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लव मैरिज आ अन्तर्जातीय विवाह – एक समीक्षा

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

लव मैरिज – अन्तर्जातीय विवाह

एहि विषय पर ‘दहेज मुक्त मिथिला’ समूह पर एखन धरि हजारों बेर ओहिना विमर्श भेल जेना एहि विषय पर सामान्यजन बीच गये दिन चाहक दोकान आ चौक-चौराहा सँ लैत बुद्धिजीवी बैसल दलान या ग्रामीण बैसल मचान पर होइत अछि। कनी गौर करू निम्न हालात परः

१. समाज मे लव मैरिज भले स्वजाति मे कियैक नहि हो, अभिभावकक सहमति जँ नहि छैक त समाज ओकर विरोध करैत छैक।
२. अन्तर्जातीय विवाह दू अलग जाति वा समुदाय केर लड़का लड़की केर बीचक विवाह केँ सेहो समाज, परिवार आ मित्र-बन्धु पर्यन्त स्वीकार नहि करैत छैक।
३. जखन कि स्टेट (राज्य) पौलिसी मे, लीगल एस्पेक्ट मे, अदालत मे, संविधान मे आ सरकार सहित सार्वजनिक विमर्शक समाज मे उपरोक्त दुनू बात केँ समर्थन देल गेल छैक, एतेक तक कि बढावा सेहो देल गेल छैक।
आब उपरोक्ट हालात १, २ आ ३ पर समीक्षा करू आ आत्मनिर्णय करू। अहाँ एक्के टा अन्तिम निर्णय निकालब – लोकक अपन मोन जेना होइत छैक तेना करैत अछि, अपने भोगैत अछि, नीक या बेजा ई ओकर अपन जीवन आ तेकर भविष्य सँ जुड़ल सवाल थिकैक, एकर सम्पूर्ण जिम्मेदारी बिल्कुल संवैधानिक मर्म अनुसार दुइ मैच्योर्ड एन्टिटीज द्वारा लेल जाइत छैक जाहि पर समाज, माता-पिता, सखा-सखी, आर अन्त मे स्वयं केर सेहो स्वीकार्यता बनैत-बिगड़ैत रहैत छैक।
एहि विषय पर हम सब अपन विचार पक्ष-विपक्ष दुनू मे राखि सकैत छी, मुदा हमरा सभक अपनहि सन्तान तक केर आत्मनिर्णयक अवस्था कि हेतैक तेकर गारन्टी करब हमरा सभक वश मे सामान्यतया नहि रहैत अछि। हँ, हम सब दावी कय सकैत छी जे अपन सन्तान केँ एहि तरहक संस्कार देलहुँ अछि जे पारिवारिक मर्यादा केँ ओ सब कथमपि भंग नहि करत। सहियो छैक। सुसंस्कृत परिवार मे पारिवारिक मान-मर्यादा केँ भंग करय सँ सन्तान बहुत हद तक स्वयं केँ नियंत्रित करैत अछि। तथापि दुर्घटना घटैत छैक। हमरा लोकनि अपनहि समाज मे, एतेक तक कि अपनहि परिवारहु मे एहि तरहक दुर्घटना घटैत देखि सकैत छी। एतय दुर्घटना शब्दक प्रयोग हम एहि लेल कयलहुँ अछि जे सामाजिकता मे प्रेम विवाह आ अन्तर्जातीय विवाह प्रति स्वीकार्यता दुर्घटनाक रूप मे मात्र देल जाइत छैक।
आइ एक भद्रलोक पुनः सवाल उठेलथि जे विवाह योग्य बेटी-बेटाक इच्छा अभिभावक केँ जनबाक चाही अथवा नहि। एकर जवाब वर्तमान देश, काल आ परिस्थिति अनुसार यैह छैक जे संवैधानिक मर्म केँ माननाय हरेक अभिभावक लेल बाध्यकारी छैक। अहाँ अपन परिपक्व आ कानूनी तौर पर निर्णय लेबाक लेल स्वतंत्र सन्तान केर इच्छाक विरूद्ध कोनो काज नहि कय सकैत छी, आ सच मे करबाको नहि चाही। व्यवहारिकता आ सामाजिकता मे सन्तानक राय बड बेसी महत्वपूर्ण छैक सेहो सच नहि, जे माता-पिता-अभिभावक जन्म सँ पढेबाक-लिखेबाक आ एतेक दूर धरिक यात्रा तय करबैत जीवनक ठोस बुनियाद देबाक काज कयलक से ओकर विवाहित जीवन प्रति कथमपि कमजोर निर्णय लेतैक ई सत्य नहि थिकैक, अकल्पनीय सेहो थिकैक… तथापि, एक सम्भ्रान्त आ सज्जन परिवारक लोक केर ई जिम्मेदारी जरूर बनैत छैक जे अपन निर्णय मे विवाह योग्य सन्तानक सहमति लैत सौहार्द्रपूर्व वातावरण मे विवाह करबाक काज करय। तहिना, हरेक सन्तानहु केर ई धर्म आ कर्तव्य बनैत छैक जे अपन कोनो तरहक स्थिति-परिस्थिति आ आत्मनिर्णय सँ अपन अभिभावक केँ समय पर सूचना दैत कोनो निर्णय लियए, ई नहि जे परिवार सँ बागी बनिकय अपन आ अपना संग परिवारहु केँ तनाव आ विवाद मे फँसाबय। ई सब आदर्श स्थिति थिकैक।
ईहो सर्वविदिते अछि जे आदर्श स्थिति वला प्रेम विवाह आ अन्तर्जातीय विवाहक संख्या आब दिन-प्रतिदिन बढले जा रहल अछि। तेकर कतेको रास कारण छैक। विवाह पद्धति मे आबि रहल अनेको व्यवधान, विवाहक उमेर एतेक बढि जेबाक जे ता धरि लड़का या लड़की केर निजी विकास आ विचार मे एहेन स्थिति आबि जाइत छैक जे ओ स्वनिर्णय केर स्थिति मे पहुँचि अपना आप केँ परिवार, माता-पिता आ परिवेश सँ इतर चलि जाइत अछि। पहिने सिल्वर स्क्रीन के ७०एमएम के इफेक्ट रहैक, आब त पोर्टेवल टेलिविजन सँ एलईडी आ ताहू सब सँ ऊपर एन्ड्राइड मोबाइल मे लोकक आन्तरिक स्थिति – अन्तरंगता आदि केँ प्रभावित-प्रेरित करयवला सामग्री सरेआम उपलब्ध भेटैत छैक। एतबा नहि, आब घरहि केर बन्धन मे जीवन सिमटल नहि रहि गेल छैक, आब उच्च अध्ययन लेल दूर देश मे रहबाक आ ताहि ठाम को-एजुकेशन केर माहौल मे पार्टनर फ्री उपलब्ध हेबाक स्वतंत्रता-स्वच्छन्दता आदिक कारण ई प्रेम आ प्रेम लेल जातीय सीमा आदिक सारा लेहाज उठि गेलैक सेहो कहय मे अतिश्योक्ति नहि होयत। तैयो यदि कियो पारिवारिक सीमा, प्रतिष्ठा, मर्यादा आ निजी अनुशासन मे रहि जाइत अछि त ओ सच मे काफी सुसंस्कृत आ उच्च मर्यादा केँ मनन करनिहार व्यक्तित्व कहल जायत। आर एहि सब कारण सँ परिवारक बुझनुक सदस्य लोकनि सेहो अपन सन्तानक स्थिति बुझैत प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह केँ समर्थन दैत छथि। जँ नहि दैत छथि त पारिवारिक सुख-शान्ति मे जहर घोरेबाक दुरूह अवस्था बनि जाइत अछि।
अन्त मे, किछु अभिभावक या परिवार स्वयं केर संस्कार मे सेहो समयानुसार परिवर्तन अनैत जातीय सीमा केँ स्वयं छोड़ि एडमिक्स कल्चर केँ अपना रहल छथि। एकर नीक आ बेजा पक्ष पर कोनो दोसर दिन लिखब… एखन यैह कहब जे सन्तानक सहमति सँ आजुक परिवेश-परिस्थिति मे वैवाहिक सम्बन्ध निर्धारणक निर्णय सर्वथा उचित होयत। एकरा कियो नहि नकारि सकैत छी। तखन दीर्घकालीन सुख आ शान्ति लेल सामाजिक आ व्यवहारिक पक्ष मे प्रेम विवाह आ अन्तर्जातीय विवाह केर विरोध सेहो जायज अछि, एकरो कियो नहि काटि सकैत छी। हर स्थिति केँ आरो गहींर अध्ययन लेल आजू-बाजू केर अनेकों उदाहरण लय सकैत छी, आत्मनिर्णय मे सहजता होयत। हमर विचार सँ सहमति-असहमति अहाँक स्वतंत्रता थिक, हमर कोनो जबरदस्ती नहि जे मानिये ली। ॐ तत्सत्!!

हरिः हरः!!

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