चर्चित विद्वान् पं. गोविन्द झाक चिट्ठी मिथिलाक मुखिया लोकनिक नाम – सन्दर्भ मैथिली पठन-पाठन

महत्वपूर्ण लेखः साभार डा. रमानन्द झा ‘रमण’ केर फेसबुक पोस्ट

(ई आलेख पटना सँ प्रकाशित मैथिली मासिक पत्रिका ‘घर-बाहर’ मे सेहो प्रकाशित भऽ चुकल अछि।

मिथिलाक मुखिया सभक नाम: पं श्री गोविन्द झाक पत्र:

आदरणीय मुखिया जी,

प्रसन्नताक बात जे अपन राज्य बिहारमे पंचायती राज चालू भेल आ जनता अपने केँ श्रद्धा-विश्वासपूर्वक मुखियाक उच्च आसनपर बैसौलक। एहिसँ अपनेक प्रतिष्ठा बढ़ल, सत्ता बढ़ल, आर्थिक क्षमता बढ़ल आ संगहि हमरा सभक आशा सेहो बढ़ल जे अपनेक नेतृत्वमे ई पंचायत आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक आ सांस्कृतिक उन्नतिक बाट धरत। मुखियाक पदपर अएला सँ अपनेक सिर पर बहुत तरहक जिम्मेवारी सेहो आबि पड़ल अछि। ताही प्रसंग हमरा सभक ई अपील अपनेक हाथमे अछि।

अपने केँ ज्ञात भेल होएत जे मैथिलीकेँ संविधानक आठम अनुसूचीमे स्थान भेटलैक अछि आ ताहि सँ मैथिली अपनेक पंचायतक विधिसम्मत क्षेत्रीय भाषा भए गेल। फलस्वरूप अपने पर इहो दायित्व आबि गेल अछि जे अपनेक पंचायतक शैक्षिक आ सांस्कृतिक विकासक कार्यक्रममे स्थानीय/क्षेत्रीय भाषाक रूपमे मैथिलीक प्रयोग हो। अतः तत्काल हमरालोकनि अपनेसँ अपील करैत छी जे उक्त संवैधानिक दायित्वक पालनक क्रममे अपने ई आदेश जारी कएल जाए जे –

1. पंचायत भरिक सभ स्कूलमे चारिम वर्गधरि मैथिली पढ़ाओल जाए आ आनो विषय मैथिलीक माध्यमसँ पढ़ाओल जाए, तथा

2. ग्राम-पंचायतक यथासम्भव सभ लिखा-पढ़ी आ विचार-विमर्श मैथिलीमे हो।

अपने जनैत होएब जे ई शिक्षाक युग थिक आ प्राथमिक शिक्षामे मातृभाषाक कतेक महत्त्व छैक। प्राचीन कालमे शिक्षामे केवल संस्कृत भाषाकेँ स्थान छलैक, तेँ संस्कृत जननिहार एक वर्ग शिक्षा पाबि-पाबि बहुत ऊँच भए गेल, आ शेष वर्ग पछुआइत गेल। संस्कृतक जोति मन्द भेलैक तँ फारसी आएल, उर्दू आएल, हिन्दी आएल आ अङरेजी आएल। एहू भाषा सभमे किछु विशेषे वर्ग शिक्षा पाबि सकल, किएक तँ टाका खर्च कए ई भाषा सभ सीखए पड़ैत छलैक, टाका पछुआएल वर्गक हाथमे छलैक नहि। अतः पछाति संसारक शुभचिन्तक लोकनि ई निर्णय कएलनि जे शिक्षा जहाँधरि सम्भव हो, मातृभाषा द्वारा देल जाए, तखनहि पछुआएल वर्ग सेहो शिक्षाक लाभ पाबि सकत। मिथिलावासीक मातृभाषा मैथिली थिक ई बात ने एहिठामक शासक ठीकसँ बुझलक, ने पछुआएल वर्गक जनते। परिणाम ई भेल जे मैथिलीक जागरण भेलहु पर फेर ओएह वर्ग मैथिली पढ़ि-पढ़ि प्राथमिक, माध्यमिक आ उच्च शिक्षाक क्षेत्रमे हजारक हजार पद हथिआए लेलक, आ पछुआएल वर्ग मैथिलीसँ विमुख रहबाक कारणेँ मुह तकैत रहि गेल।

अपने इहो जनैत होएब जे मिथिलांचलमे एखन मैथिली, हिन्दी आ अङरेजी – ई तीन भाषा ज्ञान-विज्ञान पएबाक तीन सीढ़ी अछि। अपनेक पंचायतमे जे नेना जनम लैत अछि तकरा, सभसँ पहिने अपन माइक मुहसँ सुनल भाषा मैथिलीक ज्ञान होइत छैक। एही पहिल सीढ़ी पर पाएर रोपि ओ क्रमहिँ हिन्दी, अङरेजी वा कोनहु आन भाषामे प्रवेश करैत अछि। धनवान् वर्गक नेना टाकाक बलेँ एकहि बेर अङरेजी पर कूदि जाइत अछि आ सभ टा ऊँच-ऊँच नोकरी हँसोथि लैत अछि। जे गरीब वर्ग ओहि धनी वर्गक नकल करैत अपन नेनाकेँ ओहिना कुदाए फनाए अङरेजी धराए दैत अछि तकर नेना आरक्षणक रस्सी पकड़िओ कए वांछित ऊँचाइ पर नहि पहुँचि पबैत छैक। तेँ हमरा लोकनिक विचारेँ दुर्बल वर्गक हेतु पहिने मैथिली, तखन हिन्दी आ तकरा बाद अङरेजी – इएह बाट लाभदायक होएतैक। वस्तुतः गरीबे वर्गक नहि, सभ वर्गक नेनाकेँ बाल्यावस्था भरि, कमसँ कम सात वर्षक बएस धरि मातृभाषा द्वारा शिक्षा देल जाए से सिद्धान्त दुनिया भरिक विद्वान एक स्वरसँ स्वीकार करैत छथि आ इएह परिपाटी दुनिया भरिमे चलि रहल अछि। एही सभ बातकेँ ध्यानमे रखैत अपने सँ उपर्युक्त अपील कएल गेल अछि।

अपने कहब, आनो बहुत गोटए कहताह-मैथिली पढ़ने कोन फल? उत्तर सुनि चकित नहि होएब। सुनल जाए। अपनेक गामक छात्र बी.ए. वा बी.एस-सी. धरि मैथिली पढ़ि-पढ़ि आब आइ.ए.एस/आइ.पी.एस सेहो भए सकैत अछि। संविधानक आठम अनुसूचीमे मैथिलीकेँ स्थान भेटबाक फलस्वरूप संघ लोकसेवा आयोग (यू.पी.एस.सी) केर परीक्षामे एक विषयक रूपमे मैथिली स्वीकृत भए चुकल अछि। अपनेक गामक छात्र आन-आन मुख्य विषयक संग मैथिली लए ओहि परीक्षामे बैसत तँ मैथिलीमे अबस्से नीक नम्बर आनत, किएक तँ ओकरा मैथिली भाषा आ साहित्यक ज्ञान बड़ थोड़ प्रयासेँ नीक जकाँ भए सकैत छैक। आ अपने जनितहिँ छी जे कोनहु विषयमे एको-दू नम्बर बेसी अएने भाग्य कोना चमकि सकैत छैक। एतबे नहि, संघ लोकसेवा आयोगमे स्वीकृत भेलाक बाद बिहारक लोक सेवा आयोग (बी.पी.एस.सी.)मे सेहो मैथिली एक विषय भए गेल अछि आ अपनेक पंचायतक युवकवर्ग मैथिलीक बलेँ ओकरो परीक्षामे सफल भए बिहार सरकारमे ऊँच-ऊँच पद पाबि सकत। एहिसँ अतिरिक्त मैथिली पढ़निहारकेँ कालेज, हाइस्कूल, आ प्राइमरी स्कूल सभमे नोकरी पएबाक खूब सम्भावना छैक। शिक्षाक प्रसार तेज गतिसँ भए रहल अछि। मैथिली क्षेत्रीय भाषाक रूपमे ठाढ़ भए चुकल अछि। तेँ मैथिली शिक्षकक नियुक्ति भारी संख्यामे होएबाक आशा कएल जाए सकैत अछि। जँ अपने अपन सन्तानकेँ डाक्टर/इंजीनियर बनबए चाही तँ अवश्य बनाओल जाए, मैथिली चारिमे वर्ग धरि रहओ ताहि सँ आगाँ जे मन होइक से पढ़ओ, मैथिली टाङ नहि घिचतैक। परन्तु जँ जन्महिसँ मैथिली छोड़ि देत तँ समाजसँ कटि जाएत, आ बापो-माएसँ कटि जाएत। नेनामे मैथिलीक संस्कार जमल रहतैक तँ ओ एना नहि कटत।

आजुक अर्थप्रधान युगमे दू तरहक भाषा आवश्यक बुझल गेलैक अछि – गृहभाषा वा मातृभाषा (Home Language) आ वृत्ति-भाषा (Trade Language)। मैथिली हमरा लोकनिक गृह-भाषा थिक आ हिन्दी वा अङरेजी वृत्ति-भाषा। हिन्दी दुर्बलक हेतु आ अङरेजी प्रबलक हेतु। गृहभाषाक महत्त्व सभक हेतु समान रूपसँ छैक, कारण इएह भाषा मूलतः ओकरा सामाजिक, सांस्कृतिक आ साहित्यिक चेतना दए सकैत छैक।

एतेक लाभ आ एतेक स्कोप रहैत के कहत जे मैथिली पढ़ने कोनो फल नहि?

अपनेक मनमे एक टा आओर प्रश्न होएत। मैथिली तँ एहिठामक लोककेँ बिनु पढ़नहिँआबि जाइत छैक, तखन पढ़एबाक कोन प्रयोजन? हम कहब, सत्ते बिनु पढ़ने मैथिली बाजए टा आबि जाइत छैक। मैथिली अबैत छैक से तखन कहबैक जखन ओ धड़ाधड़ लिखि आ धड़ाधड़ पढ़ि सकए। ओना अक्षर जनैत छी तेँ क-ट कए कछुआ चालिसँ लिखि लेब आ बीच-बीचमे पड़बा जकाँ घुटकैत पढ़ि लेब ताहिसँ मोजर नहि होएत। की अङरेजीक बच्चाकेँ अङरेजी पढ़ाओल नहि जाइत छैक?

अपनेक मनमे एक प्रश्न आओर उठि सकैत अछि – जा धरि सरकारसँ स्पष्ट आदेश नहि आओत ता धरि हिन्दीकेँ हटाए मैथिली कोना अपनाओल जाए? जानि लेल जाए जे सरकार एहन आदेश जारी करए तकर ने आवश्यकता छैक आ ने वर्तमान राज्य सरकारसँ एहन आदेशक आशा कएल जाए सकैत अछि। ज्ञातव्य जे मातृभाषा मैथिली द्वारा प्राथमिक शिक्षा हो, से आदेश बिहार सरकार बहुत दिन पूर्वहि दए चुकल अछि आ टेक्स्ट बुक कार्पोरेशनसँ तदर्थ पोथी सभ सेहो प्रकाशित भए चुकल अछि। आब हमरा लोकनिक कर्त्तव्य थिक जे ओहिसँ लाभ उठाबी। एहिमे नियम-कानून कतहु बाधक नहि अछि। एहिना ग्राम-पंचायतकेँ वा कोनहु स्वायत्त संस्थाकेँ स्वयं ई निर्णय करबाक अधिकार छैक जे ओ कोन भाषामे अपन काज करए। भारतमे प्रायः सभ पंचायत अपन-अपन क्षेत्रीय भाषामे काज कए रहल अछि। अपनेक पंचायतक क्षेत्रीय भाषा आब कानूनन मैथिली भए गेल अछि तेँ अपनेक पंचायत मैथिलीमे काज करए ताहिमे कोनो कानूनी बाधा नहि छैक।

आशा जे अपने हमरा लोकनिक एहि अपील पर समुचित ध्यान दैत मैथिलीकेँ न्यायोचित स्थान देबामे अगुआ बनब आ ताहि हेतु मैथिलीक विकासक इतिहासमे अपनेक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत।

भवदीय,

– गोविन्द झा

स्रोत : ‘घर-बाहर’, जुलाइ-सितम्बर, 2018