महिलाक हाथ मे बागडोर सौंपिकय देखू – मिथिलाक प्रगति सूत्र पर करुणा झा

लेख

– करुणा झा, राजविराज

मिथिलानी सबस अपेक्षा बढ़ि रहल छै

मैथिल समाज स्वभावत: बड़बोला समाज अछि। जतेक छै तहि स बेसी बाजब मैथिल के स्वभाव रहल अछि। स्वकेंद्रित विकास के प्रधानता देबय बला ई समाज क्रांति-धर्मी कहियो नै रहल अपितु किछु ऐतिहासिक घटना के छोइड़ दियौ त सदैव ई समाज सत्तासीन व्यक्ति वा व्यवस्था के अंध-अनुयायी बनल रहल। जे आदेश भेलैक तकरा हिसाबे अपन जीवन जीबय बला। सभ्यता के विकास क्रम में भने ई समाज भौतिक रूप स परिवर्तित भेल धरि सैद्धांतिक रूप स ई समाज सदैव पौराणिक आस्था स चिपटल रहल।

ऐतिहासिक रूप स पुरूष प्रधान मानसिकता के ई समाज एक्कैसम सदी तक में नारी-अधिकार के प्रति उपेक्षित भाव रखैत अछि। बेटी के शिक्षा-दीक्षा भने पहिने स बहुत बढ़ि गेल, बहुतों बेटी घर-आंगन के चौखटि लांघि शहर, नगर, देश आ विदेश तक में अपन प्रतिभा’क लोहा मनौलक, जीवन के सब क्षेत्र में उपस्थिति बनौलक धरि एखनो समाज के मुख्यधारा के संचालित करबाक अधिकार हासिल नै क सकल अछि। भारतीय इतिहास में प्राचीनतम समाज व्यवस्था के अवशेष देखबाक हो त एखनो मिथिलावासी मैथिल समाज में अनेक एहन रीति-रिवाज, कर्मकांड आ परंपरा जीवित छै जकर जोड़ अन्य कोनो समाज में भेटव मोश्किल। वेद, पुराण, उपनिषद स ल क सनातन हिंदू धर्म के अनेकों पद्धति के समेटने मैथिल समाज आधुनिकता आ पौराणिकता के अद्भुत सम्मिश्रण उपस्थित करैत अछि।

स्वभावत: कृषिजीवी मैथिल एक समय शिक्षा-संस्कृति में सेहो अद्वितीय रहबाक सौभाग्य हासिल कयने छल आ खाली भारते नै विदेशो में मैथिल के प्रतिभा सम्मानित होमय लागल छल धरि कालक्रम में ई समाज अपने प्रपंच में फंइस अपन गौरव हरौलक। डाह, द्वेष, ईर्ष्या, व्यर्थक वितंडा आ प्रभुत्वशाली वर्गक दासता’क मनोभाव ई समाज के अग्रगति रोकि देलक। अपन प्रतिभा स सम्मानजनक पद तक पहुंचल मैथिल अपन समांग वा ग्रामीण के ओहि क्षेत्र में प्रवेश करबा में बाधक बनैत रहल जकर परिणति भेलैक जे क्रमशः सरकारी आ निजी क्षेत्र के उच्च पद पर एहि समाज के प्रतिनिधित्व ह्लास होइत गेल।

अधिकांश लोक मजदूरी, किरानी, ठेकेदारी आ टहलुआ काज में नियुक्त भ कोनोहुना जीवन बितेबाक लेल अभिशापित रहल। किछु लोक पंडिताई, दरबानी, रसोइया आ मास्टरी में सिमटि गेल। प्राकृतिक प्रकोप के निरंतर प्रहार स छिन्न-भिन्न होयबाक लेल अभिशप्त ई समाज कालांतर में एतेक दीन-हीन भऽ गेल जे जीविकोपार्जन लेल परदेशगामी होयबाक लेल बाध्य भ गेल। प्रतिवर्ष बाइढ़, सुखाड़ आ नियमित अंतराल पर भूकंप समस्त मिथिला क्षेत्र के तबाह-ओ-बर्बाद क देलक। आई मैथिल वैश्विक समाज क हिस्सा रहितो वैश्विक चेतना स हीन अछि। ज्ञान के विस्तार भने भेलैय लेकिन अज्ञानता के अवशेष सेहो गहने रहल। विज्ञान अन्वेषित जीवन शैली में आधुनिक कहाबय बला ई समाज जतेक अर्थ पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत कर्म-कांड पर खर्च करैत अछि तकर चौथाइयो जौं स्थानीय वा क्षेत्रीय विकास पर करित त स्थिति बड्ड नीक रहित।

पुरूष प्रधान मैथिल समाज के प्रगति आन समाज’क तुलना में एखनो नगण्य। आई धरि सब संभावना रहितो‌ मिथिला क्षेत्र में उद्यमिता ओ स्व-रोजगार के मानसिकता बलवान नै भेल अछि। बहुसंख्यक वर्ग नौकरी-चाकरी लेल जीवन समर्पित करैत अछि। शहर गेलाक बाद गाम के चिंता छोइड़ दैत अछि। ग्रामीण राजनीति के विभेदी सूत्र सेहो ओकरा बाध्य करैत अछि। एहन समय में गंभीर चिंतन आवश्यक। वैश्विक राजनीतिक परिवर्तन क्रम में मैथिल समाज के यदि प्रासंगिक रहबाक छै त चिंतन में परिवर्तन समय’क आवश्यकता।

हमर मानब अछि जे किछु दिन के लेल मैथिल समाज सामाजिक नियमावली बनेबाक जिम्मेदारी उच्च शिक्षित, प्रतिभाशाली, पेशेवर महिला समूह के दौ। ममता, वात्सल्य आ भातृत्व भावना के अधिकारिणी महिला वर्ग निश्चित विभेदी, आतंकप्रबल, रक्तरंजित सामाजिक चिंतन के शमन करतीह आ एकटा सर्वजन उपयोगी सामाजिक व्यवस्था के उत्थान संभव होयत। दहेज प्रथा एहन सामाजिक कलंक के शमन लेल सेहो महिला नेतृत्व के युगांतरकारी भूमिका भऽ सकैत अछि। आखिर एके समाज में पुरुष आ नारी के मूल्यांकन पृथक हेबाक संकीर्णता कियैक? हमर कहब जे सामाजिक स्तर पर नवचिंतन के बेसी स बेसी प्रोत्साहित करू, बहस करू, तर्क-वितर्क के अवसर दियौ आ श्रेष्ठ विचार के सामाजिक स्वीकृति सेहो तखने समाज के जीवंतता प्रमाणित होयत।