिट (याचिका) जे राजनीतिक निर्णय सँ सम्बन्धित अछि ताहि पर चर्चा काफी जोर पर अछि। एक दिश एहि ठामक राजनीतिक दल जे नव संविधान अन्तर्गत आम चुनाव भेलाक बाद संघीय सरकार गठन केलक, लेकिन आपसी गुटबाजी चरम पर रहबाक कारण दलीय विभाजनक शिकार होइत आखिरकार ५ वर्ष लेल गठित संसद केँ विघटित कय देल गेल अछि। लेकिन एहि विघटन केँ जायज आ नाजायज माननिहार पुनः दुइ पक्ष आ मत रखनिहार अछि आर सर्वोच्च न्यायालय मे एहि सँ जुड़ल रिट पर बहस चलि रहल अछि।
 
मात्र ६ मास के भीतर विघटन के प्रक्रिया दुइ बेर भेल। पहिल बेर के विघटन के निर्णय केँ अवैधानिक करार देल गेल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा। लेकिन संविधानक उपलब्ध धाराक अभ्यास करैत पुनः सत्तापक्ष द्वारा अपन स्वविवेक आ निर्णय द्वारा संसद केँ दुबारा विघटन कय देल गेल। पुनः विपक्ष सर्वोच्च मे निवेदक बनिकय न्याय के गोहार कयलक। आर न्याय मे संविधान व संवैधानिक धाराक व्याख्या बड़ा रोचक स्थिति मे पहुँचि गेल छैक। आइ सँ ६ वर्ष पूर्व २०७२ विक्रम संवत साल मे जखन ई संविधान जारी कयल गेल छलैक त एकरा विश्व केर उत्कृष्ट संविधान हेबाक, भारतीय संविधान सँ बेसी नीक, आदि-इत्यादि कतेको तरहक विशेष अलंकरण सँ अलंकृत करनिहार आ दुइ-तिहाई बहुमत के सरकार द्वारा जारी कयल गेल संविधान कहैत एकर आलोचक आ विरोध करनिहार केँ मुंह बन्द कय देल गेल छलैक। एतेक तक कि पड़ोसी मित्रराष्ट्र भारत जेकर सहभागिता नेपाल मे द्वंद्व के राजनीति केँ अन्त कय शान्ति बहाल करय मे बहुत बेसी महत्वपूर्ण रहलैक तेकरो द्वारा सर्वसम्मति सँ संविधान जारी नहि करबाक प्रत्यक्ष आग्रह आ विशेष दूत मार्फत समझेबाक-बुझेबाक काज कयल गेलैक त एहि लेल भारतक विरोध मे कतेको तरहक हल्ला-फसाद आ नाकाबन्दी आदिक एकतर्फी माहौल बना देल गेलैक। आर आइ संविधान अन्तर्गत प्रथमहि चयनित पुनः दुइ-तिहाई बहुमत के सत्तापक्ष अपनहि आन्तरिक विमतिक कारण एहेन स्थिति मे पहुँचि गेल अछि सर्वोत्कृष्ट संविधान के दावी करनिहार स्वयं अपनहि बनायल उत्कृष्ट धारा आ शब्दावली मे फँसि गेल अछि। एकटा उदाहरण देखियौक – बड़ा रोचक स्थिति के वर्णन करैत छैकः संविधानक धारा ७६(५) मे राष्ट्रपति द्वारा सही निर्णय नहि करबाक आ वर्तमान प्रधानमंत्री के पी ओली व सत्तापक्ष केर सोच-सिद्धान्त आ संचालन पद्धति केँ मदति करबाक लेल आ फेर सँ संसद विघटन करबाक लेल अन्यायपूर्ण ढंग सँ विपक्ष के अधिकार दमन करबाक आरोप लागल छैक। आखिर कि थिकैक ई धारा ७६?
 
नेपालक संविधान २०७२ के धारा ७६ आ १ सँ १० टा उपधारा मे कि उल्लेख कयल गेल अछि –
नेपालक संविधान २०७२ धारा ७६. मन्त्रिपरिषदक गठन:
 
(१) राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा मे बहुमत प्राप्त संसदीय दल केर नेता केँ प्रधानमन्त्री नियुक्त कयल जायत आ हुनकहि अध्यक्षता मे मन्त्रिपरिषद केर गठन होयत ।
 
(२) उपधारा (१) अन्तर्गत प्रतिनिधि सभा मे कोनो टा दल केँ स्पष्ट बहुमत नहि हेबाक अवस्था मे प्रतिनिधि सभा मे प्रतिनिधित्व करनिहार दुइ वा दुइ सँ बेसी दल सभक समर्थन मे बहुमत प्राप्त कय सकनिहार प्रतिनिधि सभाक सदस्य केँ राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री नियुक्त कयल जायत ।
 
(३) प्रतिनिधि सभाक निर्वाचन के अन्तिम परिणाम घोषणा हेबाक तिथि सँ तीस दिन भीतर उपधारा (२) अन्तर्गत प्रधानमन्त्री नियुक्ति नहि भऽ सकबाक अवस्था मे या तेना नियुक्त प्रधानमन्त्री द्वारा उपधारा (४) अन्तर्गत विश्वासक मत प्राप्त नहि कय सकला पर राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा मे सब सँ बेसी सदस्य रहल दल केर संसदीय दलक नेता केँ प्रधानमन्त्री नियुक्त कयल जायत ।
 
(४) उपधारा (२) वा (३) अन्तर्गत नियुक्त प्रधानमन्त्री द्वारा तेना नियुक्त भेल तिथि सँ तीस दिन भीतर प्रतिनिधि सभा सँ विश्वासक मत प्राप्त करय पड़त ।
 
(५) उपधारा (३) अन्तर्गत नियुक्त प्रधानमन्त्री द्वारा उपधारा (४) मुताबिक विश्वासक मत प्राप्त नहि कय सकबाक अवस्था मे उपधारा (२) अनुसारक कोनो सदस्य द्वारा प्रतिनिधि सभा मे विश्वासक मत प्राप्त कय सकबाक आधार प्रस्तुत कयलापर राष्ट्रपति द्वारा ताहि सदस्य केँ प्रधानमन्त्री नियुक्त कयल जायत ।
 
(६) उपधारा (५) अन्तर्गत नियुक्त प्रधानमन्त्री द्वारा उपधारा (४) मुताबिक विश्वासक मत प्राप्त करय पड़त ।
 
(७) उपधारा (५) अन्तर्गत नियुक्त प्रधानमन्त्री द्वारा विश्वासक मत प्राप्त नहि करय सकय मे या प्रधानमन्त्री नियुक्त नहि भऽ सकय मे प्रधानमन्त्रीक सिफारिस पर राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा विघटन कय केँ छह मास भीतर दोसर प्रतिनिधि सभाक निर्वाचन सम्पन्न भऽ सकय तेहेन निर्वाचनक तिथि निर्धारित कयल जायत ।
 
(८) एहि संविधान मुताबिक भेल प्रतिनिधि सभाक निर्वाचन केर अन्तिम परिणाम घोषणा हेबाक वा प्रधानमन्त्रीक पद रिक्त भेल तिथि सँ पैंतीस दिन भीतर एहि धारा अन्तर्गत प्रधानमन्त्री नियुक्ति सम्बन्धी प्रक्रिया सम्पन्न करय पड़त ।
 
(९) राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्रीक सिफारिस पर संघीय संसद केर सदस्य लोकनि केँ समावेशी सिद्धान्त मुताबिक प्रधानमन्त्री सहित बेसी सँ पच्चीस गोटे मन्त्री रहल मन्त्रिपरिषद गठन कयल जायत ।
 
स्पष्टीकरण : एहि भागक प्रयोजनक लेल “मन्त्री” कहला सँ उपप्रधानमन्त्री, मन्त्री, राज्य मन्त्री व सहायक मन्त्री बुझय पड़त।
 
(१०) प्रधानमन्त्री आर मन्त्री सामूहिक रूप मे सङ्घीय संसद प्रति उत्तरदायी हेता तथा मन्त्री अपन मन्त्रालयक काजक लेल व्यक्तिगत रूप मे प्रधानमन्त्री आ संघीय संसद प्रति उत्तरदायी हेता ।
 
उपरोक्त धारा ७६ केर ५म धारा धरि राजनीतिक यात्रा नव संविधान अन्तर्गत पहुँचि गेल अछि। ५म धारा के अन्तर्सम्बन्ध २रा धारा संग अछि। २रा धारा मे दलीय समर्थनक जिकिर स्पष्ट रूप सँ राखल गेल अछि। दलीय व्यवस्था मे जे चुनाव लड़त, दलीय घोषणापत्र के आधार पर चुनाव लड़त, आर दल केँ प्राप्त संसदक संख्या के गानियेकय राष्ट्रपति द्वारा मंत्रीमंडल गठनक प्रक्रिया आगू बढायल जायत, तखन वर्तमान समय विपक्षी दल केर गठबन्धन मे नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउवा केँ नेकपा माओवादी केन्द्र (दल) केर समर्थन अतिरिक्त जनता समाजवादी पार्टी व नेकपा (एमाले) केर असन्तुष्ट संसद केर समर्थन के आधार केँ कतेक वैध मानल जाय आ राष्ट्रपति के स्वविवेक एहि ठाम कतेक सन्तुष्ट होबक छल, केवल एहि विन्दु मे मामिला फँसल छैक। हमरा हिसाब सँ राष्ट्रपतिक निर्णय दलीय मान्यता केँ उच्च प्राथमिकता दैत एहि ठाम माधव नेपाल गुट आ उपेन्द्र यादव गुट सँ प्राप्त संसदक संख्या केँ गिनती देउवाक पक्ष मे करितो पुनः ओली द्वारा दलीय आधार पर राखल गेल अपन दावी मे नेकपा एमाले आ जसपा के १२१ आ ३२ के संख्या जोड़िकय कुल १५३ संसदक गणित अपना पक्ष मे देखेलनि, जाहि पर राष्ट्रपति दुविधा मे फँसि गेलीह। आर तेँ ओ अपन निर्णय दुनू मे सँ किनको नहि देबाक निर्णय लेलीह। ओ दलील सेहो स्पष्ट रूप सँ देलीह। एक दिश दलीय समर्थनक सिद्धान्त आ दोसर दिश असन्तुष्ट नेताक खुलेआम समर्थन विपक्ष केँ, तेँ राष्ट्रपतिक निर्णय हमरा हिसाब सँ एतय कोनो गलत नहि छन्हि। दलीय मर्यादाक रक्षा संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र मे बहुत पैघ महत्व रखैत छैक आर सरकार बनेबाक लेल दल केँ प्राप्त संसदीय प्रतिनिधिक संख्या गानियेकय आर कोनो निर्णय लेल जाइत छैक। यदि गुटबाजी सँ उत्पन्न अन्तर्दलीय मतभिन्नता केँ आधार मानिकय ७६(५) अनुसार सरकार गठन होबय लागउ त ५ वर्ष मे २५ बेर एहि तरहक अराजक असन्तोष के अवस्था बनय लगतैक। असमय संसद विघटन केँ रोकबाक लेल किंवा नियंत्रित करबाक लेल सरकार गठन लेल ७६ धारा मे बहुत रास उपधारा छैक, सब धारा मे राष्ट्रपति कोनो प्रतिनिधि सभा सदस्यहि (व्यक्ति) केँ प्रधानमंत्री बनबाक लेल आह्वान करती, बाकी विश्वास मत प्राप्त करबाक परीक्षा पुनः संसदहि के पटल पर हेतैक, लेकिन एहि सब मे दलीय मर्यादा – दल के व्हीप (निर्देशन) अनुशासन आ व्यवहारिकता केँ देखबैत छैक। नेपाल के विपक्ष आ ओकर वकील के तर्क मे हमरा एतय दम नहि बुझा रहल अछि।
 
आगू देखू कि सब देखबैत अछि ई तथाकथित ‘सर्वोत्कृष्ट संविधान’। सर्वोच्च न्यायालय मे विपक्ष के तर्क (बहस) काल्हि धरि सम्पन्न भेल अछि। आब सत्तापक्ष केर तर्क (बहस) प्रस्तुत होयत। आब बेसी नहि, १०-१५ दिन मे सर्वोच्च के फैसला सेहो आबि जायत। देश मे अराजक राजनीति के अन्त हो आ जल्दी सँ जल्दी सब किछु पटरी पर आबि जाय, सब यैह कामना करैत अछि।
 
अन्त मे, ओली सरकार केर निर्णय पहिल बेर हमरा नाजायज बुझायल छल, लेकिन एहि बेर हमरा एकदम जायज बुझा रहल अछि। आब चुनाव एकमात्र समाधान अछि नेपाल मे। आन्तरिक गुटबाजी के कारण सरकार महत्वपूर्ण निर्णय सब नहि लय सकैत अछि। आपसी विमति के कारण दुइ-तिहाई के सरकार द्वारा देशहित मे कड़ा फैसला सब नहि लेल जा सकल। आगू सेहो ढुलमुल अवस्था सँ नीक फ्रेश मैनडेट (ताजा जनादेश) लेनाय उचित होयत। एखन राजनीतिक दल आ ओकर नीति सेहो प्रश्न मे अछि, एना लागि रहल अछि जे पारम्परिक राजनीतिक दल केँ कड़ा आत्मनिरीक्षण करैत नव नेपाल – समृद्ध नेपाल लेल नव कार्यनीति बनाबय पड़त। पुरान यथास्थितिवादी नीति पर देश केँ आगू बढेनाय संभव नहि अछि। तेँ, देशक सब राजनीतिक दल केँ चुनाव मे जेबाक संग-संग नव दिशानिर्देश आ घोषणापत्र मार्फत जनताक बीच मे जा कय जनादेश लेबाक अलावे आर कोनो उपाय नहि देखि रहल छी। अस्तु, हमर व्यक्तिगत विचार आ समीक्षा सँ सभक सहमति हो से जरूरी नहि, असहमति के तर्क आ सुझाव जरूर आबय से स्वागत करब।
 
हरिः हरः!!