समाज मे सभक योगदान छैक – सभक प्रति स्वीकार्यताक भाव सब व्यक्ति मे जरूरी

जड़ व्यक्ति मे सेहो अनेक सद्गुण आ वैशिष्ट्य छैक

– प्रवीण नारायण चौधरी

एहि संसार मे भिन्न-भिन्न प्रकारक मनुष्य रहैछ। ओकर वृत्ति (कर्म) सेहो भिन्न-भिन्न होइछ। साधारण जनजीवन मे सभक आजीविका चलेबाक काज कतेको रंग के छैक। सामाजिक व्यवहार मे लोकवृत्तिक आधार पर केकरो सभ्य, केकरो असभ्य, केकरो ऊँच, केकरो नीच हेबाक बात प्रचलित सामाजिक दृष्टि अनुसार लोक कहि दैत छैक। हमरा लगैत अछि जे परापूर्वकाल सँ एहने दृष्टि सभक अनुसार लोक मे वर्ग, जाति, समुदाय केँ परिभाषित करबाक काज भेलैक। हम एकर जड़ि मे बेसी नहि जाय चाहब सिबाये एक प्राकृतिक न्यायक बात कहैत जे प्रत्येक जीव केँ जीविकोपार्जनक कला ईश्वरप्रदत्त (प्रकृतिप्रदत्त) होइत छैक आर जेकरा जाहि कर्म (वृत्ति) मे सहज चेष्टा करबाक पुस्तैनी ज्ञान भेटैत छैक ओ ताहि मे रमण करय चाहैत अछि।

 
एतय हमरा मोन पड़ि रहल अछि जे भगवान् राम द्वारा जखन अपनहि कुलदेवता समुद्र सँ विनयशीलताक कोनो उचित जवाब ससमय नहि भेटलाक बाद ओ केना कुपित होइत अपन बाणक तेज सँ समुद्रहि सोखि लेबाक उत्तेजना मे आबि गेलाह। तखन समुद्रदेव हुनका सँ हुनकहि सृष्टिक नियम आर हरेक रचनाक प्रकृति मे रमण करबाक नीति विनयपूर्वक प्रस्तुत करबाक आख्यान सेहो मोन पड़ैत अछि। समुद्रदेव स्पष्ट कहलखिन जे हमर रचना अहाँ एक जड़वत् स्वरूप मे कएने छी, हमरा जे भार देने छी ताहि अनुसार हम अपन कर्तव्य मे लागल छी। हम न सुखा सकैत छी आ न आन कोनो बाट अछि हमरा लग, एतेक रास अहींक रचल जीव-जन्तु हमरा मे आश्रय लेने अछि जेकर रक्षा हमर पहिल आ अन्तिम कर्तव्य छी। आर पुनः समुद्रदेव रामजीक सेना मे नल-नील नामक ओहि दुइ भाइ केँ देखलनि जिनका किछु विशेष वरदान भेटल छलन्हि, जाहि सँ सेतुबन्धनक अत्यन्त दुरुह काज पूर्ण कयल गेल आर तेकर बाद सब कियो लंका धरि पहुँचलाह।
 
ई आख्यान् मे समुद्रक कतेको रूप देखाइत अछि। ओ श्रीरामक कुलदेवता सेहो छथि। ओ जड़ (जिद्दी, अपनहि बात पर अड़ल रहनिहार) सेहो छथि। ओ स्वयं श्रीराम सँ हुनकहि सृष्टिक नियम आर ताहि मे प्रयुक्त ५ तत्त्व – क्षितिज, जल, अग्नि, गगन व समीर – सभक जड़ स्वभाव बनेबाक विलक्षण उपमा पर्यन्त देलनि अछि। आर फेर देव-ऋषि-मनुजक हितकारी परमावतारी महापुरुष श्रीराम केँ हुनकहि सेना मे रहल समाधानक स्रोत (नल-नील) केर सुझाव सेहो देलनि।
 
बन्धुगण! हमर आजुक लेख केर अभिप्राय ई अछि जे उपरोक्त आख्यानक जड़-प्रवृत्तिक समुद्र केर अनेकों रूप हमरा लोकनि अपन समाज मे कतेको जड़ मनुष्य सँ तुलना करैत अपन-अपन जीवन लेल एकटा मर्यादाक शिक्षा ग्रहण करी। कियो कतबो जड़ होयत, ओकरा मे बहुत रास सद्गुण सेहो छैक। ओकर सद्गुण आ जीवनोपयोगी योगदान केँ हम सब सराहना जरूर करी। कियो कर्म सँ तुच्छ भले भऽ जाय, वृत्ति सँ नीच भले भऽ जाय, लेकिन ओकर महत्व बेर पर सर्वोच्च सेहो छैक से नहि बिसरी। हम सीधे उदाहरण देब ‘डोम’ जाति केर। मिथिला व विभिन्न पौराणिक सभ्यता (क्षेत्रादिक) सामाजिक संरचना मे कोल, भील, डोम, आदि समुदाय केँ जंगली वृत्ति मे जीवनयापन करैत देखल गेल अछि। लेकिन वैह डोमक बनायल चंगेरा, कोनियाँ, सूप, ढकिया, पथिया, फूलडाली, डाला, आदि अनेकों वस्तुक उपयोग आम जनजीवन सँ लैत सर्वोच्च महत्वक देव आराधना व कर्मकाण्डहु मे उपयोगिता अकाट्य अछि। आर त आर, मिथिलाक कोनो एहेन गाम देखाउ जे केवल बड़के-बड़के वृत्ति आ कर्म करयवला लोक सँ चलि रहल हो? कदापि नहि! सभक सहभागिता सँ ई सृष्टि चलि रहल अछि। समाज कदापि एकरंगा लोक सँ नहि, बहुरंगा, बहुप्रकृति, बहुवृत्ति, बहुबौद्धिक, बहुसामर्थ्य आदिक संयोग सँ मात्र सफलतापूर्वक चलि सकैत अछि। एकरा कियो गोटे नहि बिसरब, सभक प्रति सम्मानक भाव जरूर राखब।
 
अहाँ सब मोन पाड़ब, कहियो शबरी के खिस्सा सेहो कहबाक अछि। आइ मूल रूप सँ शुरू वैह कएने रही… लेकिन मस्तिष्क दोसर दिशा मे चलि गेल। ओना मैथिली जिन्दाबाद पर यदि ताकब त अहाँ सब केँ शबरी आ नवधा भक्ति केर कथा वृत्तान्त भेटत आ अहाँक जीवन व जीवनशैली केँ परिवर्तन करबाक कुब्बत रखैत अछि ई लेख सब। बस स्वाध्याय सँ जुड़ल रहू। 🙂
 
ॐ तत्सत्!!
 
हरिः हरः!!