कोन नीकः प्रेम विवाह कि पारम्परिक विवाह

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

कोन नीकः प्रेम विवाह कि पारम्परिक विवाह

ई हमर नितान्त व्यक्तिगत विचार छी। हमर एहि विचार सँ किनको निर्णय केँ हम परिवर्तित करय लेल नहि चाहि रहल छी, बल्कि यदि विचार मे स्पष्टता, यथार्थता आ सतर्कताक कोनो भान हुअय तऽ अपन विचार मे जरूर बदलाव आनू तेँ ई लेख लिखि रहल छी।

लेख लिखय सँ पहिने एहि मंच ‘दहेज मुक्त मिथिला’ पर सब सँ ईहो अनुरोध करब जे विमर्श मे अपन विचार राखिकय ओकरा जबरदस्ती केकरो ऊपर लदबाक वास्ते तर्क देब हमरा उचित नहि बुझाइत अछि। खासकय आजुक युग मे, जखन जातीय सीमा, धार्मिकताक बाँध, समाज मे परस्पर सहयोग आ संग देबाक मानवीय सम्बन्ध आदिक आधार पर बेसी स्वतंत्रता छैक आर जेकरा जे मोन मे अबैत छैक से अपना सुविधा सँ कय रहल अछि। कियो केकरो रोकनिहार अथवा टोकनिहार आइ के युग मे अत्यल्प भेटत। आब हमर लेख –

प्रेम आ विवाह दू अलग चीज थिकैक। प्रेम केर कतेको प्रकार होइत छैक। विवाह केर सेहो कतेको प्रकार छैक। कुल ८ प्रकार केर विवाह हिन्दू शास्त्र-ग्रन्थ मे परम्पराक आधार पर कहल गेल अछि, पहिने लिखिकय पोस्ट कयने छी, समूह पर अथवा मैथिली जिन्दाबाद पर सर्च करब भेटि जायत। प्रेम केर प्रकार परिभाषित नहि छैक। जखनहि दुइ विपरीत लिंगक मानव वा जीव केर बीच आकर्षण बढल त ओकरा प्रेम भेल साधारण परिभाषा मे कहल जाइत छैक। विवाह लेकिन आकर्षण बढेबाक संग-संग आजीवन परिवार चलेबाक एकटा सामाजिक आ व्यवहारिक समझौता होइत छैक। अर्थात् प्रेम भेल त विवाह होयत आ भरि जीवन निबहत से परिभाषित नहि छैक, मुदा विवाह भेल त प्रेम होयत आ भरि जीवन निभेबाक अछि एहि लेल वचनबद्धता थिकैक। आर से वचन वैदिक यज्ञक आयोजन संग अग्निकुंड मे हवन करैत इष्ट, परिजन, सज्जन, समाज, गुरुजन आदिक सान्निध्य मे लेल जाइत छैक आर तेँ ई निभेबाक संकल्प बहुतो तरहें कठोर आ दीर्घगामी होइत छैक।

विवाह केँ सामाजिक मानल गेलैक अछि। जखन कि प्रेम आन्हर होइत छैक। ई सामाजिक बन्धन केँ – जातीय सीमांकन केँ – धार्मिक वा आध्यात्मिक आकलन आदि केँ रिजेक्ट (अस्वीकार) करैत बिना बेसी विवेकक प्रयोग कएने सीधा आगू बढि जेबाक जोश संग अविवेकी निर्णय बेसीतर करैत छैक। यैह कारण छैक जे प्रेमक सहयोगी भले सिनेमा हौल मे बेसी देखाय, यथार्थ समाज मे बहुत कम्मे नजरि पड़त। ताहि पर सँ दुनिया भरिक १०० टौप लव मैरेज केर एक प्रसिद्ध पुस्तक पढ़बाक अनुभव सँ हम ईहो कहि सकैत छी जे १०० मे ९५ टा प्रेम विवाह भरि जीवन नहि निबहैत छैक। विवाह सँ पूर्व प्रेमी-प्रेमिका बीच जे आकर्षण आ एक-दोसरक प्रति समर्पणक पराकाष्ठा रहैत छैक ओ विवाहक तुरन्त बाद बदलब शुरू भऽ जाइत छैक। यथा –

प्रेम होयबाक एकमात्र प्रमुख कारण होइत छैक प्रेमी युगल केर शारीरिक आकर्षण, एक-दोसरक प्रस्तुति आ प्रतिभा संग विचार आ बात मे खींचाव – यैह दुइ प्रमुख विन्दु पर प्रेमी युगल आकर्षित होइत छैक। ‘लव’ भऽ जाइत छैक। कतेको लोक ‘लव’ करितो अछि, अर्थात् एकतरफी कियो नीक लागि जाइत छैक त ओकरा लेल पागल जेकाँ दीवानगी देखबैत बाय हूक या क्रूक अपन प्रेम सफल बनेबाक प्रयत्न करैत अछि – यानि लव करैत अछि। एहि सब परिस्थिति मे ‘लवर’ यानी प्रेमी अथवा प्रेमिका केर माता-पिता, परिजन, कुल, समाज, धर्म, संस्कृति, संस्कार आ परम्परा आदिक परवाह प्रेमी युगल नहि करैत छैक। आर विवाहक तुरन्त बाद ई सब बातक साइड इफेक्ट शुरू भऽ जाइत छैक। आर फेर प्रेम विवाह अन्ततोगत्वा कइएक प्रकार भँवर मे फँसि दम तोड़ि दैत छैक।

हम मिथिलाक एक गोट अत्यन्त प्रतिष्ठित विद्वानक खूब पढल-लिखल बेटी संग एक बेर ट्रेन यात्रा मे भेटल रही, मेडिकल केर पढाई करैत ओ सहपाठी कोनो अन्य जातिक विद्यार्थी सँ प्रेम कयलीह आ विवाहो कयलीह। हुनकर विवाह सफल छन्हि। लेकिन जीवन मे कइएक प्रकारक कड़ुआ अनुभव सब जे ओ सुनौलीह ताहि सँ सोचय पर मजबूर भऽ गेलहुँ जे सच मे प्रेम विवाह यदि व्यक्तिगत जीवन लेल सफलो सिद्ध होइत छैक तैयो असफल केना रहैत छैक, माने जे जीवन भरि लेल कय प्रकारक पश्चाताप, दोसरक दृष्टि मे हेय आ ओछ होयबाक स्थिति, अपन कुलीनता सँ नीचाँ सीमा तोड़ि दोसर सँ विवाह करबाक मलीनता आ दोषभावक कारण भरल समाज मे झुकल सिर सँ सामना नहि कय सकबाक पीड़ा – आह! हम कतेक कहू, हुनकहि समान विदुषी मिथिलानी छलीह जे बड़ा खुलिकय अपन सब यथार्थ स्थिति सँ परिचय करौलीह।

जखन कि पारम्परिक विवाह मे कि होइत छैक जे स्वविवेक सँ ऊपर वैह अभिभावक पर जिम्मेदारी रहैत छैक जे जन्म सँ पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, व्यवहारिक ज्ञान, मानवताक पाठ – सब किछु सिखौलनि। यदि ओ हमरा वास्ते एतेक दिन धरि सब कार्य पूर्ण विवेक सँ कयलनि तखन विवाह जेहेन विषय मे सेहो ओ विवेकशीलता केँ सर्वोच्च स्थान पर राखियेकय निर्णय करता। एतबा नहि, यदि हम स्वयं सेहो हुनकर निर्णय मे एकटा भूमिका निभाबय चाहि रहल छी त जरूर विनम्रता सँ अपन विचार राखि सकैत छी। यदि प्रेमहि भऽ गेल हो आर आब परिवारक सहमति लैत बढैत छी त ईहो संभव अछि। भले एहि मे विरोधक भावना परिजनक मुंह सँ सुनय लेल भेटत, तथापि बिना हिचकिचाहट हम अपन प्रस्ताव राखि सकैत छी। मतलब जे परिवार आ समाज संग मिलिकय कयल गेल निर्णय कदापि छद्म आ क्षुद्र नहि होयत, एकर आयु लम्बा होयत।

अन्त मे हम एकटा बात ईहो जोड़य चाहब – विवाह समजातीयता केँ देखिकय करब बहुत आवश्यक छैक। एतय जातीयता केँ व्याख्या मे जन्म सँ अवधारल जाति नहि अपितु जन्म सँ सीखल-रचल-बसल संस्कृति सँ जे जातीयता प्राप्त कयलहुँ ताहि अनुरूपे अपन वर अथवा कन्याक संग विवाह करबाक चाही। यदि एतय अहाँ विजातीय संग विवाह करब त निश्चित वर्णसंकर सन्तान आओत जे कुल केर मर्यादा केर नाश करत, जल-पिण्ड क्रिया सबटा समाप्त भऽ जायत, शास्त्रीय कथनानुसार ३ पीढी गेलहा आ ३ पीढी आगू आबयवला – सब नरकगामी होयत। एकर व्याख्या एहि तरहें करू जे अपन कुलीनता केँ सर्वनाश करयवला, अपन भाषा आ संस्कृति केँ त्याग करयवला, कोनो तरहक धार्मिक वा पारम्परिक मर्यादा आदि केँ पालन नहि करयवला – एहि तरहक सन्तान केर जन्म लेला सँ अहाँक अपन जे अस्तित्व अछि से कलंकित आ समाप्त भऽ जेबाक खतरा अछि।

अतः निर्णीत रूप मे विवेकशील बनिकय सब विन्दु पर आत्मसमीक्षा कयलाक बाद वैवाहिक निर्णय होबक चाही। ई जिनगी भरि केर सम्बन्ध थिकैक। ई नहि जे आज तुम्हारे साथ आ कल किसी और के साथ वाली हिन्दी फिल्म वला स्थिति हम मिथिलावासी संग कथमपि सच भऽ सकैत अछि। अस्तु! जीवन अहाँक आ निर्णय सेहो अहाँक! जय मिथिला – जय जानकी!!

हरिः हरः!!